आज हम आपको दो Chidiya Ki kahani बताएंगे। ये दो kahani chidiya ki जो मुर्गा और आलसी Mor ki kahani है। इसमें मुर्गा बहुत मेहनती रहता है। ये दो Chidiya Ki kahani आपको जरूर पसंद आएगी।
मुर्गा और मोर
(Chidiya Ki kahani Hindi)
एक बार की बात है, एक मोर और एक मुर्गे ने मिलकर एक जमीन खरीदी। आपस में दोनों ने यही तय किया कि जमीन से जो भी फसल मिलेगी , वह बराबर-बराबर बंटेगी। खेती का काम भी दोनों को करना होगा।
मुर्गे ने भोर में उठकर अपना रोजाना का काम खत्म किया। तड़के जगना उसकी आदत थी। उसने दातुन किया, नहा-धोकर पूजा-पाठ निपटाया, नाश्ता आदि काम जल्दी खत्म कर दिया और मोर को बुलाने के लिए बाँग लगायी। “मोर भैया, आओ। खेत में जाना है। आज जमीन पर हल चलाना है। “
मोर ने मुर्गे की पुकार सुनकर कुछ सोचा और बोला, “आज तो जाने क्यों नाचने को जी चाहता है। देखो न मुर्गा भाई. मेरे नूपुर अपने आप रुनझुन-रुनझुन बज रहे है। तुम पहले हल लेकर जाओ और जमीन जोतो। मैं पल भर में पहुँच रहा हूँ।”
मोर की बातें सुनकर मुर्गे को बड़ा आश्चर्य हुआ। जमीन की खेती और नाचने की चाह-बड़ी अजीब-सी बात। विवश होकर वह अकेले हल चलाने खेत की ओर चल दिया। जमीन में उसने दिन भर काम किया। हल चलाया, ढेले तोड़े, घास-फूस, कचरा साफ किया। शाम तक खेत को धान की बुआई के लायक बना दिया। घर लौटकर बैलों को बांध सानी-पानी खिलाई, और खुद भी खा-पीकर चैन की नींद ली।
दूसरे दिन भी तड़के से उठकर अपने काम-धाम से निपटकर मुर्गे ने मोर को बुलाया , “मोर भैया , पौ फटने लगी है। आओ , आज बुराई होगी। मैंने कल हल चला कर जमीन तैयार कर रखी है। जल्दी आ जाओ। धान की बुआई खत्म होते-होते सांझ हो सकती है। “
उसकी बात सुनकर मोर बोला, “मुर्गा भैया, क्या बताऊं जाने आज क्यों सिर्फ सोचने को दिल चाहता है। मैं केवल खाने-पीने की बात नहीं सोचता, और बहुत सारी बातें बैठे-बैठे सोचना चाहता हूँ। धान की बुआई में मैं तो आज कतई नहीं आ सकता। तुम जाकर बुआई कर दो। मुझे जरा सोचने का मौका दो। “
मुर्गा अकेले चला गया और बुआई का काम साँझ तक करता रहा। अकेले सब कुछ करने में उसे तकलीफ होती थी। पर वह मजबूर था। मोर का दिल आज कुछ चाहता था तो कल कुछ।
देखते-देखते एक हफ्ता निकल गया। धान के अंकुर आ गए। पानी देना जरूरी हो गया नहीं तो पौधे सूख जाते। मुर्गा मोर से बोला, “भाई, धान के अंकुर आ गए। क्यारी में पानी देना जरुरी है। चलो मिलकर पानी चढ़ाएंगे, नहीं तो अंकुर सूख जाएंगे। “
मुर्गे की बात सुनकर मोर मल्हार-राग अलापने लगा। बोला, “मुर्गा भैया, आज तो मेरा गीत गाने को चाहता है। मैंने संगीत शुरू किया कि घटा उमड़ेगी और रिमझिम-रिमझिम पानी बरसेगा। खेत की अपने-आप सिंचाई हो जाएगी और फिर सिंचाई करना तो कोई कठिन काम नहीं है। तुम सिंचाई खत्म करके जल्दी घर लौट आना। मेरा संगीत सुन्ना। “
उसने गाना शुरू कर दिया। उसका गाना सुनकर मुर्गे का कान फट गया। वह बिगड़ गया। वहां से उठ खड़ा हुआ और चला खेत की सिंचाई करने। सिंचाई का काम करने में उसे खुशी मिल रही थी। वह रोज खेत में जाता और खेती का काम करता रहा। देखते-ही-देखते धान के हरे-हरे पौधे खड़े हो गए। हरे-भरे पौधों में बालियाँ निकल आईं। लहलहाती बालियाँ पक गयी। पीले-पीले धान के खेत झुकी-झुकी लम्बी-लम्बी बालियाँ–देखते ही बनता था। मुर्गा अपनी फसल को देख फूला नहीं समाता था। कटाई का वक्त आ गया। मुर्गे ने मोर से कहा , “मोर भैया, धान पक चूका है। चलो, कटाई करें। नहीं तो, चोरी का डर है। “
मोर बोला , “न, न, नहीं जा सकता। आज तो खेलने को जी चाहता है। माफ करना। आज जाना सम्भव नहीं है। धान काटना ऐसा कोई कठिन काम नहीं है। तुम अकेले भी काट सकते हो। मुझे क्यों बुलाते हो? मैं आज जरा जी भर कर खेलूंगा। “
मुर्गा अकेले चला। उसने कटाई की. बड़े बांधे और ढो-ढोकर खलिहान में जमा भी किया। उसका मन इसलिए दुखी था कि उसका दोस्त हाथ नहीं बंटाता था।
खलिहान में धान जमा धान जमा करके वह फिर मोर के पास गया और बोला, “मोर भैया, खलिहान में धान फैला रखा है, बारिश आ सकती है। जल्दी मड़ाई कर दिया जाए नहीं तो सब सड़कर बरबाद हो जाएगा।
Chidiya ki kahani Hindi – मोर और सारस | Ek Saras aur Mor ki Kahani Hindi
मुर्गे की बात सुनकर मोर बोला, “आज तो मैं बेहद खुश हूँ। मैं आज अपने पंख साफ करूँगा। धान की मड़ाई ऐसा कोई कठिन काम तो है नहीं कि दो जन लगें। तुम अकेले वह काम आराम से कर सकते हो। मुझे क्यों बुलाते हो? मुझे बस एक दिन और मौका दो। मैं आज अपने पंख साफ कर देता हूँ. कल से जो कहोगे, करूँगा। “
मुर्गा क्या करता। उसने अकेले मड़ाई करके पुआल अलग किया। मोर के पास आकर वह बोला, “मड़ाई तो हो गयी। जल्दी उड़ाई करके धान निकाल लेना चाहिए। पुआल अलग से बिकेगा। धान खाने के लिए रख लिया जाएगा। तूफान का मौसम है। कल कहीं तूफान उमड़ा तो सब मिट्टी हो जाएगा। दोनों लग गए तो उड़ाई का काम आसान हो जाएगा। “
मुर्गे की बात सुनकर मोर बोला, “भाई, तुम ठीक ही कहते हो। पर आज तो किताब पढ़ने को मेरा जी चाहता है। मैं आज कई किताबे पढ़ डालूंगा। धान की लड़ाई करने के लिए मेरे पास वक्त कहाँ? अरे हां, उड़ाई तो बड़ा आसान काम है। तुम अकेले भी कर सकते हो। मुझे क्यों बुलाते हो ?”
मुर्गे ने अकेले सफाई की। धान के दाने अलग और पुआल अलग। इस काम को निपटाने में उसे कई दिन लगे। धूप में काम करते-करते उसका माथा भी गरम हो जाता था। लेकिन वह हरेक काम यतन से करता था। पुआल का ऊँचा ढेर खड़ा हो गया। धान का ढेर उसके सामने लग गया था।
उसी वक्त मोर आहिस्ते-आहिस्ते खलिहान में आ पहुंचा। मुर्गे से बोला–“मुर्गा भाई, आज मेरा जी काम करने को चाहता है। मैं किसी काम से कभी जी नहीं चुराता। तुमने तो सब छोटे-मोटे काम किए जो आसान थे। अब अनाज बाँटने का काम मेरा है। यह आसान काम तो नहीं है। खैर, मैं अकेले कर लूंगा। तुम चिंता मत करो। “
मुर्गे ने सोचा यही मौका है जबकि मोर को अच्छा सबक सिखाया जा सकता है। आलसी मोर अब पधारे है, अनाज बँटवारा करने , जबकि सारा काम खत्म हो चूका है। उसे मालुम था कि मोर धान और पुआल का ढेर पहचानता नहीं। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “भाई , मैंने तो हल चलाया , धान बोये , फसल की कटाई की, यानी सब कुछ किया इसलिए बड़ा वाला ढेर मैं ले रहा हूँ और छोटा वाला तुम लो। ” मोर क्या जाने बड़े ढेर और छोटे ढेर में क्या अंतर है। किसकी कीमत ज्यादा है।
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मोर ने कहा, “क्यों, मैं तो तुमसे बड़ा हूँ। बड़ा हिस्सा मेरा होगा। मैं ही बड़ा ढेर लूंगा यह कहकर मुर्गे को धकेल कर वह पुआल के ढेर पर चढ़ गया।
मुर्गे को धान का ढेर मिला। धान बेचकर उसे काफी पैसे मिले। वह अमीर बन गया। सब लोग उसके पास धान खरीदने आये। पुआल खरीदने मोर के पास भला कौन जाता।पुआल बेचने वह बाजार गया तो एक बोरा दो-दो रूपये में बिका। अपना-सा मुँह लेकर वह रह गया।
आलसी और लोभी की जो दुर्गति होती है, वही गति मोर की हुई।
तो कैसे लगी यह Chidiya Ki kahani Hindi आप सभी को। हमें उम्मीद है कि यह मुर्गा और आलसी mor ki kahani आप सभी को पसंद आयी होगी। ऐसे ही Hindi chidiya ki kahani पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहे।
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