Science Facts In Hindi | Amazing And Interesting Facts About Life

आज हम आप सभी को कुछ मजेदार Science Facts In Hindi जो कि Amazing And Interesting Facts Hindi में है। यह Science Facts In Hindi आपके दैनिक जीवन में जरूर काम आएगी इसकी जानकारी आप सभी को हो जाएगी। तो इन Science Facts In Hindi को पढ़िए और अपने परिवार, दोस्तों को भी शेयर करिये।

1. रबर क्या है और कैसे बनती है ?

(Science Facts In Hindi)

रबर एक ऐसा पदार्थ है जो हमारे जीवन में अनेक कार्यों में उपयोगी पाया जाता है। इससे टायर-ट्यूब से लेकर त्रिपाल, वाटर प्रूफ कपड़े एवं बोतल की डाट तक हजारों प्रकार की वस्तुएं बनाई जाती है। बिजली के प्रति कुचालक होने के कारण विद्युत उपकरणों में इसका विशेष उपयोग है। आज यह प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों तरीकों से प्राप्त की जाती है।

प्राकृतिक रबर वृक्षों से प्राप्त की जाती है और कृत्रिम रबर रासायनिक प्रक्रियाओं से बनाई जाती है। यूँ तो रबर के वृक्षों की किस्में चार सौ से भी अधिक पायी जाती है. लेकिन इनमे हेविया ब्रेसिलिनसीस प्रमुख किस्म है। इस किस्म से अन्य किस्मों की तुलना में सबसे अधिक रबर मिलता है। रबर के लिए इन वृक्षों से एक तरल पदार्थ निकाला जाता है, जो लैटेक्स कहलाता है। इसी के सूखने पर प्राकृतिक रबर बनती है। यह ठोस कार्बनिक पदार्थ होती है और खींचने पर अपनी लम्बाई के लगभग आठ गुने खींची जा सकती है। यह लचीली होती है , तभी तो इससे गुब्बारे, गेंदे, जूते तथा पाइप आदि आसानी से बन जाते है।

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यह तो रही रबर की प्राप्ति एवं उपयोगिता की बातें, लेकिन इसका नाम रबर रखे जाने की घटना बड़ी दिलचस्प है। हुआ यूँ कि जब कोलम्बस अपनी दूसरी समुद्री यात्रा पर गया था तो उसने हाइटी के निवासियों के बच्चो को उछलती-कूदती गेंद से खेलते देखा था। यह गेंद वृक्षों के लैटेक्स को जमाकर बनाई गई थी।

Science Facts In Hindi – 20 Amazing Facts in Hindi about Life रोचक तथ्य

कोलम्बस भी इस लैटेक्स को अपने साथ यूरोप ले आया था। वहां अनेक वैज्ञानिकों ने इस पदार्थ की जाँच-पड़ताल की। इन्ही में एक जोसफ गेस्टले नामक अंग्रेज वैज्ञानिक भी थे। उन्होंने अपने प्रयोग में पाया कि इस पदार्थ से रब करने या रगड़ने पर पेन्सिल का लिखा हुआ आसानी से मिट जाता है। अतः इस गुण के कारण उन्होंने इसका नाम रबर रख दिया। तभी से इसे रबर कहा जाता है।

2. बिल्लियों की आँखे अँधेरे में चमकती क्यों है ?

(Amazing Facts In Hindi About Life)

बिल्लियों की तरह अन्य जानवरों की भी आँखे चमकती है , उनमे शेर, चीता आदि प्रमुख है। इन जानवरो और बिल्लियों की आँखों के अँधेरे अथवा रात्रि में चमकने का कारण इनकी आखों में एक विशेष प्रकार के क्रिस्टलाइन पदार्थ की पतली-सी परत का होना होता है। यह परत आँख पर पड़नेवाले प्रकाश को ठीक उसी तरह परावर्तित कर देती है, जैसे किसी दर्पण पर पड़नेवाली प्रकाश की किरणें परावर्तित जो जाती है। इसी परावर्तन के कारण आँखे दर्पण की तरह चमकने लगती है।

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यह चमक होती तो दिन के उजाले में भी है, लेकिन चारों ओर रौशनी के कारण यह चमक प्रभावी न होकर सामान्य-सी ही लगती है। रात्रि के समय या अँधेरे में जब बिल्लियों की आँखों पर थोड़ा-सा भी प्रकाश पड़ता है तो वह आंखों की झिल्ली से टकराकर परावर्तित हो जाता है और आसपास अँधेरा होने के कारण प्रकाश का परावर्तन कर रही आँखे हमे प्रकाश स्थल की तरह चमकती नजर आती है। कभी-कभी आँखों की यह चमक सफेद न होकर लालाभ या पीताभ होती है।

यह चमक आँखों में रक्तवाहिनी नलिकाओं की संख्या पर निर्भर करती है। अधिक नलिकाओं के कारण आँखों में रक्त की मात्रा अधिक होती है, इसलिए चमक लालाभ लगती है। नलिकाएं कम होने पर आँखों में रक्त की मात्रा कम होती है और आँखों की चमक पीताभ रंग की दिखाई देती है।

इस तरह आँखों से प्रकश के परावर्तित होने के कारण बिल्लियों की आँखे अँधेरे में चमकती नजर आती है।

3. सूर्य प्रातः निकलते समय और सायं डूबते समय लाल रंग का क्यों हो जाता है ?

(Amazing Facts In Hindi About Science)

सूर्य से आनेवाला प्रकाश तो सफेद रंग का ही होता है , चाहे वह प्रातः उग रहा हो या सायं के समय डूब रहा हो। फिर भी सूर्य सुबह और सायं लाल रंग का दिखाई देता है। ऐसा क्यों होता है, यह जानने के लिए हमें याद रखना होगा कि सूर्य से आनेवाला सफेद प्रकाश अकेला न होकर सात रंगों के मिश्रण से बना होता है , ये सात रंग होते है -बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल।

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हम तो जानते ही है कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है। जिस हिस्से में सूर्य का प्रकाश पड़ता है , वह दिन और जहाँ प्रकाश नहीं पड़ता, वह भाग रात कहलाता है। अपनी धुरी पर घूमती हुआ पृथ्वी पर प्रातः और सायं सूर्य की जो किरणें आती है वे दोपहर को आनेवाले प्रकाश की तुलना में वायुमण्डल में लगभग 40-50 गुना अधिक रास्ता तय करके आती है। इस वायुमंडल में नाना प्रकार के धूल. धुंए एवं भाप आदि के कण बिखरे होते है।

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जब सूर्य का प्रकाश इनसे टकराकर पृथ्वी तक का रास्ता तय करता है तो सूर्य के सात रंगों में से हरा, जामुनी, नीला, और बैंगनी रंग का प्रकाश इन कणों से परावर्तित हो जाता है और पृथ्वी तक बहुत कम पहुँच पता है। शेष बचे हुए रंगों में से पीला, नारंगी और लाल रंग ही पृथ्वी पर हमारी आँखों तक पहुँच पाते है; इनमे भी लाल रंग की मात्रा सर्वाधिक होती है। इसलिए प्रातः और सायं के समय सूर्य लाल रंग का दिखाई देता है।

4. हमें आवाज की गूंज कब और क्यों सुनाई पड़ती है ?

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यह हम जानते है कि आवाज ध्वनि-तरंगों के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती है। हवा में ध्वनि की गति या वेग 340 मीटर प्रति सेकंड होता है। यदि कोई रुकावट न हो तो यह ध्वनि इसी गति से आगे बढ़ती है, लेकिन जब किसी दिवार या रुकावट के कारण वह आगे नहीं बढ़ पाती तो टकराकर वापस लौट आती है। यह ध्वनि परावर्तित ध्वनि कहलाती है। जब यह लौटकर हमारे कानों में पड़ती है तो गूंज की तरह सुनाई पड़ती है।

लेकिन लौटकर आनेवाली हर आवाज गूंज नहीं होती। यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि किसी आवाज का असर हमारे कान पर 1/10 सेकंड तक रहता है , अतः यदि कोई आवाज 1/10 सेकंड से पहले हमारे कान पर पड़े तो वह हमे सुनाई नहीं दे सकती। इसलिए परावर्तित आवाज हमारे कान पर 1/10 सेकंड से पहले न आकर 1/10 सेकंड पर आनी चाहिए , तभी वह हमे गूंज के रूप में सुनाई पड़ेगी।

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इसके लिए आवाज को परावर्तित करनेवाली वस्तु कम-से-कम 17 मीटर या 55 फ़ीट की दुरी पर अवश्य होनी चाहिए। क्योंकि 1/10 सेकंड में आवाज 34 मीटर या 110 फ़ीट की दुरी तय करती है। इसलिए आवाज के जाने और लौटकर वापस आने के लिए इसकी दुरी आधी, अर्थात 17 मीटर या 55 फ़ीट होगी तो आवाज की यह मात्रा 1/10 सेकंड में पूरी हो जाएगी और वह हमारे कानों में गूंज के रूप में सुनाई पड़ने लगेगी।

इस तरह की गूंज प्रायः गहरी खाई या कुँए के पास आवाज लगाने पर सुनाई पड़ती है। लेकिन सभी वस्तुओं से ध्वनि परावर्तित नहीं होती है। कुछ वस्तुएं ध्वनि को परावर्तित करने के बजाय उसे अपने में अवशोषित कर लेती है, जैसे जूट, गत्ता तथा लकड़ी आदि। इसलिए बड़े-बड़े हालों, जैसे सिनेमाघरों में वक्ताओं अथवा किसी भी कार्यक्रम की आवाजों को गूंजने से बचाने के लिए उनकी दीवारों आदि पर ध्वनि अवशोषित करनेवाले पदार्थ लगाए जाते है , तभी आवाज साफ और स्पष्ट सुनाई पड़ती है. अन्यथा हाल में गूंज-ही-गूंज सुनाई पड़े।

5. ओस क्या है और कैसे बनती है ?

(Science Facts In Hindi About Life)

हवा में पानी जल-वाष्प के रूप में पाया जाता है। जब यह जल-वाष्प किसी ठंडी वस्तु या सतह के संपर्क में आती है तो पुनः तरल रूप में परिवर्तित हो जाती है और पानी की बूंदो के रूप में आ जाती है। अतः ओस एक तरह से वह पानी होता है जो हवा की जल-वाष्प के ठंडे हो जाने पर बूंदों का रूप ले लेता है।

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सुबह जब किसी घास के मैदान अथवा पार्क में टहलने जाते है तो घास पर मोतियों की तरह पानी की बूंदें देखी जाती है, जो धूप निकलने पर पुनः जल-वाष्प बनकर हवा में चली जाती है और रात्रि के समय पुनः घास के संपर्क में आकर ठंडी होकर पानी की बूंदों में बदल जाती है और ओस कहलाती है।

ओस की बूंद बहुत छोटी-छोटी होती है और घास तथा फसलों आदि पर बहुत हलकी परत के रूप में दिखाई देती है। इसीलिए जब सुबह घास पर नंगे पैर टहलते है तो ओस की ठंडी बुंदकियों के कारण पैरों के तलवों को ठंडक अनुभव होती है, जो शरीर की फालतू गर्मी को खींचकर शरीर को हल्का-फुल्का बना देती है।

तो कैसी यह Science Facts In Hindi About Life यह Science Facts In Hindi आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। ऐसे ही Science Facts In Hindi और Hindi Kahaniyo के लिए हमारे वेबसाइट पर आते रहे।

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