धूर्त लोमड़ी | Lomdi Ki Kahani Hindi

दोस्तों आज हम आप सभी के लिए एक New Short Story Hindi जो Lomdi Ki Kahani है। इसका शीर्षक “धूर्त लोमड़ी ” है। इस कहानी में आपको लोमड़ी की बुद्धि और उसका सोचने की शक्ति का पता चलता है। इस Lomdi Ki Kahani में हमे लोमड़ी के अलावा बिल्ली, मुर्गी, खरगोश तथा भालू जैसे जानवरों का भी वर्णन मिलता है। तो दोस्तों आप सभी इस Lomdi Ki Kahani को पढ़िए और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को शेयर करिए।

धूर्त लोमड़ी

( Lomdi Ki Kahani short Story Hindi )

गोमती नदी के पार एक छोटा-सा जंगल था। वहां पर अनेक जीव-जंतु रहा करते थे। श्यामा बिल्ली, गामा खरगोश, लाली मुर्गी , राजा भालू यह सभी एक-दूसरे के मित्र थे। इनकी अपनी अलग मंडली थी। सभी भेदभाव और दुश्मनी को छोड़कर साथ-साथ रहते और एक-दूसरे का हित चाहते, प्यार करते। यद्यपि यह अपने मूल स्वभाव से एक दूसरे से भिन्न थे , परन्तु कभी कोई किसी पर न हमला करता, न अहित चाहता। जंगल के दूसरे प्राणी इनकी मित्रता का उदाहरण देते।

सज्जन ही मिल-जुलकर रहने , प्यार और प्रसन्नता का वातावरण बनाने में जीवन का गौरव समझते है, परन्तु इसके विपरीत दुर्जन एक-दूसरे में फूट डालते रहते है, लड़ाई-झगड़ा कराते और वातावरण को दूषित बनाया करते है। तेजी लोमड़ी को भी इन सबकी मित्रता अच्छी न लगी। उसने अपनी सहेलियों के सामने प्रतिज्ञा की कि वह बिल्ली आदि में लड़ाई कराकर ही छोड़ेगी। दुर्जन अपने अहं और स्वार्थ से प्रेरित होकर ऐसे कार्य करते है जिससे औरों का बुरा होता है।

तेजी जानती थी कि सामान्यतः श्यामा बिल्ली आदि न तो उससे बात करेंगे, न उसे मित्र बनाएंगे। इसलिए वह सही मौके की तलाश करने लगी। वह अवसर देखती रहती थी कि कब उनकी सहायता करे। दो-चार बार ऐसा करके उसने उन पर विश्वास जमा लिया था। आखिर तेजी लोमड़ी ने उनका मित्र बनने में सफलता पा ही ली।

तेजी प्रायः अपनी प्रशंसा करती, अपने गुणों का वर्णन करती। वह अपनी सत्यनिष्ठा , उदारता , परोपकार आदि की घटनाएं भी सुनाती। भोले जानवर उस पर विश्वास कर लेते। जल्दी ही श्यामा बिल्ली, गामा खरगोश आदि तेजी को अपना बहुत ही विश्वासी मित्र समझने लगे। वह अब अपनी गुफा छोड़कर उनके साथ ही रहने आ गई।

सदव्यवहार की अनिवार्य शर्त है — जैसा सोचा जाए , वैसा ही कहा जाए और वैसा ही किया जाए , पर दुर्जन इससे भिन्न होते है। सोचते कुछ और है, कहते कुछ और है , करते कुछ और है। तेजी भी ठीक ऐसी ही थी। वह मुँह से प्रेमपूर्वक मिल-जुलकर रहने की बात कहती , पर सदैव फूट डालने का अवसर ढूंढ़ती। एकांत पाते ही सभी को एक-दूसरे के विरुद्ध भरती। तेजी लोमड़ी मोटे-ताजे गामा खरगोश को देखती तो उसके मुँह में पानी भर आता। वह छल से उन्हें मारने का मौका देखने लगी।

एक बार श्यामा बिल्ली बीमार पड़ी। तेजी ने खूब ही सेवा करके उसका मन जीत लिया। एक वह दत्ता गेंडे के यहाँ से श्यामा की दवा लेकर लौटी और चुपचाप मुँह लटकाकर एक कोने में बैठ गई। उसे गुमसुम देखकर सभी ने पूछा — “क्या बात है ? ऐसे क्यों बैठी हो ? ” तेजी लोमड़ी पहले तो कुछ न-न कहती रही फिर बहुत ही पूछने पर ठंडी आह भरकर बोली — “काश ! मैं भी खरगोश होती।”

“क्यों क्या बात है ?” सभी ने उत्सुकता से पूछा।

“दत्ता गेंडे ने कहा था कि यह दवा खरगोश के खून में दी जाएगी। इसलिए मैं खरगोश होती तो मित्र के लिए अपना खून दे देती।” तेजी कहने लगी।

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पास बैठा राजा भालू उसकी हां में हां मिलाने लगा — ” अरे ! यह कौन-सी बड़ी बात है। हमारा गामा खरगोश भी कहाँ पीछे रहने वाला है। थोड़े से खून की ही तो बात है। वह तो जरूर ही खून दे देगा।”

लोमड़ी तो चाहती भी यही थी। थोड़े से खून के बहाने वह गामा का खून ज्यादा-सा निकाल देगी। अधिक खून निकल जाएगा तब उसे तेजी लोमड़ी चुपचाप ही चट कर जाएगी। राजा की तो बात सुनकर वह अंदर ही अंदर खुशी से झूम उठी।

उस दिन गामा खरगोश और लल्ली मुर्गी साथ-साथ जंगल गए थे। रात को वे देर से लौटे। खा-पीकर जब सब सोने लगे तो राजा ने उन्हें सारी बात बताई। गामा खुशी-खुशी बोला — “मेरा सौभाग्य होगा जो मित्र के लिए मेरा खून काम में आए। सुबह मैं अपना खून दूंगा।”

सब सो गए , पर लल्ली मुर्गी की आँखों में नींद न थी। उसे लग रहा था कि कुछ दाल में काला है। तेजी की बातों पर उसने मन से कभी विश्वास न किया था। दूसरी मुर्गियों से वह तेजी की बुराई सुन चुकी थी। फिर आज तक दत्ता गेंडे ने कभी किसी प्राणी के खून में दवा नहीं दी थी।

वह तो सदैव जड़ी-बूटी वाली दवा नदी के पानी के साथ देता था। ‘ मुझे सच्चाई की खोज करनी ही चाहिए।’ वह मन ही मन कहने लगी। उसने पूरी रात जगते-जगते काटी। सुबह होते ही उसने बाँग लगाई। फिर जल्दी से गामा खरगोश को जगाया। सब को सुनाते हुए वह जोर से बोली — “चलो उठो ! आज तो तुम्हे खून देना है। नदी के किनारे नहा-धो आओ , खाओ-पीओ फिर जल्दी से यह काम करो।”

रास्ते में लल्ली ने गामा को सारी बात बताई। वह बोली–“नदी के किनारे आने का तो बहाना भर था। चलो जल्दी से दत्ता गेंडे के यहाँ चलकर सच्चाई पता करें।”

उनकी बात सुनकर दत्ता गेंडा तो आश्चर्य से भर उठा और बोला — “अरे ! मैं भला कभी ऐसा पाप करूंगा ? एक तो बचाने के लिए दूसरे को क्यों मरूंगा ?”

“पर दादा जी ! तेजी लोमड़ी तो कल से यही गाती फिर रही है, पुरे जंगल में आपको बदनाम कर रही है। ऐसे तो फिर कभी कोई भी जानवर आपके पास दवा देने नहीं आवेगा।” लल्ली मुर्गी ने उसे भड़काया।

लल्ली की बात सुनकर दत्ता गुस्से से भर उठा। “चलो ! मेरे सामने कहलवाओ उससे।” वह जोर से बोला।

तीनों गुफा की ओर चल पड़े। तेजी गुफा के बाहर झाड़ी में खड़ी थी। वह अच्छा-सा बबूल का काँटा ढूंढ़ रही थी जो देखने में छोटा लगे , पर जिससे खूब-सा खून निकल आए। उसने झाड़ियों में एक गड्ढा भी खोद लिया था जिससे खरगोश को मारकर वहां गाढ़ दे और मौका मिलने पर चुपचाप खा ले।

तभी तेजी ने लल्ली मुर्गी और गामा खरगोश को आते देखा। उसके मुँह में पानी भर आया और वह अपने होंठो तो चाटने लगी। वह जल्दी से बाहर निकली, पर तभी उसकी निगाह दत्ता गेंडे पर गई। वह पल भर में सारी बात समझ गई। “अब तो मेरी खैर नहीं।” उसने मन ही मन कहा और तेजी से झाड़ियों में भागी चली गई। दत्ता गेंडा, गामा खरगोश और लल्ली मुर्गी ने बहुतेरी आवाजें लगाई, पर भला वह कहाँ सुनने वाली थी। वह यह सब जानती थी कि दत्ता गेंडा बहुत ही गुस्से में है और पलभर में ही उसे फाड़-चीरकर रख देगा।

गुफा में जाकर दत्ता ने श्यामा बिल्ली और राजा भालू को खूब फटकारा। वह बोला — “कैसे हो तुम जो दूसरों की बात पर आँख बंद करके विश्वास कर लेते हो। अपनी बुद्धि से तो कुछ सोचा करो। यह तुम्हारा सीधापन नहीं, मूर्खता है। यों तो तुम्हे कभी भी कोई बुद्धू बना जाएगा।”

दोनों को अपनी गलती का अनुभव हो रहा था। उनके सिर लज्जा से झुक गए। “ओह ! हम अपने अंध-विश्वास के कारण छल गए। जीवन में परखा नहीं है, उस पर कभी विश्वास न करे।” वे आपस में कहने लगे।” दत्ता गेंडे से उन्होंने फिर कभी ऐसी गलती न दुहराने के लिए क्षमा मांगी।

कुछ दिनों बाद जंगल के दूसरे जानवरों से उन्हें पता लगा कि तेजी के आगे के दोनों पैर बेकार हो गए है। हुआ यह था कि उस दिन अंधाधुंध भागने से उसके पैरों में जहरीले काटे चुभ गए थे। कुछ कांटे बहुत कोशिश के बाद भी निकल न पाए। कई महीने तक पैर पकते रहे फिर अंदर जहर फैल गया और वे कमजोर पड़ गए। तेजी लोमड़ी की जान तो बच गई, पर वह सदैव के लिए अपंग हो गई। दूसरों का बुरा करने वाला उस समय भूल जाता है कि उसका पाप कभी न कभी उसे ही ले डूबेगा।

तो दोस्तों कैसी लगी यह Lomdi Ki Kahani आप सभी को। हमे उम्मीद है यह Lomdi Ki Kahani आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। दोस्तों ऐसे ही और अनेक कहानियां हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध है जरूर पढ़े और यह कहानी कैसी लगी comment करके जरूर बताएं।

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