बोली का रस | Boli Ka Ras | Hindi Kahani

दोस्तों आज हम आपको बताएंगे एक नई Best Hindi kahani जिसका नाम है बोली का रस (Boli ka Ras)। यह एक बुढ़िया और उसका एक लड़के की कहानी है। यह रोचक कहानी आप सभी पढ़िए आपको जरूर पसंद आएगी।

बोली का रस | Boli Ka Ras

(Best Hindi kahani )

एक थी बुढ़िया। उसका एक लड़का था घूरे। वह कुछ भी कामकाज नहीं करता था। बुढ़िया चरखा कातती। खेत-खलिहान पर मजदूरी करती। तब कही जाकर पेट भरता। उसने अपने बेटे को समझाया -भुझाया “बेटा, ऐसे कब काम चलेगा ? मैं आज हूं। कल मैं नहीं रही, तो तू क्या करेगा? कैसे पेट भरेगा ?”

घूरे अपनी मां की बात सुनता। पर उसके कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। बुढ़िया बहुत परेशान थी। मन-ही-मन घुटती रहती। घूरे को बहुत भला-बुरा सुनाती। पर जिसने ओढ़ ली लोई, उसका क्या करेगा कोई? उसका पेट भरा नहीं किमटरगश्ती के लिए निकल पड़ता। कहीं ताश पर बैठ जाता, तो कहीं शतरंज पर। उसने सोच रखा था —

जिसके जिये माई-बाप।

रोटी देंगे अपने आप।।

घूरे का बाप नहीं था। उसने तो मां को ही मां-समझ रखा था। मां आखिर क्या करती ! वह उसे घर से बाहर भी तो निकल नहीं सकती थी। बड़बड़ाकर रह जाती। हारकर कहती, “मां-बाप तो औलाद से ही हार मानते हैं। “उधर गांव वाले घूरे को रांड का सांड कहकर संबोधित करते।

वह किसी से भी सीधे मुँह बात नहीं करता। गाली-गलौच चलती रहती। तू-तू, मैं-मैं होती रहती।

Best hindi kahani – thakur ki kahani

दिन निकलते गए। घूरे पूरी तरह जवान हो गया। पर उसकी शादी के लिए कोई पूछने वाला ही नहीं था। =कोई आता तो देखकर चला जाता। वापस लौटकर नहीं था। घूरे के साथ के उम्र वालों के ब्याह-गौने हो गए। बच्चे हो गए। उसे यह बात अखरने लगी। उसकी मां इसी पीड़ा में घुलती रहती। यदि यही हाल रहा, तो कुंवारा रह जायेगा। काम करे न धाम, ठाली आठो याम।

घूरे की माँ उसके निठल्लेपन से बहुत परेशां थी, उससे ज्यादा उसके बोलचाल के तरीके से। गाली तो उसकी जुबान पर सदा रहती। सोचता तो उलटी बात ही सोचता। आए दिन नए-नए उलाहने सुनने को मिलते। बुढ़िया इन उलाहनों शिकायतो से तंग आ गई। घूरे को भी अब लगने लगा कि ऐसे पार नहीं पड़ेगी। कुछ तो करना ही होगा।

एक दिन उसने अपनी माँ से बात की। खाने-कमाने के लिए जाने को कहा। माँ तो तैयार बैठी थी। माँ ने मंगल गीत गए। देव मनाए। घूरे को गठरियां बांधकर दे दी। घूरे को समझाया कि गठरिया में दाल चावल बांध दिया है। रास्ते में जहां कही भी ठहरना, वहां किसी से कहकर खिचड़ी बनवा लेना। जहाँ ठहरना, वहां मीठा बोलना।

अपनी मां की बात सुन-समझकर घूरे चल दिया। बुढ़िया का हृदय भर आया। पर बेटे की खातिर उसने अपनी छाती को चौड़ा कार लिया। घूरे गांव छोड़ते समय काफी हिचकिचाहट-सी लगी। पार कोई दूसरा चारा भी नहीं था। धीरे धीरे अनमने मन से वह चलता रहा, चलता रहा। शाम तक चलते चलते थक गया। आखिर में एक गाँव दिखाई पड़ा, तो घूरे ने वही ठहरने का विचार किया।

गाँव में एक बुढ़िया दिखाई दी। वह उसके द्वार पर पंहुचा। उसने मां की बात ध्यान में रखी। जाकर राम राम की। बुढ़िया ने आशीर्वाद दिया। गाँव का नाम पूछा। घूरे ने अपना पता बताया। उसके बाद खिचड़ी पकाने को कहा, बुढ़िया ने हां कर ली। उसने अपनी पोटली में से दाल-चावल निकाला और बुढ़िया को दे दिया।

बुढ़िया खिचड़ी पकने लगी। घूरे उसके पास बैठा बातचीत करता रहा। उटपटांग सोचता रहा। बुढ़िया से सवाल-जवाब करता रहा। उसकी तगड़ी भैंस को देखकर बोला, “बुढ़िया मां, भैंस तो खूब मोटी है। ब्यायेगी क्या ?”

“हां , बेटा। ”

“जब इसके पेट में बच्चा बड़ा होयेगा तो और फूलेगी। “

“हां, हां, तुझे क्या है ?”

“आरी मां, पेट ज्यादा फूल गया, तो दरवाजे से कैसे निकलेगी ? दरवाजा तुड़वाना पड़ेगा। ” घूरे की बात बुढ़िया को तीर के सामान लगी। पर उसने सुन ली। सोचा, थोड़ी देर की तो बात है। खिचड़ी खाकर चला जायेगा। बुढ़िया पकाती रही। बुढ़िया के बेटे की बहु को देखकर पूछा, “मां यह बेटे की बहु दीखे ?”

“हां। “

“तेरा बीटा क्या करता है ?”

“नौकरी।”

“कहाँ नौकरी करता है ?”

“बिजली विभाग में।”

“राम राम, राम राम।”

यह सुनते ही बुढ़िया ने घूरे से पूछा, “क्यों, क्या बात है ?”

“आरी मां तेरा बीटा बिजली के खम्भे पर चढ़ता होगा। किसी दिन बिजली के तारों से चिपक गया तो तेरी बहु विधवा हो जाएगी।”

यह सुनते ही बुढ़िया को आग-सी लग गयी। उसने खिचड़ी उतारकर कहा, “ले अपनी खिचड़ी और भाग यहां से।” बुढ़िया ने खिचड़ी उसकी पोटली में दाल दी और डंडा दिखाकर उसे भगाने लगी।

आगे-आगे खिचड़ी की पोटली लेकर घूरे भागा और पीछे-पीछे हाथ में डंडा लेकर बुढ़िया।

गांव के लोग इस तमाशे को देख रहे थे। बड़ा अचम्भा कर रहे। घूरे की पोटली से पकी हुई खिचड़ी का रस टपक रहा था। गाँव के बाहर उसे निकालकर ही बुढ़िया ने दम लिया।

घूरे की पोटली में से रस टपकता रहा गलियों में लोगो ने पूछा, “भइया, पोटली में से क्या टपक रहा है ?”

घूरे दुखी मन से बोला, “बोली का रस। “

5 Comments on “बोली का रस | Boli Ka Ras | Hindi Kahani”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *