मेहनत का फल | Mehnat ka Phal | Motivational Story in Hindi

आज हम आपको एक Best Motivational Story in Hindi बताएंगे जो कि एक लकड़हारे के ऊपर है। यह कहानी हमे मेहनत करने को प्रेरित करता है। मेहनत करके ही उसके फल के बारे में नहीं सोचना चाहिए हमें बस मेहनत करना चाहिए फल हमें अपने आप प्राप्त हो जायेगा।

मेहनत का फल

Best Motivational Story in Hindi

बहुत पुराने समय की बात है — माधवपुर देश के सूरत नामक गाँव में एक लकड़हारा रहता था। वह बहुत गरीब था। वह जंगल से लकड़ियां लाता और शहर में बेचकर अपने परिवार का पेट पालता था। वह गरीब तो था, पर चारपाई पर आलसी लकड़हारा लेटा है और खरी-खोटी सुना रही है। आलसी भी कम नहीं था। जब तक घर में खाने-पीने का सामान रहता, वह मेहनत से कतराता रहता। जब घर में आटा समाप्त हो जाता और उसकी पत्नी खरी-खोटी सुनाने लगती तभी वह कुल्हाड़ी उठाकर जंगल की रह पकड़ता।

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माधवपुर का राजा अपनी प्रजा से बड़ा प्रेम करता था। उसकी प्रजा भी उसका बड़ा आदर करती थी। राजा प्रायः अपनी प्रजा के सुख-दुख की खोज-खबर लेने के लिए अपने राज्य के भीतर एक शहर से दूसरे शहर में आया-जाया करता था। उसके साथ उसके मंत्री और सिपाही भी साथ चलते थे।

एक बार वह एक शहर से दूसरे शहर को जा रहा था तो रास्ते में उसे एक घने जंगल से होकर गुजरना पड़ा। घने जंगल में राजा रास्ता भूल गया। मंत्री और सिपाही काफी पीछे छूट गए। राजा को काफी प्यास लग आयी थी। वे अभी कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें एक ओर से खट-खट की आवाज सुनायी पड़ी–लगा जैसे कोई लकड़ियां काट रहा हो।

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राजा ने उसी ओर अपना घोड़ा मोड़ दिया। देखा, सचमुच एक लकड़हारा लकड़ियां काट रहा था। वह लकड़ियां काटने में इतना तल्लीन था कि वह राजा को आते हुए देख न सका। राजा ने ज्यों ही अपना घोड़ा उसके पास रोका, लकड़हारा चौंक उठा। उसने देखा सामने राजा घोड़े पर सवार खड़े है। उसने कुल्हाड़ी एक ओर रख दी और राजा के सामने उनको नमस्कार करके हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

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राजा को जोर की प्यास लगी है, लकड़हारे को ज्यों ही यह बात मालूम हुई वह तेजी से पेड़ पर टंगे हुए अपने छोटे से घड़े को उतार लाया। राजा ने खूब पानी पिया।

पानी काफी ठंडा था। राजा जब पानी पी चुका तो उसने लकड़हारे और उसके गाँव का नाम पूछा।

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फिर राजा ने हीरे से जड़ी हुई एक अंगूठी लकड़हारे को इनाम में दी। अंगूठी पाकर लकड़हारा बड़ा प्रसन्न हुआ। जब राजा चले गए तो वह सोचने लगा कि वह इस अंगूठी को अच्छे दामों में शहर में बेच देगा। इसके द्वारा उसे अपार धन मिलेगा। वह अपनी पत्नी और बच्चों के लिए शहर से नए-नए कपडे खरीद का लाएगा। महीनो के लिए खाने-पीने के समान का इंतजाम कर देगा।

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अब उसकी पत्नी उसे खरी-खोटी भी नहीं सुना पाएगी और उसके वे मित्र जो उसकी गरीबी के कारण उससे दूर भागते थे अब उसका अपमान नहीं करेंगे। यही सोचता-सोचता वह घर की ओर चलने लगा। उसने सोचा कि पहले वह अंगूठी के बारे में अपनी पत्नी को बतालाएगाऔर फिर बेचने शहर ले जाएगा। उसकी कल्पना अब ऊँची उड़ान में ले रही थी। उसने मुट्ठी में अंगूठी को दबा रखा था।

अभी वह कुछ ही कदम आगे चला था कि अंगूठी में जड़े हीरे की चमक देखने के लिए वह पुनः आतुर हो उठा। उसने चारों ओर देखा, कोई भी उसे देखने वाला नहीं था।

लकड़हारे ने अंगूठी को हथेली पर रखा। अंगूठी में जड़ा हीरा बहुत तेज चमक दे रहा था। सोचा, यह तो सचमुच बहुत महंगा अंगूठी होगी। राजा की अंगूठी जो ठहरी। अभी लकड़हारा अंगूठी को देखकर मन-ही-मन खुश हो ही रहा था कि एक चील तेजी से आयी और अपनी चोंच से लकड़हारे की हथेली पर रखी अंगूठी को झपट्टा मार कर उठा ले गयी।

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लकड़हारे के तो जैसे होश की उड़ गए। क्षण भर के लिए तो वह कुछ सोच ही न सका। उसने बहुत दूर तक चील का पीछा भी किया, लेकिन चील अंगूठी को चोंच में दबाये आँखों से ओझल हो गयी थी।

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लकड़हारा हार-थक कर अपने घर लौट आया।

उसके बीबी-बच्चे उसका इंतजार कर रहे थे। घर में आटा तक नहीं था। लकड़हारा जब शहर से लकड़ियां बेचकर वापिस आता था तभी भोजन का प्रबंध हो पाता था। आज भोजन का प्रबंध न हो पाने से सभी दुखी थे। लकड़हारे ने जब पत्नी को अंगूठी की बात बतायी तो उसे भी बड़ा दुःख हुआ, पर वह भी क्या करती ? पड़ोस से कुछ आटा उधार मांग कर उस दिन का काम चलाया।

दूसरे दिन प्रातः लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर निकल पड़ा। दिन भर लकडिया चीरकर उसने एक बड़ा-सा गट्ठर तैयार कर लिया। वह उसे बाँध ही रहा था कि जंगल में उसे दूर से टापों का आवाज सुनाई पड़ी। उसने देखा राजा कि सवारी आ रही थी। वह कुल्हाड़ी एक ओर रखकर राजा के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

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राजा ने कहा–“मैंने तुम्हे इतनी कीमती अंगूठी दी थी कि उसे बेचकर तुम आराम से रह सकते थे। फिर क्यों इतनी मेहनत कर रहे हो ?”

लकड़हारे ने सारी कथा कह सुनाई और बताया कि किस प्रकार चील ने उसके हाथ से अंगूठी ले गयी। यह कहते-कहते लकड़हारे की आँखे छलछला गयीं।

राजा ने उसे धीरज बंधाया और अपनी उंगली से एक नई अंगूठी निकालकर लकड़हारे को दे दी, साथ ही हिदायत दी कि यह महँगी अंगूठी है, इसे संभालकर रखना, खो मत देना। राजा ने आगे कहा कि यदि तुम्हे इस अंगूठी को बेचना हो तो इसे सस्ती कीमत में मत बेच देना। इसको बेचकर तुम जीवन भर आराम से गुजारा कर सकते हो।

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लकड़हारे ने राजा को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।

राजा और उसके सिपाही जब वापस चले गए तो लकड़हारे ने अंगूठी को अपने अंगोछे में लपेटकर कुर्ते के नीचे छुपा लिया और बिना लकड़ियां उठाये वह अपनी कुल्हाड़ी लेकर गांव को वापस चल दिया।

अभी वह हीरे से जड़ी अंगूठी के ध्यान में मगन तेजी से गाँव की ओर जा ही रहा था कि सामने से डाकू आते दिखलायी पड़ गए। डाकुओं को देखकर लकड़हारे की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी।

डाकुओं ने आते ही उसे घेर लिया। एक डाकू को उसके फटे-पुराने कपडे देखकर दया भी आयी, लेकिन डाकुओं के सरदार ने कहा कि यदि यह वास्तव में लकड़हारा है तो इसे जंगल से लकड़ियां लिए हुए आना चाहिए। लकड़हारा इसका कोई जवाब न दे सका। डाकुओं ने उसकी तलाशी ली तो एक बहुत कीमती अंगूठी उसके पास मिली।

कुर्ते के नीचे छुपी अंगूठी को देखकर डाकुओं को बड़ा आश्चर्य हुआ। डाकू उसे कोई धनी व्यक्ति समझ रहे थे। “शेष धन कहाँ है ?” –यह कहकर डाकुओं ने उसकी पुनः तलाशी ली। फिर कुछ न मिलने पर उसकी पिटायी करने लगे।

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लकड़हारे ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन डाकुओं को लकड़हारे की बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। काफी पिटायी लगाने पर भी जब डाकू उससे अंगूठी के अलावा और कुछ भी प्राप्त न कर सके तो उन्होंने लकड़हारे को छोड़ दिया।

गिरते-पड़ते कराहता हुआ वह किसी प्रकार घर पहुंचा। भूख से व्याकुल बच्चे उसका इंतजार कर रहे थे। लकड़हारे का सारा शरीर दर्द और चोट से पीड़ा दे रहा था। इस हालत में लकड़हारे को देखकर उसकी पत्नी और बच्चे बहुत दुखी हुए।

लकड़हारे ने पत्नी से सारी कथा कह सुनाई। दोनों ही अपने भाग्य को कोसने लगे। अंत में पत्नी ने फिर पड़ोस से आटा मांगकर भोजन तैयार किया और उसे समझाया कि जो धन तुमने मेहनत से नहीं कमाया है, उसके जाने का दुःख भी तुम्हे नहीं करना चाहिए।

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रात-भर लकड़हारा दर्द के मारे ठीक से सो नहीं सका। वह अपनी गरीबी से भी तंग आ चूका था। पत्नी और बच्चो के पास अच्छे कपड़े नहीं थे। इसी कारण वह अपने मायके नहीं जा पा रही थी। वह गांव वालो की दृष्टि में भी गिरता जा रहा था।

उसने विचार करना शुरू किया–राजा द्वारा दी गयी पहली अंगूठी चील ले गयी। दूसरी अंगूठी डाकू छीन ले गए। अंगूठी के जाने के साथ उसे मार भी खानी पड़ी। निश्चित ही यह उसके भाग्य में नहीं था। इससे लगता है बिना मेहनत का पैसा उनके भाग्य में है ही नहीं।

वह पत्नी के ताने सुनते-सुनते भी तंग आ गया था। गरीबी के कारण अब मित्र भी उससे कतराने लगे थे, इससे उसका यह पक्का विचार बन गया था कि गरीबी दूर करने के लिए मेहनत के अलावा अब कोई दूसरा चारा है ही नहीं। अब वह मेहनत करके पैसा बचाएगा, तभी उसका मान बढ़ेगा।

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दूसरे दिन से ही लकड़हारा मेहनत पर जुट गया। वह रोज सुबह उठकर जंगल निकल जाता और लकड़ियां काट बीन कर उन्हें शहर में बेचने ले जाता। साल-भर में ही उसने इतने पैसे बचा लिए कि उन पैसों से बढ़ईगिरी का काम सीख लिया तथा औजार लाया। अब वह सुबह-शाम खिड़कियां और दरवाजे बनाने लगा।

शहर में लकड़हारे द्वारा बनायीं गयी खिड़कियों और दरवाजो की अच्छी कीमत मिलने लगी। मांग बढ़ जाने पर उसने कुछ कारीगरों को अपनी सहायता के लिए रख लिया। पांच साल के भीतर ही उसका काम खूब चमक गया।

लकड़हारे की मेहनत देखकर सभी उससे प्रसन्न थे। जो मित्र उसकी गरीबी के कारण उससे कतराने लगे थे, वे पुनः अब उसके पास आने लगे थे, परन्तु अब लकड़हारे को बेकार बैठने की फुरसत ही नहीं था।

उसने देख कि गांव के बहुत से लोग अभी भी बेकार बैठे रहते थे। उनके पास कोई काम नहीं था। लकड़हारा तो जैसे मेहनत का संदेश घर-घर भिजवाने के लिए पक्का इरादा लेकर बैठा था। उसने पुरे गांव के नवयुवकों को सन्देश भिजवाया कि जिन लोगो के पास कोई काम नहीं है वे उसके पास आयें; वह उनको काम देने के लिए तैयार है।

शुरू में कुछ लोगो ने इस बात को मजाक समझा, लेकिन अनेकों युवक उसके पास आये तो लकड़हारे ने उन्हें समझाया कि अपनी तरक्की करने के लिए काम की कोई कमी नहीं है। उसने बताया कि जंगल से जो बच्चे और स्त्रियां बीड़ी बनाने वाले पत्ते तोड़कर उसके पास लाएंगे उनको शहर में बिकवाकर पैसा दिलवाने की जिम्मेदारी वह लेता है।

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देखते ही देखते कुछ माह के भीतर घर-घर में बीड़ी बनाने का कारोबार शुरू हो गया। लकड़हारे की सलाह से कुछ लोग खपरे और ईंटे बनाने के काम में जुट गए। स्त्रियां कपड़े सीने का काम करने लगीं। कुछ लोगो ने मुर्गी पालन का उद्योग शुरू कर दिया। मुर्गियों के अंडे शहर में आसानी से बिक जाते थे।

कुछ किसानों ने सब्जी आदि बड़ी मात्रा में लगानी शुरू कर दीं। सब के काम-काज को वह स्वयं देखता था, उनको सलाह देता था। इस सबका नतीजा यह हुआ कि गांव के लोग अब कामों में व्यस्त रहने लगे। उनके पास आमदनी का बड़ा अच्छा साधन हो गया था। दस वर्षों में ही लकड़हारे की कड़ी मेहनत से गांव के लोगों की हालत बदल गयी।

एक दिन जब लकड़हारा जंगल में सूखे पेड़ को काट रहा था, उसने लकड़ियों के साथ एक चमकदार चीज देखी। उसने गौर से देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया –“अरे ! यह तो वही अंगूठी है जो चील झपट्टा मारकर उससे ले गया था। “

लकड़हारे ने अंगूठी उठा ली और फिर लकड़ियों का गट्ठर बनाकर वह अपने गांव की ओर चल दिया। उसने उसी शाम गांव के लोगो की एक सभा बुलवाई और शुरू से आखिर तक का सारा किस्सा गांव वालों को कह सुनाया कि किस प्रकार उसको राजा द्वारा दी गयी अंगूठी चील झपटा मारकर ले गयी और किस प्रकार लगभग दस वर्षों के बाद उसे वह पुनः प्राप्त हो गयी।

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लकड़हारे ने आगे कहा कि अब वह बिना मेहनत से प्राप्त किए धन का अकेले उपभोग नहीं करना चाहता, अतः इस अंगूठी को बेचकर उससे प्राप्त धन को वह गांव की तरक्की में लगाना चाहता है। इस बारे में आप सब लोग अपनी राय दें।

सबकी सलाह से तय हुआ कि गांव में साफ पानी पीने के दो कुँए खुदवाये जाएँ और एक स्कूल खोला जाएं , जिससे पढ़ाई के लिए गांव के बच्चो को दूर तक न जाना पड़े। पीने का पानी लेने के लिए भी गांव वालों को दूर तक जाना पड़ता था। जो दूर नहीं जाना चाहते थे, उन्हें तालाब का गन्दा पानी पीने के लुए मजबूर होना पड़ता था।

लकड़हारा भी यही चाहता था। उससे अपनी ओर से एक शर्त रखी। वह यह कि गांव का हर व्यक्ति अपना घर साफ-सुथरा रखेगा और कूड़ा एक निश्चित स्थान पर ही फेंकेगा। गांव वालों ने यह शर्त मंजूर कर ली, क्योकि इसमें तो सभी भलाई ही थी।

बहुत जल्द ही गांव में एक स्कूल खुल गया। लकड़हारे के प्रयास से यह स्कूल अपने ही ढंग का था, जिसमे बच्चे से लेकर बूढ़े तक पढ़ने आते थे। विद्यालय समय के पश्चात् विद्यालय में ही उन्हें विभिन्न उद्योगों के बारे में बतलाया जाता था। चटाई बनाने वाले वही चटाई बनाते , बीड़ी के पत्तों से वही बीड़ी बनाई जाती। रस्सी बनाने वाले वही रस्सी बनाते। स्त्रियां वही पर सिलाई और कढ़ाई-बुनाई का काम करती। जो कुछ उत्पादन होता वह शहर में बेच दिया जाता। अब गांव के सभी लोग प्रसन्न थे।

एक दिन राजा की सवारी उस गांव से गुजरी। साफ-सुथरे गांव की खुशहाली देखकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने गांव का नाम पूछा। गांव का नाम सुनते ही उसे लकड़हारे की याद आ गयी। राजा ने लकड़हारे को बुलवाया तो मालूम हुआ कि वह जंगल में लकड़ी काटने गया है और अब आने ही वाला है।

गांव वालों ने बताया कि वही गांव का सरपंच है। थोड़ी ही देर में लकड़हारा वापस आ गया। उसने लड़कियां एक ओर रखकर राजा को प्रणाम किया और उनसे अपनी कुटिया पर चल कर जल-पान ग्रहण करने का निवेदन किया। राजा उसके निवेदन कप अस्वीकार न कर सके।

लकड़हारे का साफ-सुथरा घर चारों ओर से फलों के वृक्षों से घिरा हुआ था। लकड़हारे ने आसन बिछाकर राजा से बैठने के लिए कहा, तभी राजा ने अंगूठी के बारे में पूछ लिया। लकड़हारे ने सारी कथा सुनायी —

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“महाराज ! आपके द्वारा दी हुई पहली अंगूठी चील झपटा मार कर ले गयी थी। दूसरी अंगूठी रास्ते में डाकू लूट ले गए और उन्होंने बहुत मारा भी मुझे, अतः मेरे दिमाग में यह पक्का विचार बैठ गया कि बिना मेहनत से प्राप्त किया धन मेरे भाग्य में नहीं है, इसलिए अब मुझे जमकर मेहनत करनी चाहिए।

गरीबी के कारण ही मेरा पारिवारिक जीवन सुखी नहीं था और गरीबी के कारण मुझे समाज में भी समुचित इज्जत नहीं मिल पा रहा था। गरीबी दूर करने के लिए जमकर मेहनत करनी चाहिए। मैंने रोज मेहनत की और साल भर की मेहनत से जो कुछ थोड़ी-थोड़ी बचत की थी। उससे बढ़ईगिरी के औजार खरीदे और बढ़ईगिरी का काम करने लगा।

एक दिन जंगल में जब मैं सूखे पेड़ काट रहा था तो वही अंगूठी जो चील ले गयी थी, मुझे मिल गयी। मैंने उसको बेचकर स्कूल खुलवा दिया और गांव में दो पक्के कुएं खुदवा दिए। गांव के इस स्कूल में पढ़ाई के समय के बाद सभी को उद्योगों की शिक्षा दी जाती है।

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गांव में चमड़े का काम करने वाले शाम के समय यही जुटे बनाते है। रस्सी, चटाई, बीड़ी आदि बनाने वाले यही अपना काम करते है। स्त्रियां रात के समय सिलाई-कढ़ाई आदि काम सीखती है। सबके सहयोग से गांव इतनी तरक्की कर सका है। “

लकड़हारे ने आगे कहा, “महाराज ! मेरा तो ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति के स्वयं मेहनत करता है, ईश्वर भी उसकी ही मदद करता है।

राजा लकड़हारे की मेहनत से बहुत प्रसन्न हुआ। उसने गांव की तरक्की के लिए और अधिक धन प्रदान किया।

तो कैसी लगी यह Best Motivational Story in hindi आप सभी को। उम्मीद करते है कि आप सभी को यह best moral story in hindi जरूर पसंद आयी होगी।

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