आज हम आपको एक मजेदार Bachon ki Kahani in Hindi में बताएंगे। यह एक नन्हे बालक suraj ki kahani है जिसमे ये अपनी दादी की दर्द को दूर करने की कोशिश करता है। तो आप इस कहानी को पढ़िए और इसका आनंद लीजिए।
सूरज की कहानी
Bachon ki Kahani in Hindi
दादी को पतझड़ से कोई लगाव नहीं था। जबकि नन्हे आर्थर को पतझड़ में बेहद मजा आता था।
दादी को पतझड़ इसलिए नापसंद था क्योंकि पतझड़ के साथ आती थी बारिश और बारिश से दादी के पैरों के जोड़ दुखने लगते थे।
आर्थर को पतझड़ बेहद पसंद था। पतझड़ कितनी ही बढ़िया चीजे लता था। अंगूर, नाशपाती और सेब और माँ इन फलों से तरह-तरह के ‘विटामिन’ बनती थी।
पतझड़ की हर सुबह माँ पिताजी से कहती, “जाओ बाजार से कुछ सेब और अंगूर ले आओ –देखो आर्थर को अब ‘विटामिनों’ की जरूरत है। “
तब पिताजी बाजार जाते और वहां से कुछ सेब, नाशपाती, अनार और साथ में और बहुत कुछ ले आते। नन्हे आर्थर को तभी तो पतझड़ से इतना गहरा प्रेम था।
दादी को नहीं। दादी को ‘विटामिनों’ की जरुरत नहीं थी। बड़ी उम्र के लोगो का अक्सर विटामिनों के बिना काम चल जाता है। बड़े लोग अंगूर और नाशपाती कहते अवश्य है। परन्तु वह उन्हें सिर्फ अपने मजे के लिए खाते हैं। बड़ों के लिए तो वह केवल अंगूर और नाशपाती है, ना कि ‘विटामिन’ .
घर के बाहर पानी गिर रहा था और दादी खाट पर लेटी थी। उनके पैर में दर्द था वह उसे हल्के-हल्के दबा रही थी।
आर्थर उनके पास गया।
दादी से बोला -“मेरी आवाज सुन रही हो ?”
दादी बोली – “हां, क्या बात है आर्थर कुछ समस्या है क्या ?”
“उसने पूछा – “दादी आपके पैर में फिर से दर्द चालू हो गया क्या ?”
दादी थोड़ी रोते हुए बोली – “हां मेरे प्यारे बेटे। “
उसने दादी को एक संतरा दिया।
उसने कहा – “फल खा लो इससे दर्द गायब हो जायेगा क्योंकि इसमें विटामिन होते है। ”
दादी मुस्करायीं और जवाब दिया – “तुम्ही खा लो इसे बेटा।”
“बेटा मुझे पता है कि मेरा दर्द संतरा ठीक नहीं कर सकता। इससे कोई फायदा नहीं होगा। मुझे तो सूरज की रोशनी चाहिए इसी से मेरा दर्द कम होता है लेकिन रोशनी मिल नहीं रही ये तो बादलों में छूप जा रही है। “
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नन्हे आर्थर को बादलों पर बहुत गुस्सा आया। उसने अपने कुत्ते कोटो को पलंग के नीचे से बुलाया फिर अपनी पाप-गन (खिलौने वाकई बंदूक) उठायी और बाल्कनी में चला गया।
उसने अपने पिल्ले से कहा –“तुम इनको जोर से भूंको और मैं इसमें अपनी पिस्टल से गोली मारता हूँ। “
कोटो दो-चार बार भूंका, परन्तु बहुत जोर से नहीं। दरअसल वह समझा कि आर्थर उसके साथ खेलना चाहता है, इसलिए वह ख़ुशी में भूंका था। उसकी भूंक में कोई दम नहीं था। काला बादल भला ऐसी भूक से कैसे डरता ?
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सच तो यह था कि आर्थर पिल्ले की भूंक सुनायी ही नहीं पड़ी। वह अपनी बन्दुक को बादलों की ओर ताने उन पर गोलियों बरसाने में बहुत व्यस्त था। आर्थर गुस्से से लाल हो गया और वह चिल्ला भी रहा था।
“भागो ! सूरज की रोशनी आने दो बादलों भाग जाओ।अब झेलो गोली ढिशूम ! ढिशूम !” और वह तब तक गोली चलाता रहा जब तक मुँह ‘ढिशूम ! ढिशूम ! चीखते-चीखते थक नहीं गया।
तब तक बादल कुछ थोड़ा सा घबरा गए थे और बारिश बंद हो गयी थी। परन्तु सूरज अभी तक पूरी तरह नहीं निकला था।
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” यह बहुत छोटी बंदूक है इसीलिए कुछ नहीं हुआ बड़ी बंदूक होती तो एक बार में ही उसे हटा देता। ”
परन्तु आर्थर के पास बड़ी बंदूक नहीं थी और उसका दोस्त रचिक बहुत दूर रहता था।
आर्थर बेचारा अब क्या करता। आर्थर दुखी-दुखी अंदर के कमरे में गया और दादी के पास जाकर बैठ गया।
“दादी क्या आप सुन रही हो मेरी आवाज ?” उसने पूछा।
दादी बोलीं – “अब क्या हुआ बेटा। “
“मैं बादलों को थोड़ा-बहुत ही डरा पाया ! बारिश तो रुक गयी परन्तु सूरज अभी भी छिपा है। देखो, मेरे पास बड़ी बन्दुक तो है नहीं, और बादलों को मेरी छोटी बंदूक से कोई खास डर नहीं लगता। ”
दादी मुस्करायीं
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“आर्थर मेरा नन्हा बेटा तुम्हारा धन्यवाद कैसे करूं? तुमने तो बारिश को डरा दिया तभी वह रुक गयी और मेरा दर्द भी अब महसूस ही नहीं हो रहा है। मैं तुम्हारे पिता से कहूँगी कि वे तुम्हारे लिए भी एक बड़ी बंदूक ले आयें। तब तुम इन सारे बादलों को भगा देना। “
“दादी ये सच है क्या आपको अच्छा लग रहा है ?” उसने दुबारा पूछा।
“मैं अब पहले से कही बेहतर महसूस कर रही हूँ। मेरा आधा दर्द तो रफूचक्कर हो गया है। “
“दादी” आर्थर ने एकदम संभलते हुए कहा “अब मुझे समझ में आया कि हमे क्या करना चाहिए। अब मैं तुम्हारा बचा हुआ आधा दर्द भी भगा दूंगा। “
“तुम बड़ी बंदूक के बिना कैसे करोगे ?” दादी ने मुस्कराते हुए पूछा।
“तुम देख लेना, मैं भगा कर ही मानूंगा। माँ, माँ, क्या तुम मेरी आवाज सुन रही हो ?”
माँ ने रसोई में से पूछा – “क्या बात है बेटा ?”
उसने कहा – “मुझे कुछ कागज चाहिए। “
माँ ने कहा – “पिताजी की मेज पर से ले लो। “
पिता जी की मेज पर तरह-तरह के कागजों का एक ढेर था। पहले आर्थर ने एक साफ और मोटा सा कागज चुना। फिर उसने मोटी लाल पेन्सिल उठायी। उसने अब कागज को फर्श पर रखा और पेट के बल लेटकर चित्र बनाने लगा। वह चित्र बनाने में इतना मशगूल था कि उसको इस बात का पता भी न चला कि उसकी जीभ मुंह से बाहर निकली थी। उसने एक लाल सुर्ख सूरज बनाया। इतना प्यारा सूरज कि उसकी तेज गर्मी से आर्थर के मुँह से पसीना छूटने लगा।
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अंत में सूरज तैयार हो गया। आर्थर ने अपने पिल्ले कोटो को भगा दिया कि कहीं वह अपने गंदे पंजो को सूरज पर न रख दे। फिर वह अपने सूरज को दादी के पास ले गया।
उसने पूछा – “दादी ! क्या तुम मुझे सुन रही हो दादी ?”
दादी ने कहा – “क्या बेटा ?”
“देखो मैंने तुम्हारे लिए सूरज बनाया है। “
दादी ने सूरज देखा और मुस्करायीं
“कितना प्यारा, लाल सा सूरज बनाया है तुमने ” दादी ने खिलखिलाते हुए कहा “और कितना गर्म है यह सूरज। लाओ मैं इसे अपने दर्द करते पैर के पास रखती हूँ। “
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दादी ने सूरज को अपने दर्द करते पैर से सटा कर रख दिया।
“अरे इस सूरज ने तो कमाल ही कर दिया। क्या तुम्हे पता है कि मेरा पैर का दर्द अब पूरी तरह गायब हो गया है और किसने दादी को ठीक किया ? आर्थर ने। “
दादी ने अपने पोते को गले लगा लिया, फिर उन्होंने उसे चूमा, फिर वह मुस्करायीं और दुबारा उन्होंने आर्थर को चूमा। वह मुस्कराती रही और आर्थर को तब तक चूमती रही जब तक उन्हें नींद न आ गयी और फिर दादी आर्थर के सूरज को अपने पैर पर रखकर सो गयीं।
शाम तक दादी के पैर का दर्द एकदम ठीक हो गया था। यह बात सच है कि अब तक आर्थर का बनाया सूरज खाट से नीचे गिर चूका था और कोटो पिल्ले के गंदे पंजो के दर्जनों निशान अब तक सूरज पर छप चुके थे। परन्तु दादी अब बिलकुल भली चंगी थी।
उस रात पिता जी ने दादी से उनकी तबीयत के बारे में पूछा “अब मैं बिलकुल ठीक हूँ “दादी बोलीं “आर्थर के सूरज ने मुझे ठीक कर दिया?”
पिता जी के कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा। परन्तु दादी ने उन्हें सब कुछ समझा दिया।
आर्थर ने ख़ुशी से अपनी नाक खुजलाई।
आर्थर के साथ हमेशा ऐसा ही होता था। जब कभी भी वह थोड़ा भी उत्साहित होता या रोने लगता तो हमेशा उसकी नाक में खुजली आती।
आज आर्थर अपने आप से बेहद खुश था। उसके अच्छे व्यवहार को देख पिताजी ने कहा कि अन्य बच्चों को आर्थर के उदाहरण से सीखना चाहिए और फिर वह पलंग पर सोने चला गया।
आर्थर का सूरज फर्श पर पड़ा था और उस सूरज के ऊपर उसका पिल्ला कोटो अपना पेट पसारे सो रहा था। आर्थर उस पर चिल्लाया “उस पर से उठो कोटो। तुम सूरज के ऊपर कैसे सकते हो। तुम्हारा पेट जल जाएगा। ;चलो उठो !”
इस तरह से आर्थर के बनाये हुए सूरज ने सबको खुश कर दिया।
तो कैसी लगी ये suraj ki kahani आप सभी को। यह baccho ki hindi kahani पढ़कर आपको जरूर आनंद मिला होगा। उम्मीद करते है यह bachon ki kahani in hindi आप सभी को पसंद आयी होगी।
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