दोस्तों आज हम आपको एक नई और शानदार कहानी जो Sher ki Kahani है। इस कहानी का शीर्षक है “बर्र का उपदेश”। तो दोस्तों यह कहानी को पढ़के आपको आनंद के साथ-साथ शिक्षा की भी प्राप्ति होगी। आप सभी को इस कहानी से जरूर सीख मिलेगी। तो चलिए आप सभी इस Sher ki Kahani को पढ़िए और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को भी share करिए।
बर्र का उपदेश
Sher Ki Kahani Hindi
सुन्दर कानन में भासुरक नाम का शेर रहता था । एक दिन उसने एक भालू को मारा । फिर वह भालू को खींचकर अपनी गुफा में ले आया । गुफा में शेर के छोटे-छोटे बच्चे थे । शेर उन्हीं को शिकार सिखाने के लिये भालू को मारकर लाया था ।
शेर अपने बच्चों को दाँत से नोंचने और पंजे मारने का एक अभ्यास करा रहा था । वे दोनों ही बच्चे बड़े ध्यान से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे ।
उधर कई दिनों से शेर की गुफा में एक बर्र भी अपना छत्ता बना रही थी । गुफा में एक ऐसा छेद था जो नीचे दीवाल तक खुला था । उसी में बर्र अपने रहने का इन्तजाम कर रही थी । बर्र छेद में से नीचे से ही मकड़े को पकड़ लाती । फिर उसे मूर्छित बनाती, तब उसे अपने घर में ठूँसने का प्रयास करती । बर्र छेद में बहुत से मकड़े ठूँस रही थी ।
शेर कई दिनों से बर्र की यह हरकत देख रहा था । पर वह उसकी मूर्खता पर चुप था। आज जब शेर बच्चों को शिक्षा दे रहा था तो बर्र भी बर्र बर्र करती घण्टों से शोर मचा रही थी। कभी वह गुफा के किसी कोने में घूमती तो कभी शेर के सिर के सिर के ऊपर भिनभिनाती ।
यह देखकर शेर को बहुत गुस्सा आया। वह बोला–‘अरी मूर्खा ! तुझे क्या दीखता नहीं कि तू किसके घर में है ? क्या आज ही आफत आयी है ? क्या आज तू मेरे हाथों मरना चाहती है, जो यों आसपास मँडरा रही है । चल भाग यहाँ से, नहीं तो आज तुझे कुचल-मसलकर डाल दूँगा ।’
बर्र बोली– ‘भाई ! यह गुफा न तो तुम्हारी है न मेरी है। जंगल में यह गुफा बनी है । इस पर जैसा तुम्हारा अधिकार है वैसा ही मेरा भी है । मैं तुम्हारा बिगाड़ ही क्या रही हूँ ? तुम्हें मुझे यहाँ से भगाने का अधिकार भी क्या है ?’
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बर्र की बात सुनकर शेर आपे में न रहा । उसने दौड़कर दीवाल पर बैठी बर्र को अपने पंजे से मारना चाहा । परन्तु वह फु उड़ गयी और उसने शेर को कई जगह से काट लिया ।
अब तो भासुरक दर्द के मारे चिल्लाने लगा । अपमान का कड़वा घूँट भी उसे पीना पड़ा । वह सोचने लगा कि इतना शक्तिशाली होकर, जंगल का राजा होकर भी मैं एक अदना-सी बर्र से हार गया । पर वह कर भी क्या सकता था ? उड़ तो वह सकता ही नहीं था। उसके मुँह पर उसने कई जगह काट लिया था और उसका मुँह फूल-फूलकर कुप्पा-सा हुआ जा रहा था ।
बर्र अब गुफा की छत पर जा बैठी । वहीं से वह कहने लगी- ‘भासुरक भाई ! तुम चाहे कितने ही बड़े क्यों ने ही, जंगल के राजा ही क्यों न हो, पर बात करने की सभ्यता तुम में बिल्कुल भी नहीं है ? कोई भीतर से कैसा है ? इसका परिचय उसके व्यवहार से ही मिलता है । व्यवहार से जो परिचय मिलता है, वही उसका सच्चा परिचय होता है । जो कर्कश स्वर में बोलता है, वह असभ्य होता है । ऐसा प्राणी दूसरों पर अपना बड़प्पन नहीं छोड़ता अपितु वह तो ओछापन ही दिखाता है । कडुवा बोलने वाले के सभी प्रायः शत्रु ही बन जाते हैं ।
दर्द से कराहता हुआ सिंह चुपचाप मुँह लटकाये हुए व का उपदेश सुन रहा था । बर्र फिर कहने लगी- ‘तुम्हें काटने की मेरी इच्छा तो तनिक भी न थी, पर तुम्हें यही शिक्षा देने के लिये मैंने काटा था कि न कोई छोटा है न बड़ा । सभी की अपनी अलग-अलग शक्ति सामर्थ्य है । हम अपने अहंकार के गर्व में किसी का भी तिरस्कार न करें ।’
भासुरक की समझ में अब अपनी गलती आ गयी थी । वह बोला- ‘बहिन ! अहंकार वश मैंने तुमसे जो कुछ भी कहा है उसके लिये मुझे माफ कर दो। तुम शरीर से छोटी हो तो क्या हुआ, हो तो बड़ी ही ज्ञानी । अब मैं किसी के साथ दुर्व्यवहार न करूँगा ।’
बर्र कहने लगी– ‘भाई ! ऐसा कहना तुम्हारे बड़प्पन के ही अनुरूप है । अपनी गलती को स्वीकार करना और उसे दूर करने का प्रयास करना महानता है ।’
‘बर्र बहिन ! अब तुम कहीं मत जाना । इस गुफा में ही आराम से रहना । तुम ठीक ही कहते हो कि कोई वस्तु किसी एक की नहीं होती । सभी को मिल-जुलकर इसका उपयोग करना चाहिये ।’ सिंह भासुरक विनीत स्वर में बोला ।
अब भासुरक का व्यवहार जंगल के अन्य जीव-जन्तुओं के साथ भी बदल गया है । वह सबसे विनय भरा व्यवहार करता है । और बदले में सबका सद्भावना भरा स्नेह पाता है ।
तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह Sher ki Kahani जो की एक नई कहानी है। इस Sher ki kahani में हमे सीख मिलती है कि हमे ज्यादा अहंकार नहीं करना चाहिए । तो दोस्तों ऐसे ही Sher ki Kahani जैसी हिंदी सीखभरी कहानी के लिए हमारे website में आते रहिए।