आज हम आपको एक मजेदार कहानी जो कि एक Short Kahani in Hindi जिसका शीर्षक है “कल की कल देखि जाएगी (Kal ki Kal Dekhi Jayegi )। ” यह कहानी एक सेठ की है। तो आप सभी इस कहानी को पढ़िए और अपने रिश्तेदारों को शेयर करिए।
कल की कल देखी जाएगी |Kal ki Kal Dekhi Jayegi
(Short Kahani in Hindi for kids)
एक सेठ थे। नाम था दामोदर। खूब मालदार। घर में लक्ष्मी बरसती थी। अपार धन था। पैसा कहां से आता, कहां जाता कोई ओर-छोर ही नहीं था।
एक दिन सेठजी ने मुनीम से पूछा, “मुनीमजी, जरा बताइये हमारे पास कितना धन है ?” मुनीमजी बोले, “सेठजी, ऐसे कैसे बताएं ? हिसाब-किताब लगाने में ही महीनों लग जायेंगे। ” सेठजी बोले, “अजी तुम मोटा-मोटा हिसाब लगाकर अंदाज से ही बता दो। “
थोड़ी देर में मुनीमजी ने बताया, “सेठजी आपके पास अकूत धन है। हिसाब लगाना मुश्किल है। हां, इतना जरूर बता सकता हूं कि यदि आपके यहां इसी तरह खर्च होता रहा, ऐसे ही शादी-ब्याह होते रहे, ऐसे ही दान-पुण्य होता रहा, इसी तरह हवेली के निर्माण पर खर्च होता रहा, तो यह धन बीस पीढ़ी तक चल सकता है। “
सेठजी ने बात सुनी और समझी। फिर वे मुनीम जी से बोले, “बस बीस पीढ़ी तक का ही इंतजाम है? फिर इक्कीसवी पीढ़ी का क्या होगा ?”
मुनीमजी बोले, “सेठजी, मैंने तो अंदाज से ही बताया है। अब आप जानो और आपका काम जाने। इसका उत्तर मेरे पास नहीं है। “
यह सुनकर सेठजी का दिल बैठ गया। वह फफफ-फफककर रोने लगा। उन्हें जितना समझाया जाता, उतना ही अधिक रोते। घर जाकर उन्होंने खाट पकड़ ली। खाना-पीना सब छूट गया। उनकी नींद हराम हो गयी। डॉक्टर-वैद्य इलाज के लिए आये, पर कोई बात नहीं बनी।
घर वाले परेशान। रिश्तेदारों का तांता लग गया। चार जाते-आठ आते। पर सेठजी का ले देकर वही दर्द कि मेरी इक्कीसवी पीढ़ी का क्या होगा, इसका कोई जवाब दे।
Short kahani in hindi – Boli ka Ras
सेठजी के घरवालों को किसी ने कुछ बताया, किसी ने कुछ समझाया। जिसने जैसा बताया, वैसा किया गया। तंत्र-मंत्र कराए गए। देवी-देवता मनाए गए। झाड़-फूंक कराया गया। पर नतीजा कुछ भी नहीं निकला। सेठजी की हालत खराब होती गयी। सेठजी लाइलाज हो गए।
सेठजी का एक लंगोटिया यार था संतोषीलाल। वह देशाटन के लिए गया हुआ था। बड़ा अलमस्त था। सेठजी से उसकी खूब घुटती थी। जब वह लौटकर आया तो उसने परम मित्र का किस्सा सुना। उससे रहा नहीं गया।
वह भागा हुआ दामोदर के पास पहुंचा। देखा, सेठजी पलंग पर पड़े करवटे बदल रहे हैं। लम्बी-लम्बी साँसे ले रहे है।
इक्कीसवी पीढ़ी का क्या होगा ? हाय राम, मेरी इक्कीसवी पीढ़ी का क्या होप्ग ? बस एक ही जाप चल रहा था।
संतोषीलाल को देखते ही दामोदर रोने लगा। उसकी हिचकी बंध गई। संतोषीलाल ने कहा, “अरे भले आदमी, जरा चुप तो लगा। बता तो सही कि आखिर बात क्या है ?” “अरे भैया, मेरी इक्कीसवी पीढ़ी का क्या होगा ?” रोते-रोते सेठ दामोदर बोला।
संतोषीलाल ने पूछा, “यह इक्कीसवी पीढ़ी का क्या मामला है जरा मुझे समझा तो सही। “
“अरे भइया, मैंने मुनीमजी से पूछा कि मेरे पास कितना धन है। मुनीमजी ने बताया कि बीस पीढ़ी तक का है। अब मुझे यह गम खाये जा रहा है कि इक्कीसवी पीढ़ी का क्या होगा ?” यह बात सुनते ही संतोषीलाल ने कहा, “अरे भाई, खूब कही। इसका उत्तर तो एक आदमी के पास है। नहीं मानते तो खुद जाकर पूछ ले।”
अपने मित्र का जवाब सुनते ही सेठ दामोदर के चेहरे पर चमक आ गयी। वह पलंग से उठ बैठा और बोला, “बता भाई, वह कौन है ? मैं अभी उसके पास जाऊंगा। “
‘अरे हमारे नगर के बाहर वासुदेव पंडितजी हैं। वे तुरंत बता देंगे। “
संतोषीलाल तो बता कर चल दिया। इधर दामोदर ने रथ तैयार किया। अपनी पत्नी से कहा, “चल, एक थाली में कुछ खाने-पीने का सामान रख ले। नगर से बहार चलना है। वासुदेव पंडित से मिलकर आएंगे। ”
सेठ की बात सुनते ही उसकी पत्नी ने एक थाली में गेहूं का आटा, गुड़, घी, दाल, नमक व मिर्च रख लिया। उधर रथ सज गया। थोड़ी देर में सेठ और सेठानी वासुदेव की कुटिया पर पहुंच गए। रथ को कुटिया के आगे नीम की छाया में खड़ा कर दिया गया।
वासुदेव की कुटिया में दो छप्पर थे। एक चापार बाहर था और दूसरा भीतर के हिस्से में। कुटिया के आगे वाला आँगन गोबर से लिपा हुआ था। एक तुलसी का गमला था। वासुदेव छप्पर के नीचे एक तख्त पर बैठे हुए थे। तख्त के पास आसान बिछा हुआ था।
सेठजी ने पंडितजी को आवाज लगाई। पंडितजी ने दोनों को अंदर छप्पर में बुलाया। पंडितजी नगर सेठ को अपने घर आया देख कर अचंभे में रह गए। पंडितजी ने सेठ-सेठानी को आशीर्वाद दिया। सेठानीजी ने पंडितजी के आगे सामान से भरी थाली रख दी। पंडितजी ने पंडितानी को आवाज लगाई। पंडितानी तुरंत पहुंची। पंडितजी ने उससे सामान की थाली को ले जाने को कहा, पंडितानी ने विनम्र भाव से उत्तर दिया, “भगवन, आज तो हमारे पास है। इसका हम क्या करेंगे ?” पंडितानी की बात सुनकर सेठजी बोले, “आज है तो यह सामग्री कल काम आएगी। “
पंडितानी ने जवाब दिया, “सेठजी कल की कल देखी जायेगी। आज तो हमारे पास है। आज जिनके पास नहीं है, उनको दो तो अधिक अच्छा रहेगा। ” यह कहकर पंडितानी भीतर चली गयी।
हां, पंडितानी की बात सेठजी के गले जरूर उतर गयी। “कल की कल देखी जाएगी “, यह बात उनके दिमाग में घूमने लगी। वे सोचने लगे, “इन्हे कल की भी चिंता नहीं है और मैं इक्कीसवी पीढ़ी के लिए मरे जा रहा हूं। “
पंडितजी ने कहा, “सेठजी, इस थाली की सामग्री को रख लो। इसका सदुपयोग करो और यह तो बताओ कि यहां आये कैसे ? कोई बात पूछनी हो, तो पूछ लो। “
सेठ ने कहा, “नहीं पंडित जी, कुछ भी नहीं पूछना। मुझे तो मेरे सवाल का जवाब मिल गया। ”
Hello, I enjoy reading all of your article. I like to write a
little comment to support you.