एकता की शक्ति | 2 Nanhe Chidiya ki Kahani Hindi

दोस्तों आज हम आप सभी को 2 Nanhe Chidiya ki Kahani बताएंगे। यह कहानी 2 मासूम चिड़िया, एक खरगोश तथा एक सांप की है। इस Chidiya ki Kahani में आप सभी को दुष्ट खरगोश के द्वारा ईर्ष्या के परिणाम का वर्णन मिलेगा। दोस्तों यह 2 Nanhe Chidiya ki Kahani एक शिक्षाप्रद कहानी है। आप सभी इसे पढ़े और अपने दोस्तों रिश्तेदारों को share करें।

एकता की शक्ति

(Chidiya ki Kahani Hindi)

एक नदी के किनारे एक विशाल वृक्ष था। उस वृक्ष पर एक चिड़ा और चिड़ी के जोड़े ने घोंसला बना रखा था। घोंसले में चिड़ी ने अण्डे दे रखे थे। वह उनकी खूब देखभाल करती थी। जब चिड़ी अपना दाना चुगने के लिए बाहर जाती, तो चिड़ा उन अण्डों की रखवाली करता था ।

एक दिन चिड़ी घोंसले में अण्डों की रखवाली के लिए चिड़े को छोड़कर दाना चुगने की खोज में काफी दूर निकल गई। जब काफी देर तक चिड़ी घोंसले में नहीं लौटी तो चिड़ा उसके न आने की चिन्ता और भूख से व्याकुल हो गया। वह नदी में पानी पीने के लिए उतरा। उसने बहुत सारा पानी पी लिया, फिर भी उसकी भूख कम नहीं हुई। इसलिए वह भी दाना चुगने के लिए निकल पड़ा।

Chidiya ki Kahani

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उसी वृक्ष पर एक गिलहरी भी रहती थी। वह बड़ी दुष्ट थी। उससे चिड़ा-चिड़ी का सुख देखा नहीं जाता था। इसलिए घोंसले को सुना देखकर वह झट से वृक्ष पर चढ़ गई। डाल पर चिड़ा-चिड़ी का बनाया हुआ सुन्दर घोंसला मानो उसे चिड़ा रहा था–

“इतना सुन्दर घोंसला क्या तू बना सकती है ऐसा घोंसला ?”

Chidiya ki Kahani Hindi mein

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दुष्ट गिलहरी की ईर्ष्या जाग उठी। उसने घोंसला सहित सारे अंडो को नीचे जमीन पर गिरा देने का विचार किया। वह जल्दी-जल्दी अपने तीखे और नुकीले दांतों से घोंसले के एक-एक तिनके को काटने लगी।

तभी अचानक एक कांटे वाला तिनका गिलहरी की आँख में चुभ गया। उसकी आँख से खून टपकने लगा। वह चीख कर कराहती हुई भाग कर चली गई।

थोड़ी देर बाद चिड़ी दाना चुग कर वापस आई। आने पर उसने देखा कि उसके सारे अंडे नीचे गिरे हुए है तथा उनका घोंसला भी उजड़ गया है। वह रोने लगी।

Chidiya ki Kahani

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उसे इस बात का पता था कि किसी-न-किसी दिन ईर्ष्यालु गिलहरी जरूर हमारा अहित करेगी। वह वहीं बैठकर जोर-जोर से रोने लगी। थोड़ी देर के बाद चिड़ा भी वहाँ आ गया। चिड़ी ने रोते हुए चिड़े से कहा–

“जरूर हमारे अंडे उस दुष्ट गिलहरी ने ही नीचे गिरा दी है। हमारे बच्चो और हमारा घोंसला दोनों को उसने नष्ट कर दिया । उसका हमने आखिर क्या बिगाड़ा है ?”

चिड़े ने चिड़ी को शान्त करते हुए कहा —

“संकट के समय में हिम्मत एवं धैर्य से काम लेना चाहिए। जो हुआ सो हुआ। चलो, हम दोनों नए सिरे से घोंसला बनाएँ।”

Chidiya ki Kahani Hindi

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तभी उन्होंने देखा, नीचे वही गिलहरी कराह रही है और उसकी एक आँख में काँटा चुभा हुआ है। चिड़ा गिलहरी के पास गया और उसने गिलहरी से कहा–

“हमने आखिर क्या बिगाड़ा था तुम्हारा जो हमारे अंडे नष्ट कर दिए साथ ही घोंसला भी तोड़ दिया। अब इसका परिणाम तुम्हे भुगतना ही होगा।”

चिड़ी बोली– अच्छा हुआ, अब इसे तड़फने दो। इसने हमारा घर उजाड़ा है।

Chidiya ki Kahani Hindi

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“हाँ, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैं तुम्हारे सुख से जलती थी, मुझे माफ कर दो। मुझे बचा लो और मेरी आँख में फँसा हुआ यह काँटा निकाल दो।” उसने रोते हुए कहा ।

चिड़े ने कहा–

“ठीक है। यह वादा करो कि फिर कभी भी किसी का सुख देखकर ईर्ष्या नहीं करोगी।”

“मैं वादा करती हूँ। अब मैं किसी से भी ईर्ष्या नहीं करूँगी। लेकिन जल्दी से मेरा काँटा तो निकाल दो। मेरी आँख में बहुत दर्द हो रहा है।”

चिड़े ने अपनी चोंच से उसकी आँख में चुभा हुआ काँटा निकाल दिया। गिलहरी को बहुत आराम मिला। अब वह चिड़ा-चिड़ी की दोस्त बन गई। उसने उनसे कहा–

“कभी कोई आप लोगों में आगे मुसीबत आवे तो मुझे अवश्य याद करना। मैं अपनी जान पर बाजी लगाकर भी आप दोनों की मदद करूंगी।’

कुछ दिनों बाद चिड़ा-चिड़ी ने फिर से एक सुन्दर घोंसला बना लिया। उसमें चिड़ी ने अण्डे दिए । अब अण्डों की देखभाल के लिए वे गिलहरी से कह जाते और दाना चुगने की खोज में दूर-दूर तक निकल जाते ।

एक दिन चिड़ी के अण्डों से सुन्दर और प्यारे प्यारे बच्चे निकल आए। चिड़ा-चिड़ी उनको देखकर बहुत खुश हुए। अब वे उनके लिए दाने लाने के लिए दूर चले जाते तो गिलहरी को उनकी रक्षा के लिए कह जाते ।

एक दिन की बात है। चिड़ा-चिड़ी अपने बच्चों के लिए दाना लाने काफी दूर निकल गए। गिलहरी बच्चों के पास थी। अचानक बच्चे चीखने लगे। एक विषैला साँप वृक्ष पर चढ़ा आ रहा था। बच्चे डर कर रोने लगे। वे अभी उड़ भी नहीं सकते थे। साँप बच्चों की ओर उन्हें खाने के लिए आगे बढ़ता चला आ रहा था। गिलहरी भी पलभर के लिए तो घबरा गई। फिर उसने सोचा मेरे कष्ट में चिड़ा-चिड़ी ने साथ दिया था। इसलिए मुझे उनके इस उपकार का बदला चुकाना चाहिए।

Chidiya ki Kahani Hindi

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वह जोर-जोर से चीखने लगी– “बचाओ ! बचाओ !” परन्तु मदद के लिए कोई नहीं आया। किन्तु वह किसी भी कीमत पर बच्चो की रक्षा करना चाहती थी। उसने सोचा कि आखिर बहुत विश्वास के साथ चिड़ा-चिड़ी अपने बच्चों की देखभाल व रक्षा के लिए ही तो उनके पास छोड़ गए थे।

अचानक गिलहरी के दिमाग में एक उपाय सूझा। वह उसी वृक्ष पर रहने वाली लाल चींटियों के पास गई और उनको उसने सारी बात बताई। लाल चींटियों का झुण्ड अचानक साँप पर आक्रमण करके उस पर लिपट गया। साँप फुफकारता हुआ वापस लौट गया।

Nanhe Chidiya ki Kahani

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गिलहरी ने राहत की साँस ली। गिलहरी ने बच्चों को देखा। वे डर के मारे सहमे हुए अपने घोंसले में दुबके हुए थे। तभी चिड़ा-चिड़ी आ गये। गिलहरी ने उनको सारी बातें बताईं और कहा–

“दुश्मन कमजोर पर हमला करते हैं, इसलिए हम सबको एक होना पड़ेगा और अपनी शक्ति बढ़ानी होगी।”

चिड़ा-चिड़ी ने यह बात जो उनको गिलहरी ने बताई थी – कोयल, तोता, कबूतर, मैना और नीलकण्ठ से कही। अब वे सब मिलकर एक ही पेड़ पर रहने लगे। कबूतर दिनभर बच्चों के साथ खेलता रहता। अब वे सब एक थे। मुसीबत के समय सब मिलकर दुश्मन से टक्कर लेते।

उनकी एकता को देखकर साँप भी घबरा गया और एक दिन उस वृक्ष के नीचे वाले अपने बिल से निकल कर कहीं अन्य स्थान पर चला गया।

शिक्षा : इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें संगठित होकर रहना चाहिए, जिससे हम आने वाली मुसीबतों का सामना कर सकें। वास्तव में एकता में बहुत शक्ति होती है।

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