दोस्तों आज हम एक New Short Story for Kids in Hindi बच्चो के लिए एक नई कहानी लेकर आये है। इस कहानी शीर्षक “सच्चा धन ” है। यह कहानी शिक्षाप्रद है साथ ही हमे जीवन के कुछ सत्य बतलाती है। तो आप सभी इस Short Story for Kids in Hindi को पढ़े और अपने बच्चो, दोस्तों व रिश्तेदारों को बताएं।
सच्चा धन
(Short Story for Kids in Hindi)
विशाल और अभय दोनों मित्र थे। वे एक ही कक्षा में पढ़ते थे। दोनों साथ-साथ स्कूल जाते, साथ-साथ खेलते। कई वर्षो से यही क्रम चलता आ रहा था। दोनों की बच्चे धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे। बड़े होने के साथ-साथ विशाल में अब घमंड की भावना भी पनपने लगी थी। एक दिन वह अभय से बोला — “अभय ! तुम तो गरीब हो।”
“कैसे ? हैरान होकर अभय ने पूछा। उसने तो यही सुना था कि गरीब वे होते है जिनके पास खाने को भरपेट भोजन नहीं होता, पहनने के लिए कपड़े नहीं होते।”
विशाल कहने लगा — “तुम्हारे घर में न टीवी है , न फ्रिज है, न कूलर है।”
“क्या जिनके यहाँ ये सब नहीं होते वे गरीब होते है ?” अभय पूछने लगा।
“और क्या ! मेरी मम्मी यही कहती है।” विशाल गर्व के साथ बोला।
अभय अपना-सा मुँह लेकर रह गया। वह उदास होकर घर पहुंचा। आज उसने पहली बार बड़े ध्यान से अपना घर देखा। वह मन ही मन सोचने लगा कि विशाल ठीक कहता है। उसके घर में विशाल के घर की भांति न कीमती सोफा है, न कालीन है, न चमक-दमक वाला महंगा समान है। टीवी, कूलर और फ्रिज की तो बात ही दूर रही। यह सब सोचकर तो उसकी उदासी और भी अधिक बढ़ गई। अब अभय को लगा कि सारे ही मित्रों में वही गरीब है।
अब अभय का दूसरे बच्चो के साथ खेलने का, उनके घर जाने का भी मन न होता। उसे लगता कि विशाल की भांति कहीं वे भी उसे गरीब न कहने लगे। वह अपने आपको दूसरे बच्चो से हीन समझने लगा।
अभय की माँ कई दिनों से देख रही थी कि वह अन्यमनस्क-सा ही रहता है। न वह अपने दोस्तों से खुलकर बात करता है और न उनके साथ ही खलेने -कूदने जाता है। उन्होंने सोचा कि बच्चे है आपस में झगड़ लिए होंगे।
“क्या बात है अभय? क्या तुम्हारी किसी बच्चे से लड़ाई हुई है?” माँ ने पूछा।
“नहीं तो माँ। ” अभय ने उत्तर दिया। “तो फिर तुम दूसरे बच्चो के साथ खेलते क्यों नहीं ? गुमसुम से चुपचाप क्यों बैठे रहते हो ?” माँ पूछ रही थी।
अभय बोला — “माँ ! वे सब अमीर है। उनके वहां जाते मुझे झिझक लगती है। “
“क्यों ! किसी ने तुमसे कुछ कहा है क्या ? अभी तक तो तुम रोज एक-दूसरे के घर आते-जाते थे।”
“मैंने तो इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। हम गरीब है ऐसा विशाल कहता था , क्योकि हमारे घर उसके घर की तरह कीमती चीजें नहीं है। ” अभय रुँआसा-सा बोला।
माँ को यह सुनकर अच्छा न लगा। “बच्चे के मन से यह हीन भावना निकालनी ही होगी अन्यथा उसका स्वास्थ्य-विकास रुक ही जाएगा।” मन ही मन उन्होंने सोचा।
माँ ने पूछा — “अच्छा मुझे एक बात बताओ ?” क्या स्कूल में तुम्हारे अध्यापक भी ऐसा कहते थे ? क्या वे भी उन्ही बच्चो को अधिक महत्व देते है ? क्या उन्ही को प्यार करते है जिनके घरों में कीमती चीजें है।”
अभय बोला — “नहीं माँ ! ऐसा तो कुछ नहीं है। “
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“तो बेटे ! इस बात को अपने मन से बिलकुल ही निकाल दो। बड़ा वह नहीं है जिसके घर में कीमती चीजें है। व्यक्ति बड़ा होता है अपने अच्छे गुणों से , अच्छे व्यवहार से। बाहरी चमक-दमक की चीजें तो बस थोड़े से समय के लिए ही प्रभावित कर सकती है।” माँ समझा रही थी।
अभय बड़े ध्यान से माँ की बातें सुन रहा था।
माँ फिर बोली — “अभय बेटे ! ईमानदारी और परिश्रम की कमाई ग्रहण करने वाला ही सच्चा अमीर है। रिश्वत लेने वाला, दूसरों को सताने वाला ही सबसे गरीब है। तुम अभी इन सब बातो में अधिक न उलझो। परीक्षाएं पास है, मन लगाकर पढ़ो। व्यक्ति सद्गुणों से ही सच्चा और स्थायी सम्मान पाता है। “
माँ की बाते अभय की समझ में आ गई थी। वह अपनी पढ़ाई में जी-जान से जुट गया। वार्षिक परीक्षा का परिणाम निकला तो अभय ने कक्षा में सर्वोच्च अंक पाए। प्रधानाचार्य ने उसकी बहुत प्रशंसा की और पुरस्कार दिया। शिक्षकों और साथियों ने भी उसकी प्रशंसा की। इस सबके बीच अभय को रह-रहकर माँ की बात याद आ रही थी कि सद्गुणों से ही व्यक्ति सच्चा और स्थायी सम्मान पाता है।
धीरे-धीरे समय बीतता गया। अभय अब विशाल की बातों पर बिलकुल ध्यान न देता था। वह माँ को सम्मान देता था, उसकी सीख के अनुसार चलता था। अभय हर कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होता। खेलकूद, वाद-विवाद, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि कोई ऐसा क्षेत्र न था जिसमे अभय आगे न रहा हो। वह अपने स्कूल में प्रतिभाशाली छात्रों में से एक माना जाता था। साथी उसका सम्मान करते थे, अध्यापक उसे प्यार करते थे।
स्कूल की शिक्षा समाप्त करके अभय और विशाल दोनों ने दोनों ने कॉलेज में प्रवेश लिया। अभय ने अपने परिश्रम , प्रतिभा और अच्छे व्यवहार से वहां भी सम्मान पाया और हर क्षेत्र में सबसे आगे ही रहा। कॉलेज में जाकर विशाल अमीर और अय्याश लड़को की संगत में पड़ गया। उसमे बहुत से दुर्गुण आ गए। वह पैसे के घमंड के कारण किसी को कुछ समझता ही न था। उसके पिताजी बड़े व्यापारी थे, उसकी हर मांग पूरी करते रहते थे। बच्चा किधर जा रहा है ? यह देखने की उन्हें फुरसत ही न थी।
कुछ वर्ष बाद पढ़ाई समाप्त करने के बाद अभय को अच्छी नौकरी मिल गई। वह प्रोन्नति करता हुआ बड़ा अफसर बन गया। उधर विशाल वही सोचता रहा कि मुझे अधिक पढ़-लिखकर क्या करना है, मुझे क्या कोई नौकरी करनी है। मेरे पास आखिर कमी किस चीज की है ?
दिन बदलते देर नहीं लगती। विशाल के पिताजी को व्यापार में जबरदस्त घाटा हुआ। उन्होंने विशाल से स्पष्ट कह दिया कि वह कोई काम-काज ढूंढे, इस तरह घर बैठे रहने से कोई लाभ न होगा। नौकरी की तलाश करते-करते विशाल एक दिन अभय से मिला। अभय के ऑफिस में एक स्थान खाली था। विशाल ने अभय से बड़ी प्रार्थना की कि वह उसे उस स्थान पर रख ले। अभय को विशाल की इस बात से बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला — “भाई ! यह तो छोटा-सा पद है , वेतन भी कम मिलेगा। तुम इस छोटे पद पर काम क्यों करोगे ?”
“क्या करूं ? जितनी मुझ में योग्यता है वैसा ही तो पद मिल पाएगा। ” यह कहते-कहते विशाल की आँखे गीली हो गई। कुछ पल चुप रहकर वह बोला — “अभय भाई ! तुम्हारी बातों की मैं सदा उपेक्षा कर दिया करता था, पर अब ये मुझे रह-रहकर याद आती है। तुम ठीक कहा करते थे कि धन से नहीं सदविचारों से, गुणों से, योग्यता से व्यक्ति ऊँचा उठता है, आगे बढ़ता है — यही सच्ची संपत्ति है। धन तो आज है कल नहीं, उसके आधार पर अपने को बड़ा समझना बड़ी मूर्खता है।”
अभय ने विशाल को बहुत देर तक समझाया।उसके जाने के बाद बहुत देर तक उसके मन में एक बात गूंजती रही — “मेरी माँ ने जो सम्पत्ति दी है वह कभी नष्ट नहीं हो सकती। ” उसका मस्तक माँ के प्रति श्रद्धा से झुक गया जिसने उसे सच्ची दिशा दिखलाई थी।
तो दोस्तों कैसी लगी यह New Short Story for Kids in Hindi आप सभी को जिसका शीर्षक है “सच्चा धन ” । दोस्तों इस Short Story for Kids in Hindi अर्थात सच्चा धन से हमे पता चल ही गया होगा की इंसान धन संपत्ति से अमीर नहीं होता। अमीर होने के लिए गुणों का, सदविचारों का होना आवश्यक है तभी इंसान जिंदगी में आगे बढ़ पाता है। दोस्तों ऐसे ही Short Story for Kids in Hindi और रोचक हिंदी कहानियां पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट पर आते रहिए और यह कहानी कैसी लगी comment जरूर करिए।
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