बंगाल का जादू | Jadugar Aur Raja ki Kahani

दोस्तों आज हम आप सभी के लिए एक Jadugar aur Raja ki kahani लेकर आये है। यह कहानी बंगाल के जादूगर और सम्राट विक्रमादित्या की है। दोस्तों यह Jadugar aur Raja ki kahani बहुत मजेदार कहानी है। आप सभी इस Jadugar aur Raja ki kahani को पढ़िए और दूसरों को भी share करिए।

Jadugar aur Raja ki kahani hindi –

raja ki kahani

बंगाल का जादू

(Jadugar aur Raja ki kahani)

सम्राट् विक्रमादित्य के दरबार में बंगाल का एक बाजीगर आ पहुँचा। कहने लगा– “महाराज, मैं सीधा बंगाल से आ रहा हूँ और आपके दिल बहलावे के लिए कुछ जादूगरी के करतब दिखाना चाहता हूँ । महाराज ! मैं कोई ऐसा-वैसा जादूगर नहीं हूँ जो सड़क के किनारे लोगों को घिसे-पिटे दो-चार खेल दिखाकर पैसा माँगते फिरते हैं।

मैं तो बड़े-बड़े धनी-मानी लोगों के पास ही जाता हूँ, जो काम की कदर करना जानते हैं। कहें तो बीसियों चिट्ठियाँ निकाल कर दिखा दूँ, यह चिट्ठियाँ लोगों ने मेरे जादू के कमाल देखकर लिख दी हैं और फिर महाराज! मेरा तो यह खानदानी पेशा है। मेरे पिता, दादा, परदादा भी यही काम करते थे। बंगाल का तो बच्चा-बच्चा हमारे खानदान को जानता है। हुक्म दे तो शुरू करू” और हक्म के लिए महाराज के मुँह की ओर देखने लगा।

इधर दरबारियों का हाल देखिए। उनकी बातें सुनकर सब उतावले हो रहे थे कि कब महाराज हुक्म दें और कब यह जादूगर अपने करतब दिखाना शुरू करे ।

महाराज क्षण-भर तो चुप रहे। फिर कुछ सोचकर कहने लगे–“अभी नहीं, इस वक्त हम कुछ जरूरी काम कर रहे हैं, परन्तु हम तुम्हें निराश नहीं करेंगे। तुम्हें अपने कमाल दिखाने का मौका दिया जाएगा और अगर दरअसल तुमने कोई कमाल दिखाया तो हम तुम्हें खुश करेंगे। खूब इनाम देंगे। अब तुम जाओ और कल ठीक इसी वक्त आ जाना । वक्त का ख्याल रखना, देखना कहीं देर करके मत आना, नहीं निराश लौटना पड़ेगा।”

Jadugar aur Raja ki kahani –

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बंगाली जादूगर ने सिर झुकाकर नमस्कार किया और यह कहता हुआ कि, “महाराज कल ठीक इसी समय सेवा में हाजिर हो जाऊँगा।” चल दिया।

दूसरे दिन ठीक उसी समय, जिस समय जादूगर को आना चाहिए था। ड्योढ़ी पर हथियारों से लैस एक नौजवान आ पहुँचा। उसके साथ अत्यन्त रूपवती स्त्री भी थीं। उसने दरवान से कहा–“मैं महाराज के पास जाना चाहता हूँ।”

दरवान ने अन्दर जाकर सम्राट् से पूछा कि महाराज, बाहर हथियारों से लैस एक नौजवान और उसकी स्त्री खड़े हैं और आपसे मिलना चाहते हैं। हुक्म हो तो लाकर हाजिर करूँ।

महाराज सोचने लगे कि यह समय तो मैंने उस बंगाली जादूगर को दे रखा है। पर खैर अभी तक वह नहीं आया तो न सही।

अब जरा दरबारियों का हाल सुनिए। सबकी नजरें ड्योढ़ी की तरफ लगी हुई थीं कि कब जादूगर आए और तमाशा शुरू करे। बीच में इस हथियारबन्द नौजवान के आने की बात से सब मन ही मन नाराज थे, कि यह कौन बे-वक्त आ टपका। उधर रनिवास में भी पता लग चुका था कि कोई जादूगर आज अपना तमाशा दिखाएगा। इसलिए सारी रानियाँ और दासियाँ भी तमाशा देखने खिड़कियों में आ बैठी थीं।

खैर महाराज ने दरबान से कहा– “तुम जल्दी ही उस नौजवान को और उसकी स्त्री को लाकर हाजिर करो ।”

दरबान ड्योढ़ी पर से उन दोनों को महाराज के पास छोड़कर वापस लौट आया।

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महाराज ने पूछा उस नौजवान से — “ नौजवान बोलो ! तुम क्या कहना चाहते हो?”

नौजवान ने बोला — “महाराज फिर से देवताओं व राक्षसों में लड़ाई छिड़ गई है। मुझे देवलोक में देवराज इन्द्र ने बुलाया है, उन्होंने इस लड़ाई में मुझसे सहायता माँगी है। मैं वहीं जाने की तैयारी में हूँ। पर मेरी एक कठिनाई है, महाराज? मैं इस स्त्री को कहाँ छोड़कर जाऊँ? पता नहीं वहाँ कितने दिन लगें। हो सकता है महीनों लग जाएँ।

तब तक इसकी रक्षा कौन करेगा? आखिर सोच-सोचकर मेरी समझ में तो आप ही एक ऐसे व्यक्ति दिखाई दिए जिन पर पूरा विश्वास किया जा सकता है। बस, यही प्रार्थना है। इसे तब तक के लिए अपने यहाँ रखिए। उधर से लौटते ही मैं इसे वापिस ले जाऊँगा।”

“चिन्ता मत करो वीर! तुम्हारी स्त्री की हम पूरी रक्षा और पालन करेंगे। बस जब वापस आओ तो इसे ले जाना। पर एक बात बताओ। तुम देवलोक में, देवराज इन्द्र के पास जाओगे कैसे?”

“महाराज, यह मेरे लिए बाएं हाथ का खेल जैसा है। बस एक उड़ान, केवल एक उड़ान में, मैं देवलोक में जा पहुँचूँगा। पर महाराज मेरी स्त्री की पूर्ण रक्षा और पालन करना। उसे अपनी पुत्री की भाँति समझिए। महाराज, वैसे तो आप पर मुझे विश्वास है पर कामिनी और कंचन पर बड़ों-बड़ों की नियत खराब हो जाती है। इसलिए बार-बार कह रहा हूँ।”

“कैसी बातें करते हो वीर, क्या तुम विक्रम के धर्माचरण को नहीं जानते!” तुम निश्चिंत होकर देवराज के शत्रुओं को हराओ । युद्ध में अपने जौहर दिखाओ।” महाराज कहने लगे।

बहुत अच्छा! “महाराज मैं जाता हूँ।” उसने एक बार उस स्त्री की ओर देखा और उससे तथा महाराज से विदा लेकर वह यों उड़ चला जैसे कोई पक्षी हो। स्वयं महाराज और सारे दरबारी उसे उड़ते देखकर दंग रह गए। वह काफी दूर तक उन्हें दिखाई देता रहा। फिर ओझल हो गया।

महाराज ने उस स्त्री को एक दासी के साथ अपने रनिवास में भिजवा दिया और दासी से कह दिया इसे किसी प्रकार का कष्ट न हो। बंगाली जादूगर नहीं आया। अब उसके आने की बात पर किसी का ध्यान भी नहीं गया। यही क्या कम तमाशा था कि आदमी आसमान में उड़ गया।

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अब दूसरे दिन की बात सुनिए। आसमान में बिना बादलों के ही बड़े ही जोर-शोर के धमाके होने लगे। महाराज विक्रम का दरबार तो लगा हुआ ही था। सब दरबारी और स्वयं महाराज भी आकाश की ओर देखने लगे कि बिन बादलों के यह गड़गड़ाहट कैसी ? तभी महाराज ने कहा — ” कल जो वह नौजवान कह रहा था, वह बात सच ही निकली। शायद देवताओं और राक्षसों में लड़ाई होने लगी है।”

यह तोपें चलने और गोले फटने जैसे धमाके लगातार होते रहे। थोड़ी देर बाद एक कटा हुआ बाजू पास ही आ गिरा। कुछ देर बाद टाँगें और फिर सिर और धड़ जब सिर को देखा तो सब एक ही साथ कह उठे कि, “यह तो उसी आदमी का सिर है जो कल अपनी स्त्री को यहाँ छोड़ गया था। बेचारा मारा गया।”

महाराज ने दासी के साथ उसकी स्त्री को कहला भेजा कि तेरा पति उस लड़ाई में मारा गया। उसका सिर, धड़ और दूसरे अंग अभी-अभी यहाँ गिरे हैं। तुम आकर पहचान लो कि उसी के हैं या उससे मिलती-जुलती शक्ल वाले किसी दूसरे के तो नहीं।

स्त्री भीतर से आई। उसने कटे सिर को देखा तो जोर-जोर से रोने लगी । यह उसी के पति का सिर था। फिर उसने महाराज से कहा कि वह सती हो जाएगी। अब महाराज उसे कैसे रोकते। उन दिनों पति के मरने पर सभी स्त्रियाँ सती हो जाती थीं। यह बड़ा पवित्र काम समझा जाता था। आखिर चिता बनाई गई और वह स्त्री अपने पति के सिर और दूसरे अंगों के साथ चिता पर बैठकर सती हो गई।

अब तीसरे दिन की बात सुनिए। सम्राट् का दरबार रोज ही की तरह लगा हुआ था। देखते क्या हैं कि आसमान से कोई आदमी उड़ता हुआ नीचे की तरफ आ रहा है। आते-आते वह राज दरबार में उतर पड़ा। उतरते ही उसने राजा को नमस्कार किया।

सब हैरान-परेशान थे। अरे यह तो वही आदमी है जिसे हमने मरा समझ लिया था और हमारी ही क्या बात! उसकी स्त्री ने भी तो पहचा कर उसे अपना पति ही बताया था और वह बेचारी सती भी हो गई।

नमस्कार करने के बाद उसने कहना शुरू किया, “महाराज आपको यह सुनकर बड़ी प्रसन्नता होगी कि देवराज इन्द्र की जीत हुई और राक्षस हार गए। लड़ाई समाप्त हो गई और मैं अभी-अभी वहीं से आ रहा हूँ। आपने मेरी स्त्री को अपने यहाँ जो रहने दिया, उस कृपा के लिए मैं आपका आभारी हूँ। अब आप कृपा करके अन्दर से उसे बुलवा दीजिए।”

अब तो महाराज विक्रमादित्य बहुत सकपकाए। उनसे कुछ कहते ही नहीं बनता था। कहते भी क्या ? बात ही बड़ी अजीब थी। फिर भी जो बात हुई थी, वह तो कहनी ही थी।

महाराज ने कहा –” नौजवान, तुम्हें देखकर हमें बहुत हैरानी हो रही है। हमने तो तुम्हें युद्ध में खेत हुआ समझ लिया था। दरअसल बात यह हुई कि कल आसमान में बिना बादलों के ही बहुत धमाके होने लगे। हमने समझा कि देवों और दानवों में लड़ाई शुरू हो गई।”

“आपने ठीक ही समझा महाराज, कल सुबह ही लड़ाई शुरू हो गई थी।”

नौजवान बीच में ही बोल पड़ा।

“थोड़ी देर बाद ऊपर से एक योद्धा के बाजू, टाँगें, धड़ और सिर गिरा। हम सबने देखा तो ऐसा लगा कि वह सिर बाकी अंग तुम्हारे ही थे। आखिर तुम्हारी स्त्री को बुलाया गया कि वह पहचाने। उसने भी उस सिर को तुम्हारा ही बताया और कहने लगी मैं सती होऊँगी। हमने उसके इस पवित्र विचार में कोई बाधा न पहुँचाई और वह कल ही सती हो गई।”

“महाराज यह कैसे हो सकता है कि एक स्त्री अपने पति को न पहचान सके। मैं तो प्रत्यक्ष आपके सामने खड़ा ही हूँ। मुझे तो आपकी सारी कहानी मनगढ़ंत लग रही है। मैं पहले ही न कहता था कि कामिनी और काँचन बड़ों-बड़ों की नीयत को खराब कर देते हैं। पर मुझे सम्राट् विक्रमादित्य से ऐसी आशा बिल्कुल न थी।

आप उसके रूप-सौन्दर्य पर मुग्ध हो गए हैं और उसे अपनी रानी बनाना चाहते हैं। मैं आपको चेतावनी देता हूँ कि आपकी यह बुरी कामना जीते-जी नहीं पूरी होने दूंगा। मेरी जो तलवार अभी-अभी राक्षसों पर विजय पाकर आई है; वह पापी विक्रम पर भी दया न करेगी। महाराज, भला इसी में है कि आप मेरी स्त्री को लौटा दें और अपने माथे पर कलंक का टीका न लगवाएँ।”

“यह टूटी-फूटी बातें सुनकर महाराज विक्रमादित्य की भौहें तन गईं। हाथ तलवार पर जा पहुँचा। भरे दरबार में सम्राट् इस तरह अपमानित किया गया था। वह क्रोध-भरी आवाज में कहने लगा – वीर ! जो कुछ कह रहा हूँ वह बिल्कुल सच है। सारे दरबारी उसके गवाह हैं और अगर तुम्हें अपनी तलवार पर अभिमान हो तो विक्रमादित्य उसके लिए भी तैयार है।”

“मैं कहता हूँ कि आपके यह कहने से कि मैं सच कह रहा हूँ, कौड़ी-भर भी कीमत नहीं है। मेरी स्त्री को आपने अवश्य अपने महलों में कहीं छिपा रखा है। अगर मुझे अभी जाने दें तो अभी आपके सच की पोल खोल दूँगा।”

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“जहाँ तुम चाहो वहां ढूंढ लो। तुमको अन्दर जाने से कौन रोकता है। ” महाराज ने उत्तर दिया।

वह वीर अन्दर रनिवास में चला गया और इधर-उधर अपनी स्त्री का नाम पुकार-पुकार कर आवाज देने लगा और थोड़ी ही देर बाद स्त्री को लेकर महाराज के पास आ गया।

वीर कहने लगा– यह रही मेरी स्त्री! मैं पहले ही न कहता था कि बस बेचारी को आपने कहीं छिपा रखा है; अब बताइये, आपका सच कहाँ गया।

सम्राट् विक्रमादित्य और सारे दरबारी आँखें फाड़-फाड़ कर उसकी ओर देख रहे थे। उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वे सोच रहे थे कि कल जो कुछ हुआ था, वह सच था या कि अभी जो कुछ आँखों के सामने देख रहे हैं, वह सच है? सब के सब सन्न रह गए।

उस नौजवान ने महाराज के आगे सिर झुका कर कहा – “महाराज मैं वही बंगाली जादूगर हूँ। कहिए तमाशा कैसा रहा आपको पसन्द आया न ?”

महाराज आश्चर्य और खुशी से गद्गद् हो उठे। सारे दरबारी भी वाह-वाह कर उठे।

महाराज उस जादूगर के इस कौतुक से बहुत प्रसन्न हुए। इनाम में उन्होंने अपने गले का हार उतार कर उसे दे दिया।

दोस्तों कैसी लगी Jadugar aur Raja ki kahani अर्थात बंगाल का जादूगर कहानी आप सभी को। हमें उम्मीद है यह Jadugar aur Raja ki kahani आप सभी को पसंद आयी होगी। दोस्तों ऐसे ही raja ki kahani जैसी अनेकों कहानियां हमारे वेबसाइट पर उपलब्ध है उन्हें भी पढ़िए और यह कहानी कैसी लगी comment जरूर करें।

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