कोयल का बच्चा | Koyal Ki Kahani Hindi

दोस्तों आज हम आप सभी को बाल निर्माण की एक New Hindi Kahani बताएंगे यह Koyal Ki Kahani है इस कहानी में हमे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। जो एक माँ और उसके बच्चे के प्रति है। तो चलिए आप सभी इस कहानी को पढ़िए और इसका आनंद लीजिए साथ ही इसे अपने दोस्तों रिश्तेदारों को भी शेयर करिए।

कोयल का बच्चा

(Koyal Ki Kahani)

एक सुनसान जंगल के एक बरगद पेड़ में बना घोंसला जिसमे रहती थी एक कौवी उसका नाम था भीमा। घोंसलें में उसके चार बच्चे भी थे जिसे वह दिन रात सेवा करती थी। उसका एक पति भी था जो बहुत ही ज्यादा आलसी था। दिन-रात इधर-उधर घूमता और उसे अपने बच्चो के साथ साथ उसकी पत्नी की भी थोड़ी सी भी चिंता नहीं था। पुरे दिन बच्चो के लिए भोजन की तलाश में भीमा लगी रहती। दिन-रात मेहनत करने के कारण वह बहुत थक जाती। शाम को घोंसले में आकर उसकी तुरंत ही आंख लग जाती।

कुछ दिन तक ऐसा ही चलता रहा जिसके कारण भीमा अपने बच्चो के साथ समय नहीं बिता पाती थी। एक दिन उसे अपने बच्चो को देखते हुए लगा कि यह बच्चे उसके नहीं है और जांच करना शुरू कर दी। तब उसे पता चला कि उसमे से एक बच्चा किसी कोयल का है जो उसके घोंसले में उसकी मौजूदकी के बिना रख दिया है।

भीमा को बड़ा गुस्सा आया। क्रोध से उसकी आँख लाल-लाल हो उठी। काँव -काँव करके वह जोरों से चीखी। पलभर में उसका पति कन्नू वहां आ गया। उसके साथ और भी दो-चार कौवे थे। भीमा की बात सुनकर वे सभी गुस्से में अपने पंख फड़फड़ाने लगे। उनके गुस्से का कारण यह भी था कि ऐसी घटना पहली बार नहीं हुआ था , ऐसी घटना होती रहती है।

कोयल अपना अंडा कभी किसी एक के घोंसले में तो कभी दूसरे के घोंसले में रख देती और कौवे उसे बड़े लाड-प्यार से पालते। जैसे ही कोयल का बच्चा कुछ बड़ा होता तो फुर्र से वहां से उड़ जाता। यही नहीं, इस पर भी कोयले हमेशा कौवों की बुराई ही करती रहती थी। वे अपनी मीठी-मीठी चापलूसी भरी बातों से मनुष्यों का मन मोह लेती। फल यह होता कि मनुष्य कोयलों की प्रशंसा करते, कौवों की निंदा करते, उन्हें देखते ही हुश-हुश करके उड़ाने लगते।

भीमा ने कौवों से एक लम्बी रस्सी लाने को कहा। वे जल्दी से गए और वट की लम्बी सी जटा ले आए। भीमा और दूसरे कौवों ने उससे कोयल के बच्चे के पंजे कसकर बांध दिए, जिससे कि वह घोंसला छोड़कर उड़ न जाए। भीमा मन ही मन कह रही थी — ” तुम मेरे बच्चे बनकर पले हो तो मेरे ही बच्चे बनकर रहोगे। “

जल्दी ही सारे बच्चे बड़े होने लगे। भीमा के तीनो बच्चे थोड़ा-थोड़ा उड़ना भी सीख गए थे , पर कोयल के बच्चे को भीमा कही न जाने देती थी। उसके पैरों में बंधी रस्सी भी अब अपने घोंसले के बाहर बरगद की टहनी पर बांध दी थी।

भीमा सभी बच्चो को बड़े प्यार से रखती। वह उन्हें नई-नई बाते सिखाती। बात-चित करना सिखाती, कौवे समाज का रहन-सहन सिखाती, अनेक गाने सिखाती। कोयल का बच्चा भी साथ रहकर सभी के साथ उनकी तरह बात करने और गाने सीख रहा था बस उसे आसमान में स्वच्छन्द रूप से उड़ने की। भीमा बरगद की टहनी बंधी रस्सी ढीली कर देती और कोयल का बच्चा पंजे बंधे उड़ने का अभ्यास करता।

एक दिन अचानक ही हवा के तेज झोंके से बरगद की टहनी टूटी और रस्सी खुल गई। कोयल का बच्चा बेतहाशा वहां से उड़ा। उसके पंजे रस्सी में बंधे हुए थे। रस्सी का छोर लटक रहा था , पर वह उड़ता ही गया , उड़ता ही गया। बहुत दूर आम के बाग़ में जाकर ही उसने चैन की साँस ली।

कोयल के बच्चे ने जोर-जोर से सहायता के लिए पुकार मचाई। उसे पूरा विश्वास था कि जल्दी ही सारी कोयलें दौड़ी आएंगी। वे जल्दी से उसके पंजो में बंधी रस्सी खोल देंगी। उसकी आवाज सुनकर अनेक कोयलें आ गई थी, पर उसकी सहायता करना तो दूर रहा, वे तो उसे चोंच मार-मारकर वहां से भगाने लगीं।

वे आपस में कह रही थी कि देखो यह कौवे का बच्चा हमारा सा रूप रखकर हमे धोखा देने आया है। कोयल के बच्चे ने बहुतेरा समझाया कि वह उसकी जाति का है, पर कोयले कह रही थी — “तुम रूप बदलकर हमे धोखा दे सकते हो, पर आवाज को कैसे बदलोगे ? तुम्हारी आवाज ही तुम्हारी सचाई कह रही है कि तुम कोयल नहीं कौवे हो। ”

कोयल के बच्चे की कौवों के समाज में जाने की हिम्मत न हुई। वहां तो रोज ही कौवे भीमा को भड़काते थे कि वह उसे मार डाले। वह अपना दुश्मन क्यों पाल रही है? यह भीमा की ही उदारता थी जो उसे प्यार से रखती थी।

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इस प्रकार कोयल का बच्चा न कौवों के साथ रह सकता था और न कोयलों के। उसकी आँखों से टप-टप आंसू गिरने लगे। वह आम के बाग़ को छोड़कर तेजी से उड़ चला। उड़ते-उड़ते वह जंगल में आया और हाँफते हुए नदी के किनारे आकर गिर पड़ा। कहाँ जाऊं, क्या करूँ ? यह सोचकर वह फूट-फूटकर रोने लगा। अपने दुःख में उसे यह ध्यान भी न रहा कि एक कोयल बहुत देर से उसका पीछा कर रही है। अचानक ही उसने सुना कि कोई कोयल सामने बैठी हुई कह रही है–“किसी भी स्थिति से डरकर भागना भी कायरता है। प्रत्येक स्थिति का धैर्य और साहस से सामना करो , तभी जीवन में सफल हो पाओगे। “

कोयल का बच्चा क्रोध से बोला–“कौन हो तुम और यहाँ क्यों आये हो ?”

“बेटा ! मैं तुम्हारी माँ हूँ। ” कोयल ने उसके सिर पर पंजा फिराते हुए प्यार से कहा।

“मेरा कोई भी माँ-वाँ नहीं। ” कहकर कोयल के बच्चे ने मुँह फिरा लिया। “मैं अनाथ हूँ, भीमा कौवी ने मुझे पाला है। ” वह कह रहा था।

उसकी बात सुनकर कोयल की आँखों में आंसू भर आए। वह रुंधे गले से बोली–” मेरे बेटे विश्वास रख !मैं ही तेरी माँ हूँ , मैंने ही तुझे जन्म दिया है। मेरा बच्चा। मुझे अपनी करनी का फल मिल गया है ! मेरा मन आज तुझे इस स्थिति में देखकर कितना दुखी हो रहा है , इसे तू समझ न पाएगा। मेरी गलती का फल तुझको मिले, यह कहाँ का न्याय है ? तू मुझे अपनी गलती सुधारने का मौका देगा न मेरे बच्चे ! यह कहकर कोयल ने दोनों पंजो से अपने बेटे को पकड़कर ह्रदय से ममत्व – भाव होकर लगा लिया। माँ कि ममता पाकर बच्चे की आँखों से टप-टप आंसू बहने लगे। “

फिर कोयल ने अपनी चोंच से बार-बार कोशिश करके उसके पंजो में बंधी रस्सी को अलग कर दिया। वह उसे लेकर जंगल के सुनसान भाग में चली गई। वही एक पेड़ पर दोनों माँ-बेटों ने डेरा डाला। बहुत समय तक वहां रहकर कोयल अपने बेटे को तरह-तरह की शिक्षा देती रही। सिखाने से भी दोगुना समय और शक्ति इस बात में लगा रही थी कि बेटे ने जो गलत सीख रखा था, वह उसे भूल जाए। वह सोच रही थी–“काश ! पहले ही मैं इसे सही दिशा दे देती तो क्यों दोनों इतनी परेशानी भुगतते ? गलत सीखने से तो न सीखना ही अच्छा है। “

सच्चे मन से जो काम किया जाता है, उसे अंत में सफलता मिलती ही है। कोयल भी थोड़े दिनों में बच्चे को सिखाने में सफल हो गई। जब उसकी शिक्षा पूरी हो गई। जब उसकी शिक्षा पूरी हो गई, तो वह एक दिन बच्चे से बोली–“बेटे ! अब तुम जा सकते हो तुम एक गुणी बन गए हो कोई तुम्हे रंग रूप से नहीं बल्कि तुम्हारी अच्छे स्वभाव से तुम आदर पा सकता है। जाओ ! कोयलें तुम्हारा स्वागत करेंगी। मेरा कर्तव्य पूरा हो चूका है। विदा……। ”

“माँ ! मुझे अंतिम उपदेश तो दे दो। ” माँ के पैर छूते हुए कोयल का बच्चा बोला।

कोयल बोली– “बेटा ! अंत में , मैं तुमसे बस, इतना ही कहूँगी कि सदैव परिश्रम और ईमानदारी से काम करना। दूसरों को धोखा देने से हो सकता है कि उस समय तुम्हे अपना लाभ दिखाई दे, पर यह लाभ थोड़े समय का होता है। ऐसा करने वाले को अंत में पछताना ही पड़ता है। “

“माँ तुम्हारी बात मैं सदैव ध्यान रखूँगा। ” कोयल के बच्चे ने माँ को प्यार और आदर की दृष्टि से देखते हुए कहा। फिर उसने पंख फड़फड़ाए और प्रसन्न मन से जीवन की लम्बीयात्रा पर निकल गया।

तो दोस्तों कैसी लगी यह कहानी आप सभी को उम्मीद करते है आपको यह Koyal Ki Kahani जरूर पसंद आयी होगी। आपको यह कहानी कैसी लगी हमे comment करके जरूर बताये। ऐसे ही Koyal Ki Kahani जैसी कहानी पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहे।

गायत्री परिवार के द्वारा बाल निर्माण की कहानियां को हमारी तरफ से बहुत बहुत आभार।

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