सुनो सुनो | Suno Suno | Hindi Short Moral Story

दोस्तों आज हम आपको एक ज्ञानवर्धक कहानी Hindi Short Moral Story जो की एक प्यारी बच्ची तथा उसका टेलीफोन के प्रति लगाव का वर्णन मिलता है। दोस्तों यह कहानी आप सभी को टेलीफोन के बारे में जानकारी मिलती है। तो आप सभी इस कहानी को जरूर पढ़िए और अपने दोस्तों को भी शेयर करिए।

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सुनो सुनो

(Best Hindi Short Moral Story )

ऋतु के पिता रक्षामंत्रालय में उच्चपद पर थे। ऋतु देखती थी कि जब भी पिता जी घर पर होते तो उनके बहुत-से फोन आया करते। वे अपने सहयोगियों से प्रातः फोन पर बाते करते रहते थे। ऋतु भी चाहती थी कि पिता जी की ही भांति वह भी अपनी सहेली से फोन पर बाते करें, पर उसकी दादी डांट देती थी, वे कहती — “ओह ! नन्ही-सी लड़की हो तुम। फोन पर किससे और क्या बात करोगी ? जब बड़ी हो जाओ तब बातें करना।”

एक-दो बार दादी की अनुपस्थिति में उसने फोन किया भी, परन्तु उधर से कोई उत्तर न आया। उसे डर था कि बार-बार फोन करने पर दादी नाराज होंगी। ऋतु के पिता जी ने उसे फोन करते देख लिया था। वे बहुत समझदार थे। वे जानते थे कि बालक की जिज्ञासा को प्रोत्साहन देना चाहिए, जिससे सही विकास हो सके। उन्होंने ऋतु के लिए टेलीफोन का एक सुन्दर-सा खिलौना ला दिया, साथ ही फोन करने की विधि भी समझा दी।

ऋतु का खिलौना हूबहू टेलीफोन जैसा था, बस यह छोटा था इतनी बात जरूर थी। ऋतु उसे पाकर बड़ी ही प्रसन्न हुई। पिता जी के ऑफिस जाते ही वह अपना फोन लेकर बैठ गई। उसने अपनी सहेलियों को घंटो फोन किया, परन्तु दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आई। ऋतु रुंआसी हो गई, फोन उसने एक तरफ रख दिया। पिताजी के आते ही वह उनसे लिपट गई और बोली — “ओह पिता जी ! आपने मुझे कितना गन्दा फोन दिया है ?”

“क्यों क्या हुआ ?” पिताजी ने पूछा।

“पिता जी ! मैं घंटो हेलो-हेलो करती रही, अनेक बातें करती रही, परन्तु मेरी बात को किसी ने सुना नहीं, न उनका कोई जवाब ही नहीं आया। आप तो फोन पर खूब बातें करते है। दूसरे व्यक्ति आपकी बातें सुन लेते है और आप उनकी। “

“हां बेटी ! वह तो सचमुच का फोन है न इसलिए।” पिता जी ने उसे समझाया।

“सचमुच का कैसा ? उसमे ऐसी क्या खास बात है कि आवाज सुनाई दे जाती है?” पूछने लगी।

“चलो ! पहले चाय पीयें , नाश्ता करे फिर घूमने चलेंगे तो तुम्हे यह सब समझाएंगे। ” पिता जी ने कहा और ऋतु चाय की मेज की ओर दौड़ गई।

नाश्ता करने के बाद पिता जी बोली — “आओ ऋतु ! आज तुम्हें फोन के बारे में समझाएं। पूछो अब क्या जानना चाहती हो ?”

“पिता जी ! आपके फोन से बात क्यों सुनाई दे जाती है, हमारे से क्यों नहीं देती ?” ऋतु बोली।

“बिटिया ! यह तुम्हारा फोन केवल देखने में टेलीफोन जैसा है। उसमे वह यंत्र नहीं है जिससे दूर की बातें सुनाई दे सके। हमारा टेलीफोन बिजली जैसे तारों से जुड़ा है। तुमने सड़क पर टेलीफोन के तार और खम्भे लगे हुए देखे है। हर फोन इनसे जुड़ा रहता है। जब कभी आंधी-तूफान या और किसी बात से ये तार टूट जाते है या इनमे गड़बड़ी आ जाती है तो फिर आवाज भी सुनाई नहीं देती।” पिता जी ने कहा।

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“पिता जी ! बिजली जैसे तारों से आवाज सुनाई देने का क्या सम्बन्ध है ?” ऋतु ने उत्सुकता से पूछा।

पिता जी ने बोला — “ये बहुत अच्छा प्रश्न किया तुमने ! सुनो ऐसा होता है कि जब हम कोई शब्द बोलते है तो वह ईथर में गूंजता है। ईथर से अभिप्राय है – पृथ्वी और आकाश के बीच स्थित चुंबकीय शक्ति जो ध्वनि को अपनी ओर खींचती है। हमारे द्वारा बोले गए शब्द ईथर में समा जाते है। इसी ईथर की सहायता से जब शब्द की लहरें कान के कोमल परदे से टकराती है तो फिर हमे अपनी या दूसरों की बात सुनाई देती है। यह शब्द सुनने की एक सामान्य प्रक्रिया है।

साधारण रूप से हमारी आवाज कुछ दूर तक ही सुनाई देती है, परन्तु दूरभाष यंत्र से यह व्यवस्था होती है कि हमारी आवाज से जो कंपन्न उत्पन्न होता है उसे यह और भी शक्तिशाली ढंग से ग्रहण करता है। फिर शब्द, विद्युत के शब्द के आवेगों में बदल जाते है। ये विद्युतीय आवेग तारों पर चलते है। रिसीवर उठाने पर सुनने वाले को वे फिर ध्वनि के रूप में बदलकर सुनाई देते है। यह सब काम इतनी तेजी से होता है कि सुनने वाले को शब्द बोलने और सुनने के बीच में समय का कोई तनिक भी अंतर मालूम नहीं होता है। यह प्रक्रिया शब्द की गति से भी अधिक तेज होती है।”

“टेलीफोन के द्वारा क्या हम कितनी ही दूर बैठे व्यक्ति से बात कर सकते है ?” ऋतु ने फिर पूछा।

“हां ! टेलीफोन से तुम यहाँ दिल्ली में बैठकर मुंबई, कलकत्ता , मद्रास, रूस, अमेरिका आदि कहीं भी बातें कर सकती हो। बस यह बात जरूर है कि दुरी अधिक होने के कारण आवाज थोड़ी हलकी सुनाई पड़ेगी। ” पिता जी ने समझाया।

“एक दिन आप बता रहे थे कि मनुष्य की सभ्यता का विकास धीरे-धीरे हुआ है। धीरे-धीरे उसने नई-नई खोजे की है। टेलीफोन का आविष्कार किसने किया था और कब किया था ? वह व्यक्ति कितना प्रभावशाली होगा ?” ऋतु ने पूछा।

ऋतु के पिता जी कुछ पल तक सोचने के बाद बोले–“टेलीफोन के आविष्कारक है – अलेक्जेंडर ग्राहमबेल। इनका जन्म स्कॉटलैंड में हुआ था। सोलह वर्ष की आयु से ही ये बोस्टन नगर में गूंगे-बहरो को पढ़ाते थे। उन्हें पढ़ाते-पढ़ाते बेल ने यह सूक्ष्म चिंतन-मनन कर लिया कि शब्द की लहरे कान के परदे से टकराकर कैसे ध्वनि उत्पन्न करती है।

सहसा ही उन्हें यह कल्पना सूझी कि कोई ऐसा यंत्र बनाया जाए जिसके द्वारा आवाज को दूर तक सुना जा सके। बेल अपनी भूख-प्यास , सुख-चैन सभी कुछ भूलकर इस दुष्कर कार्य में जुट गए। मनस्वी व्यक्तियों के लिए कोई कार्य असम्भव नहीं होता। तीन वर्ष के अथक परिश्रम के बाद आखिर बेल को थोड़ी सफलता मिली। शुरू में तो उन्होंने कान के परदे जैसी लोहे की दो गोल झिल्लियां बनाई थी। वह दोनों बिजली के तार से जुड़ी रहती थी परन्तु इससे आवाज बहुत साफ़ सुनाई नहीं देती थी। बहुत समय तक बेल अपने इस आविष्कार को सुधारने में लगे रहे।

आखिर एक दिन उनकी मेहनत सफल हुई। 1876 में वे दूरभाष यंत्र को अंतिम रूप देने में सफल हुए। 10 मार्च , 1876 का दिन मानव सभ्यता के विकास का महत्वपूर्ण दिन था , जब अलेक्जेंडर बेल और उसके प्रयोग में सहायक वाटसन ने एक-दूसरे की आवाज को स्पष्ट रूप से सुना। ‘मैं तुम्हारी बातें सुन सकता हूँ।’ ऐसा कहकर वे खुशी से चिल्लाकर एक-दूसरे की तरफ दौड़े और प्रसन्नता की अधिकता से उन्होंने एक-दूसरे को उठा लिया।”

ऋतु जो बड़े ध्यान से सारी बाते सुन रही थी, बीच में ही बोल पड़ी, पिता जी ! बेल कोई बहुत अनुभवी-बुड्ढे व्यक्ति रहे होंगे ?

पिता जी हँसकर बोले — “ऋतु ! तुम्हे यह जानकर अचंभा होगा कि जब अलेक्जेंडर बेल ने यह प्रयोग किया था तब वे केवल 28 वर्ष के थे। आयु से प्रतिभा का कोई विशेष सम्बन्ध नहीं होता। ऐसे भी वृद्ध होते है जो अपना सारा जीवन खाते-सोते, रोते-झींकते छोटे-मोटे साधारण कामों में बिता देते है। इसके विपरीत ऐसे भी बालक और युवक होते है जो ऐसे महान कार्य करते है कि लोग दंग रह जाते है। महानता निर्भर करती है व्यक्ति के सोचने के ढंग पर , उसके जीवन सिद्धांत पर। बड़े होकर कोई एकाएक महान नहीं बन सकता। उसके लिए तो बचपन से ही अभ्यास करना होता है, साधना करनी पड़ती है।”

“हां ! तभी व्यक्ति कुछ ऐसा कर पाता है कि उसका नाम अमर हो जाता है। ” ऋतु जो भाव-विभोर होकर पिता जी की बातें सुन रही थी , कहने लगी।

और हमारी ऋतु बिटिया भी ऐसी ही बनेगी न अच्छी-अच्छी। कहकर पिता जी ने ऋतु के गाल पर हल्की-सी चपत लगा दी। ऋतु हँसते हुए दौड़ चली अपनी सहेलियों के घर आज मिले हुए नए ज्ञान को उन्हें भी बताने।

तो दोस्तों कैसी लगी यह Hindi Short Moral Story आप सभी को। हमे उम्मीद है यह Hindi Short Moral Story आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। ऐसे ही कहानियां पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहिए और यह कहानी कैसी लगी comment जरूर करें।

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