मिली सहेली | Mili Saheli | Rajkumari Ki Kahani Hindi

आज हम आपको Ek Rajkumari Ki Kahani बताएंगे। ये kahani rajkumari की है जो बहुत ही प्यारी तथा सुन्दर है। यह Rajkumari Ki Kahani आप सभी को जरूर पसंद आएगी। आप सभी इस Ek Rajkumari Ki Kahani कहानी को अपने बच्चो को भी सुना सकते है और अपने दोस्तों को भी सुनायें।

मिली सहेली

(Rajkumari Ki Kahani)

राजकुमारी चित्रांगी अपने पिता की इकलौती संतान थी। इसलिए राजा उसे किसी के साथ मिलने नहीं देते थे कि उसे कोई नुकसान न पहुंचे।

इसलिए उसकी कोई सहेली नहीं थी। खेलने के लिए हिरन, खरगोश, कबूतर, तोता, मैना आदि कई जानवर पाले हुए थी। परन्तु उनमे से आनंद नाम के एक पंचवर्ण तोते पर वह जान देती थी। वह स्वयं खाते समय उसको भी सामने बिठा लेती थी और उसको सोने की प्याली में खाने को देती थी।

लेकिन चित्रांगी ऐसे जीवन गयी थी। आखिर कब तक जानवरों के साथ खेलती। हमेशा महल के अंदर ही पड़े रहना उसको असह्य लगने लगा। आसमान पर बादलों को उड़ते देखकर उसकी आँखें गीली हो जाती थी। एक दिन उसने खिड़की के पास धान चुग रही एक गौरेया को देखा। राजकुमारी को वह बहुत प्यारी लगी।

चित्रांगी ने उससे पूछा , “तू इधर कहाँ से आयी ?”

गौरेया ने उस दर्द भरी , मीठी आवाज को सुन कर सिर उठाकर देखा और बड़े स्नेह भाव से कहा , “माँ, उधर काजू का बाग़ है न, उसके पास झोपड़ियां है। उनमे से एक झोपडी के अंदर ऊंचाई पर एक घोंसला बनाकर रहती हूँ। धान चुगकर भूख मिटा लेती हम आराम से दुनिया भर में घूम आती हूँ। कभी-कभी तुम्हारे इस महल में भी आया करती हूँ। जहाँ चाहूँ, वहां चली जाउंगी। मुझे कोई चिंता नहीं है। अंत में लौटकर अपने घोंसले में चली जाती हूँ। क्या तुम भी चलोगी?” गौरेया ने पूछा।

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राजकुमारी ने सोचा–काश ! मैं भी गौरेया बन जाती गौरेया की तरह उड़ जाने की इच्छा उसमे तीव्र हो गई।

आनंद दशा भी कुछ भिन्न नहीं थी। वह यह सोच-सोचकर दुखी होती थी कि कितने दिन इस महल, जानवर और सोने के प्याले के साथ दिन बिताती रहूंगी। और कहीं चले जाने की उत्सुकता भी उसमे जाग गई थी।

एक दिन जब चित्रांगी खाते-खाते कुछ सोच में पड़ी थी तभी आनंद चुपके से उड़कर निकल गया। राजकुमारी का गला भर गया आया। उसने राजमहल के बगीचों में उसे इधर-उधर खोजने के लिए नौकरों को कहा। लेकिन तोता कही दिखायी न दिया।

महल से उड़कर तोता सीधे काजू के बाग़ में गया। बाग के पास एक झोपड़ी के दरवाजे पर एक छोटी लड़की मिटटी का घरौंदा बनाकर खेल रही थी। उसका नाम था वंदिनी। उसका बाप एक मजदूर था। जब उसका बाप मजदूरी करने जाता और माँ दूसरे काम कर रही होती तो वंदिनी अकेले तरह-तरह के खेल खेला करती।

उस दिन भी वंदिनी मिटटी का घरौंदा बनती हुई खेल में मग्न थी। तभी आनंद एकाएक उसके सामने थोड़ी दूर पर आ बैठा। उसकी लाल-लाल चोंच, बलखाती चाल और टिमटिमाती आँखे सुंदरता बिखेरने लगीं। उसको देखकर वंदिनी का मन प्रेम से भर आया। उसने उसे पकड़ लेने की विनती की तो उसकी माँ ने उसे पकड़कर उसके हाथों में रख दिया। वंदिनी फूली न समायी। उसने प्रेम से तोते को सहलाया और पूछा, “रे पंचवर्ण रंगीन तोता ! तू कहाँ रहता है ? कहाँ से आया है ?”

आनंद बोला–“मैं राजकुमारी चित्रांगी के महल में रहता हूँ। आज जरा बाहर घूम आने की इच्छा हुई तो उड़कर यहाँ आया हूँ। “

वंदिनी ने पूछा–“राजकुमारी कैसी होगी?”

आनंद ने कहा–“वह सुन्दर गुलाब के फूल की तरह है। बहुत अच्छी है। तुम भी चलोगी? हम सब वहां जाकर खेलेंगे !”

“हां, हां चलेंगे मेरा भी घूमने का मन करता है पर पिताजी–“दिवाली को जायेंगे; पोंगल जायेंगे,–कहकर टालते रहते है। हम अभी चले ! राजकुमारी मुझसे बात करेगी न ?”

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वंदिनी को दूसरे दिन राजमहल में ले जाने का वायदा करके आनंद जाने को तैयार हुआ। वंदिनी ने राजकुमारी के लिए शैवाल की बनी माला और नारियल के छिलके की अंगूठी दी। आनंद दोनों को चोंच से पकड़कर उड़ चला और शाम होते-होते राजमहल में पहुँच गया।

आनंद को वापस आया देखकर चित्रांगी की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसने तोते को छाती से लगाकर पचासों बार चुम्बन लिया और पूछा–“क्यों रे बदमाश तू कहाँ चला गया था ?” तोते ने जवाब नहीं दिया। सिर्फ आँखें घुमाता रहा। शायद उसको भूख लगी होगी–ऐसा सोचकर राजकुमारी ने एक आम का फल लेकर उसके सामने रखा। तोते ने उसे छुआ भी नहीं; आँखे बंद कर ली।

“आनंद ! मेरे प्यारे आनंद ! खाओ न ! तुम्हारी थकान दूर हो जाएगी।” राजकुमारी ने बोला।

तोते ने मुँह से माला और अंगूठी गिरा दिया।

उनको देखकर राजकुमारी की आँखे चमक उठी। पूछा, “ये सब कहा मिलें, आनंद?”

“वहां,उधर, काजू का बाग दिखाई देता है न ? वहां गौरेया की तरह एक लड़की खेल रही है। उसका नाम वंदिनी है। उसी ने ये सब दिए। तुम चाहो तो और भी मांग लाऊंगा। “

“तो क्या अभी जाओगे ?”

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“नहीं। अब रात हो गयी है। कल जायेंगे। ” आनंद ने आम कुतरना शुरू कर दिया। चित्रांगी खुश हो गयी। लेकिन उसको रात भर नींद नहीं आयी। वंदिनी के बारे में ही सोचती रही।

दूसरे दिन दोपहर के खाने के बाद महल के सेवक कड़ी मेहनत के बाद आराम कर रहे थे। तब राजकुमारी और आनंद चुपके से महल से निकल गए। आनंद आगे मार्ग दिखाता उड़ता चला। चित्रांगी ने उसका पीछा किया।

धीरे-धीरे दोनों काजू के बाग के पास की झोपड़ी में गए। ताड़ के पत्तो का फड़फड़ाना, रंग-बिरंगी तितलियों का उड़ना, कुमुद के तालाब में स्त्रियों का नहाना , मिटटी पर बच्चो का लोटना आदि राजकुमारी को विनोद से लगे। उसको बड़ा आनंद आया।

इस सब दृश्यों को देखते रहने में ही दिन बीत गया। तब वंदिनी कही से लड़कियों की एक गठरी ढोती हुई लौटी। उसके हाथ में सेब के कुछ जूठे टुकड़े थे। उसने लड़कियों का बंडल झोपड़ी के अंदर उतारकर रख दिया और बाहर आकर नीम के पेड़ की छाया में बैठकर जूठे सेब चबाने लगी।

“देखो ! यही वंदिनी है। “–आनंद ने परिचय कराया। फिर काजू की डाल पर बैठकर चोंच से पंखो को सँवारने लगा। चित्रांगी ने वंदिनी का हाथ थामकर पूछा, “वंदिनी जूठे सेब क्यों चबाती हो?”

“मुझे फल कौन देगा ?”–वंदिनी ने पूछा।

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राजकुमारी ने फिर से पूछा, “सर पर लकड़ी लादकर आ रही थी न तुम? क्या तुम्हारे घर का रसोइया लकड़ी नहीं लाता ?”

वंदिनी ने जवाब दिया, “मेरी माँ ही रसोइया है। उसके धान कूटकर चावल निकालते-निकालते मैं लड़की चुन लाती हूँ। “

राजकुमारी को अनायास भारी वेदना हुई। उसने रेशम के अपने राजसी कपड़े उतारकर फेंक दिए और वंदिनी के साथ बैठकर खेलने लगी। इस तरह बहुत देर हो गयी।

“अब राजमहल चले। “–आनंद ने कहा।

पर राजकुमारी नहीं मानी। आनंद को अब डर लगने लगा। वह सीधे उड़कर राजमहल गया।

महल में खलबली मची थी। बेटी और तोते को लापता देखकर राजा नौकरों को डाँट रहे थे। कई लोग तो इधर-उधर राजकुमारी को खोजते हुए, भटक रहे थे।

आनंद को देखते ही राजा ने तनकर पूछा, ” चित्रांगी कहाँ है ?” आनंद ने जवाब नहीं दिया। धीरे-धीरे एक पेड़ से दूसरे पेड़ की ओर फुदकते हुए उड़ता चला गया। तोते की यह करतूत देखकर सबको ताज्जुब हुआ। राजा, मंत्री और नौकरों ने उसका पीछा किया। आखिर तोता काजू के बाग में चित्रांगी के जाकर खड़ा हो गया।

राजा और मंत्री ने एक पेड़ के पीछे छिपकर देखा वंदिनी नदी में नहाते-नहाते राजकुमारी को नारियल के छिलके से अंगूठी बनाने की कला सिखा रही थी। वंदिनी के नहाने जाने पर राजकुमारी भी पानी में उतरकर उसके साथ खेलने लगी थी।

Rajkumari ki kahani –

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राजा अपने छिपने की जगह से बाहर आय। बेटी से बिगड़कर बोले, “यहाँ, क्या कर रही हो ! चलो, राजमहल चलें ! ” चित्रांगी ने हठ किया, “वंदिनी के बिना मैं नहीं जाउंगी। उसको भी साथ लेते चले। “

राजा का मन प्रेम से गदगद हो गया। तोता आनंद उड़ते-उड़ते रास्ता दिखाता चला। राजा वंदिनी और चित्रांगी दोनों को साथ लिए महल की ओर चलने लगे। चित्रांगी और वंदिनी दोनों को आज सहेली मिल गई थी। आनंद को भी गौरेया दोस्त मिल गई। अब कोई अकेला नहीं रहा।

तो केसी लगी यह Rajkumari Ki Kahani आप सभी को। उम्मीद है कि यह Rajkumari Ki Kahani आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। ऐसे ही rajkumari ki kahaniyan in hindi में पढ़ने के लिए हमारे website पर आते रहे।

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