दोस्तों आज हम आपको Chuhe Ki Kahani बताएंगे। यह कहानी दो चूहों की कहानी जो दिनभर कुछ-न-कुछ खाते ही रहते और अपने स्वास्थ्य के बारे में नहीं सोचते। तो आप सभी इस चटोरे भोजन भट्ट नामक Chuhe Ki Kahani को पढ़िए और इसका आनंद लीजिए।
चटोरे भोजन भट्ट
(Chuhe ki kahani)
भागवंती की एक चुहिया थी। उसके दो बच्चे थे– चुनचुन और मुनमुन। भागवंती अपने बच्चो को बहुत प्यार करती थी। बच्चे थे भी बड़े योग्य। वे दोनों सुबह जल्दी उठ जाते, मन लगाकर शिक्षा लेते, माता-पिता और बड़ो का कहना मानते।
कुछ दिनों में चुनचुन-मुनमुन पड़ोस के बुरे बच्चो के साथ रहने लगे थे। उनमे एक गन्दी आदत आ गई थी , वह थी चटोरेपन की। धीरे-धीरे वह आदत बढ़ती ही गई। दोनों को घर का खाना बिल्कुल भी न भाता। माँ जो कुछ खाने को देती, उनमे थोड़ा-बहुत मुँह मारते और फिर इधर-उधर फेंक आते। माँ के डर से ही वे ऐसा करते थे। एक-दो बार भागवंती ने उनका काम देखकर डांटा भी था।
चुनचुन और मुनमुन का स्वास्थ्य पहले बहुत अच्छा था। मोटा गोल-मटोल सा शरीर, दमकती काली आँखे। स्वास्थ्य होने के कारण वे सुन्दर भी बहुत लगते थे। सुंदरता का सबसे बड़ा रहस्य अच्छा स्वास्थ्य ही है। उनके गोल-मोल शरीर को देखकर कई बार पूसी मौसी भी उन पर ताक लगा चुकी थी। पर हर बार उन्हें निराश ही होना पड़ा था, क्योंकि चुनचुन-मुनमुन बड़े ही फुर्तीले थे। उन्हें पकड़ पाना सरल न था। खतरे का आभास भर होने पर वे बिजली की भांति दौड़ जाते थे। पूसी मौसी को होंठो पर जीभ फिराकर ही रह जाना पड़ता था।
पर धीरे-धीरे चुनचुन-मुनमुन दुबले होने लगे। भागवंती यह देखकर बड़ी चिंतित हुई। बच्चो के दुबले होने का कारण उसकी समझ में न आया, वह तो पहले की भांति उनके लिए पौष्टिक चीजें लाती थी। फल, मक्खन , बिस्कुट, रोटी आदि।
भागवंती ने बच्चो पर निगाह रखनी शुरू कर दी। जल्दी ही उनके दुबले होने का कारण उसकी समझ में आ गया। वे घर का खाना तो छूते भर थे। वे दोनों चाट-पकौड़ी और मिठाई की दुकानों पर पहुँच जाते और वहां जी भरकर खाते।
भागवंती ने अपने बच्चो को बहुत समझाया। कहा– “बच्चो !तुम जैसा खाना खाओगे वैसा ही तुम्हारा शरीर बनेगा। देखो मिठाई और चाट-पकौड़े कभी-कभी खाना ही ठीक रहता है। इन्हे रोज-रोज खाने से तुम्हारा स्वास्थ्य बहुत ही खराब हो जाएगा। तुम बीमार पड़ जाओगे। तुम नहीं जानते कि ये चीजें ही खाकर तुम दिन पर दिन कितने दुबले होते जा रहे हो। “
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“अब नहीं खाएंगे माँ ! ” दोनों बच्चे माँ से कहते, पर जैसे ही वे घर से बाहर निकलते थे , उनके मुँह में पानी भर आता। पैर से अचानक ही उधर बढ़ जाते। मिठाई-चाट को देखकर उनके मुँह में लार निकलने लगती।
“न भैया न ! हम नहीं खाएंगे खराब चीजें। माँ ने मना जो किया न। ” चुनचुन ने कहा।
“सुन , बस आज ही खा लेते है। कल से फिर नहीं खाएंगे। इधर आएँगे भी नहीं। ” मुनमुन कहता और दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर उधर ही बढ़ जाते।
रोज-रोज ऐसा ही होता। उनका कल कभी आता ही न था। वे बस “कल ” पर बात टालकर रह जाते थे। जो उसी समय काम नहीं करते, “कल-कल ” करते है, वे हमेशा बेअक्ल ही रहते है। उनका सोचा कभी पूरा होता ही नहीं। आलसी और अविवेकी ही “आज नहीं कल ” ऐसा सोचते है।
एक बार किसी त्यौहार का अवसर था। कई दिनों पहले से दुकानों पर स्वादिष्ट चीजें बननी शुरू हो गई थी। चुनचुन-मुनमुन की खूब बन आई। वे सबकी आँख बचाकर छककर खाते। चार-पांच दिनों तक वे ऐसा ही करते रहे। उनके पेट खराब हो गए। पर दोनों ने खाने का मोह न छोड़ा। स्वाद-स्वाद में दोनों खूब खा जाते यहाँ तक कि उनके लिए चलना भी कठिन हो जाता, धीरे-धीरे वे घर पहुँचते।
एक दिन जब वे टहलते हुए जा रहे थे कि पूसी मौसी ने उन्हें देख लिया। “आज नहीं बच पाओगे बच्चू। ” मन ही मन उसने कहा और पीछे से चुपचाप चुनचुन की पूंछ पकड़ ली। चुनचुन घबराकर तेजी से भागा और संकरी नाली में जाकर छिप गया। उसका दिल जोरो से धड़क रहा था। आज वह पूसी मौसी के मुँह में जाने से बाल-बाल बचा था।
काफी देर बाद चुनचुन-मुनमुन दोनों नाली से निकले , पर यह क्या चुनचुन की पूंछ ही गायब थी। अपनी कटी हुई पूंछ देखकर चुनचुन बहुत ही रोया।
अब दोनों के पेट में दर्द भी होना शुरू हो गया था। जैसे-तैसे वे घर पहुंचे। उनके पेट का दर्द बढ़ता ही जा रहा था। रातभर वे दोनों दर्द से कहारते रहे। भागवंती बेचारी दर्द का कारण समझ ही न पा रही थी। वह दर्द कम करने के लिए कभी कोई उपाय करती तो कभी कोई। पर इन सबके बाद किसी से कोई लाभ ही न हो रहा था।
सुबह होने पर भागवंती दौड़ी-दौड़ी गई और पड़ोस की बूढ़ी किस्सों चुहिया को बुला लाई। बच्चो को दिखाते हुए वह बोली– “ताई ! तुम तो बड़ी अनुभवी हो, बच्चो को बचा लो। मुझे लगता है ये मरासू रखे है। “
किस्सो ने चुनचुन-मुनमुन के पेट जोर-जोर से दबा-दबाकर देखे। अपना सिर हिलाते हुए वह बोली — “भागो कोई ख़ास बात नहीं है। तेरे बच्चे ज्यादा खा गए है। इसीलिए पेट में दर्द हुआ है। पर हां री ! इनकी आंते भी बड़ी कमजोर हो गई लगती है। इन्हे महीने भर तक इधर-उधर की चींजे न खाने देना, नहीं तो सचमुच ही ये मर जाएंगे। “
भागवंती ने दिन-रात बच्चों पर कड़ी निगरानी रखनी शुरू कर दी। उनका बिल से बाहर निकलना भी बंद कर दिया। वह उन्हें बहुत ही परहेज का रुखा-सूखा भोजन देती थी। फिर भी जब-तक उनके पेट में दर्द हने लगता था।
अब चुनचुन-मुनमुन की समझ में अपनी गलती आ गई थी। ठीक होने पर फिर कभी उन्होंने चाट-मिठाई की दुकान की ओर मुँह भी नहीं किया।
अब वे दूसरे बच्चो को भी अधिक चाट-मिठाई खाते देखते तो मुनमुन कहता — “न भाई न ! अधिक न खाना इन्हे, नहीं तो बीमार पड़ जाओगे। “
” भाई ! यदि खराब चीजे खाओगे तो हमेशा के लिए अपना स्वास्थ्य गवां बैठोगे। स्वास्थय खराब होने पर फिर जीवन भार हो जाता है, इसलिए जीभ पर काबू रखो। जो भी खाओ सोच-समझकर खाओ। अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी समझ जीवन की यह दो बहुत बड़ी सम्पत्तिया है। ” चुनचुन भी अपना सिर हिलाकर उसकी बात का समर्थन किया करता था।
तो दोस्तों कैसी लगी आप सभी को यह Chuhe Ki Kahani चटोरे भोजन भट्ट। उम्मीद है यह Chuhe Ki Kahani आपको पसंद आयी होगी। ऐसे ही कहानी पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहे।
गायत्री परिवार के द्वारा बाल निर्माण की कहानियां को हमारी तरफ से बहुत बहुत आभार।
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