मिलती सीख कहानी से | Best Hindi Kahani for Kids

आज हम आपको एक बहुत ही अच्छी और प्रेरणादायक Hindi Kahani for Kids बताएंगे जिसे पढ़कर इस कहानी के माध्यम से आपके जीवन के लिए कुछ सन्देश मिलेगा। यह hindi kahani for kids से हमें नशा दारू इत्यादि के द्वारा भविष्य में होने वाले आपदा का अवबोध कराता है। अतः इस कहानी को पढ़कर आप सभी इससे मिलने वाली शिक्षा को जरूर अपने जीवन का हिस्सा बना ले।

मिलती सीख कहानी से

(Best Hindi Kahani for Kids)

कुछ ही बरसों पहले की बात है एक महाशय थे, नाम था उनका भवानी प्रसाद। बड़े ही भले आदमी थे, एक प्राइवेट कम्पनी के दफ्तर में कैशियर थे। रोज अपने दफ्तर जाते और शाम को अपने घर लौटते थे। पास पड़ोस में उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। उन्होंने धीरे-धीरे बचत करके अपना एक छोटा-सा घर भी बना लिया था। उनके दो पुत्रियां एवं एक पुत्र था।

सभी अध्ययन कर रहे थे। बड़ी पुत्री लगभग 17 वर्ष की थी। उसक माँ को उसके विवाह की चिंता होने लगी थी। जब भी वह इस प्रसंग में अपने पति से बात करती तो वे कहते थे, “अरे ! हमारी बिटिया पढ़ने में बड़ी होशियार है, ईश्वर ने चाहा तो इसे डॉक्टर बनाएंगे। ” पास बैठा पुत्र बोला, “पापा मैं भी इंजीनियर बनूँगा, बनाएंगे न मुझे ? बड़ी हँसी-खुशी से दिन बीत रहे थे। परिवार में सभी खुश थे। पत्नी भी पतिपरायणा थी। एक खुशहाल परिवार था।

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Best Hindi Kahani for Kids
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भवानी प्रसाद के दफ्तर में अच्छे-बुरे सभी प्रकार के लोग थे। कुछ मित्र शराब के शौकीन भी थे। वे प्रायः भवानी प्रसाद को दफ्तर के बाद अपने साथ चलने को कहते थे, लेकिन भवानी प्रसाद नम्रतापूर्वक केवल यही कहकर टाल देते थे, ” अरे भाई, मैं आपकी सोसायटी के लायक नहीं ” और हंसकर चल देते थे।

एक दिन पत्नी से कुछ कहा सुनी हो गई। किस घर में कहा सुनी नहीं होती है और उस दिन भवानी प्रसाद गुस्से में बिना खाना खाये दफ्तर चल दिए। पत्नी ने बेटे के साथ टिफिन भेजा पर उसने वह वापिस लौटा दिया और चाय पीकर ही दिन गुजारा। शाम को पांच बजे सब जाने लगे, पर भवानी प्रसाद अपनी सीट पर बैठे काम कर रहे थे। बेचारे चपरासी को भी ठहरना पड़ा। वे शराबी मित्र ऐसे ही अवसर की ताक में तो थे। वे समझ गए कि आज भवानी प्रसाद परेशान है।

वे आकर बोले– शर्मा जी आज घर नहीं जायेंगे ? उन्होंने अनमने भाव से बिना नजर मिलाये कहा, “अरे भाई ! कुछ काम ज्यादा चढ़ गया है, उसे निपटा ही दूँ तो ठीक रहेगा। यह कहकर वे पुनः काम में लग गए। ” वे मित्र बोले, “भाई भवानी जी, आज आप कुछ परेशान हैं। ” देखिए, हमसे अपनी बात कहिए, हम तो आपके अपने ही हैं। आइए न, अब चलते है हमारे यहाँ। वही सब बाते होंगी।

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कुछ ताश-पत्ती खेलेंगे, चाय-पानी पियेंगे, आपका दिल हल्का हो जाएगा और यह कहकर उन्होंने उनके कागज समेट कर रख दिए। भवानी प्रसाद अनमने भाव से यंत्रवत उनके साथ चले गए। मित्रों ने उनकी समस्या के प्रति सहानुभूति जताई और अत्यंत ही आग्रह करके उस दिन थोड़ी सी शराब पिला दी। इस प्रकार यह सिलसिला जो चालू हुआ, धीरे-धीरे बढ़ता गया। एक दिन की कहासुनी से शराब पी ली तो अब शराब को लेकर रोज की कहा सुनी होने लगी।

परेशान पत्नी कहती, “छोड़ दीजिए, इस गन्दी शराब को। क्या हालत हो गई घर की ! आपको अब घर की चिंता ही नहीं, बस शराब के लिए पैसे चाहिए। बीवी-बच्चो की परवरिश की, बच्चो की पढ़ाई किसी की कोई खबर नहीं। ” ऐसा कहने पर वे चिल्लाते, “बकवास बंद कर, ज्यादा जबान चलने लगी है क्या? इस घर मर मुझे चैन ही नहीं। ” और कभी-कभी तो गुस्से में पत्नी पर हाथ भी उठाने लगे।

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बड़ी बच्ची ने एक दिन अपने पिता से कहा– ” पापा क्यों पीते हैं आप शराब ? देखिए न, क्या हालत हो गई है आपकी ! आपको हमसे प्यार है तो छोड़ दीजिए इस शराब को। ” उन्होंने न बच्ची की सुनी और न अपनी पत्नी की। जो बोलता उसे डाँट देते थे। पीट भी देते थे।

समस्याएँ किस घर में नहीं होती है, पर समस्याओं से भागने के लिए शराब पीना कोई समझदारी नहीं है, और भवानी प्रसाद भी नहीं पीते लेकिन यह था कुसंग का प्रभाव। उनके शराबी साथियों ने ही उनको पिला दी और वे शराबी बन गए।

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यह सच है कि प्रारम्भ में कोई भी सहज में शराब पीता नहीं है उसे लोग पिलाते हैं, पीना सिखा देते है और फिर मन-मस्तिष्क खोकर ही तो दुर्घटनाएं कर देते है।

भवानी प्रसाद की नशे की आदत बढ़ती गई। घर गृहस्थी के खर्चे गौण हो गयें और शराब उन पर सवार हो गई। रोज घर में कलह होने लगी। दुखी बच्चे सहमे-सहमे रहने लगे। न उनकी फीस का ठिकाना था, न कपड़ों का और पढ़ाई का। मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने से दफ्तर के काम में भी गलतियां करने लगे, वहां भी प्रायः उनको डाँट-फटकार ही मिलती थी। आमदनी जो पहले संतोषप्रद थी, अब कम लगने लगी। वे अब दफ्तर में भी हेराफेरी करने लगे।

एक दिन उनके मैनेजर ने उनको दफ्तर में बुलाया और उनसे बोले, ” भवानी प्रसाद जी, शराब कोई हल नहीं होता है समस्या का। यह तो खुद एक समस्या है। यह मद्यपान आपको भयंकर तोहफे प्रदान कर रहा है। आपका स्वास्थ्य गिरता जा रहा है, आपका लिवर और आंतें ख़राब होती जा रही है , ब्लड प्रेशर की बीमारी भी आपको होने लगेगी, आपकी अपराधी वृत्ति होने लगेगी।

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घर की हालत बिगड़ती ही जा रही है, आप चिड़चिड़े भी होते जा रहे है, कुछ और भी शिकायतें आ रही है। मुझे डर है कि शराब नहीं छोड़ेंगे तो कई मुसीबतों में फंस जायेंगे। अपने जिनके कुसंग में शराब शुरू की है उनके हाल नहीं जानते आप , सब कर्ज में डूबे है। “

शर्मा जी, आप एक खानदानी इंसान है। आपकी यह बिगड़ती हालत देखकर मुझे आपको समझाने की इच्छा हुई। मेरा काम था समझाना, मैंने आपको इसके सभी दुष्परिणाम बता दिए है। छोड़ दीजिए आप इस बर्बादी की बीमारी शराब को, नहीं तो पछताना पड़ेगा।

भवानी प्रसाद में शराब सेवन से आत्मनिर्णय की शक्ति ही चली गई थी। मैनेजर की सीख का भी उन पर कोई असर नहीं हुआ और वे शराब पीते रहे। इसलिए बराबर अस्वस्थ से रहने लगे, खुलकर भूख भी नहीं लगती थी। सदैव चिड़चिड़े रहने लगे। \

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एक दिन जैसे-तैसे जिद करके पत्नी उन्हें डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने सारी जाँच करके कहा, “शराब से इनका लिवर ख़राब हो गया है। अगर ये शराब नहीं छोड़ेंगे तो अब ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सकेंगे। यह सुनकर पत्नी और बच्चे रोने लगे। डॉक्टर के चेतावनी देने पर भवानी प्रसाद ने छोटे बच्चे के सिर पर हाथ रखकर प्रतिज्ञा की कि वे शराब अब बिलकुल नहीं छुयेंगे।

और उसी दिन दफ्तर ने रकम की हेराफेरी के मामले में उन पर गबन का आरोप लग गया। उन्हें एक साल की जेल हो गई। हरे-भरे घर में आग लग गई। श्रीमती शर्मा भी अस्वस्थ रहने लगीं। कितने सपने थे उस परिवार के, सब चूर हो गए। इधर तनख्वाह बंद, उधर भवन प्रसाद की एवं श्रीमती शर्मा की दवा का खर्च, आखिर बड़ी पुत्री को एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका बनना पड़ा।

पड़ोसियों में चर्चा होने लगी कि यह शराब भी कितनी बर्बादी का घर है। अच्छे भले भवानी प्रसाद जी का परिवार तबाह हो गया।

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पड़ोसी बोले– भाइयों, यह शराब सेवन अर्थात मद्यपान एक सामाजिक बुराई का रूप धारण करती जा रही है। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो सुखद भविष्य की समस्त सम्भावनाएँ नष्ट हो जाएंगी। मद्यपान के साथ एक बुराई और जुडी है, और वह है गैर-कानूनी घटिया शराब। निर्धन वर्ग इसके शिकार होते है और कई बार तो ऐसी जहरीली शराब से सैंकड़ो व्यक्ति एक साथ मर जाते है।

पास ही खड़े समाज-सुधारक बोले, ” शराब समाज के माथे पर एक कलंक है, यह समाज की एक समस्या है. समाज का एक रोग है। यह एक व्यक्तिगत दोष होते हुए भी इसका सामाजिक प्रभाव है और इसे रोकने के लिए कोई फरिश्ता, देवदूत या अवतार नहीं आएगा। इस दिशा में तो हम सब को ही मिलकर काम करना होगा। “

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जेल से लौटने पर भवानी प्रसाद एक बदले हुए इंसान थे। उन्हें अपनी गलती का पूरा एहसास हो गया था। उन्होंने पुनः घर की बागडोर संभाली और धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो गया। उन्होंने अपने शराबी मित्रों से कहा, “मेहरबानी करके आगे किसी और को शराब पीना मत सिखाना, भगवान से डरना। ” भवानी प्रसाद के बदले हुए जीवन का एवं इन शब्दों का उन पर ऐसा असर पड़ा कि उसी दिन से उन्होंने भी शराब छोड़ दी। यह सच है कि एक बुराई दूसरी बुराई को जन्म देती है और अच्छाई सिर्फ अच्छाई को जन्म देती है।

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आज भवानी प्रसाद का जन्मदिन है। पास-पड़ोस के लोग भी निमंत्रित थे। उन्होंने कहा भाइयों ! मेरी बर्बादी की कहानी आपसे छिपी नहीं है। मेरे जैसे हजारों भवानी प्रसाद प्रतिदिन पैदा होते है और शराब उनकी जिंदगी को बर्बाद करती है। मैं अपने स्वयं के अनुभव से कहता हूँ कि शराब से दुःख मिटते तो है नहीं, दुगने जरूर हो जाते है। इससे समस्या हल नहीं होती है, उलझ जाती है। शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक कई प्रकार की समस्याएं और पैदा हो जाती है।

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