राजू और राक्षस | Rakshas Ki Kahani Hindi

आज हम आपको एक खतरनाक Rakshas Ki Kahani बताएंगे जिसे पढ़कर आपको आनंद आएगा। ये कहानी एक लड़के और एक राक्षस की है। और इस कहानी से हमें कुछ सीख भी मिलती है जिसे आप सभी पढ़कर जरूर समझ सकते है। तो चलिए कहानी की तरफ।

राजू और राक्षस

(Rakshas Ki Kahani hindi)

समुद्र तट पर एक गाँव बसा था। गाँव में रहने वाले लोगो की आजीविका का साधन था समुद्र में मछली पकड़ना और उन्हें बाजार में ले जाकर बेचना। इसी गांव में मछुआरों की एक बस्ती थी। इसी बस्ती में गोगो नाम का मछुआरा अपने पुत्र राजू के साथ रहता था। राजू की माँ का देहांत हो चूका था। गोगो ने ही राजू को पाल-पोस कर बड़ा किया। जब वह समुद्र में मछली पकड़ने जाता तो राजू को पड़ोस में छोड़ जाता।

देखते-देखते राजू सोलह साल का हो गया। गोगो वृद्ध हो चला था। फिर भी वह काम पर जाताल, किन्तु राजू को अपने पिता का यह व्यवसाय कतई पसंद नहीं था। वह जल्द से जल्द अमीर बनना चाहता था और वह भी बिना मेहनत किए। उसके पिता ने उसे बहुत बार समझाया,–“बेटा ! बिना श्रम किएधन नहीं कमाया जाता। ” किन्तु राजू को एक ही रट लगी थी -जल्द से जल्द अमीर बनने की और आराम से जिंदगी गुजारने की।

rakshas ki kahani

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इन्ही दिनों मछुआरों की बस्ती में एक खबर तेजी से फ़ैल गई कि बस्ती के एक व्यक्ति को समुद्र के तल से सोने, हीरे, जवाहरात से भरा एक कलश मिला है। यह खबर राजू को भी मिली। वह भी और लोगो के साथ कलश देखने गया। कलश देखते ही उसकी आँखे चुंधिया गईं। इस चमत्कार पूर्ण बात से सारी बस्ती में सनसनी फैल गई।

राजू की तो जैसे नींद हराम हो गई। वह रात-दिन सोचता ‘क्या मुझे ऐसा कलश नहीं मिल सकता। यह तो अमीर बनने का सबसे आसान तरीका है। ‘

रात को सोते समय राजू ने अपने पिता से इस सम्बन्ध में पूछा,–“पिताजी ! समुद्र में इतने नीचे कलश कैसे पहुंचा ?” गोगो ने राजू को बताया ,–“बेटा ! पुराने समय में लोग जहाज द्वारा एक देश से दूसरे देश में व्यापार करने जाते थे और रास्ते में समुद्री डाकू इन व्यापरियों का माल लूट लेते थे इस भय से कई व्यापरी अपना माल एवं संपत्ति समुद्र में डाल देते थे। हो सकता है उसी में का कोई कलश उस मछुआरे के जाल में फंस गया हो। “

राजू ने सोचा कल से ही आज भी समुद्र में मछली पकड़ने जाएगा और उस मछुआरे से भी अधिक गहरे समुद्र में जाकर जाल फेंकेगा।

सुबह जब राजू सोकर उठा तो उसने पिता से कहा,–“पिताजी ! आज से मैं भी जाल लेकर आपके साथ मछली पकड़ने जाऊंगा। ” गोगो उसकी यह बात सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने सोचा ‘चलो देर दे ही सही, बेटे को अकल तो आई। ‘

उसी सुबह से राजू रोज अपने पिता के साथ जाल लेकर, डोंगी पर सवार होकर समुद्र में मछलियाँ पकड़ने जाने लगा। कई दिन बीत गए, लेकिन कलश और संदूक की बात तो दूर अब तक एक लोटा तक उसके जाल में नहीं फंसा। यह बात और थी कि राजू के साथ जाने से गोगो की आय दुगुनी हो गई थी। किन्तु उसे एक बात समझ नहीं आई कि इतने अधिक पैसे कमाने के बावजूद राजू उदास क्यों रहता है ?उसने राजू से इस बारे में कई बार पूछा भी किन्तु वह बात को टाल गया।

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राजू ने संकल्प किया कि अगर अगले तीन दिनों में उसे समुद्र के अंदर से धन की प्राप्ति नहीं हुई तो वह कभी भी समुद्र की ओर नहीं जाएगा।

दो दिन ऐसे ही बीत गए। उसे ढेर सारी मछलियाँ तो मिली, लेकिन धन कही नहीं मिला। अब केवल एक दिन बचा था। तीसरे दिन भी शाम तक जाल डालने पर मछलियों के सिवा कुछ हाथ न आया। तब सब मछुआरे अपने-अपने घरों को जाने लगे थे। राजू भी यह सोचकर कि शायद धन मेरे भाग्य में नहीं है, घर चलने को तैयार हुआ। सोचा ‘चलने से पहले एक बार फिर जाल फेंककर देखता हूँ। क्या पता अबकी बार धन मिल ही जाए। ‘

उसने जाल समुद्र में फेंका। संयोग से इस बार जाल में मछलियों के साथ ताम्बे की कुप्पीनुमा बोलत भी फंसी चली आई। उस बोतल को देखकर राजू ऐसे प्रसन्न हुआ जैसे उसे खजाना मिल गया हो। राजू डोंगी लेकर वापस लौट पड़ा। मन ही मन वह कल्पना करता जा रहा था कि इस बोतल में हीरे-जवाहरात होंगे या चांदी के सिक्के।

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वह अपनी डोंगी को तट पर ऐसे स्थान पर ले गया जो सुनसान था। डोंगी से उतर कर वह रेत पर बैठ गया। उसने ज्यों ही बोतल का ढक्कन खींचकर खोला उसे एक झटका लगा और वह ढक्कन लिए ही पीछे की ओर लुढ़क गया। बोतल में से ‘शूं-शूं’ की आवाज आने लगी। तभी राजू ने देखा आवाज के साथ मटमैला धुआँ चारो ओर फैलता जा रहा था। थोड़ी देर बाद उस मटमैले धुँए ने एक भयंकर आकृति का रूप ले लिया और अगले ही पल राजू के सामने विशालकाय राक्षस खड़ा था। राजू का चेहरा उसे देखते ही पीला पड़ गया।

राक्षस के होंठो के दोनों तरफ दो बड़े-बड़े नुकीले दांत बहार निकले हुए थे। उसकी बड़ी-बड़ी आँखे मानो आग उगल रही थी। अपनी भयंकर आवाज में राक्षस बोला, –“तीन सौ बरस से मैं इस बोतल में कैद हूँ। आज तीन सौ बरस बाद मैं इस बोतल से आजाद हो पाया हूँ। लड़के ! जानता है अपनी मुक्ति का मैं तुझे क्या इनाम दूंगा–मैं तेरी गर्दन मरोड़ कर तुझे इस समुद्र में फेंक दूंगा जिसमे से तूने मुझे बाहर निकाला है। ” अपनी मौत की बात सुनकर राजू काँपती आवाज में बोला,–“मगर मैंने तो आप को इस पुरानी कैद से आजाद किया है, फिर आप मुझे मारना क्यों चाहते है ?”

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“इसलिए, क्योंकि तीन सौ बरस पहले जब एक तांत्रिक ने मुझे इस जार में कैद कर समुद्र में फेंक दिया था तब मैंने प्रतिज्ञा ली थी। ” राक्षस गरजा।

“कैसी प्रतिज्ञा ?” राजू ने डरते हुए पूछा।

“मैंने प्रतिज्ञा ली थी कि जो भी मुझे इस कैद से मुक्ति दिलाएगा मैं उससे ही अपनी इस कैद का बदला लूंगा और उसे समाप्त कर दूंगा और आज तुम आ फंसे हो इसलिए अब मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूँगा। “

“लेकिन मैंने तो तुम्हारी मदद की है और मदद करने वालो ही तुम कैसे मार सकते हो ? ये कहा का न्याय है भला। ?”

“मैं कुछ नहीं जनता। “राक्षस गरजकर बोला,–“मैं सिर्फ अपनी प्रतिज्ञा पूरी करना चाहता हूँ। ” यह कहकर उसने अपने लम्बे-लम्बे नाख़ून राजू की ओर बढ़ाए।

कमजोर से कमजोर आदमी भी मौत सामने खड़ी देखकर उससे बचने का कोई न कोई उपाय करता है। राजू ने भी अपनी बुद्धि का प्रयोग किया। उसने राक्षस से कहा, –“तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करना चाहते हो तो मुझे मार कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लो लेकिन मुझे मारने से पहले मुझे एक सवाल पूछना है तुमसे ?”

“वह क्या ? जल्दी बोलो, मेरे पास समय बहुत कम है। ” राक्षस बोला।

राजू बोला, –“तुम तो बहुत बड़े हो तुम्हारा शरीर इतनी छोटी सी बोतल में कैसे घुस गया यकिन नहीं होता। “

राक्षस बोला, “मैं इसी बोतल में था बस धुएँ के रूप में था। “

“किन्तु मुझे विश्वास नहीं होता। तुम्हारा इतना बड़ा डीलडौल और यह छोटी सी बोतल ? नहीं…नहीं… ।राजू मुस्कुराया।

राक्षस राजू की मुस्कराहट देखकर और भी भड़क गया। वह बोला,–“तुझे मेरी बात पर यकीन नहीं आ रहा है। मैं अभी दिखता हूँ कि मैं इस बोतल में कैसे बंद था। तब तो तू विश्वास करेगा। “इतना कहकर राक्षस पुनः धुँआ बनकर बोतल में समा गया। उसके बोतल में जाते ही राजू ने जल्दी से बोतल का ढक्कन कस कर बंद कर दिया और उसे पूरी ताकत से वापस समुद्र में फेंक दिया।

अब राजू की जान में जान आ गई। अँधेरा घिरने लगा था। अतः वह अपना जाल उठाकर डोंगी में सवार होकर वापस अपने घर की ओर लौट पड़ा। घर जाकर वह अपने पिता से लिपट कर फफक-फफक कर रो पड़ा। रोते-रोते उसने सारी बात अपने पिता जी को बताई और वादा किया कि आगे से वह कभी भी जल्द से जल्द अमीर बनने के सपने नहीं देखेगा। परिश्रम करके ही जीवन यापन करेगा।

गोगो ने अपने बेटे के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और कहा, –“जो लोग धन का लोभ करते है, उनकी ऐसी ही दशा होती है। इसलिए अपने श्रम पर ही भरोसा रखो। श्रम ही सच्चा धन है। ”

तो कैसी लगी यह Rakshas Ki Kahani hindi यह कहानी हमें सीख देती है कि मेहनत करके ही धन कमाना चाहिए। उम्मीद करते है यह rakshas ki kahani आप लोगो को पसंद आयी होगी।

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