मोरों की ईर्ष्या | Mor ki Kahani Hindi

दोस्तों आज हम आप सभी को एक छोटी सी कहानी Chidiya ki Kahani in Hindi जो moral story है जिसका शीर्षक “मोरों की ईर्ष्या “मोरों की ईर्ष्या ” है। इस Chidiya ki Kahani में मोर के साथ साथ तोता, कोयल, कबूतर जैसे पक्षियों का भी वर्णन मिलता है। तो दोस्तों आप सभी इस Chidiya ki Kahani short story को पढ़िए और अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को भी शेयर करिए।

मोरों की ईर्ष्या

( Mor ki Kahani Hindi)

उस विशाल जंगल में प्रायः पक्षियों का सम्मलेन होता। उस वन के पास ही नहीं दूर-दूर के पक्षी भी उसमे भाग लेते। बड़ी हंसी-खुशी भरा वातावरण बन जाता। भांति-भांति के कार्यक्रम होते। कोई गाता, कोई नाचता, कोई व्याख्यान देता, कोई नाटक करता, कोई खेल दिखाता तो कोई उड़ने की प्रतियोगिता में भाग लेता। यों तो पक्षी बड़े सुन्दर कार्यक्रम दिखाते, पर गाने के कार्यक्रम में सदैव कोयल जीतती। नाचने में सदैव मोर विजयी रहते। व्याख्यान में तोता बाजी मार ले जाते। नाटक करने में बगुला भगत पुरस्कार पाते। हर बार प्रायः ऐसा ही होता।

मोरों को प्रायः दो पुरस्कार मिलते एक नृत्य प्रतियोगिता में और दूसरा सौंदर्य प्रतियोगिता में। पर इतने से उन्हें संतोष न होता। वे देवी सरस्वती के वाहन थे अतएव अपने को विशिष्ट मानते थे। वे चाहते थे कि उन्हें ढेरों पुरस्कार मिलें। हर कार्यक्रम में वे ही विजयी रहें जिससे कि पक्षियों पर उनकी धाक जम जाए। दूसरे पक्षियों के गुण या सुंदरता देखकर उनका मन ईर्ष्या और असंतोष से भर उठता।

सभी मोरों ने मिलकर सलाह की। फिर मोरों का प्रतिनिधि सरस्वती जी के पास पहुंचा। वह बोला — देवी जी ! आप तो सब कुछ करने में समर्थ है। आप हमे कृपा करके कोयल जैसी आवाज दीजिए। कबूतर जैसे पैर दीजिए , नीलकंठ जैसे गला दीजिए। दूसरे पक्षी हमसे बाजी मार ले जाए यह हमारे लिए लज्जा की बात है। आप हमे ऐसा बना दीजिए कि हमसे सभी हारे।

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मोरों के प्रतिनिधि की बात सुनकर सरस्वती जी मुस्करा उठी। वह बोली — ‘बच्चों ! औरों के गुणों को क्यों नहीं याद करते। कोयल सुन्दर जाती है तो तुम अच्छा नाचते हो। कबूतर के पैर सुन्दर है तो तुम्हारे पर। दूसरों से ईर्ष्या क्यों करते हो? ईर्ष्या और अभिमान दोनों ही अवगुण ऐसे है जो हमारा विनाश करते है। इन्हे अपनाकर हम दूसरों से तिरस्कार ही पते है। भगवान ने शरीर बनाया है तो तुम अपना स्वभाव बना सकते हो। शरीर तो जैसा है वैसा ही रहेगा, बदला नहीं जा सकता, पर हां, स्वभाव अवश्य बदला जा सकता है। अच्छा स्वभाव बनाओगे , गुणी बनोगे तो तुम्हे सभी का स्नेह और सम्मान मिएगा। बुरी आदतें अपनाओगे तो कोई तुम्हे नहीं चाहेगा। ‘

मोरों का प्रतिनिधि चुपचाप गर्दन झुकाकर सरस्वती जी की बात सुनता रहा।

वे फिर बोलीं –गाने का निरंतर अभ्यास करो, तभी तुम अच्छा गा पाओगे। देवताओं के वरदान पर निर्भर मत रहो , स्वयं परिश्रम करो। देवता भी उन्ही की सहायता करते है जो अपनी सहायता खुद करते है।’

मोर वहां से चुपचाप , सिर झुकाकर लौट आया। सरस्वती जी ने जो कुछ था उसने आकर सभी मोरों को बता दिया।

पर मोरों ने आज तक गाने का अभ्यास नहीं किया। परिश्रम से जी चुराने के कारण वे अभी तक गाना नहीं सीख पाए है। जो केवल देवताओ का वरदान चाहते है, स्वयं कुछ श्रम नहीं करते वह जीवन में कुछ नहीं पा सकते।

तो दोस्तों कैसी लगी यह छोटी सी Chidiya ki Kahani hindi आप सभी को। हमे उम्मीद है कि यह Chidiya ki Kahani आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। ऐसे ही कहानी पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में बने रहिए।

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