नारद और माया | Naarad aur Maya| Kahani In Hindi

आज हम आपको एक Best kahani in hindi बताएंगे जो कि आनंद से भरा है। यह कहानी हमें माया क्या है से अवगत कराता है।

नारद और माया

(Best kahani in hindi)

एक सुन्दर और जवान मुनि थे , जिनका नाम था नारद। वे भवगान के बड़े भक्त थे और वेद-पुराणों के ज्ञाता थे। इन ग्रंथो का अध्ययन करते-करते उन्हें “माया” शब्द दिखाई पड़ा जो उनकी समझ में नहीं आया।

उन्होंने अध्ययन करते-करते मन ही मन सोचा कि यह माया क्या बला है ? अंत में उन्होंने उस पुस्तक को जोर से बंद कर दिया, “नहीं, मुझे समझ में नहीं है ” , मन ही मन कहा, “और जब तक समझ नहीं आये तब तक मुझे चैन नहीं मिलेगा। ” उन्होंने कई पुस्तकें खोज डाली, कई ज्ञानियों से पूछा, पर उन्हें संतोष नहीं हुआ। “अब मैं क्या करूं ? मेरी मदद कौन करेगा ?” उन्होंने सोचा। फिर अचानक खड़े हो गए और बोले–“मुझे मेरे प्रभु श्री कृष्ण के पास जाना चाहिए, उन्हें अवश्य मालुम होगा। “

वे तुरंत द्वारिका पुरी की ओर चल पड़े जहाँ श्री कृष्ण निवास करते थे।

श्री कृष्ण ने उनका स्वागत किया। “नारद ! तुमने बड़ा अच्छा किया। ” श्री कृष्ण उन्हें गले लगाते हुए बोले, “जो तुम मुझसे मिलने चले आये। पर वत्स ! क्या बात है ? तुम बेचैन से लगते हो। “

“हां प्रभु !” नारद ने बड़े ही विनम्र भाव से भगवान को साष्टांग प्रणाम करते हुए कहा, “आपने मेरे मन की बात ठीक-ठीक जान ली। मैं आपके पास एक समस्या के समाधान के लिए आया हूँ। “

“वह क्या, नारद ?” श्री कृष्ण ने पूछा।

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“भगवन ! आप कृपया मुझे समझाए, ” नारद ने प्रार्थना करते हुए कहा, “और कृपया मुझे दिखाएं कि माया क्या होती है। “
श्री कृष्ण जोर से हंस पड़े और बोले, “बस ! क्या इतनी-सी बात तुम्हे सता रही है , पुत्र ? चलो तुम्हे यह पता चल जायेगा माया क्या है , पर अभी नहीं। तुम थक गए होगे , दिन रूककर आराम करो। “

“प्रभु ! आपके साथ रहना ही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। इसके लिए मैंने जरूर अच्छे कर्म किये है।” नारद बोले।

कुछ दिन बीते पर उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर नहीं मिला।वह बेचैन होने लगे पर संकोच से श्री कृष्ण को याद नहीं दिला पाये। एक दिन श्री कृष्ण ने उन्हें दूर देश की यात्रा करने के लिए कहा। वे लोग प्रातः काल ही निकल पड़े और कई कोस चलने के पश्चात् श्री कृष्ण बोले, “नारद ! मुझे प्यास लगी है, क्या तुम मेरे लिए थोड़ा-सा पानी ला सकते हो ?”

“अभी लाया ” यह कहकर नारद दौड़ पड़े। थोड़ी दूर पर एक गांव था। उन्होंने एक कुटिया का दरवाजा खटखटाया और एक अत्यंत सुन्दर कन्या ने दरवाजा खोला।

“वाह ! क्या दिव्य सुंदरता है”–वे धीमे से बोले और उसे घूरने लगे। तब वह कन्या झेंप गई और नजर नीची करती हुई अपने मधुर स्वर से बोली, “कृपया अंदर आइये महाराज ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ ?”

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मोहित व्यक्ति की तरह नारद भीतर आकर बैठ गए पर कुछ कह न सके। वे अपने आने का कारण ही भूल गए और यह भी भूल गए कि उनके स्वामी उनका इंतजार कर रहे है। वे सब भूल केवल एक ही ख्याल में खो गए। “कैसी सुन्दर कन्या है ! यह हर हालत में मुझे अपनी पत्नी के रूप में मिलनी चाहिए अन्यथा मेरा जीवन व्यर्थ है। ”

कन्या ने कमरे से निकलकर अपने पिता को अंदर भेज दिया। सफेद दाढ़ी वाले उस वृद्ध आदमी ने नारद का स्वागत किया। “पधारिये महाराज ! मेरी कुटिया को पवित्र कीजिए। आपको अतिथि के रूप में पाकर मैं धन्य हो गया। आप जब तक चाहे हमारे मेहमान बनकर हमारे साथ रहे। ” नारद को ऐसे निमंत्रण के बारे में सोचा नहीं था लेकिन उन्हें बहुत ख़ुशी हुई और स्वीकार कर लिया।

उसे उस कन्या से बातचीत करने के कई मौके मिले और वे प्रतिदिन एक-दूसरे से वार्तालाप करते थे। बातो ही बातो में प्यार हो गया। एक दिन उन्होंने पूछा, “प्रिये ! क्या तुम मुझसे शादी करोगी ?” कन्या ने शर्माकर पैर के अंगूठे से जमीन में कुरेदते हुए कहा , “यदि मेरे पिता राजी हो, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। “

“मैं अभी इसी वक्त उनसे बात करता हूँ ” , नारद बोले और कन्या के पिता से बात करने अंदर चल दिए। वे आप प्रस्ताव देने के लिए उतावले हो उठे पर जब वे उसके पिता के समक्ष आये तो अपना धीरज गवां बैठे और शरमाते हुए बोले, “महाशय, मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूँ। ”

“हां ! हां ! अवश्य ! पर पहले आप बैठिये तो।” पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।

नारद बैठ गए। वे हाथ रगड़ने लगे, सिर खुजलाने लगे और फिर बोले, “हां तो महाशय, मेरा एक प्रस्ताव है…. या एक निवेदन है …. नहीं …. क्या मुझे….आप क्या हां कर देंगे….अच्छा…. आपकी कन्या …. मेरा मतलब….अ ….”

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वह वृद्ध आदमी जोर से हंस पड़े और बोले, “बेटा, मैं समझ गया। यदि मेरी बेटी हां कर दे तो मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। “

“धन्यवाद ! पिता जी, धन्यवाद !” नारद प्रसन्नता से बोले।

“पर बेटा, मेरी एक अर्जी है,” पिता जी ने कहा।

“वह क्या ,पिता जी ?” नारद ने कहा।

“शादी के बाद तुम्हे यहाँ मेरे साथ रहना होगा, ” पिता जी ने कहा।

नारद ने यह बात खुशी-खुशी मान ली।

एक शुभ दिन शुभ-मुहूर्त देखकर नारद का उस कन्या से विवाह हो गया। वे अत्यंत प्रसन्न हुए।

इसके पश्चात् बारह वर्ष बीत गए। उनके ससुर का स्वर्गवास हो गया। नारद ने उनकी संपत्ति प्राप्त की। वे अपनी जान में सुख-चैन का जीवन व्यतीत करने लगा। अपनी पत्नी, बच्चे, खेत, गाय-बछड़ो के साथ समय व्यतीत करने लगे।

अचानक एक रात एक भयानक आवाज सुनकर वे चौंक कर जागे, “ओहो ! यह तो तूफान-सा लगता है। ” उन्होंने बाहर देखते हुए मन ही मन कहा। चाहे बादल गरजे, बिजली चमके या मूसलाधार पानी बरसे, मैं तो अपने घर में अपनी पत्नी और प्यारे बच्चो के साथ निश्चित और सुखी हूँ। ” यह सोचकर वे वापस सो गए।

उनकी खुशी ज्यादा देर नहीं रही। थोड़ी देर में भयंकर बाढ़ आयी। नदी में पानी बढ़ता हुआ किनारो से ऊपर बहने लगा और सारा गांव जलमग्न हो गया। मकान गिर गए। पशु, आदमी बहाव से बहने लगे और डूबने लगे। पानी के तेज प्रवाह से सब कुछ अस्त-व्यस्त हो बहने लगा। नारद अपने बच्चों की चीख सुनकर जागे और बिस्तर से नीचे उतरकर उन्होंने दरवाजा खोला।

जब उन्होंने बाहर का दृश्य देखा तो उनका चेहरा उतर गया। “हे भगवान ! मेरे घर को बचाओ। ” वे चिल्लाये। पर उस पानी की घोर आवाज में उनकी चीख विलीन हो गई और पानी तेजी के साथ उनके घर में घुसने लगा।

नारद को अपने बचाव के लिए वहां से भागना पड़ा। उन्होंने एक हाथ में अपनी पत्नी का हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ में अपने दो बच्चों को थाम लिया। एक छोटे बालक को उन्होंने अपने कंधे पर बिठा लिया और पानी के उस तेज बहाव को काटने का प्रयत्न करने लगे। उनके दुर्भाग्य ने उन्हें गलत जगह पहुंचा दिया। दो-चार कदम चलने के बाद बहाव और तेज हो गया और कंधे पर बैठा बच्चा पानी में गिर कर बह गया।

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एक दर्द भरी आह नारद के होंठो से निकली। उस बच्चे को बचाने में बाकी दो बच्चे उनके हाथ से छूट गए और वे भी उस बाढ़ में खो गए। इस असहाय हालत में दुःख और गुस्से से उन्होंने सौगंधो की झड़ी लगा दी। एक दूसरे को पड़के पति-पत्नी बाढ़ से जूझते रहे।

पर हाय ! उनकी प्यारी पत्नी जिसे वे अपनी सारी ताकत लगाकर पकड़ रखे थे, वह भी उस तेज प्रवाह के कारण क्रूर बाढ़ में बह गयी। नारद बहते-बहते किनारे पर जा गिरे और घोर विलाप करने लगे।

“हे भगवान ! मैंने ऐसा क्या किया था जिसके कारण आपने मुझे सजा दी ? अब मेरे जीवन का क्या प्रयोजन ?” नारद विलाप करते रहे, “ओ निर्दयी ! मुझे भी मार डालो। “

अचानक उनके पीछे से एक धीमी-सी आवाज आई, “मेरे बेटे ! पानी कहाँ हैं ? तुम तो मेरे लिए पानी लाने गए थे और तुम्हे तो गए आधे घंटे से भी ज्यादा हो गया। “

“आधा घंटा !” नारद संभलकर खड़े होते हुए बोले, “यह कौन बोल रहा है ?” उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, “प्रभु ! आप ! बारह वर्ष बीत गए और यह सब हो गया फिर भी आप कहते है–केवल आधा घंटा। “

श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले, “नारद !” मेरे पुत्र, तुम “माया” का मतलब जानना चाहते थे न, यही तो है “माया”।

शिक्षा — माया (kahani in hindi) की शक्ति ऐसी है कि वह व्यक्ति के मन में जीवन के मर्म और उद्देश्य को भूलने की लिप्सा भर देता है। मनुष्य को उससे सदा सावधान और सतर्क रहना चाहिए।

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