शेर और मोर की कहानी | Sher Ki Kahani

आज हम आपको जंगल का राजा Sher Ki Kahani और Mor Ki Kahani कहानी बताएंगे। यह कहानी जंगल के सभी जानवरों की है। वर्षा न होने के कारण सभी परेशान थे जिसमे जंगल के राजा शेर भी कुछ नहीं कर पा रहा था। इस Sher Ki Kahani में आपको सीख के साथ-साथ आनंद भी मिलेगा। तो चलिए आप सभी इस Mor Aur Sher Ki Kahani को पढ़िए और दुसरो को भी share करिए।

जब बिन बादल नाचा मोर

( Mor Aur Sher Ki Kahani )

मानसून का आरंभ हो चूका था। सुनने में बराबर आ रहा था कि कितनी ही जगह तो नदी और नाले पानी से भर गए है। इतना पानी बरस रहा है कि बाढ़ तक आने की संभावना है। लेकिन मधुपुर जंगल में पानी का कहीं नामनिशान तक न था। भीषण गर्मी और सूखे से हर ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। सब जानवर गर्मी से परेशान थे।

एक दिन जानवरों ने एक सभा की। जंगल के राजा शेरसिंह शेर ने ज्योतिषाचार्य पंडित उछलराम-कुदराम बन्दर से पूछा–“ज्योतिषी जी, आखिर बात क्या है , हमारे ही जंगल में पानी क्यों नहीं बरस रहा है ?”

पंडित उछलराम-कुदराम ने माथे पर बल डालते हुए कहा– “महाराज, बिना आपके हाथ की रेखाओं को पढ़े भला मैं कैसे कुछ बता सकता हूँ ?”

राजा शेरसिंह शेर ने अपनी हथेली झाड़ी और ज्योतिषी जी के आगे कर दी। एक पल के लिए तो ज्योतिषी जी के प्राण ही निकल गए। सोचा–कहीं शेर का पंजा उन पर पड़ा तो बस। इधर ज्योतिषी जी ने महाराज के हाथ की रेखाएं पढ़ी, उधर सभी में खलबली मच गई। युवा वर्ग के जानवरों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। “ज्योतिषी बकवास करता है। आखिर मौसम विभाग इस बात का पता क्यों नहीं करता है। मौसम विभाग के विशेषज्ञों चातक और पपीहा को मानसून के बारे में खोज करनी चाहिए। “

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राजा शेर ने मौसम विभाग के अधिकारी चातक और पपीहा को आदेश दिया कि वे मानसून के बारे में पता करें। साथ ही पंडित उछलराम-कुदराम से भी कहा कि वह अपने ज्योतिष के आधार पर यह बताए कि मानसून क्यों नहीं आ रहा है।

ज्योतिषाचार्य ने बताया , “महाराज आपके राज्य में अशांति बहुत बढ़ गयी है। लोगो पर अत्याचार बढ़ गया है। यह सब शनिदेव का प्रभाव है। शनिदेव का प्रभाव अभी आरम्भ हुआ है। साढ़े सात वर्ष तक इसका प्रकोप है। सात दिन के पूजन से ही इस ग्रह से शांति मिल सकती है। “

राजा शेर ने कहा– ” ज्योतिषी जी, देर किस बात की है ? आप पूजन आरम्भ करे। “

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“राजन, व्रत तो मैं आज से ही आरम्भ कर दूंगा, लेकिन नित्य ही पूजन में ताजे फलों की आवश्यकता पड़ेगी। “

राजा चिंतित हो उठे। चारों ओर सूखा पड़ा है , फल कहा से आएंगे?

जानवर मंत्रियों ने कहा — “महाराज , आप चिंतित न हो, आदेश निकलवा दें। यज्ञ पूजन के लिए बारी-बारी से हर जानवर परिवार का एक-एक सदस्य फल लेकर आएगा। “

इस आदेश से पुरे जानवर वर्ग में खलबली मच गई। वे विद्रोही हो कर चीखने लगे “ज्योतिषी चोर है। अपने खाने का इंतजाम कर रहा है। हम इसकी एक नहीं चलने देंगे। “

बड़े बुजुर्गों ने बहुत समझाया — “भई, ज्योतिषी ने तो आज से ही व्रत रखा हुआ है। भला वह फल कैसे खाएगा। ” बड़ी मुश्किल से युवा जानवर वर्ग इस बात पर राजी हुआ।

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सभी जानवरों को उम्मीद थी कि ज्योतिषी जो इतने विधि-विधान से गुफा के अंदर भूखा-प्यासा पूजन कर रहा है, उससे पानी अवश्य बरसेगा। लेकिन पूजन का आठवां दिन भी हो गया, पर आकाश में बादलों का कहीं नाम-निशान तक नहीं दिखा। सभी जानवर बौखला उठे। गुफा का द्वार खटखटाया। सभी चीख रहे थे — “निकालो ज्योतिषी को। हम मेहनत से कड़ी धुप में जा-जा कर फल लाते रहे और यह डकारता गया। ”

गुफा का दरवाजा जब खोला गया, तब देखा वहां ज्योतिषी पंडित उछलराम-कुदराम का कहीं नाम निशान तक नहीं था।

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राजा शेर इस बात से बहुत नाराज हुए। मौसम विभाग में भी जोर-शोर से काम आरम्भ हो गया था।

एक दिन ताड़ी के नशे में झूमते हुए भालू काका आए। बोले–“अरे, बारिश ऐसे कैसे आएगी, उल्टा जमाना है। कोई उल्टा काम करो। ऐसा है कि मोर को नचाओ। आकाश में अपने आप बादल छा जाएंगे। “

सभी जानवर खिल खिला कर हंस पड़े। हाथीमल ने सूंड फटकारते हुए कहा — ” मोर बादल को देख कर नाचता है या मोर का नाच देख कर बादल घिर आते है ?”

Mor Aur Sher Ki Kahani

जंगल के राजा को समझते देर न लगी कि भालू की तरकीब ही कारगार साबित हुई है।

भालू काका की बात सब को जंच गई। लेकिन बिना बादल के मोर के पैरों में भला थिरकन कैसे आती।

काफी माथापच्ची करने के बाद युवा जानवरों ने भेड़िया कुमार के साथ मिलकर तरकीब निकाली। पेड़ों के पीछे आग जलाई। उससे धुआं उठा। मोर ने धुंए को बादल समझा। उसके पैर थिरकने लगे। मौका देखकर कोयल ने गाना शुरू कर दिया। और मोर जोरों से नाचने लगा।

मोर के नाचने के साथ ही आकाश में बादल घिरने लगे। और झमा-झम पानी बरसने लगा।

राजा शेरसिंह के पूछने पर मोर बोला कि मेरे नाचने से बारिश आई है। युवा जानवरों ने दावा किया कि उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई है। चातक और पपीहे ने विशेषज्ञों की तरह मानसून देर से आने की बात कही। राजा शेरसिंह को जवाबों से संतोष नहीं हुआ। भालू, काका से पूछा, तो वह गर्दन हिलाते हुए बोला — “बड़े बूढ़ों की तरकीब से बारिश हुई है। ”

तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह Mor Aur Sher Ki Kahani हिंदी कहानी। इस कहानी से हमे पता चलता है कि किसी पर भी आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। यह Mor Aur Sher Ki Kahani बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय कहानी में से एक है। आप सभी को यह Mor Aur Sher Ki Kahani कैसी लगी हमे comment करके जरूर बताए और ऐसे ही मजेदार Sher Ki Kahani जैसी रोचक कहानियां पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट पर जरूर आते रहे।

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