शालू बकरी | Bakri ki Kahani Hindi

दोस्तों आज हम आप सभी को Bakri ki Kahani Hindi बताएंगे। यह कहानी शालू नामक बकरी की कहानी है। दोस्तों यह Bakri ki Kahani एक शिक्षाप्रद कहानी है। आप सभी इसे पढ़े और अपने दोस्तों रिश्तेदारों को share करें।

शालू बकरी

Bakri ki Kahani Hindi

शालू बकरी की माँ रोज सुबह जंगल की ओर चली जाती थी। घर पर रह जाती थी अकेली शालू । शालू का मन करता था कि वह भी बाहर घूमे । शालू चाहती थी कि उसके भी मित्र बनें, पर शालू की माँ की आज्ञा थी कि वह घर से बाहर कहीं भी न जाये । उसकी माँ कहती थी कि वह अभी छोटी है और घर से बाहर निकलने पर उसकी सुरक्षा नहीं है । उसे कालू भेड़िया खा सकता है, भासुरक सिंह पकड़ सकता है और भी न जाने किस-किस के नाम माँ गिनाती थी । । इन सबसे शालू बकरी इतनी डर गयी थी कि वह घर से बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं करती थी ।

एक दिन माँ ने शालू को डाँट दिया । शालू मन ही मन खूब गुस्सा हुई । सोचने लगी- ‘ठीक है आज मैं बाहर चली चाऊँगी । आज मैं माँ की बात नहीं मानूँगी ।’

उस दिन माँ के घर से निकलते ही शालू भी गुफा से | बाहर आ गयी । आज घूमकर मानो माँ से बदला लेना चाहती थी। उसे उसकी माँ ने डाँटा जो था ।

शालू बकरी को गुफा से बाहर निकलकर बहुत अच्छा लगा । ठण्डी-ठण्डी हवा बह रही थी । मीठी-मीठी खुशबू आ रही थी । हरे-भरे वृक्ष खड़े थे । उसने जी भरकर ताजी-ताजी पत्तियाँ खूब ही खायें । फिर वह ठण्डा – ठण्डा पानी पीने एक झरने पर चली गयी ।

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झरने पर भेड़ का बच्चा भी बैठा था । शालू ने उससे नमस्ते की, फिर पानी पिया । भेड़ के बच्चे ने पूछा- ‘तुम यहाँ रोज आती हो क्या ? क्या नाम है तुम्हारा ?’

‘मेरा नाम शालू है । मैं आज यहाँ पहली बार आयी हूँ। मेरी माँ मुझसे घर से निकलने को मना करती है ।” शालू यह सब एक साँस में कह गयी ।

‘ओह ! मेरी माँ भी मुझसे रोज मना करती है, पर मैं तो हर रोज घूमने आता हूँ । उन्हें पता भी नहीं लगता । खुली हवा में घूमने से मेरी सेहत भी अच्छी हो गयी है ।’ भेड़ का बच्चा शान से अपने शरीर पर निगाह डालते हुए बोला ।

शालू ने भी अपने शरीर पर निगाह डाली । वह तो बहुत ही दुबली-पतली थी। तभी भेड़ का बच्चा तुरन्त बोल उठा- ‘शालू ! तुम भी इसी तरह रोज-रोज घूमने आया करो । मेरी ही भाँति खूब मोटी हो जाओगी ।”

‘पर मेरी माँ तो मना करती है ।’ शालू बोली ।

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‘ओह ! तो माँ के पीछे आ जाया करो | मैं भी तो ऐसा ही करता हूँ।’ भेड़ के बच्चे ने समझाया ।

अब तो शालू हर रोज यह प्रतीक्षा करती थी कि कब माँ घर से निकले और कब वह बाहर जाये । माँ को उसने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया था ।

तीन-चार दिन तक दोनों सुरक्षित घूमते रहे । अब उनका भी साहस बढ़ गया था । दोनों ही सोचते थे कि अब हम बहुत होशियार हो गये हैं । हम जब चाहें कहीं अकेले आ-जा सकते हैं । अब वे दूर-दूर तक घूमने जाने लगे ।

एक दिन दोनों घूमते-घूमते अचानक शेर की गुफा की ओर जा पहुँचे । वहाँ शेरनी अपने चार छोटे-छोटे बच्चों को शिकार करना सिखा रही थी। उसका सबसे छोटा बच्चा । शालू को देखकर बोला-माँ ! इस पर बार करके बताओं ।’ तब तक शेरनी के दूसरे बच्चे ने अपने पंजे से उस पर प्रहार कर दिया ।

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यह देखकर भेड़ का बच्चा शालू चुपचाप वहाँ से भाग गया । आपत्ति में पड़े मित्र की ओर से उसने मुँह फिरा लिया।

उस दिन शेर का बच्चा शालू बकरी को फाड़ ही डालता, पर उसके सौभाग्य से तभी शेर आ गया । वह एक बड़ा-सा भेड़िया घायल करके लाया था । शेरनी और उसके बच्चों का सारा ध्यान उस ओर बँट गया । शालू बकरी सबकी आँच बचाकर चुपचाप ही वहाँ से खिसक आयी ।

पेड़ों की आड़ में छिपती हुई, सिर पर पैर रखकर वह तेजी से भागी जा रही थी । उसका नन्हा दिल भय के कारण तेजी से धड़क रहा था । उसकी पीठ से खून निकल रहा था । जैसे-तैसे वह झरने के किनारे पहुँची । वहाँ भेड़ का बच्चा पहले से ही बैठा था । उसे देखकर शालू ने मुँह फिरा लिया । भेड़ का बच्चा बोला-‘मैं तो तुम्हें उससे बचा नहीं सकता था । इसलिए मैं हाथी दादा को बुलाने आया था ।’

शालू बोली– ‘रहने दो भाई ! अब झूठ बोलने की जरूरत नहीं । सच्चा मित्र वही है जो मुसीबत में काम आता है । जो अपने साथी को दुःख मुसीबत में छोड़कर चला जाता है, वह नीच है, दुष्ट है, कायर है । ऐसे मित्र से तो मित्र का न होना ही अच्छा है । आज से हमारी तुम्हारी मित्रता खत्म हुई ।’

इतनी ही देर में झाड़ियों के पीछे से श्यामा बिल्ली निकल आई। वह भेड़ के बच्चे की ओर इशारा करते हुए बोली– ‘तुम ठीक ही कह रही हो । यह तो दोस्ती के लायक है ही नहीं। इसने मेरे से भी धोखा किया है।

श्यामा ने शालू की पीठ का खून झरने से पानी ला-लाकर धोया । फिर पेड़ों की पत्तियाँ रखकर पट्टी बाँधी । तब कहीं जाकर खून निकलना बन्द हुआ । श्यामा शालू को घर तक छोड़कर आयी । शालू मन में सोच रही थी– ‘श्यामा मुझसे अपरिचित है। फिर भी मेरी कितनी सहायता कर रही है । यह तो इसकी बड़ी महान् सज्जनता है । सज्जनता और मधुरता का व्यवहार ही दूसरे को अपना मित्र बनाते हैं ।’

शालू को घर छोड़कर श्यामा लौट आयी । शालू की माँ आई तो बोली– ‘मुझे रास्ते में ही पता लग गया था कि आज हमारी बिटिया घूमने निकली थी और बच कर आ गयी है ।’

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शालू माँ के पैर पकड़कर बोली– मुझे माफ कर दो माँ। अब बिना आज्ञा लिए मैं कहीं नहीं जाऊँगी।

‘शालू ! जो बच्चे अपने माता-पिता का कहना नहीं मानते वे हमेशा दुःख पाते हैं । हम डाँटते हैं तो तुम्हारे भले के लिये हो डाँटते हैं । जो बच्चे अपने माता-पिता का कहना मानते हैं वे ही अच्छे बनते हैं।’ शालू की माँ उससे कह रही थी ।

“माँ मैं अब सदा तुम्हारा कहना मानूँगी। अब मैं अच्छी बनूँगी ।’ शालू माँ से लिपटते हुए बोली ।

अब शालू सदा अपनी माँ का कहना मानती है । श्यामा बिल्ली अब उसकी पक्की सहेली बन गयी है और उसके घर आती-जाती रहती है ।

दोस्तों कैसी लगी Bakri ki Kahani Hindi अर्थात शालू बकरी कहानी आप सभी को। हमें उम्मीद है यह Bakri ki Kahani Hindi आप सभी को पसंद आयी होगी। दोस्तों ऐसे ही Hindi Kahani जैसी अनेकों कहानियां हमारे वेबसाइट पर उपलब्ध है उन्हें भी पढ़िए और यह कहानी कैसी लगी comment जरूर करें।

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