नेकी का रास्ता | Class 2 Short Moral Stories in Hindi

दोस्तों आज हम आप सभी के लिए Class 2 Short Moral Stories in Hindi जो कि बच्चो के लिए यह कहानी जिसका शीर्षक है “नेकी का रास्ता ” अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा बच्चो के साथ-साथ आप सभी के लिए भी एक शिक्षाप्रद कहानी है। तो दोस्तों आप सभी इस Class 2 Short Moral Stories in Hindi नेकी का रास्ता को पढ़िए और अपने दोस्तों रिश्तेदारों को शेयर करिए।

नेकी का रास्ता

(Class 2 Short Moral Stories in Hindi)

एक उद्यान में निम् का पेड़ पर बने एक कोटर में चुनचुन गिलहरी रहती थी। उसके घर में थे — एक बूढ़ी माँ और तीन बच्चे।चुनचुन का पति दो वर्ष पहले ही एक गाड़ी के नीचे कुचलकर मर गया था।

दो वर्षों से चुनचुन बड़ी मुसीबतें खेल रही थी। पड़ोसियों ने उसकी ओर से आँखें फिरा ली थीं। वही रिश्तेदार जो उसके पति के रहते घंटो उसके यहाँ बैठते थे, अब उसकी ओर मुँह भी न करते थे। अधिकतर पड़ोसी और रिश्तेदार सोचते थे कि चुनचुन अकेली है। उसकी सहायता करनी होगी, इसलिए उससे दूर ही रहा जाए। इसलिए चुनचुन हमेशा अपनी माँ से कहा करती थी कि माँ जो दुःख-मुसीबत में साथ देता है , वही सच्चा मित्र होता है। विपत्ति में मित्र की परख होती है।”

चुनचुन सुबह से शाम तक काम करते-करते थक जाती। उसकी पीठ दर्द करने लगती, पर क्या मजाल किसी ने उसकी कराह भी सुनी हो। यही नहीं वह दूसरों का काम करने को भी तैयार रहती। बच्चे कहा भी करते थे — “माँ ! तुम्हे सब मुर्ख बनाते ही रहते है। वैसे तो तुमसे बात भी नहीं करते, काम पड़ते पर भागे चले आते है।”

चुनचुन कहती — “रहने दो बेटा ! उनकी करनी उनके साथ, मेरी करनी मेरे साथ। दूसरे बुरा करने से नहीं हटते तो मैं भलाई के रास्ते से क्यों हटूँ ?”

एक दिन जब चुनचुन फल इकट्ठे करने के लिए उद्यान में घुस रही थी, तो उसने जगह-जगह यह चर्चा सुनी — “मयूर जी के बेटे की आँखें बहुत बुरी तरह से आ गई है। कोई दवा उसे लाभ नहीं कर रही है , कहीं वह बेचारा अँधा न हो जाए। “

चुनचुन मन ही मन बड़बड़ाई — “हो जाए अँधा तो हो जाए , तब पता लगेगा मयूर को कि बेटे का दर्द क्या होता है ?”

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चुनचुन के इस आक्रोश का भी एक कारण था। पिछले दिनों उसकी बेटी बीमार पड़ गई थी। डॉक्टर नीतू लोमड़ी ने उसके इलाज के लिए जो जड़ी-बूटी बताई थी, वह सिर्फ मयूर दादा ही पहचानते थे , वही तोड़कर ला सकते थे। चुनचुन दौड़ी-दौड़ी उनके पास गई थी और उन्हें सारी बात बताई थी , पर मयूर जी ने गर्दन नचाकर कह दिया था — “ओह ! मेरे पास बड़े-बड़े काम है। इन छोटी-छोटी बातों के लिए मैं कहाँ तक दौड़ता फिरूंगा। ”

और बेचारी चुनचुन अपना सा मुँह लेकर लौट आई थी। साथ ही यह भी कह आई — “दादा जी ! हम साथ-साथ एक ही समाज में रहते है। इसलिए एक दूसरे की सहायता करना हमारा कर्तव्य है। यह न भूलना कि जिन्हे हम छोटा कहकर उनकी उपेक्षा करते है , वे भी कभी काम आते है। “

और मयूर ने बड़ी जोर से केंआ-केंआ करके तिरस्कार भरी दृष्टि उस पर डाली।

जैसे ही चुनचुन फलों की गठरी लेकर कोटर के पास पहुंची थी कि कलिया कोयल बोली — “सुना ! तुमने कि मयूरनी का बेटा कही अँधा न हो जाए। “

चुनचुन ने सुनकर भी अनसुना कर दिया। वह चुपचाप कोटर में घुसने लगी कि कलिया ने उसे फिर रोक लिया और बोली — “सुनो ! तुम अपनी वाली आँखों की दवा तो उसे देकर देखो। “

वास्तव में उस उद्यान में आँखों की छूत की बीमारी फैली थी। गिलहरी को उसकी बड़ी अच्छी दवा मालूम थी। उसने कइयों की आँखे उससे ही ठीक की थी।

रातभर गिलहरी सोचती रही — “ओह ! दवा न देकर मैंने अच्छा नहीं किया। बच्चे-बच्चे सब एक से , जैसा मयूरजी का बेटा वैसा मेरा। यह ठीक है कि बुरे को सबक देना चाहिए , पर उसी तरह से जिससे उसकी बहुत बड़ी हानी न हो, वरन उसे अपनी गलती पता लग जाए। सुबह ही मैं स्वयं दवा लेकर जाउंगी। मैं भलाई करना क्यों छोड़ू ? बुरे के साथ बुरा ही करें, तो हमारी महानता ही क्या रही ?”

सुबह गिलहरी जल्दी उठी। जल्दी-जल्दी अपने घर का काम निपटाया। फिर वह अमरुद के पत्ते तोड़कर लाई। उन्हें बारीक — “मुझे माफ कर दो चुनचुन। मैंने तुम्हारे साथ अपनी मूर्खता के कारण बुरा व्यवहार किया था। आज मैं तुमसे भीख मांगता हूँ, अपनी दवा देकर मेरे इक्लौते बेटे की आँखें बचा लो।”

चुनचुन ने तुरंत दवा उसके आगे कर दी और समझाने लगी कि उसे आँखों के ऊपर-नीचे रखकर पट्टी बांध दें।

“ओह ! कितनी अच्छी हो तुम चुनचुन। बुरा करने वाले का भी भला करती हो। मैं तुम्हारा आभार कैसे व्यक्त करूं ?” मयूर गदगद कंठ से बोला।

चुनचुन मुस्कराकर आगे बढ़ गई। मयूर भी दौड़ा-दौड़ा घर की ओर चला। चुनचुन की दवा से दो-चार दिनों में ही उसके बेटे की आँखें पूरी तरह ठीक हो गई।

“मैं चुनचुन का क्या उपकार करूं ?” बहुत दिनों तक मयूर यही सोचता रहा , फिर उसने चुनचुन को अपना सलाहकार के रूप में रख लिया और सोचा कि वह सभी के हित के लिए निर्णय लेगी, सभी का भला करने की प्रेरणा देगी।

इतना ऊँचा पद पाने पर सभी ने चुनचुन की सराहना की। नेकी के रास्ते पर चलने वाला प्रारंभ में भला ही कष्ट पा ले , पर अंत में उसे अच्छा ही फल मिलता है।

तो दोस्तों कैसी लगी आपको Class 2 Short Moral Stories in Hindi जिसे नेकी का रास्ता रूपी प्रस्तुत किया गया। दोस्तों हमे लगता है कि आप सभी इस कहानी से जरुर कुछ न कुछ शिक्षा प्राप्त किये होंगे तथा हमे उम्मीद भी है कि यह कहानी आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। दोस्तों ऐसे ही Class 2 Short Moral Stories in Hindi जैसी कहानी पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट पर आते रहिए।

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