युक्ति से मुक्ति | Short Moral Story in Hindi

दोस्तों आज हम आप सभी के लिए Short Moral Story in Hindi जिसका शीर्षक “युक्ति से मुक्ति “लेकर आये है। यह कहानी एक किसान की है। दोस्तों यह Short Moral Story in Hindi एक शिक्षाप्रद कहानी है। आप सभी इस Short Moral Story in Hindi “युक्ति से मुक्ति ” को पढ़िए और दूसरों को भी share करिए।

Short Moral Story in Hindi

युक्ति से मुक्ति

(Best Short Moral Story in Hindi )

एक दिन एक किसान फावड़े से कुछ खोद रहा था कि उसे सोने की मुहरों से भरा हुआ सन्दूक मिला।

उसने सोचा, यदि इसे अभी ले जाऊँगा तो सब लोग जान जायेंगे। बड़ा हो-हल्ला मचेगा और यदि सरकार को पता लग गया तब तो इसमें से मुझे एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी। वह सन्दूक को वहीं छिपा कर रख गया और सारी बात अपनी घरवाली से कह सुनाई ।

उसकी स्त्री बड़ी बातूनी थी। झूठी-सच्ची कहने में उसे बड़ा मजा आता था। इसकी उससे और उसकी इससे कहते फिरना उसका काम था। इस काम के लिए वह गाँव-भर में बदनाम भी थी। वह कोई भी बात छिपा नहीं सकती थी, चाहे घर की हो या बाहर की। फिर इस बात को ही कैसे छिपाती।

Short Moral Story in Hindi

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उसने अपनी पड़ोसिन से कहा, पड़ोसिन ने दूसरी से और दूसरी ने तीसरी से। बस फिर क्या था। बात की बात में यह बात सारे गाँव के बच्चे-बच्चे को मुहरों का सन्दूक मिलने का पता चल गया है तो वह बहुत घबराया। पर अब क्या हो सकता था। उसे अपने पर ही क्रोध आने लगा कि उसने मूर्ख स्त्री को यह बात क्यों बताई जबकि यह जानता था कि वह सबसे कहती फिरेगी।

आखिर उसने एक उपाय सोच निकाला। दूसरे दिन वह सुबह ही उठा और बाजार को चल दिया। वहाँ उसने कुछ मछलियाँ, एक खरगोश और कुछ केक डबल ब्रेड खरीदे। उन सबको लेकर वह सीधा वहीं पहुँचा, जहाँ उसे मुहरों से भरा संदूक मिला था।

उसने मछलियों को की टहनियों से दिया। वह अपने साथ एक मछलियाँ पकड़ने वाला जाल भी लेता चला गया था। जाल को उसने पास ही बहती नदी में फैला दिया और खरगोश को उसमें फँसा दिया। इसके बाद केकों की बारी थी। उन्हें भी उसने छोटे-छोटे पौधों पर लटका दिया। इतना कुछ कर चुकने के बाद वह लौट आया।

घर पहुँचते ही उसने अपनी घरवाली से कहा- “चलो जंगल से मछलियाँ ले आएँ। मैं अभी-अभी देख कर आ रहा हूँ कि वृक्षों की टहनियों में मछलियाँ लटकी हुई हैं।”

“जंगल में मछलियाँ ?”

उसकी स्त्री ने बड़े आश्चर्य से बात को दुहराते हुए पूछा, “तुम कह क्या रहे हो ? तुम्हारा दिमाग तो कहीं खराब नहीं हो गया है। “

“चलो मेरे साथ और देख लो।” किसान ने उत्तर दिया।

और वह दोनों जंगल की ओर चल दिए।

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वे अभी बहुत दूर नहीं गये थे कि किसान की स्त्री को वृक्षों की टहनियों से लटकती हुई मछलियाँ दिखाई दीं।

“जरा इस ओर तो देखो !” उसने अपने पति से कहा। उसे बड़ा आश्चर्य हो रहा था।

“आखिर मेरी बात ठीक निकली न। तुम तो मेरी बात पर विश्वास ही नहीं करती थीं। अब बताओ?” किसान बोला।

उन दोनों ने मछलियों को टहनियों पर से उतारा और टोकरी में रख लिया इसके बाद वे कुछ और आगे बढ़े।

कुछ कदम आगे चलने पर किसान की स्त्री ने देखा कि पौधों के साथ केक लटक रहे हैं। वह फिर आश्चर्य से एकटक इन केकों की ओर देखने लगी ।

उसने कहा- “आज एक-से-एक बढ़कर अनोखी चीजें दिखाई दे रही हैं। जरा इस तरफ तो देखो।” उसने किसान को पास खींचते हुए कहा- “कितने बढ़िया-बढ़िया केक इन पौधों पर लटक रहे हैं ??”

किसान ने उत्तर दिया- क्या तुम नहीं जानती हो कि रात को केकों की वर्षा हुई है।”

उसकी स्त्री ने उन पौधों पर से जी-भर केक उठा कर अपनी टोकरी में डाल लिए। वे दोनों फिर आगे को बढ़े।

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कुछ दूर चलने पर वे नदी के किनारे पहुँच गए। किसान ने कहा, ‘मुझे प्यास लग रही है। थोड़ा पानी पी लें।”

वह अपनी स्त्री को उस स्थान पर खड़ा कर गया, जहाँ उसने जाल फैला कर खरगोश को उसमें फँसा रखा था और स्वयं उस स्थान से जरा एक ओर हट कर पानी पीने लगा।

उस स्त्री की नजर उस जाल पर पड़ी। ध्यान से देखने पर उसमें कोई चीज फैंसी हुई दिखाई दी। वह जोर से चिल्लाई- “देखो, इधर आओ। वहाँ जाल में फँसी हुई कोई चीज दिखाई दे रही है, परन्त वह मछली नहीं, कुछ और ही है।

किसान भीतर से तो सब कुछ जानता ही था कि आज सुबह वह यह सब बात करके गया है, किन्तु इस समय वह इस ढंग से सब कुछ कर रहा था, जैसे यह बात उसके लिए भी उतनी ही नई है, जितनी उसकी स्त्री के लिये ।

किसान ने झट-पट आकर उस जाल को बाहर निकाला। देखा तो उसमें एक मोटा-ताजा खरगोश फँसा हुआ था। दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा।

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उसकी स्त्री को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। पानी में खरगोश कैसे फँसा था? किन्तु आज तो इससे पहले भी वह ऐसी ही दो और बातें अपनी आँखों से देख चुकी थी ।

आश्चर्य और प्रसन्नता के साथ उसने खरगोश को भी टोकरे में रख लिया। वह सोचने लगी- देखें अभी कौन-सी अनोखी घटना घटती है।

अब किसान उसे लेकर वहाँ पहुँचा जहाँ सोने की मुहरों से भरा सन्दूक छिपा ररखा था। वह एक वृक्ष के पास जाकर उसके कोटर में घुसा और जमीन की तरफ उतरने लगा। वह नीचे से उस सन्दूक को उठा लाया और अपनी स्त्री को दिखाने लगा। इसके बाद उसने मोहरें निकाल कर दूसरी जगह ‘गाड़ दीं’ और दोनों वापिस घर आये।

जब वह अपने घर पहुँचे तो देखते क्या हैं कि थानेदार दरवाजे पर बैठा इन्तजार कर रहा है। जो कुछ किसान ने सोचा था वही हुआ ।

उसकी स्त्री आज सुबह पनघट से पानी लाने गई थी तो सबसे कह आई थी कि मेरे पति को सोने की मोहरों से भरा एक सन्दूक मिला है। इस बात का पता गाँव के बच्चे-बच्चे को लग गया और बात पहुँचते-पहुँचते थानेदार के कान में पड़ी। वह इसकी जाँच पड़ताल करने आया था कि वास्तव में बात क्या है?

उसने किसान से कहा कि वह इन मुहरों को सरकारी खजाने में जमा करा दें, क्योंकि इस प्रकार के धन पर सरकार का ही अधिकार होता है।

किसान ने थानेदार से कहा- ‘मुझे तो मुहरें वुहरें कुछ मिली नहीं। आपसे किसने कहा ।

थानेदार ने उत्तर दिया- “तुम्हारी घरवाली ने गाँव के लोगों से कहा, उनसे मैंने सुना।”

“अच्छा तो यह बात है!” किसान ने कहा- “वह तो कुछ भी कहे, उसकी किसी बात पर विश्वास मत कीजिए। वह तो पागल है पागल । कभी-कभी वह बड़ी विचित्र बातें किया करती है। देखना चाहों तो उससे कुछ पूछकर देख लो।”

थानेदार ने किसान की स्त्री को बुलाया और पूछने लगा- “क्या, तुम्हारे पति को मुहरें मिली हैं?”

“हाँ, हाँ, मिली है।” किसान की स्त्री ने जवाब दिया।

“ये मोहरें उसे मिली किस जगह ?” थानेदार ने दूसरा सवाल पूछा और इस बारे में तुम्हें जो कुछ भी मालूम है बताओ।”

फिर क्या था उसने सारी कहानी सुनानी आरम्भ कर दी। “पिछले दिन मेरे पति जब शाम को घर लौटे तो कहने लगे कि मुझे जंगल में सोने की मोहरों से भरा हुआ एक सन्दूक मिला है। आज सुबह ही हम दोनों जंगल में गए और मछलियाँ पकड़ लाये।”

“जगल में मछलियाँ ?” थानेदार ने बड़े आश्चर्य से पूछा। “कैसी पागलपन की बातें कर रही हो ! अच्छा खैर बताओ?”

किसान की स्त्री ने फिर कहना प्रारम्भ किया- “नहीं, यह बिल्कुल सच है, हमे एक वृक्ष पर कुछ मछलियाँ मिलीं और थोड़ी दूर आगे चलने पर पौधों से लटके हुए केक मिले। यह केक पिछली रात बरसे थे और वहाँ पड़े हुए थे। फिर हम थोड़ी दूर आगे बढ़े तो नदी आ गई। नदी में जाल फँसा हुआ एक खरगोश मिला। इसके बाद एक वृक्ष की जड़ों में बने गढ़े में से हमें वे मोहरें मिलीं।

किसान जोर का ठहाका मार कर कहने लगा- “सुन लिया आपने? मैंने पहले ही कहा था न कि वह पागल है। क्या आप इन बातों पर कर सकते हैं? क्या कभी आपने वृक्षों पर मछलियाँ, पौधों पर बरसे हुए केक और नदी में, जाल में फँसा हुआ खरगोश देखा है?”

थानेदार ने स्वीकार किया कि यह सब बातें निरी बकवास है और सचमुच पागल है और वह वापिस चला गया। बाद में किसान उन मोहरों को घर उठा लाया।

दोस्तों कैसी लगी Best Short Moral Story in Hindi अर्थात युक्ति से मुक्ति कहानी आप सभी को। हमें उम्मीद है यह Short Moral Story in Hindi आप सभी को पसंद आयी होगी। दोस्तों ऐसे ही Hindi Kahani जैसी अनेकों कहानियां हमारे वेबसाइट पर उपलब्ध है उन्हें भी पढ़िए और यह कहानी कैसी लगी comment जरूर करें।

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