आज हम आपको बच्चो के लिए कुछ Short Moral Stories for Kids in Hindi अथवा शिक्षाप्रद बाल कहानियां बताएंगे जो हमें हमारे जीवन से संबंधित कुछ सीख हमे मिलती है यह आपके बच्चो के लिए बहुत अच्छी hindi stories है।
1. दवा
(Short moral stories for kids in hindi)
एक थे राजा रामचंद्र। उनका राज्य बहुत बड़ा और विशाल था। उनकी प्रजा अपने राजा का मान करती थी। राजा रामचंद्र हर तरह से सुखी थे।
राजा रामचंद्र का एक पुत्र था कर्णवीर। कर्ण हमेशा बीमार रहता था। हालांकि एकलौता होने के कारण उसके पिता ने उसे कभी भी काम नहीं करने दिया। उसे अच्छे से अच्छा भोजन दिया। मगर फिर भी कर्ण दिन-प्रतिदिन बीमार होता जा रहा है।
कर्ण की बीमारी किसी की समझ में नहीं आ रही थी। बड़े से बड़े वैद्यों ने कोशिश करके देख ली। मगर कोई भी कर्ण को ठीक नहीं कर पाया। कर्ण को दिनभर चक्कर आते थे तथा वह अच्छे से अच्छा खाकर भी अशक्त होता जा रहा था।
एक बार एक वैद्य ने कर्ण के शरीर की जाँच की तो उसने उसे ठीक होने का उपाय बताते हुए कहा, ‘कर्ण ठीक हो सकता है यदि यह स्वयं पांच दिन तक जमीन की खुदाई करे और पांचवे दिन धरती से जो मिटटी निकले उसे मेरे पास लाये, तो मैं इसे ठीक कर सकता हूँ। ‘
राजा ने वैद्य का यह प्रस्ताव सुना तो वह सोच में पड़ गया और बोला, ‘वैद्यराज, मिटटी की खुदाई मेरे अनुचर कर सकते हैं। ‘
‘नहीं। ‘ वैद्यराज सख्ती से बोले, ‘मिटटी की खुदाई स्वयं कुंवर को ही करनी होगी। ‘
कुंवर और राजा की हारकर मानना पड़ा।
कर्ण अगले दिन से खुदाई करने लगा। एक दिन ही खुदाई करके उसकी हालत खराब हो गई। वह निढाल होकर गिर पड़ा। तुरंत वैद्यराज से परामर्श किया गया। वैद्यराज दृढ़ता से बोले, ‘चिंता की कोई बात नहीं, उसे खाने के लिए पौष्टिक भोजन मिलता रहना चाहिए। ‘
अगले दिन से कर्ण फिर खुदाई में लग गया। पांच दिन बाद जब मिटटी को मुट्ठी में लेकर वैद्यराज के पास खड़ा था तो वैद्यराज मंद-मंद मुस्करा रहे थे। मिटटी वैद्यराज ने अपने हाथ में लेकर जमीन पर फेंक दी।
कर्ण ने यह देखा तो चिल्ला पड़ा और बोला, ‘वैद्यराज, आपको तो इस मिटटी से दवा बनानी थी ?’
‘किसके लिए’ वैद्यराज ने शांति से पूछा।
कुंवर बोला, ‘मेरे लिए। ‘
‘तुम्हे अब कोई बीमारी नहीं, जाओ। ‘ वैद्यराज बोले तो कर्ण चौंका। उसने सचमुच गौर किया। अब उसके शरीर में बेचैनी नहीं, ताजगी थी। उसे चक्कर नहीं आ रहे थे, उसका शरीर हल्का हो रहा था। वह हैरान हो गया कि बिना दवा के ऐसा कैसे हो गया ?
प्रश्न – बिना दवा के कुंवर कैसे ठीक हो गया ?
उत्तर – कुंवर का मर्ज था काम न करना। शरीर में ईंधन पूरा जाता था, किन्तु खर्च नहीं होता था इसलिए शरीर का संतुलन ठीक नहीं था। पांच दिन मेहनत करने से संतुलन बराबर हो गया, उसलिए वह निरोग हो गया। अर्थात श्रम शरीर की सबसे बड़ी औषधि है।
2. अंकुर
(short moral stories for kids in hindi)
जीवन से बहुत दुखी होकर अंततः सोमनाथ ने निश्चय किया कि उसे आत्महत्या कर ही लेनी चाहिए। कब तक वह इन कठिनाइयों में फंसा हुआ जिंदगी का बोझ ढोता रहेगा।
जीवन के 48 वर्ष तो उसने संघर्ष करते हुए गुजार दिए थे, अब उससे और नहीं सहा जा रहा था। तीन बेटियों का विवाह सामने था, दो पुत्र बेरोजगार थे, पत्नी बीमार थी, वह स्वयं अकेले इधर से उधर जीवन संघर्ष में भागता फिर रहा था।
उसने सोचा, चलो अच्छा है, आत्महत्या से इन सब झंझटों से मुक्ति मिल जाएगी। इसलिए वह इसके लिए स्वयं मानसिक रूप से तैयार करने लगा।
वह एक रस्सा लेकर दूर जंगल में निकल गया। एक अच्छे से मजबूत वृक्ष को देखकर सोचा की आत्महत्या के लिए यही सही वृक्ष होगा। इसलिए वह रस्सा एक तरफ रखकर उस वृक्ष के नीचे बैठ गया और अंतिम बार ईश्वर का नाम लेने लगा।
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कुछ ही क्षणों बाद उसने आँखे खोलीं। सामने जमीन पर रस्सा रखा था। उसका एक हाथ आगे बढ़ा, उसने रस्सा उठाया। उसकी दृष्टि अभी भी जमीन पर थी। रस्सा उठाते ही जमीन पर सहसा उसे कुछ दिखाई दिया। उसने देखा, अचानक जमीन की एक परत हिली, उसमे से किसी बीज का अंकुर फूटा और एक तना जमीन से बाहर खड़ा हो गया।
उसे देखते ही सोमनाथ की भृकुटि तन गई। क्रोध से उसने रस्सा उठाकर एक तरफ फेंका और आत्महत्या का विचार त्यागकर घर चला गया।
प्रश्न – सहसा सोमनाथ ने आत्महत्या का विचार क्यों त्याग दिया ?
उतर – नए उगते अंकुर को फूटते देख सोमनाथ ने सोचा कि जीवन के लिए एक छोटा-सा बीज धरती का सीना चीर कर बाहर खड़ा हो सकता है, तो वह तो एक पुरुष है। क्या वह मुश्किलों पर विजय नहीं पा सकता।
3. बोझ
(short moral stories for kids in hindi)
कलयुग का प्रबल समय चल रहा था। धरती विधाता के पास पहुंची और बोली, ‘भगवन, आपने तो कहा था कि कलयुग में सबसे ज्यादा कष्ट यानी सबसे ज्यादा बोझ उठाना पड़ेगा। ‘
धरती की बात सुन कर विधाता बोले, ‘हाँ, हमने कहा था और यह सच भी है। किसी भी युग में तुमने सृष्टि का इतना बोझ नहीं उठाया होगा। ‘
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‘किन्तु, महाराज, मुझे आपकी बात सत्य प्रतीत नहीं होती। ‘ धरती विधाता की बात के प्रतिवाद में बोली।
विधाता ने आश्चर्य से पूछा, ‘मेरी बात कैसे सत्य प्रतीत नहीं होती ?’
तब धरती अपनी बात स्पष्ट करती हुई बोली, ‘महाराज, जैसे-जैसे कलयुग बढ़ता जा रहा है, मेरा बोझ हल्का होता जा रहा है ?
‘मगर कैसे ?’ विधाता ने हैरत से पूछा।
धरती बोली, ‘महाराज , यह जो समय चल रहा है, इसमें यही सत्य है कि बोझ हल्का होता जा रहा है। ‘
‘हाँ-हाँ, यही तो मैं पूछ रहा हूँ कि कैसे ?
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इस युग में तो जनसँख्या सबसे अधिक है, फिर तुम कह रही हो कि तुम्हारा बोझ हल्का होता जा रहा है ?’ विधाता बोले।
धरती ने विधाता से निर्णायक स्वर में कहा, ‘महाराज, मुझ पर बोझ तो तब बढ़ेगा, जब कोई मुझ पर पाँव रखकर चलेगा। ‘ ऐसा कहकर धरती विधाता के पास से चली गई।
विधाता धरती की बात का अर्थ समझकर मुस्करा पड़े।
प्रश्न – धरती की बात का कटा अर्थ था ?
उत्तर – धरती की बात का अर्थ था कि इस युग में किसी के पांव जब धरती पर पड़ते ही नहीं तो उसका बोझ कैसे बढ़ सकती है ?
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