तोते की उड़ान | Tote Ki Kahani

दोस्तों आज हम आपके लिए एक मजेदार कहानी tote ki kahani लेकर आये है इस tote ki kahani का शीर्षक ‘तोते की उड़ान’ है। यह कहानी हमे आनंद के साथ शिक्षा भी प्रदान करती है। तो आप सभी इस tote ki kahani को पढ़िए और दुसरो को भी share करिए।

तोते की उड़ान

(Tote Ki Kahani )

एक था तोता। वह बड़ा मुर्ख था। गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था। उछलता था, फुदकता था, उड़ता था, पर यह नहीं जानता था कि कायदा-कानून किसे कहते है।

राजा बोले, “ऐसा तोता किस काम का? इससे लाभ तो कोई नहीं, हानि जरूर है। जंगल के फल खा जाता है , जिससे राजा-मंडी के फल-बाजार में टोटा पड़ जाता है। “

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मंत्री को बुलाकर कहा, “इस तोते को शिक्षा दो !”

तोते को शिक्षा देने का काम राजा के भांजे को मिला।

पंडितो की बैठक हुई। विषय था, “उक्त जीव का अविद्या का कारण क्या है ?” बड़ा गहरा विचार हुआ।

सिद्धांत ठहरा — तोता अपना घोंसला साधारण खर पतवार से बनाता है। ऐसे आवास विद्या नहीं आती। इसलिए सबसे पहले तो यह आवश्यक है कि इसके लिए कोई बढ़िया-सा पिंजरा बना दिया जाये।

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राज-पंडितो को दक्षिणा मिली वे प्रसन्न होकर अपने घर गए सुनार बुलाया गया। वह सोने का पिंजरा तैयार करने में जुट पड़ा। पिंजरा ऐसा अनोखा बना कि उसे देखने के लिए देश-विदेश के लोग टूट पड़े। सभी लोग उसे देखकर कहते वाह ! तोते का भी क्या नसीब है। कुछ लोग कहते शिक्षा नहीं तो क्या , पिंजरा तो बना।

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सुनार को थैलियां भर-भरकर ईनाम मिला। वह उसी घड़ी अपने घर की ओर रवाना हो गया।

पंडित जी तोते को विद्या पढ़ाने बैठे। नस लेकर बोले, “यह काम थोड़ी पोथियों का नहीं है। “

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राजा के भांजे ने सुना। उन्होंने उसी समय पोथी लिखने वालों को बुलवाया। पोथियों की नकल होने लगी। नकलों के और नकलों की नकलों के पहाड़ लग गए। जिसने भी देखा, उसने यही कहा कि, “शाबाश ! इतनी सारी ज्ञान की बातें। इसे रखने की जगह भी कम पड़ जाएगी।

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नक़लनवीसों को लद्दू बैलों पर लाद – लादकर इनाम दिए गए। वे अपने-अपने घर की ओर दौड़ पड़े। उनकी दुनिया में तंगी का नाम-निशान भी बाकि न रहा।

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दामी पिंजरे की देख-रेख में राजा के भांजे बहुत व्यस्त कि व्यस्तता की कोई सीमा न रही। मरम्मत के काम भी लगे ही रहते। फिर झाड़-पोंछ और पालिश की धूम भी मची ही रहती थी। जो भी देखता , यह कहता कि “उन्नति हो रही है। “

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इन कामों पर अनेक-अनेक लोग लगाए गए और उनके कामों की देख-रेख करने पर और भी अनेक-अनेक लोग लगे। सब महीने-महीने मोटे-मोटे वेतन ले-लेकर बड़े-बड़े संदूक भरने लगे।

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वे और उनके चचेरे-ममेरे-मौसेरे भाई-बड़े प्रसन्न हुए और बड़े-बड़े कोठों-बालाखानों में मोटे-मोटे गद्दे बिछाकर बैठ गए।

संसार में और-और अभाव तो अनेक है , पर निंदको की कोई कमी नहीं है। एक ढूंढो हजार मिलते है। वे बोले, “पिंजरे की तो उन्नति हो रही है , पर तोते की खोज-खबर लेने वाला कोई नहीं है !”

बात राजा के कानो में पड़ी। उन्होंने भांजे को बुलाया और कहा, “क्यों भांजे साहब , यह कैसी बात सुनाई पड़ रही है ?”

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भांजे ने बोला, “महाराज, अगर आपको सच बात सुनना हो तो पंडित , सुनार, मरम्मत करने वाले तथा उसकी देख-रेख करने वालो को और मरम्मत करने वालों को बुलाइए। निंदकों को हलवो-माड़ें में हिस्सा नहीं मिलता, इसलिए वे ऐसी ओछी बातें करते है। “

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जवाब सुनकर राजा ने पुरे मामले को भली-भांति और साफ-साफ तौर से समझ लिया। भांजे के गले में तत्काल सोने के हार पहनाये गए।

राजा का मन हुआ कि एक बार चलकर अपनी आँखों से यह देखे कि शिक्षा कैसे धूमधड़ाके से और कैसी बगटुट तेजी के साथ चल रही है। सो, एक दिन वह अपने मुसाहबों, मुँहलगों, मित्रों और मंत्रियों के साथ आप ही शिक्षा-शाला में आ घमके।

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उनके पहुँचते ही ड्योढ़ी के पास शंख , घड़ियाल, ढोल, तासे खुरदक , नगाड़ें , तुरहियां , भेरियां, दमामे, कांसे, बाँसुरिया, झाल , करताल , मृदंग , जगझम्प आदि-आदि आप ही आप बज उठे। पंडित गले फाड़-फाड़कर और चुटियां फड़का-फड़काकर मंत्र-पाठ करने लगे। मिस्त्री, मजदुर, सुनार, नकलनवीस , देख-भाल करने वाले उन सभी के ममेरे, फुफेरे, चचेरे, मौसेरे भाई जय-जयकार करने लगे।

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भांजा बोला , “महाराज , देख रहे है न ?”

महाराज ने कहा , “आश्चर्य ! शब्द तो कोई कम नहीं हो रहा ! “

भांजे ने कहा — इसके पीछे अर्थ भी कम नहीं , शब्द ही क्यों ?

राजा प्रसन्न होकर लौट पड़े। ड्योढ़ी को पार करके हाथी पर सवार होने ही वाले थे कि पास के झुरमुट में छिपा बैठा निंदक बोल उठा, “महाराज आपने तोते को देखा भी है ?”

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राजा चौंके। बोले, “अरे हां !मैं तो यह बात भूल ही गया था ! तोते को तो देखा ही नहीं !”

लौटकर पंडित से बोले, “मुझे यह देखना है कि तोते को तम पढ़ाते किस ढंग से हो। “

उन्हें कैसे पढ़ाया जाता है उसका तरीका दिखाया गया। देखकर वे अत्यंत खुश हुए। पढ़ने का तरीका तोते की तुलना में अधिक बड़ा था जिससे कि तोता दिखाई ही नहीं दे रहा था। राजा ने मन में सोचा — अब ऐसे में तोते को देखने की क्या जरुरत ? उसे न देखे तो भी काम चल सकता है ! राजा ने इतना तो अच्छी तरह समझ लिया कि बंदोबस्त में कही कोई भूल-चूक नहीं है।

पिंजरे में दाना-पानी तो नहीं था, थी तो सिर्फ शिक्षा। यानी ढेर की ढेर पोथियों के ढेर के ढेर पन्ने फाड़-फाड़कर कलम की नोंक से तोते के मुँह में घुसेड़े जाते थे। गाना तो बंद हो ही गया था, चिखने-चिल्लाने के लिए भी कोई गुंजाइस नहीं छोड़ी गयी थी। तोते का मुँह ठसाठस भरकर बिलकुल बंद हो गया था। देखने वाले के रोंगटे खड़े हो जाते।

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तोता दिन पर दिन भद्र रीती के अनुसार अधमरा होता गया। अभिभावकों ने समझा कि प्रगति काफी आशाजनक हो रही है। फिर भी पक्षी-स्वभाव के एक स्वाभाविक दोष से तोते का पिंड अब भी छूट नहीं पाया था। सुबह होते ही वह उजाले की ओर टुकुर-टुकुर निहारने लगता था और बड़ी ही अन्याय-भरी रीती से अपने डैने फड़फड़ाने लगता था। ये सब तो कुछ नहीं , किसी-किसी दिन तो वह अपने चोंच से पिंजरें की सलाखों को काटने में लगा रहता है।

कोतवाल गरजा, “यह कैसी बेअदबी है !”

फौरन सुनार हाजिर हुआ। आग भाथी और हथोड़ा लेकर। वह धम्माधम्म लोहा-पिटाई हुई कि कुछ न पूछिए ! लोहे की सलाखें तैयार की गई और तोते के डेने भी काट दिया गया।

राजा के संबंधियों ने हाँड़ी — जैसे मुँह लटक और सर हिलाकर कहा, “इस राज्य के पक्षी सिर्फ बेवकूफ ही नहीं, नमक हराम भी है। “

और तब, पंडितो ने एक हाथ में कलम और दूसरे हाथ में बरछा ले-लेकर वह कांड रचाया , जिसे शिक्षा कहते है।

लुहार की लुहसार बेछह फ़ैल गयी और लुहारिन के अंगो पर सोने के गहने शोभने लगे और कोतवाल की चतुराई देखकर राजा ने उसे सिरोपा अता किया।

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तोता मर गया। कब मरा , इसका निश्चय कोई भी नहीं कर सकता।

कमबख्त निन्दनक ने अफवाह फैलाई कि “तोता मर गया !”

राजा ने भांजे तो बुलवाया और कहा — भांजे ! यह कैसी बात सुनी जा रही है इस सभा में?

भांजे ने बोला — महाराज ! उस तोते की शिक्षा पूरी हो चुकी है।

राजा ने पूछा. “अब भी वह उछलता-फुदकता है ?”

भांजा बोला, “अजी, राम कहिए !”

“अब भी उड़ता है ?”

“ना , कतई नहीं !”

“अब भी गाता है ?”

“नहीं तो !”

“दाना न मिलने पर अब भी चिल्लाता है ?”

“ना !”

राजा ने कहा , ” एक बार तो तोते को लाना तो सही , देखूंगा जरा !”

तोता को लाया गया। उसके साथ-साथ घुड़सवार भी आये।

राजा ने तोते को चुटकी से दबाया। तोते ने न हां की, न हूँ की। हां , उसे पेट में पोथियों के सूखे पत्ते खड़खड़ाने जरूर लगे।

बाहर नए वसंत ने आकाश को मुलकित कर दिया।

तो दोस्तों कैसी लगी आप सभी को यह tote ki kahani तोते की उड़ान। हमें उम्मीद है यह कहानी आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। दोस्तों ऐसे ही कहानी पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर आते रहिए और यह तोते की कहानी कैसी लगी हमें comment जरूर करिए।

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