दोस्तों आज हम आपको बताने जा रहे है एक New Hindi Kahani की जो moral story है। इसका शीर्षक ‘वनराज की महानता’ है। दोस्तों यह कहानी वनराज तथा उसकी महानता, दयालुता, विनयशीलता परोपकार आदि का वर्णन मिलता है। यह New Hindi Kahani आप सभी को पढ़नी चाहिए तथा दुसरो को भी इस कहानी की विशेषता बताइए। दोस्तों आप सभी इस कहानी को अपने बच्चो, रिश्तेदारों को भी बताइएं।
वनराज की महानता
(New Hindi Kahani)
वनराज भूपति आनंदवन में ही नहीं, दूर-दूर के वनों में भी अत्यधिक लोकप्रिय थे। गुण ही होते है जिनके कारण दूसरे हमे स्नेह करते और सम्मान देते है। वनराज तो सद्गुणों का खजाना ही था। लगता था मानो सभी सद्गुणों ने उनमे ही आश्रय ले लिया हो, सूक्ष्म दृष्टि, सतत परिश्रम, गहन ज्ञान, आदर्शवादिता , परोपकार, विनयशीलता, सरल निश्छल स्वभाव आदि अनेकों दुर्लभ गुण उन अकेले में थे।
उनके इस अनुपम व्यक्तित्व के कारण ही आनंदवन के प्राणी उन्हें प्राणों से भी अधिक प्यार करते थे। वे उनके हृदय की धड़कन थे, आँखों के तारें थे। अपने प्रिय राजा की आज्ञा पर वे प्राण भी होम देने के लिए सदा तैयार रहते थे। धन्य है वे, जिनके चरणों में असंख्य श्रद्धा सुमन चढ़ते है।
यह संसार सज्जन और दुर्जन दोनों प्रकार के प्राणियों से भरा पड़ा है। दुष्ट व्यक्ति न तो दूसरों के हित के लिए कार्य ही कर सकते है और न ही समाज का उत्थान करने वालो की प्रशंसा ही सह सकते है। सत्वृत्तियों में विघ्न पहुँचाना उनका स्वभाव होता है। वनराज के कार्यों में भी अनेक दुष्ट प्राणी बाधा डाला करते थे।
आनंदवन से ही कुछ दूरी पर कंटककानन था। वहां दुर्मुख नाम का एक वानर रहा करता था। वह बड़ा ही स्वार्थी और धूर्त था। वह चाहता था कि सभी उसकी पूजा करे, पर उसे निराश ही होना पड़ा, क्योंकि संसार गुणों की पूजा करता है। दुर्मुख भी अधिक समय तक जानवरों को बुध्दू न बना सका। जब कोई सम्मान देने के लिए तैयार न हुआ तो उसने दूसरा रास्ता अपनाया जोर-जबरदस्ती का।
उसने लालच देकर कुछ साथी बना लिए। वे जबरदस्ती उसकी पूजा कराने की कोशिश करते रहते थे, पर इसके लिए भी कोई तैयार नहीं होता था। गुणहीन को भला कोई क्यों सम्मान देगा ? परन्तु दुर्मुख के शिष्यों ने इसका उल्टा ही अर्थ लगाया। उन्होंने सोचा कि पशु-पक्षी सभी वनराज से प्रभावित है। अतएव जब तक वहां वनराज का प्रभाव रहेगा तब तक दुर्मुख का सम्मान नहीं होगा।
दुष्ट व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए बुरे साधनो का प्रयोग करने से भी नहीं झिझकते। अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए उस समय जो उन्हें अच्छा लगता है वही करते है। इससे दूसरों का तो अहित होता ही है, बुरा करने वाला स्वयं भी नष्ट हो जाता है। परिणाम पर बिना विचार किए हुए उस समय तो वह आवेश में कार्य करता है, अंत में पछताता है। दुर्मुख के साथ भी यही हुआ।
उसने वनराज को अपने रास्ते का कांटा समझकर उसे हटाने का उपाय सोचा। दुर्मुख का एक शिष्य था कालू। जैसा उसका नाम था ‘कालू ‘ वैसा ही वह दिल का भी काला और दुर्गुणी था। मार-पीट , लूटपाट , हिंसा आदि उसके बाएं हाथ का खेल था। कालू ने प्रतिज्ञा की कि इस कार्य को वह पूरा करेगा।
कालू सोचता विचरता आनंदवन की ओर बढ़ा। संयोग की बात कि बबूल की झाड़ियों के पास एक तेज धारवाला चाकू पड़ा मिल गया था। कोई मनुष्य उसे भूल से वहां छोड़ गया था। कालू ने इधर-उधर देखा और उठाकर चुपचाप अपने झोले में डालकर छिपा लिया।
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अब कालू जल्दी से वनराज की गुफा की ओर बढ़ा। वनराज प्रजा के हित-चिंतन में तल्लीन थे। कालू ने दबे पांव उनके पीछे जाकर खड़ा हो गया। उसने आव देखा न ताव और वनराज पर पूरी शक्ति से चाकू से प्रहार कर दिया। वनराज पलटे, देखा तो सामने खूंखार बना कालू खड़ा है। वे चाहते तो उसे एक ही झटके में समाप्त कर सकते थे, पर वे तो उदारता के सागर थे। किसी के अहित की बात वे सोच भी न सकते थे फिर किसी को मारने की तो बात ही क्या? उन्होंने शैतान बने कालू से कहा — ‘पागल यह क्या करता है ?’
पर कालू तो उस समय पूरा पिशाच बन चूका था। वह जितनी जोर से चाकू चला सकता था , चलाता रहा। वनराज अपने पंजो पर उसके घातक प्रहारों को झेलते रहे, समझाने को प्रयास करते रहे। जब सर पर शैतान सवार होता है तो उस समय अच्छाई उसके सामने प्रभावहीन हो जाती है। कालू तो मनो वनराज की बात सुन ही नहीं रहा था। उसके पेट पर , गर्दन पर, सीने पर और पंजो पर पूरी निर्दयता और नृशंसता से चाकू चला रहा था।
अंततः वनराज ने उस दुष्ट के साथ शक्ति का प्रयोग करना ही उचित समझा उन्होंने उसे जोर से गुफा के द्वार की ओर धकेला और चिल्लाए — ‘भाग जा ! तुरंत भाग जा तू यहाँ से। यदि मेरे अंग-रक्षकों के हाथ पड़ गया तो तेरी एक बोटी भी न बचेगी।’
बुराई अच्छाई पर पूरी शक्ति से प्रहार करती है , पर फिर उसके सामने अंत में हार भी जाती है। कालू ने अब वनराज की पहली बात सुनी। वह चाकू वही छोड़कर तेजी से भागा। गुफा के द्वार पर बैठे वनराज के अंग रक्षकों को कालू के यों भागने से आश्चर्य तो हुआ, पर इस भयंकर हमले वाली बात की तो वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
तभी सहसा वनराज की पत्नी रानी ने गुफा में प्रवेश किया। अंदर का वीभत्स दृश्य देखकर वह स्तब्ध रह गई। उनके हृदय की धड़कन बढ़ने लगी। गुफा में खून की नदी बह रही थी। खून से नहाये उनके पति वनराज वहां लेटे थे। बस इतना ही उनके मुँह से निकला — ‘ओह स्वामी ! यह क्या ?’
‘घबराओ नहीं, अभी ठीक हुआ जाता हूँ। ‘ वनराज उनके सिर पर सान्तवना भरा हाथ फिराते हुए बोले। इतने घातक प्रहारों के बाद भी उस मनस्वी वनराज के मुख पर पीड़ा का , उद्वेग का चिन्ह तक न था।
रानी ने बिना समय खोए बाहर बैठे अंग रक्षकों को पुकारा। अंदर का दृश्य देखकर वे कांप उठे। केलो हिरणी भागती चली गई और भालू डॉक्टर को दुर्घटना की सारी बात बताई। भालू अपने साथियों के साथ वहां दौड़ा चला आया। सभी ने मिलकर कई घंटों तक वनराज का उपचार किया, तक कहीं जाकर खून बहना बंद हुआ।
उधर वनराज की प्रजा में भी इस प्राणघातक हमले की बात फैल गई। जो जैसा बैठा था भागा चला आया। असंख्य जानवर गुफा के द्वार पर अपने प्राणप्रिय राजा का समाचार जानने के लिए आतुर खड़े थे। वे सभी भगवान से प्रार्थना कर रहे थे — “हे प्रभु ! तुम हम सब के प्राण ले लो और हमारे प्रिय महाराज वनराजजी को दीर्घायु दो।”
वनराज के सेनापति गजराज ने जब से पूरी घटना जानी थी उन्हें चैन न था। उसके और पूरी सेना के रहते हुए कोई वनराज पर इस प्रकार आक्रमण कर जाए, यह उनके लिए बड़ी लज्जा की बात थी। उन्होंने हमलावर को खोजने के लिए तुरंत अपने जासूस सिपाहियों को भेजा। सिपाहियों ने सुराग लगाकर दूर के एक जंगल से दो दिन बाद आखिर कालू को पकड़ ही लिया।
अपराधी कालू को वनराज के सामने प्रस्तुत किया गया। आज वह उनसे आँखें न मिला पा रहा था। वनराज ने अपनी बड़ी-बड़ी स्नेहभरी आँखों से देखते हुए पुकारा — ‘कालू ! इधर आओ।’
‘अब तो मैं मरूंगा ही।’ यह सोचते हुए कालू धीरे से वनराज की ओर आगे बढ़ा।
पर यह क्या ? वनराज ने तो पट्टी बंधे अपने घायल पंजों से उसके हाथों को पकड़ा, हृदय से लगाया और चुम लिया। उसे एकटक देखते हुए वे बोले — ‘कालू ! धन्य हो तुम, धन्य है तुम्हारी स्वामिभक्ति। तुमने अपने प्राणों तक की परवाह न की। अपने राजा की बिना आज्ञा से तुम इस जोखिम भरे काम में साहसपूर्वक बिना कुछ सोचे-समझे जुट गए।’
वनराज की बात सुनकर कालू आश्चर्य से खड़ा का खड़ा रह गया। प्राणघाती से भी इस प्रकार स्नेहयुक्त व्यवहार करना ? उसकी आँखों के आगे रह-रहकर वनराज पर अपने चाकू चलाने के दृश्य याद आ रहे थे। वनराज ने पुनः उसे स्नेह से निहारते हुए पुकारा। अब कालू अपने आप पर नियंत्रण न रख सका। वह फफक-फफककर रो उठा। वह वनराज के चरणों में लिपट गया और बोला — ‘आप देवता हो। मुझे यों क्षमादान न दो, लज्जित न करो। मुझे कठोर से कठोर दंड दो, नहीं तो मेरी अंतरात्मा मुझे हर पल धिक्कारेगी।’
‘कालू ! वही तो तुम्हारा वास्तविक दंड होगा।’ वनराज ने गंभीर वाणी में कहा।
फिर वनराज ने गजराज को बुलाया। उसे कालू की सुरक्षा और सम्मान पूर्वक आनंदवन की सीमा के पार छोड़ने की आज्ञा दी।
गुफा के बाहर वनराज की प्रजा क्रोध से खूंखार बनी खड़ी थी, वह अपने प्राणप्रिय महाराज पर घातक हमला करने वालों की बोटी-बोटी नोंच लेने के लिए आतुर थी। गजराज ने बाहर निकलकर सभी जानवरों को सबसे पहले राजा की आज्ञा सुनाते हुए कहा — ‘खबरदार-होशियार ! कोई भी महाराज की आज्ञा विरुद्ध न जाए। कालू को किसी ने छुआ भी तो बहुत बुरा होगा। उसके शरीर पर एक खरोंच भी आई तो वे बहुत नाराज होंगे।’
लाचार सभी उस हत्यारे को जाते हुए देखते रहे। वे उत्तेजना से कसमसा रहे थे, परन्तु राजा की आज्ञा के विपरीत कुछ करने का प्रश्न ही नहीं उठता था। उनके सिर वनराज की महानता के प्रति असीम श्रद्धा से झुक गए। सामान्य प्राणी तो अपना जरा-सा अहित करने वालों के भी शत्रु बन जाते हैं, परन्तु उन्होंने प्राणघाती को क्षमादान दिया था। निस्संदेह महान आत्माएं ही इतनी उदार होती है।
पाप करने वाला उसके परिणाम को उस समय भूल जाता है। वह सोचता है कि कौन है जो मुझे दंड देगा ? पर इस दिखाई देने वाले संसार से परे कोई ऐसी शक्ति है जो प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार फल देती है। भगवान् के यहाँ देर हो सकती है , पर अंधेर नहीं। कालू और दुर्मुख भी इस ईश्वरीय विधान से बचकर आखिर कहाँ जाते ? दूसरे दिन दुर्मुख अपने साथियों के साथ पेड़ पर बैठा हुआ किसी षड्यंत्र की योजना बना रहा था।
कालू भी अन्यमनस्क-सा पीछे की डाल पर बैठा था कि सहसा ही तूफान आया , जोर से बिजली कड़की और पेड़ पर गिर गई। सभी पलभर में जलकर भस्म हो गए, उनका नाम-निशान भी न रहा। असुरता देवत्व के विरोध में कोई कसर नहीं रखती, पर विजय देवत्व की ही होती है। असुरता तो अपने पाप से एक न एक दिन स्वयं जलकर नष्ट हो जाती है। इस घटना के बाद वनराज भूपति की कीर्ति और दूर-दूर तक फैल गई। उसकी महानता के आकर्षण से खींचे अनेक प्राणी आनंदवन में आने लगे।
तो दोस्तों कैसी लगी यह New Hindi Kahani की। हमे उम्मीद है आप सभी को यह कहानी पढ़कर कुछ सीख अवश्य मिला होगा। दोस्तों ऐसे ही New Hindi Kahani अर्थात वनराज की महानता जैसी कहानियां पढ़ें हमारी वेबसाइट में और यह कहानी कैसी लगी हमे comment करे।
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