चींटी और चिड़िया | Chinti aur Chidiya ki Kahani

मित्रों आज हम आपको एक प्यारी सी तथा शिक्षाप्रद कहानी चींटी और चिड़िया की कहानी (Chinti aur Chidiya ki Kahani ) जिसका शीर्षक है ” चंदा और उसकी सहेली”। इसमें चंदा नाम की एक चिड़िया तथा शालू नाम की एक चींटी की कहानी है जिसमे इनकी मित्रता का वर्णन मिलता है। तो दोस्तों आप सभी इस कहानी को पढ़िए और अपने मित्र भाइयों, रिश्तेदारों को भी शेयर करिए।

चंदा और उसकी सहेली

(Chinti aur Chidiya ki Kahani)

वाराणसी में गंगा के तट पर एक पीपल का बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ पर एक चिड़िया रहती थी। नाम था उसका चंदा। पीपल की जड़ में शालू नाम की एक चींटी रहती थी। धीरे-धीरे चंदा और शालू में मित्रता हो गई। दोनों साथ-साथ घूमती, साथ-साथ बातें करतीं और एक दूसरे के दुःख-मुसीबत में सहायता भी करतीं।

चिड़िया थी मस्त। काम करती कम, अधिकतर गाती और फुदकती रहती। चींटी सारे दिन परिश्रम करती। एक दिन चंदा चिड़िया शालू से बोली — “अरी ! क्यों तू सारे दिन काम करते-करते मरी जाती है। आखिर क्या फायदा है इससे तुझे ? आराम से भी रहा कर। “

चंदा की बातें सुनकर शालू ने अपना सिर ऊपर उठाया और बोली — “दीदी ! बुरा न मानना। परिश्रम ही जीवन में उन्नति करने का महान मूलमंत्र है। आलसी और कामचोर कभी सफलता नहीं पता। “

“हां ! यह बात तो है। ” चंदा ने भी उसकी बात के समर्थन में अपना सिर हिलाया। शालू की बात से, उसके काम से चंदा बड़ी ही प्रभावित थी। उसे इतनी अच्छी सहेली पा लेने का काफी गर्व था।

जाड़े आने वाले थे, अतएव शालू तेजी से जाड़ों के लिए सामग्री इकट्ठी करने में जुट गई। अपने नन्हे से मुँह में दबाकर यह कभी अनाज का दाना लाती, कभी चीनी तो कभी और कुछ। उसे सुस्ताने तक की फुरसत न थी। चंदा सारे दिन देखती रहती कि उसकी सहेली बिना रुके निरंतर काम में लगी रहती है। चंदा की इच्छा हुई कि वह भी शालू की सहायता करे। चंदा तो खाना इकट्ठा नहीं करती थी। जब भूख लगती तभी खाना ढूंढ़ती और खाकर फिर फुदकने लगती।

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चंदा बोली — “शालू बहन ! एक बात कहूं ?”

“जरूर कहो। ” पलभर को शालू रुकी और बोली।

मैं सोच रही थी कि तुम अकेली-अकेली खाना इकट्ठा करने जाती हो। छोटा सा तो तुम्हारा मुँह ही है। थोड़ा-थोड़ा करके लाती हो। कल से मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी। अपने चोंच में दबाकर एक बार में अधिक चीज ले आउंगी। इस प्रकार तुम्हारा काम जल्दी खत्म हो जाएगा।

शालू ने ध्यान से उसकी बात सुनी , विचार किया और बोली — “न बहन ! यह उचित नहीं है।”

“क्यों ? क्या मैं मित्र होते हुए भी तुम्हारी जरा सी सहायता नहीं कर सकती ?” चंदा पूछने लगी।

” देखो बहन मेरी बातों का बुरा न मानना। मित्रता की भी एक सीमा होती है, जिस मित्रता में नियम, मर्यादा नहीं होता, वह मित्रता बहुत ही जल्दी नष्ट हो जाती है। ऐसी मित्रता का अंत लड़ाई और मनमुटाव होता है। ” शालू ने बताया।

चंदा चुप बैठी रही। वह जानती थी कि उसकी यह बहुत ही बुद्धिमान सहेली चाहे कड़वी बात कहे, पर उसकी बात बड़ी ही खरी होती है।

शालू फिर कहने लगी — ” खाना इकट्ठा करने का यह काम एकाध दिन का तो है नहीं। यह तो बहुत दिन तक चलेगा और हर साल चलेगा।”

आखिर तुम कब तक मेरी सहायता करोगी ? हां, दुःख-मुसीबत में तो मैं जरूर तुम से यह आशा करूंगी कि संकट में पड़कर भी मेरी सहायता करो। सच्चा मित्र वही है जो सुख में, दुःख में, सभी स्थितियों में सदैव मित्र की सहायता करे।

शालू फिर पूछने लगी — “तुमने मेरी बात का बुरा तो नहीं माना बहन ?”

“न बहन न ! भला मैं बुरा क्यों मानने लगी ? मैंने तुमसे आज बहुत अच्छा सबक लिया है कि मित्रता में धैर्य से, मर्यादा से काम लो। कभी ऐसा काम न करो , जिससे मित्र के मन में कोई दुराव आए। यदि हम चाहते हैं कि अच्छा मित्र पाकर उसे खो न दें तो कभी ऐसे काम भी न करें कि मित्र से मनमुटाव की बात उठे। सच्चा मित्र पा लेना जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है………। मुझे तुम जैसी मित्र पर गर्व है। ” यह कहते-कहते चंदा की आँखे भर आयी।

चंदा और शालू आज भी पक्की सहेलियां है। सच्चे मित्र के रूप में सदैव उनका उदाहरण दिया जाता है। सच है, सोच-विचार कर व्यवहार करने वालों की मित्रता सदैव स्थाई रहती है।

तो दोस्तों कैसी लगी यह चींटी और चिड़िया की कहानी (Chinti aur Chidiya ki Kahani ) जो चंदा और उसकी सहेली के रूप में है। हमे उम्मीद है कि यह Chinti aur Chidiya ki Kahani आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। यह कहानी एक नई कहानी है। ऐसे ही कहानी के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहिए।