Top 3 Best Hindi Story for Class 4 with Moral

दोस्तों आज हम आप सभी के लिए Top 3 Best Hindi Story for Class 4 with Moral हिंदी कहानियां लेकर आये है। ये Hindi Story for Class 4 आपके बच्चो को अच्छी शिक्षा प्रदान करेगी। आप सभी इस Hindi Story for Class 4 with Moral को पढ़ कर अपने बच्चे को सुनाये तथा अपने दोस्तों भी इस Hindi Story for Class 4 को share करिए।

1. परिश्रम का फल

(Best Hindi Story for Class 4 with Moral)

महर्षि कणाद अपने शिष्यों के साथ जंगल में अपने आश्रम में रहा करते थे। रोजाना प्रातः काल उनके सभी शिष्य नदी में स्नान करने के बाद संध्या-वन्दन, पूजा आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर अपने गुरु से श्रद्धापूर्वक शिक्षा ग्रहण करते थे। आश्रम का जीवन कष्टमय होने के साथ-साथ पवित्रता से परिपूर्ण था।

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वर्षा ऋतु का आगमन समीप जानकर एक दिन महर्षि कणाद ने अपने शिष्यों से कहा —

“वर्षा ऋतु आने वाली है, क्यों न हम हवन तथा भोजनादि के लिए सूखा ईंधन अभी से एकत्र कर लें।”

शिष्यों ने कहा–

“जो आज्ञा गुरुदेव ।”

और वे सब इस शुभ कार्य में बिना देरी किए कुल्हाड़ी आदि लेकर जंगल की तरफ चल पड़े।

उन्होंने बड़ी लगन, परिश्रम और हिम्मत से लकड़ी काट-काट कर गट्ठर बाँधे और वे उन्हें अपने कंधों पर लाद कर आश्रम में ले आए। गुरुजी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने शिष्यों को आशीर्वाद दिया।

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कुछ दिनों के पश्चात् सदैव की भाँति सभी शिष्य ऋषि कणाद के साथ नदी में स्नान करने के लिए गए। रास्ते में उन्हें वही जंगल पड़ा, जहाँ से कुछ दिनों पूर्व शिष्यों ने परिश्रमपूर्वक पसीना बहा-बहा कर सूखी लकड़ियाँ काट कर व बटोर कर इकट्ठी की थीं।

वहाँ उस स्थान पर अब कुछ रौनक ही अलग थी। वह वन जो सदैव सूखा और वीरान पड़ा रहता था, अब वहाँ रंग-बिरंगे सुगंधित सुन्दर पुष्प खिल रहे थे। सारा जंगल उन पुष्पों की अनोखी सुगंध से सुवासित हो रहा था। वहाँ का दृश्य बहुत ही मनोरम और आकर्षक लग रहा था।

गुरु जी और शिष्य यह दृश्य देखकर आश्चर्य करने लगे। वे सभी उस जंगल में यह विचित्र परिवर्तन देखकर अचरज में पड़ गए। सावधानी से निरीक्षण कर शिष्य गुरु कणाद से कहने लगे–

“ऋषिवर! यह वही स्थल है जहाँ से हमने सूखी लकड़ियाँ काट-काट कर एकत्रित की थी और बड़ी मेहनत से कस-कस कर उनके गट्ठर बाँधे थे। यहीं हमारे शरीर से श्रम की बूँदें पसीना बनकर भूमि पर गिरी थीं। आज हमें उसी स्थान पर यह रंग-बिरंगें सुगंधित पुष्प खिले हुए दिखाई दे रहे हैं। वायुमण्डल में यह सुगन्ध भी उन्हीं पुष्पों से निकल कर आती अनुभव हो रही है।”

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ऋषि कणाद कुछ विचार कर हँसकर कहने लगे–

“बालको! यह सब तुम्हारे अथक परिश्रम का ही फल है। तुम्हारे शरीर से निकले शुद्ध, सच्चे और पवित्र पसीने की बूँदों के परिणाम से ही यहाँ रंग-बिरंगे सुगंधित पुष्प खिल कर लहलहा रहे हैं। “

सच है परिश्रम से बहे पसीने की सुगंध किसी भी साधारण फूल की सुगंध से कहीं अधिक मीठी और प्यारी होती है। हमें सदा ही सतत परिश्रम करते रहना चाहिए।

“बिना कष्ट उठाऐं, बिना अथक परिश्रम किए इस संसार में कभी कोई महान नहीं बना। महँ बनने के लिए कठोर परिश्रम करना नितांत आवश्यक है।”

यह सत्य हमें सदैव ध्यान में रखना चाहिए।

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शिक्षा : इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि परिश्रम का फल मीठा होता है।

2. हाथी की कहानी

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गुजरात में सौराष्ट्र नाम का एक नगर है। प्राचीन काल में उस नगर में खंगबाहु नाम के एक राजा राज्य करते थे। वे बड़े धर्मात्मा प्रजावत्सल थे। वे साक्षात् इंद्र से प्रतापी थे। उनके पास एक प्रिय हाथी था। उस हाथी का रुतबा इंद्र के साथी ऐरावत सा था। उस हाथी का नाम था अरिमर्दन।

एक दिन वह हाथी किसी बात पर नाराज हो गया। उसने लोहे की साकरों को तोड़ डाला। भवनों खम्भों को ढहाता हुआ वह बाहर निकला। उसने हथिसार को भी ढहा दिया। उस पर चारों ओर से भालों की मार पड़ रही थी, फिर भी वह काबू में नहीं आ रहा था। चारों ओर एक आतंक फ़ैल गया था।

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इतने में लोगो ने क्या देखा कि एक ब्राह्मण सरोवर में स्नान करने के उपरांत कुछ जाप करते हुए चले आ रहे है। लोगो ने दौड़कर उनके उधर निकलने के लिए मना किया। ब्राह्मण उधर न जाए, गजराज लोगो को चीरता-फाड़ता रौंदता हुआ चला आ रहा है, आप कृपा रास्ते से हट जाएं। ” उस ब्राह्मण ने एक न सुनी और सीधे हाथी के निकट गया। उसने उसका मस्तक छुआ। हाथी ने शांत होकर उनका अभिवादन किया। लोग आश्चर्य से दंग रह गए।

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महाराज खंगबाहु ने ब्राह्मण को प्रणाम किया और पूछा, “ब्राह्मण, यह कैसे सम्भव हुआ ?” ब्राह्मण ने कहा, “महाराज, मैं नियम से रोज गीता के सोलहवे अध्याय का पाठ करता हूँ। यह उसी का प्रभाव है। ” ब्राह्मण की बात सुनकर महाराज खंगबाहु ने भी गीता के सोलहवे अध्याय का अभिवादन किया।

प्रजा के लोग, मंत्रियो ने हजार मना किया था। परन्तु अडिग विश्वास के साथ हाथी अरिमर्दन के पास महाराज खंगबाहु चले गए थे। महाराज को हाथी के पास से सकुशल लौटता देख रानी, राजकुमारों एवं प्रजा के हर्ष का ठिकाना न रहा। इसके पश्चात् महाराज के मन दुनिया की शान-शौकत के प्रति विरक्ति हो। उन्होंने युवराज को गद्दी सौंप दी और स्वयं गीता के सोलहवे अध्याय का पाठ करते हुए परमपद को प्राप्त हुए।

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शिक्षा : इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने मन को शांत व स्वयं पर विश्वास रखना चाहिए।

3. मोर की कहानी

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उस विशाल जंगल में प्रायः पक्षियों का सम्मलेन होता। उस वन के पास ही नहीं दूर-दूर के पक्षी भी उसमे भाग लेते। बड़ी हंसी-खुशी भरा वातावरण बन जाता। भांति-भांति के कार्यक्रम होते। कोई गाता, कोई नाचता, कोई व्याख्यान देता, कोई नाटक करता, कोई खेल दिखाता तो कोई उड़ने की प्रतियोगिता में भाग लेता। यों तो पक्षी बड़े सुन्दर कार्यक्रम दिखाते, पर गाने के कार्यक्रम में सदैव कोयल जीतती। नाचने में सदैव मोर विजयी रहते। व्याख्यान में तोता बाजी मार ले जाते। नाटक करने में बगुला भगत पुरस्कार पाते। हर बार प्रायः ऐसा ही होता।

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मोरों को प्रायः दो पुरस्कार मिलते एक नृत्य प्रतियोगिता में और दूसरा सौंदर्य प्रतियोगिता में। पर इतने से उन्हें संतोष न होता। वे देवी सरस्वती के वाहन थे अतएव अपने को विशिष्ट मानते थे। वे चाहते थे कि उन्हें ढेरों पुरस्कार मिलें। हर कार्यक्रम में वे ही विजयी रहें जिससे कि पक्षियों पर उनकी धाक जम जाए। दूसरे पक्षियों के गुण या सुंदरता देखकर उनका मन ईर्ष्या और असंतोष से भर उठता।

सभी मोरों ने मिलकर सलाह की। फिर मोरों का प्रतिनिधि सरस्वती जी के पास पहुंचा। वह बोला — देवी जी ! आप तो सब कुछ करने में समर्थ है। आप हमे कृपा करके कोयल जैसी आवाज दीजिए। कबूतर जैसे पैर दीजिए , नीलकंठ जैसे गला दीजिए। दूसरे पक्षी हमसे बाजी मार ले जाए यह हमारे लिए लज्जा की बात है। आप हमे ऐसा बना दीजिए कि हमसे सभी हारे।

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मोरों के प्रतिनिधि की बात सुनकर सरस्वती जी मुस्करा उठी। वह बोली — ‘बच्चों ! औरों के गुणों को क्यों नहीं याद करते। कोयल सुन्दर जाती है तो तुम अच्छा नाचते हो। कबूतर के पैर सुन्दर है तो तुम्हारे पर। दूसरों से ईर्ष्या क्यों करते हो? ईर्ष्या और अभिमान दोनों ही अवगुण ऐसे है जो हमारा विनाश करते है। इन्हे अपनाकर हम दूसरों से तिरस्कार ही पते है। भगवान ने शरीर बनाया है तो तुम अपना स्वभाव बना सकते हो। शरीर तो जैसा है वैसा ही रहेगा, बदला नहीं जा सकता, पर हां, स्वभाव अवश्य बदला जा सकता है। अच्छा स्वभाव बनाओगे , गुणी बनोगे तो तुम्हे सभी का स्नेह और सम्मान मिएगा। बुरी आदतें अपनाओगे तो कोई तुम्हे नहीं चाहेगा। ‘

मोरों का प्रतिनिधि चुपचाप गर्दन झुकाकर सरस्वती जी की बात सुनता रहा।

वे फिर बोलीं –गाने का निरंतर अभ्यास करो, तभी तुम अच्छा गा पाओगे। देवताओं के वरदान पर निर्भर मत रहो , स्वयं परिश्रम करो। देवता भी उन्ही की सहायता करते है जो अपनी सहायता खुद करते है।’

मोर वहां से चुपचाप , सिर झुकाकर लौट आया। सरस्वती जी ने जो कुछ था उसने आकर सभी मोरों को बता दिया।

पर मोरों ने आज तक गाने का अभ्यास नहीं किया। परिश्रम से जी चुराने के कारण वे अभी तक गाना नहीं सीख पाए है। जो केवल देवताओ का वरदान चाहते है, स्वयं कुछ श्रम नहीं करते वह जीवन में कुछ नहीं पा सकते।

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शिक्षा : इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों के प्रति ईर्ष्या नहीं करना चाहिए।

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