विवेकानंद की 3 श्रेष्ठ कहानियां – Swami vivekananda stories in hindi

आज हम आपको Swami vivekananda stories in hindi में जो कि उनकी श्रेष्ठ कहानियां है। Swami vivekananda ki kahani हमें कुछ न कुछ सिखने हेतु शिक्षा प्रदान करती है। अतः आप सब इन कहानियों को पढ़कर शिक्षा ग्रहण करे।

1. कुएं का मेंढक

(Swami vivekananda stories in hindi)

समुद्र से कुछ दूर में एक काला मेंढक रहता था। उसका जन्म वहीं हुआ था। वह एक दिन भी बाहर नहीं निकला था। उसे बाहरी दुनिया का कोई ज्ञान नहीं था, पर स्वयं को सबसे होशियार समझता था। वह कुएं में पड़े कीट-पतंगों को खा-खाकर मोटा-ताजा हो गया था।

एक दिन जब वह दोपहर में ऊंघ रहा था, तो समुद्र का एक मेंढक धड़ाम से कुएं में आ गिरा। उसने सोचा– “कोई बड़ा-सा कीड़ा आ गिरा है ” और लगा उसकी ओर लेपकाने।

जब उसने दुबारा देखा तो आश्चर्य चकित होकर मन ही मन कहने लगा — ” यह तो मेंढक लगता है, पर मेरे जैसा काला नहीं ?” वह मेंढक से अपने डर को छिपाते हुए उससे पूछा, “ऐ मेंढक भाई ! तुम कौन हो ? “

समुद्र के मेंढक ने उत्तर दिया –” मैं एक परदेशी हूँ। “

“हां। हां ! मुझे पता है, परन्तु तुम्हे यहाँ क्या काम है ?”

Swami vivekananda stories in hindi

Swami vivekananda stories in hindi

“सुनो मेंढक भाई , “मैं नहीं चाहता था कि मैं यहाँ आ जाऊ मैं तो अचानक से गिर गया लेकिन तुमसे मिलकर अच्छा लगा। “

हमारे कुएं वाले मेंढक जी उत्तर से संतुष्ट हुए पर आगंतुक के बारे में और जानकारी प्राप्त करना चाहते थे।

“तुम कहाँ से आए हो ?”

“मैं समुद्र से आया हूँ। “

“समुद्र ! यह क्या बला है, कितना बड़ा है ? क्या मेरे कुएं के बराबर है ?” वह एक जगह से कूदा दूसरे जगह और पूछा।

मेरे मेंढक भाई , वह मुस्कुराया और कहा, “तुम समुद्र की तुलना अपनी इस छोटी सी कुँए से कैसे कर सकते हो ?”

हमारे मेंढक ने एक जगह से दूसरे जगह कूदा और पूछा, “क्या इतना बड़ा है समुद्र ?”

” क्या बकवास करते हो ! तुम्हारे कुएं और समुद्र की कोई बराबरी नहीं। समुद्र तो तुम्हारे कुएं से शत गुना बड़ा है। “

“ऐसा नहीं हो सकता नहीं, तुम झूट बोल रहे हो मैं तुम्हारी बात पर यकिन नहीं कर सकता। भला मेरे कुंए से बड़ा और क्या चीज हो सकती है। “

“तुमने कभी समुद्र नहीं देखा न इसलिए ऐसा बोल रहे हो आओ मेरे साथ मैं बताता हूँ तुम्हे कि समुद्र कितना बड़ा है फिर तुम बताना तुम्हारा कुआँ बड़ा है या समुद्र । “

सचमुच, मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा। तुम ईमानदार नहीं हो सकते, या तुम मुझसे असहमत नहीं होते। अब आप कृपया यहाँ से चले जाएं। “

समुद्र में ज्ञानी मेंढक ने सोचा कि इस मुर्ख से बहस करने में कोई लाभ नहीं है, और वह वापस चला गया।

हमारे मेंढक जी बड़े प्रसन्न हुए और हंसकर बोले, “बड़ा आया ! सोचता था कि मुझे बेवकूफ बनाएगा। मेरे कुएं से कुछ बड़ा हो ही नहीं सकता। ” और फिर कुएं के एक कोने से दूसरे कोने में कूद गया।

शिक्षा : हमें दुसरो के प्रति “कुएं का मेंढक जैसी भावना नहीं रखनी चाहिए। दुसरो की बातों को समझना और सराहना चाहिए। यह संस्कृति का चिन्ह है।

2. तीन वरदान

(Swami vivekananda ki kahani in hindi)

मोनू नाम का एक बेडौल लड़का था। वह नाटे कद का था और उसकी नाक मोटी और छोटी थी। वह सदा ही गंदे और फटे-पुराने कपडे पहने रहता था , क्योंकि वह बहुत गरीब था और विधवा बूढ़ी माँ के अलावा उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था।

वह अनपढ़ होने के कारण कड़ी मेहनत के उपरांत भी अपनी आवश्यकतानुसार नहीं कमा पाता था। उसकी माँ फिर भी उस थोड़ी कमाई से अपना काम चला लेती थी , इसलिए मोनू खुश था। उसकी छोटी नाक के कारण गांव के बच्चे उसे चिढ़ाते थे, जिसके कारण वह दुखी रहता था।

जैसे-जैसे दिन बीतते गए, मोनू जवान हो गया। अपनी माँ की मृत्यु पर मोनू अत्यंत दुखी हुआ और उसके सिरहाने बैठकर रोता हुआ बोला –“ओ माँ ! अब तुम मुझे छोड़कर चली गई हो, अब मेरी देखभाल कौन करेगा ! मुझे कौन खिलायेगा ?” पड़ोसी उसे समझाने आये। बड़े बुजुर्गों ने कानाफूसी की और फिर मोनू को समझाने के लिए एक ओर ले गए।

Swami vivekananda stories in hindi

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“देखो मोनू तुम्हारी माँ अब नहीं रही, ” मुखिया ने कहा , “और अब तुम्हारे घरबार को देखने वाला कोई नहीं है , इसलिए अब तुम शादी कर लो। तुम्हारी क्या इच्छा है ?”

यद्यपि वह शर्मा गया पर उसे यह बात अच्छी लगी।

“दादा,” वह हकलाते हुए बोला “मैं आपको सोचकर कल जवाब दूंगा। “

अपनी स्वर्गवासी माँ का क्रियाकर्म करके वह वापस घर लौटा। वह अकेलापन महसूस कर रहा था। “मुझे विवाह करना ही पड़ेगा। ” वह फिर बाहर सीढ़ी पर बैठकर अपने विवाह के बारे में विचार करने लगा।

दिनभर मोनू अपने विवाह के बारे में सोचता रहा। उसने सोचा कि मुझे किसी सुन्दर लड़की से विवाह करना चाहिए , पर दूसरे ही क्षण उसे विचार आया, “क्या यदि वह भी इन शैतान बच्चो की तरह मेरी छोटी नाक पर हँसेगी तो ! ना बाबा ना ! मैं तो सुन्दर लड़की से विवाह नहीं करूँगा। ” वह दुबारा सोचने लगा और काफी समय बाद इस नतीजे पर पहुंचा।

दूसरे ही दिन वह मुखिया से मिला और आदरपूर्वक कहा, “मैं शादी के लिए तैयार हूँ। पर उस लड़की की भी छोटी-सी नाक होनी चाहिए !”

उस वृद्ध आदमी ने पूछा, “पर मोनू, तुम ऐसी पसंद क्यों कर रहे हो ?”

मोनू जमीन में अपनी नजर गड़ाता हुआ बोला, “नहीं तो, साहब, वह मेरी छोटी नाक की हंसी उड़ाएगी। “

वह बुजुर्ग मुस्कुराता हुआ बोला, खैर, मोनू मैं प्रसन्न हूँ कि तुम शादी के लिए तैयार हो गए हो। मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की लड़की ढूढ़ने की चेष्टा करूँगा। “

एक दूर गांव में छोटी नाक वाली उपयुक्त कन्या ढूंढ़ी गई और मोनू उससे शादी करके बड़ा खुश हुआ। पर उसका यह सुख क्षणिक था क्योंकि अब गांव के बच्चे उन्हें “नकटे पति-पत्नी “कहकर चिढ़ाते लगे।

मोनू ने उन्हें समझाने की भरसक कोशिश की। उसने अपनी बांह चढ़ाकर गलियों में उनका पीछा किया, उनके माता-पिता से शिकायत भी की, पर कोई फायदा नहीं हुआ। एक रात को वह बैठा-बैठा मन ही मन सोचने लगा, “नहीं ! कोई भी मेरी मदद नहीं करेगा , पर मुझे गांव में अपनी हंसी उड़वाते हुए अच्छा नहीं लगता ! हाय ! अब मैं क्या करूं ?”अचानक उसे ख्याल आया– “परमात्मा ने ही तो हमें यह शरीर दिया है, मुझे सहायता के लिए उससे ही प्रार्थना करनी चाहिए। इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है। “

प्रसन्नता से उसने अपनी पत्नी को पुकारा और कहा, “जब तक मैं वापस न आऊं , तुम घर पर ही रहना,” दरवाजा अपने पीछे बंद करता हुआ वह जंगल की ओर चल दिया।

घने जंगल में पहुंच कर उसे एक जमीन में गड़ा, कई से ढका बड़ा पत्थर दिखाई दिया। उस पर बैठकर वह ईश्वर को सहायता के लिए पुकारने लगा। सारा दिन बीत गया , वह ध्यान मग्न होकर बिना हिले-डुले और किसी चीज की परवाह किये बिना लगातार प्रार्थना करता रहा। उसकी लगन से कोई देवता प्रसन्न हुए और उसके सामने प्रकट हो गए। देवता को अपने सामने देखकर मोनू का मन बाग-बाग हो उठा घुटनों के बल बैठकर हाथ जोड़कर करबद्ध निवेदन किया, “प्रभु ! प्रभु ! मुझ पर कृपा कर मेरी प्रार्थना स्वीकार करो। ” करुणानिधान प्रभु ने मुस्कुराते हुए उसे तीन बार गोटी फेंककर तीन वरदान मांगने को कहा।

मोनू यह शुभ-संवाद अपनी पत्नी को सुनाने दौड़ा, “सुनती हो !” वह अपनी पत्नी को चिल्लाया और जोर से दरवाजे को मारते हुए बोला, “जल्दी खोलो। ”

पत्नी ने जैसे ही दरवाजा खोला, वह सीधा अपने पलंग पर जाकर राजा की तरह ठाठ से बैठ गया। उसकी पत्नी को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह इस व्यवहार को समझ नहीं पाई।

“जाओ और मेरे लिए एक गिलास पानी ले आओ “– मोनू ने हुक्म दिया, पर उसकी पत्नी ज्यों की त्यों द्वार पर खड़ी-खड़ी उसे घूरती रही।

“क्या बात है ?” मोनू ने गुस्से से चिल्लाया, “जल्दी करो और मुझे पानी दो ! “

“हे मेरे प्यारे ! यह तुम्हे क्या हो गया है ? तुम्हे किसने पागल कर दिया ?” अपने सर को पीटती हाथो से और रोते हुए बोली

“बस ! बस ! बंद करो” , मोनू चिल्लाया। फिर अचानक अपनी आवाज धीमी कर, फुसफुसाते हुए बोला, “प्रिये, मेरी बात सुनो ! मैं बड़ा भाग्यवान हूँ…. “और उसने अपनी सारी राम-कहानी उसे सुना दी।

उसकी पत्नी प्रसन्नता से नाचने लगी। फिर उसके पास आकर बैठती हुई खुशामद करने गई, “सुनो जी ! पहले गोटी धन-दौलत के लिए फेंको। “

“ना, ना !” मोनू ने विरोध किया, “है धन से क्या प्रयोजन ? हां ! मैं कहता हूँ कि हमें नाकों की सबसे अधिक आवश्यकता है। हमारी कुरूप नाकों पर लोग हँसते है। हम पहले सुन्दर, सुडौल नाकों के लिए गोटी फेंके।”

पर पत्नी का मन पहले धन-दौलत पाने का था। उसने रोकते हुए उसका हाथ पकड़ा। इस पर मोनू को बड़ा गुस्सा आया जबरदस्ती अपने हाथो खींचकर एकाएक गोटी फेंकते हुए बोला, “हम दोनों को सुन्दर सुन्दर नाक दे दो बहुत सुन्दर नाक ही नाक।

Swami vivekananda stories in hindi

Swami vivekananda ki kahani hindi

तुरंत ही उन दोनों के सारे शरीर में नाक ही नाक उग गए। “हे प्रभु ! दया कीजिए। ” मोनू अपनी पत्नी की ओर देखते हुए जोर से चिल्लाया , “ओ महारानी ! तुम तो बहुत ही भद्दी लगती हो। ” “तुम भी तो !” उत्तर में वह भी चिल्लाती हुई बोली। वे एक दूसरे के इस भयानक रूप को देखकर बड़े चकित हुए। उन्हें बेशक सुन्दर-सुन्दर अनगिनत नाक प्राप्त हो गई पर वे इतनी कष्टदायक थी कि उन दोनों ने दूसरी बार गोटी फेंककर उन नाकों को हटवाने का निश्चय किया।

वैसा ही हुआ , पर हाय ! उनकी जो दो छोटी-छोटी नाक थी , वह भी गायब हो गई। दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे की ओर विस्मित हो देखने लगे। वे पहले से और अधिक भद्दे लगने लगे।

“हे प्रिये !” मोनू गिड़गिड़ाते हुए बोला, “यह मैंने क्या किया। मुझे तुम्हारी बात मान लेनी चाहिए थी। अब बोलो, अपने लिए दो सुन्दर नाकों की मांग करे ?”

पत्नी ने अपने नाकहीन मुँह को हाथों में छिपाते हुए बोली, “प्राणनाथ, यदि हमें सुन्दर नाक मिल जाएगी तो लोग अवश्य इस परिवर्तन का कारण पूछेंगे और जब उन्हें असलियत का पता चलेगा तो हमारी मूर्खता का प्रदर्शन होगा कई तीन वरदान पाकर भी हम अपनी हालत नहीं सुधार सके और तो और यदि हम अमीर भी हो जाये तो बिना नाक के जी नहीं सकते। तो चलो वापस हम अपनी छोटी-सी नाक ही ठीक जगह पर लगा लें और अब की बार बड़ी सावधानी बरतिएगा, यह हमारा आखिरी मौका है। “

अपनी गलती का आभास पा मोनू ने अपनी बदनसीबी पर रोया, “हाय ! मैंने ऐसा सुन्दर मौका खो दिया। हाय ! मैं भी कैसा मुर्ख हूँ ” पर अब बहुत देर हो चुकी थी। अंत में उसने घुटने टेककर गोटी फेंकी और प्रार्थना की, “हे भगवान ! हमें हमारी छोटी-सी नाक वापस दे दो। “

उसकी प्रार्थना सुन ली गई और दोनों को बड़ी ही उदास हंसी आ गई।

शिक्षा — अपने जीवन में आये हुए हर मौके का सोच-समझ कर ठीक-ठीक लाभ उठाओ।

3. कुत्ते की टेढ़ी दुम

(Swami vivekananda stories in hindi)

एक गरीब आदमी था जिसे कुछ पैसों की आवश्यकता थी। उसने सुना था कि यदि किसी भूत-प्रेत को पकड़ ले तो उसे वह पैसा लाने के लिए या अन्य किसी भी काम के लिए हुक्म दे सकता है , इसलिए वह एक भूत पकड़ने के लिए लालायित हो उठा। वह एक ऐसे व्यक्ति को खोजने लगा जो उसे एक भूत ला दे। वह जितने लोगो से मिलता उनसे पूछता कि क्या वे किसी सिद्ध महात्मा को जानते है ?

एक दिन उसकी मुलाकात लकड़हारों की एक टोली से हुई और उनसे पूछ बैठा “भाइयों ! आप लोग रोज जंगल में जाते है। वहां आपने किसी महात्मा को देखा है ?” एक ने उसे इशारे में बोला हां भाई ! हम लोग ऐसे महात्मा को जानते है जो जंगल में रहते है।” इस बात पर वह बड़ा प्रसन्न हुआ। वह अपनी खुशी से इन्हे बिना धन्यवाद दिए ही उस दिशा में दौड़ पड़ा।

वह जब आश्रम में पहुंचा तब तक अँधेरा हो चूका था। एक वृद्ध साधु अपनी लम्बी-सी दाढ़ी और सुन्दर जटाजूट में अग्नि के आगे ध्यान में बैठे थे।

वह व्यक्ति उनके सामने बैठ गया गया और बड़े धैर्य के साथ प्रतीक्षा करने लगा। अंत में साधु ने अपनी आँखे खोली और खड़े हो गए। वह आदमी उनके पैरों को पकड़कर रोने लगा। “क्यों भाई क्या बात है ?” साधु आश्चर्य के साथ उससे पूछा, “कौन हो तुम ? और क्या चाहते हो ?”

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“मैं एक गरीब आदमी हूँ, महाराज ! और मैं अपने कार्यों के लिए एक प्रेत चाहता हूँ। ” व्यक्ति ने उत्तर दिया। “आप कृपया, मुझे एक ऐसे प्रेत को पकड़ने की राह बताए। यही मेरी हार्दिक इच्छा है। “

साधु ने ध्यान से सारी बातें सुनी और बोले, “वत्स ! चिंता मत करो और घर जाओ।”

लेकिन वह व्यक्ति रोज साधु के पास आता। वह मानने वाला नहीं था। वह रोज आता और साधु से प्रेत प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता। इन सब से तंग आकर साधु बोले, “तो यह जंतर ले लो। जादू का मंत्र बोलते ही प्रेत तुम्हारे सामने आ जायेगा और जो चाहोगे वही करेगा पर ध्यान रहे , वे बड़े खतनाक होते है। तुम यदि उसे काम न बता पाए तो वह तुम्हारी जान ले लेगा। “

“वाह ! यह तो आसान है , ” वह बोला, “मैं तो सारी जिंदगी उसे काम दे सकता हूँ। ” फिर वह आदमी जंगल में जाकर एक पत्थर पर बैठ गया ओर मंत्र का उच्चारण करने लगा। काफी देर तक निरंतर जप करते रहने पर एक बड़ा-सा प्रेत उसके सामने प्रकट हुआ और गंभीर स्वर में बोला, “मैं प्रेत हूँ। मुझे तुम्हारे जादू ने काबू में कर लिया है पर तुम्हे मुझे सदैव काम में लगाए रखना होगा। जिस क्षण भी मेरे पास काम नहीं होगा मैं उसी क्षण तुम्हे मार दूंगा। ” वह आदमी आश्चर्यचकित हो गया और कुछ समय तक कुछ नहीं बोल पाया। कुछ देर बाद उसने अपनी इच्छा शब्दों में व्यक्त की, “मेरे लिए एक महल बनाओ। “

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उस प्रेत ने अपना हाथ घुमाया और देखते ही देखते वहां एक आलीशान महल खड़ा हो गया। “हो गया महल तैयार है “–प्रेत बोला।

“जाओ ! मेरे लिए धन, जवाहरात, पैसा और सोना लाओ, ” वह उत्तेजना से चिल्लाया।

“यह लो ! बहुत सारा धन-दौलत , प्रेत बोला। सारा जंगल अचानक से हीरे, जवाहरात, सोने, चाँदी से भर गया। यह सब देख कर वह लालची स्वरुप रहा था , उसे प्रेत की आवाज सुनाई दी, “मुझे काम दो और जल्दी काम दो। तुम्हे पता है कि मैं एक पल भी खाली नहीं बैठ सकता। “

उसने उस मनमोहक दृश्य से अपनी निगाहों को बड़ी जबरदस्ती हटाया और प्रेत की ओर देखकर सोचकर बोला, “ऐ प्रेत ! तुम यह जंगल काट डालो और इसकी जगह एक सुन्दर सा शहर का निर्माण करो। उस शहर में सुन्दर महल होने चाहिए तथा मीनारें, जलाशय, रास्ते, उद्यान इत्यादि। समझे ? मैं तुरंत एक बड़ा और सुन्दर शहर चाहता हूँ। “

best hindi story – नारद और माया

“हां ! अब की बार निश्चित ही प्रेत अपना काम इतनी जल्दी नहीं कर पायेगा। ” उसने मन ही मन सोचा और इस बीच में मैं उसके लिए और कोई काम सोच लूंगा। उसका सोचना अभी जारी ही था कि इतने में वह जंगल वहां से गायब हो गया और एक सुन्दर नगर उसके स्थान पर आ गया।

“प्रेत ने बोला, “लो यह भी हो गया और क्या चाहिए बोलो। ”

अब उस व्यक्ति को भय होने लगा। क्योंकि उसने सोचा कि अब वह उसे और कोई काम नहीं दे पाएगा। प्रेत बोला, “मुझे कुछ करने को दो, नहीं तो , मैं तुम्हे खा जाऊंगा। “

वह बेचारा अपना सिर खुजलाने लगा पर उसे प्रेत के लिए कोई भी काम समझ में नहीं आया। वह भयभीत हो वहां से भागा और भागते-भागते अंत में उस साधु के पास पहुंचकर हांफते हुए बोला, ” महाराज ! कृपया मेरी मदद करो मेरी जान बचाइये। “

“क्या हुआ ?” साधु ने पूछा।

“अब मेरे पास प्रेत के लिए कोई काम नहीं है ” — उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा। उसके पांव बुरी तरह से काँप रहे थे। “मैं उसे जो भी काम बतलाता हूँ, उसे वह पलक झपकते ही कर डालता है और अब काम न देने पर मुझे खाने की धमकी दे रहा है। ?

उसी समय वह प्रेत वहां आ पहुंचा। अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से घूरते हुए बोला,”ऐ आदमी सुनो। तुम मुझे काम नहीं दे पाए , इसलिए मैं तुम्हे खाऊंगा ” और उसके मुँह में पानी आ गया। वह आदमी भय से कांपने लगा और महात्मा के पैरों को पकड़कर अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। “महाराज ! कृपया मेरी मदद करिए, मेरी जान बचाइए। मैं जनता हूँ कि आप यदि चाहें, तो मुझे बचा सकते हैं। ” वह बोलता गया –“मैं पैसा नहीं चाहता। मैं कुछ नहीं चाहता। कृपया मुझ पर दया करें और इस प्रेत से मुझे बचाएं।

साधु को उस गरीब पर दया आ गई वह बोले, “अरे मुर्ख ! खड़ा हो जा। अब और समय मत गवां। ” फिर एक कुत्ता, जो कि पास ही में पड़ा था,उसकी ओर इशारा करते हुए बोले, “उस कुत्ते की टेढ़ी दुम देख। एक हथियार लो…हां…ऐसा करो , मेरी कुटिया के बरामदे से वह कुल्हाड़ी ले आओ उससे कुत्ते की दुम काटकर प्रेत को दे दो और कहो, “इसे मेरे लिए सीधी कर दो। ”

प्रेत ने वह दुम ले ली और कहा, “मैं अभी किये देता हूँ और फिर तुम्हे प्रेम से अपना खाना बनाकर खाऊंगा। हा ! हा ! हा ! अब तुम बच नहीं सकते। मैं तुम्हे अवश्य ही खाऊंगा। “

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फिर वह जमीन पर बैठ गया और धीरे से सावधानी के साथ उसने दुम सीधी कर दी पर जैसे ही उसने उसे छोड़ दिया वह वापस टेढ़ी हो गयी। उसने दुबारा मेहनत करके उसे सीधी की पर फिर दुबारा वह टेढ़ी हो गई। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा और अंत में वह हारकर बोला, “मैं पहले कभी ऐसी मुसीबत में नहीं पड़ा। मैं एक अनुभवी प्रेत हूँ पर ऐसी तकलीफ कभी नहीं हुई। मैं स्वयं पर शर्मिंदा हूँ। “

अंत में उस प्रेत ने हारकर उस आदमी से कहा, “महाशय ! मैं आपसे एक समझौता करना चाहता हूँ। आप कृपया मुझे छोड़ दीजिए और जो कुछ भी मैंने आपको दिया है, उसे आप निश्चिंतता से अपने पास रख लीजिए। मैं फिर कभी आपको नहीं सताऊंगा। “

उस आदमी ने यह प्रस्ताव तुरंत स्वीकार कर लिया और चैन की साँस ली।

शिक्षा — हमें जीवन में निराश से बचने के लिए अत्याधिक सांसारिक वस्तुओं की लालसा नहीं रखनी चाहिए।

यह संसार अपनी इच्छा से नहीं बदला जा सकता। यह तो अपने ही ढंग से चलेगा जैसे कि “कुत्ते की टेढ़ी दुम। ”

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