आज हम आपको जीवन से जुड़े 20 amazing facts in hindi about life बताने जा रहे है जिसे पढ़कर आपको जीवन के तथ्य अथवा रोचक जानकारियाँ अवश्य मिलेगी। ये amazing facts in hindi about science के भी है जो विज्ञान के कुछ तथ्यों का विस्तारण करता है।
1. खून का रंग लाल ही क्यों होता है ?
( amazing facts in hindi about life )
खून जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। यह शरीर के हर भाग को ऑक्सीजन पहुंचाते के कार्य से लेकर रोगों से सुरक्षा दिलाए रहने की भूमिका निभाता है। शरीर के सभी कार्यो के संचालन में लाल खून का प्रमुख स्थान है। सामान्य व्यक्ति के शरीर में खून की तीन-चार किलो मात्रा परिभ्रमण करती रहती है और इसी पर जीवन निर्भर करती है। इसलिए इसकी निरंतर, पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति आवश्यक है। इस जीवनदायी खून के लाल होने का कारण जानने के लिए इसके गठन को जान लेना जरुरी है।
हमारे खून की रचना दो तरल और ठोस भागों पर निर्भर करती है। द्रव भाग प्लाज्मा कहलाती है ; जबकि ठोस भाग में सफेद रक्त कण (white blood cells, WBC), लाल रक्त कण (red blood cells, RBC) और प्लेटलेट्स (platelets) होते है। प्लाज्मा पिले रंग का गाढ़ा द्रव होता है जिसमे प्रोटीन, एंटीबॉडी (Antibody), फाइब्रिनोजन (Fibrinogen), वसा (Fat), लवण और कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) आदि मिले रहते है।
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शरीर की बढ़ोतरी के लिए प्रोटीन, विषैले पदार्थों को समाप्त करने के लिए एंटीबॉडी, कट जाने या चोट लगने पर बहते खून को जमाकर रोकने के लिए फाइब्रिनोजन की पूर्ति खून के इसी भाग से होती है। सफेद रक्त रोगाणुओं से लड़ाई लड़कर उन्हें परास्त करके हमें रोगी नहीं होने देते। प्लेटलेट्स खून के बहाव को रोकने में सहायक होते है।
हालाँकि इतनी साडी चीजें खून में होती है फिर भी वह हमें लाल इसलिए दिखाई देता है क्योंकि खून में पाए जाने वाले लाल रक्त कणों की संख्या बहुत अधिक होती है। यदि खून में सफेद रक्त कण एक है तो लाल रक्त कण 700 होते है। लाल रक्त कणों का लाल रंग हीमोग्लोबिन(Hemoglobin) नामक रंजक के कारण होता है, जो लौह एवं प्रोटीन से मिकार बना होता है। लाल रक्त कणों में पाए जाने वाले इसी रंजक के कारण खून का रंग लाल होता है।
2. जब दर्पण पर अपना चेहरा सीधा दिखाई देता है तो लिखावट के अक्षर उलटे क्यों दिखते है ?
( amazing facts in hindi about science )
वास्तव में दर्पण देखने पर हमारा चेहरा भी सीधा दिखाई न देकर अक्षरों की तरह उल्टा ही दीखता है। लेकिन वह हमे सीधा लगता है। इसका कारण यह है कि हमारे चेहरे का मध्य भाग नाक के दोनों ओर एक समान होता है। इसलिए उसका उल्टा-सीधा भी एक समान ही होता है।
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यही कारण है कि इस समानता की वजह से हमारा चेहरा दर्पण में उल्टा होने पर भी सीधा दिखाई देता है। इस बात की सत्यता तब स्पष्ट हो जाती है जब हमारा चेहरा एक समान नहीं होता है। मान लो, हमारे चेहरे पर बाईं ओर कोई तिल आदि का निशान है तो वह दर्पण के चित्र में दाईं ओर ओर ही दिखाई देगा।
यही बात लिखावट के अक्षरों पर लागू होती है। अक्षरों की बनावट अक्षर के मध्य भाग से बाईं और दाईं ओर एक समान नहीं होती है, तभी तो वे दर्पण में उलटे नजर आते है। लेकिन जो अक्षर एक समान या सममित होते है; जैसे i, M, O, T, U, V, W और X ये सीधे ही दिखाई देते है।
3. जुकाम होने पर हमारी नाक से गंध का अनुभव होना बंद क्यों हो जाता है ?
(amazing facts in hindi)
किसी भी प्रकार का गंध को पहचानने का कार्य हमारी नाक द्वारा किया जाता है। हालाँकि मनुष्य में सूँघने की शक्ति अन्य जानवरो की तुलना में कम होती है, फिर भी अपने जीवन के लिए आवश्यक अनेक प्रकार की गंधो को वह अनुभव कर लेता है। इस क्रिया के लिए हमारी नाक में घ्राण तंत्रिकाएँ (Olfactory system) होती है। जिनके माध्यम से गंध की सूचनाएँ हमारे मस्तिष्क (Brain) तक पहुँचती रहती है और हमे गंधो की जानकारी मिलती रहती है।
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लेकिन जुकाम हो जाने पर हमारी नाक के गंध मस्तिष्क तक पहुँचानेवाली घ्राण तंत्रिकाओं (Olfactory system) के सिरे अथवा रास्ते श्लेष्मा (Phlegm) के कारण अवरुद्ध या बंद हो जाते है , जिससे गंधों की जानकारी मस्तिष्क तक नहीं पहुंच पति। इसी कारण हमें गंधों का अनुभव होना बंद हो जाता है। जुकाम ठीक हो जाने पर जब घ्राण तंत्रिकाओं के सिरों अथवा रास्तो से श्लेष्मा हट जाती है और स्थिति सामान्य हो जाती है, तो हमें गंध की जानकारी पुनः मिलनी प्रारंभ हो जाती है।
4. क्या छिपकलियाँ अपनी पूँछ छोड़कर भाग जाती है ? यदि हां, तो वे ऐसा क्यों करती है ?
(fact of life in hindi)
जीव-जंतु, पशु-पक्षी अपने हमलावरों से रक्षा के लिए अनेक प्रकार के तरीके अपनाते है। छिपकलियाँ अपनी रक्षा के लिए पूँछ छोड़कर भागने का तरीका भी अपनाती है। सामान्यतः वे खतरा होने पर मुर्दे के समान निश्चल पड़ जाती है और दुश्मन को बेवकूफ बना देती है।
लेकिन कभी दुश्मन इनकी इस चाल से बेवकूफ नहीं बन पता है तो छिपकलियाँ बड़ी तेजी से छलांग लगते हुए उठकर भाग जाती है। भागते समय वे दुश्मन को उलझाए रखने के लिए अपनी पूँछ छोड़ जाती है। दुश्मन उनकी छटपटाती पूँछ देखने में लग जाता है, तब तक वे भागकर नौ दो ग्यारह हो जाती है और अपनी जान बचा लेती है।
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छिपकली की पूँछ न रहने से उसे कोई खास हानि नहीं होती है; क्योकि कुछ समय के बाद नई पूँछ आ जाती है। छिपकली की पूँछ रीढ़ की हड्डी के उस विशिष्ट स्थान से अलग होती है जहाँ से पेशियाँ आसानी से पृथक हो जाती है। अपनी रक्षा के लिए पूँछ छोड़कर भाग जाना छिपकलियों की विशेषता है; लेकिन जब इस तरकीब से बचाव नहीं हो पाता है तो वे पंजे मारने, काटने और खून की पिचकारी मारने आदि के तरीके भी अपनाती है।
5. जब आँखे बंद करके किसी प्रकाशस्रोत की ओर देखते है तो हमे लाल रंग क्यों दिखाई देता है ?
(interesting facts in hindi)
हमारी आँखों की पलके हालाँकि अपारदर्शी (Opaque) होती है; लेकिन इन पलकों में रक्तवाहिनियों (Blood Vessels) का जाल-सा बिछा होता है। इनमे बह रहा रक्त प्रकाश को परावर्तित करने का कार्य करता है। इसलिए जब हम आँखे बंद किए होते है और प्रकाश के स्रोत की ओर देखते है तो रक्तवाहिनियों में परावर्तित प्रकाश के कारण हमें लाल रंग दिखाई देता है।
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यदि पलकों को किसी ऐसे कपड़े आदि से ढक या कसकर बाँध दिया जाए जिससे पलकों तक प्रकाश पहुंच ही न सके तो परावर्तन के अभाव में ढकी या कसकर बंधी आँखों हमे लाल रंग दिखाई नहीं देगा। पलको की तरह रक्तवाहिनियों में परावर्तित प्रकाश के कारण हथेली को किसी प्रकाशस्रोत जैसे टॉर्च आदि के प्रकाश पर रखने से हथेली भी लाल दिखाई पड़ती है।
6. कमरे में जालीदार खिड़की द्वारा भीतर से बाहर देखने पर बाहर का दृश्य साफ और कमरे के बाहर से भीतर देखने पर भीतर का दृश्य धुँधला या नहीं के बराबर क्यों दिखाई देता है ?
(amazing facts in hindi about life)
हमें हर चीज प्रकाश की उपस्थिति में ही दिखाई देती है। जब किसी वस्तु पर प्रकाश पड़ता है तो वह प्रकाश उस से टकराकर परावर्तित होकर हमारी आँखों में आता है और हम उस वस्तु को देख लेते है। जब हम कमरे में बैठकर जालीदार खिड़की से बाहर देखते है तो दिन के समय बाहर प्रकाश अधिक होता है और कमरे में कम, इसलिए बाहर का दृश्य साफ़ दिखाई देता है और बाहर से अंदर देखने पर कम प्रकाश के कारण अंदर का दृश्य धुँधला या नहीं के बराबर दिखाई देता है।
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ठीक इसके विपरीत रात के समय जब बाहर अँधेरा होता है और कमरे में रोशनी होती है तो बाहर से अंदर का दृश्य साफ और अंदर से बाहर का दृश्य धुँधला या बिलकुल भी दिखाई नहीं देता है क्योंकि उस समय बाहर अँधेरा या कम रोशनी के कारण वस्तुओं या दृश्य से प्रकाश परावर्तित होकर हमारे पास नहीं आ पाता है। अतः भीतर से बाहर या बाहर से भीतर का दृश्य साफ दिखाई देना, वहां के प्रकाश तथा अंधकार की मात्रा पर निर्भर करता है।
7. उम्र बढ़ने के साथ-साथ वृद्धावस्था में पहुँचने तक त्वचा में झुर्रियाँ क्यों पड़ जाती है ?
(amazing facts in hindi about life)
सामान्यतः अधिक उम्र होने या वृद्धावस्था आने पर त्वचा में झुर्रियाँ पड़नी प्रारंभ हो जाती है। ऐसा तब होता है जब त्वचा की ऊपरी सतह में परिवर्तन होने लगते है। त्वचा जिन ऊतकों (Tissues) की बनी होती है वे ऊतक कोलेजन (Colejan) तथा इलास्टिन (Elastin) प्रोटीन फाइबर से बने होते है। इन्ही के कारण त्वचा में खिंचाव बना रहता है और हम युवा दिखाई देते है।
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लेकिन धीरे-धीरे जब उम्र बढ़ती है और हम वृद्धावस्था के निकट आते है तो प्रोटीन फाइबर कम होने लगते है और उनमें एक तरह की अव्यवस्था की स्थिति आ जाती है। जिसके कारण त्वचा में रहने वाला खिंचाव काम हो जाता है। इसके अतिरिक्त इस उम्र में त्वचा पहले की अपेक्षा सूखने भी लगती है। अतः त्वचा में खिंचाव कम होने और उसके सूखने के कारण वृद्धावस्था में त्वचा में झुर्रियाँ पड़ जाती है।
8. धातुओं के बर्तनों की अपेक्षा मिट्टी के बर्तनों में पानी अधिक ठंडा क्यों होता है ?
(amazing facts in hindi about life)
धातु के बर्तनों में रंध्र (Stoma) नहीं होते है जबकि मिट्टी के बर्तनों में छोटे-छोटे छिद्र, जिन्हे रंध्र कहते है, होते है। इन रंध्रों से मिटटी के बर्तनों में भरा पानी रिस-रिसकर बर्तनों की ऊपरी सतह पर आता रहता है और वाष्पीकृत होता रहता है। इस वाष्पीकरण की क्रिया के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति वाष्पीकरण के आस पास की वस्तुओं से होती है।
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जब मिट्टी के बर्तनों से वाष्पीकरण होता है तो इस वाष्पीकरण के लिए ऊष्मा की पूर्ति बर्तन में भरे पानी के ताप की ऊष्मा से होती है। इस क्रिया में पानी के ताप में कमी आने लगती है और वह धातु के बर्तनों में भरे हुए पानी की तुलना में अधिक ठंडा हो जाता है।
9. हमें नहाने के बाद ठंड क्यों लगती है ?
(amazing facts in hindi about life)
सामान्यतः जब हम नहाते है तो हमारे आस पास के वातावरण का तापमान नहाने वाले पानी से अधिक होता है। अतः शरीर पर पानी डालकर नहाने पर हमारे शरीर से पानी का वाष्पीकरण होना प्रारंभ हो जाता है। वाष्पीकरण की क्रिया के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होती है। यह ऊष्मा हमारे शरीर से ही ली जाती है। इसके परिणामस्वरूप हमारे शरीर का ताप पहले की तुलना के कम होने लगता है और हमें ठंडक अनुभव होने लगती है
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। ठंडक की कमी या अधिकता वाष्पीकरण की क्रिया के अनुसार की होती है। यदि वाष्पीकरण अधिक होता है तो ठंड भी अधिक लगेगी और वाष्पीकरण कम होने पर ठंड भी कम या मामूली-सी लगती है। यदि नहाने के बाद पंखे की हवा में खड़े हो जाए तो ठंड अधिक लगती है ; क्योंकि तेज हवा के कारण शरीर से वाष्पीकरण भी अधिक होता है। अतः सर्दी के मौसम के अतिरिक्त नहाने के बाद ठंड लगने का कारण शरीर से पानी का वाष्पीकरण होना ही होता है।
10. जो कंबल हमें सर्दियों में गरम रखता है वही कंबल बर्फ को पिघलने से कैप बचाता है ?
(amazing facts in hindi about life)
कंबल न हमें गरम रखता है और न बर्फ को पिघलने से बचाता है। ऊन का कंबल तो उष्मा या ताप का कुचालक होता है। वह जहाँ भी होता है वहां से ताप के आवागमन को रोक देता है। इसीलिए जब सर्दियों में हम कंबल ओढ़ते है तो शरीर का ताप बाहर के ठंडे वातावरण में जाने से रुक जाता है और हम अपने ही ताप या उष्मा से अपने आपको गरम अनुभव करते रहते है।
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कंबल हटते ही हमारा ताप ठंडे वातावरण की ओर जाने लगता है और हमें ठंड लगने लगती है। लेकिन जब हम कंबल से बर्फ को ढक देते है तो बर्फ का तापमान शून्य डिग्री सेंटीग्रेड पर ही स्थिर हो जाता है; क्योंकि कंबल के उष्मा के प्रति कुचालक होने से उष्मा का आदान-प्रदान नहीं हो पाता है। इससे बर्फ का तापमान बढ़ता नहीं है और वह पिघलने से बच जाती है।
11. आँधी आने से पहले हवा शांत क्यों हो जाती है ?
(amazing facts in hindi about life)
जैसे मछलियाँ पानी में रहती है, हम अपनी पृथ्वी पर हवा के सागर में रहते है। इसे ही पृथ्वी का वायुमंडल कहा जाता है। यह हमारी पृथ्वी के चारों ओर पाया जाता है; लेकिन यह एक समान न होकर भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न होता है। इसके कारण ही पृथ्वी की सतह पर हवा का एक दबाव रहता है, जो वायुदाब कहलाता है। यह बदलता रहता है। जब किसी स्थान पर यह कम हो जाता है तो उसे हवा के कम दबाव का क्षेत्र कहते है। इस स्थिति में ऐसे स्थान निर्वात क्षेत्र हो जाते है और हवा बिलकुल शांत हो जाती है।
amazing facts in hindi about life
लेकिन यह स्थिति अधिक देर तक नहीं रहती है। इस निर्वात को दूर करने के लिए आस पास की हवा बड़ी तेजी से आने लगती है। इसे ही हम आँधी कहते है। आँधी में हवा के तेज होने से उसके साथ धूल-मिटटी, कूड़ा-करकट तथा अन्य चीजे भी उड़कर चली आती है। इस तरह आँधी भयंकर रूप धारण कर कभी-कभी जान-माल दोनों की हानि करती है। इसीलिए आँधी आने से पहले दबाव के कारण हवा शांत हो जाता है। ठीक इसके विपरीत जब हवा का दबाव अधिक होता है तो मौसम बहुत अच्छा और सुहावना होता है।
12. पहाड़ों तथा ऊँचे स्थानों पर दाल देर से क्यों पकती है ?
(amazing facts in hindi about life)
हम जिस धरती पर रह रहे है चरों ओर से हवा की परत घेरे हुए है। इसका दबाव नीचे स्थानों पर सबसे अधिक और ऊँचे स्थानों पर ऊँचाई के अनुसार कम होता जाता है। किसी भी द्रव को उबलने के लिए जिस ताप की आवश्यकता होती है वह भी हवा के दबाव के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है।
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जब हम निचले स्थानों में दाल पकाते है तो वहाँ पानी हवा के अधिक दबाव होने से अधिक ताप पर, अर्थात 100 अंश सें. के ताप पर उबलता है। इसलिए दाल कम समय में गल जाता है या पक जाता है। लेकिन जब यही दाल पहाड़ों अथवा ऊँचे स्थानों पर पकाई जाती है तो वहाँ हवा का दबाव कम होने से पानी कम ताप, अर्थात 100 अंश सें. से भी कम ताप पर ही उबलने लगता है। इसलिए दाल को कम ताप मिलता है और इसे गलने या पकने में अधिक समय लगता है।
13. मकड़ियाँ अपना जाला बनाने के लिए धागा कैसे बनाती है?
(amazing facts in hindi about life)
मकड़ियों का जाला देखने में बहुत झीना और कमजोर लगता है; परन्तु यह कीड़े-मकोड़ों को शिकार के लिए फँसाने लायक काफी मजबूत होता है। इस जाले को बुनने या बनाने के लिए इस्तेमाल में आने वाला धागा मकड़ियाँ अपने शरीर से ही निकालती है। इसे मकड़ियों का रेशम भी कहा जाता है।
मकड़ी में धागों के निर्माण के लिए ग्रंथियाँ होती है जिन्हे रेशम-ग्रंथियाँ भी कहा जाता है। इसकी संख्या मकड़ियों की जातियों के अनुसार तीन से सात तक पाई जाती है। इन ग्रंथियों से तरल रेशम निकलता है, जो हवा के संपर्क में आने पर सुख जाता है और रेशम के समान धागा बन जाता है। यह प्रोटीन का बना होता है, चिपचिपा होता है तथा पानी में घुलता नहीं है और प्रकृति में मिलने वाले धागों से सबसे अधिक मजबूत होता है।
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तरल रेशम से धागा बँटने के लिए मकड़ियों के शरीर में तकुए होते है, जो हाथ की उंगलियों की तरह धागा बुनने का कार्य करते है। इनको भीतर-बाहर निकाल कर अनेक तरह से उपयोग किया जा सकता है। अलग-अलग ग्रंथियों से निकले रेशम को मिलाकर बहुत पतला अथवा मोटा, जैसे भी आवश्यकता हो, रेशम का धागा बँटा जा सकता है।
मकड़ियाँ अपने कताई अंगो से शुष्क तथा चिपचिपे दोनों प्रकार के रेशों को मिलाकर भी बारीक तथा मजबूत रेशा बना लेती है। इस तरह मकड़ियाँ अपना जाला बुनने के लिए शुष्क, चिपचिपा, पतला, मोटा अथवा चपटा जिस भी प्रकार का धागा आवश्यक होता है, रेशम ग्रंथियों के तरल रेशम से बनाती है और मजबूत जाला बुनती है। इसी जाले में फंसकर मक्खियाँ, कीड़े आदि मकड़ियों के शिकार हो जाते है।
14. मिठाई खाने के बाद शरबत फीका क्यों लगता है?
(amazing facts in hindi about life)
मिठाइयों में मिठास एक समान नहीं होता है, कोई मिठाई कम मीठी होती है तो कोई अधिक मीठी। यही नात शरबत आदि पर भी लागू होती है कि कोई शरबत कम मीठा होता है तो कोई बहुत अधिक मीठा। लेकिन इस मिठास का पता हमे जीभ पर पाए जाने वाली स्वाद कलिकाओं से चलता है। खट्टे, मीठे, कड़वे तथा नमकीन सभी स्वादों की अनुभूति इन्ही स्वाद कलिकाओं से मिलती है।
यदि हम मिठाई और शरबत कुछ समय के अंतराल पर अलग-अलग समय पर पिएँ तो दोनों मीठे लगते है। लेकिन मिठाई खाने के तुरंत बाद शरबत पिएँ तो वह बेस्वाद और फीका लगता है। इसका कारण यह है कि मिठाई खाने से मिठास का स्वाद और तीव्रता बताने वाली कलिकाएँ पूरी तरह संतृप्त हो चुकी होती है। अब इनमे और मिठास का अनुभव करने की संवेदनशीलता कम हो जाती है। इसीलिए शरबत मीठा होने पर भी मिठाई खाने के बाद पीने पर फीका लगता है।
15. इलेक्ट्रॉनिक घड़ियाँ कैसे कार्य करती है ?
(amazing facts in hindi about life)
घड़ियों को भी चलते रहने के लिए अन्य मशीनों की तरह ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इलेक्ट्रॉनिक घड़ियाँ विद्युत रासायनिक सैलों की सहायता से चलती है। यही इनकी ऊर्जा के स्रोत होते है। इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों में क्रिस्टलीय दोलित्र होता है, इसके साथ द्विआधारी विभाजकों की श्रृंखला जुडी होती है। इससे लगातार सेकंड के स्पंद उत्पन्न होते रहते है। इन्ही स्पन्दों से डिजिटल अथवा अंकीय गणक चलते है। जिनसे लगातार मिनट तथा घंटो के स्पंद पैदा होते है। यही हमे डिजिटल डिस्प्ले अर्थात अंक पटल पर दिखाई देते है।
amazing facts in hindi about life
प्रारंभ में घड़ी के अंको को चमकदार दिखाई देने के लिए LED का प्रयोग किया जाता था। इसमें सैलों की बिजली की खपत अधिक होने से सैल जल्दी समाप्त हो जाते थे और जल्दी-जल्दी बदलने पड़ते थे। इस कारण अब LCD का उपयोग किया जाता है, जिनमे बैटरी की खपत कम होने से बैटरियां या सैल बहुत अधिक समय तक चलते रहते है। इस तरह इलेक्ट्रॉनिक घड़ियाँ विद्युत् रासायनिक सैलों की मदद से लगातार उत्पन्न किए गए सेकंड के स्पन्दों की सहायता से कार्य करती है।
16. वयस्क होने पर भी महिलाओं के दाढ़ी क्यों नहीं आती है ?
(amazing facts in hindi about life)
सामान्यतः प्राणियों के शरीर पर बाल पाए जाते है। बालों का हमारे लिए सौंदर्य के अलावा भी महत्व होता है। यह स्पर्श अनुभव देने के साथ हमें धूप, गर्मी तथा झुलसन आदि से बचाए रखने का कार्य भी करते है। बचपन में यह बहुत छोटे-छोटे और मुलायम होते है और रोएँ कहलाते है। उम्र के साथ इनमे कड़ापन आने लगता है और ये सख्त बालों का रूप धारण कर लेते है।
जब लड़का और लड़की वयस्क होने लगते है तो उनके शरीर में परिवर्तन होने लगता है। यह परिवर्तन यौन-ग्रंथियों द्वारा पैदा होने वाले हार्मोनों के द्वारा होता है। लड़को में एंड्रोजन नामक हार्मोन बनने लगता है, जिसके कारण लड़को की छाती और दाढ़ी पर बालों की बढ़वार होने लगती है और आवाज में भारीपन आ जाता है। जो एक तरह से पुरुषत्व की निशानी है।
amazing facts in hindi about life
लेकिन जब लड़कियाँ वयस्क होने लगती है तो उनकी यौन-ग्रंथियों से एस्ट्रोजन नामक हार्मोन बनना प्रारंभ हो जाता है। एस्ट्रोजन के कारण ही लड़कियों में वक्षों का विकास होना और मासिक धर्म आना शुरू होता है। इस हार्मोन से लड़कियों की बगलों और गुप्तांगों पर तो बाल विकसित होने लगते है, लेकिन दाढ़ी के बाल उगने के बजाय लड़कियों के वयस्क होने पर उनका शरीर मुलायम तथा चिकना होने लगता है। जो उन्हें सुन्दर महिला की छवि प्रदान करता है।
इस तरह पुरुषों में एंड्रोजन हार्मोन के कारण दाढ़ी आती है तो महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन के कारण दाढ़ी नहीं आती है।
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