आज हम आपको एक सियार की कहानी ( Siyar ki kahani) बताएंगे जिसमे सियार और सियारिन और शेर तथा बन्दर भी शामिल है। इस Siyar ki kahani में सियार की बुद्धि का सही उपयोग करना सबसे बड़ा औजार है।
सुनते हो, दल भंजन जी
Ek Siyar ki kahani
एक था सियार और एक थी सियारिन। जब सियारिन के बच्चे होने का समय आया, तो उसने सियार से कहा, “मुझे बच्चे जनना है। मेरे लिए कोई अच्छी -सी गुफा खोज लो। “
सियार उसे शेर की गुफा के पास ले गया और बोला, “देखो, यह गुफा है। तुम इसमें रहो। “
सियारिन बोली, “लेकिन यह तो शेर की गुफा है। इसमें हम कैसे रह सकते है ? जब शेर आएगा तो हमको और बच्चो को भी खा जायेगा ?”
सियार ने कहा, “तुम्हे इससे क्या मतलब ?तुम तो गुफा में बच्चे जनो। जो मैं कहूंगा, वही तुम कहोगी तो कोई मुश्किल नहीं होगी। “
सियारिन ने गुफा में बच्चे दिए। नन्हे-नन्हे सुन्दर पैदा हुए।
siyar ki kahani
कुछ देर बाद शेर आता दिखाई दिया। सियार गुफा के मुँह पर ही बैठा था। जब वह गए के पास पहुंचा, तो दोनों ने पहले से जो बात सोच रखी थी, उसके हिसाब से आपस में बात करने लगे :
सुनते हो, दल भंजन जी ?
क्या कहती हो, आगबैताल जी ?
ये बच्चे क्यों रो रहे है ?
शेर के कलेजे के लिए।
सुनकर शेर चौंक गया। इतने में सियार बोला, “देखो, यह शेर आ ही रहा है। मैं अभी इसका कलेजा ले आता हूँ। “
शेर ने मन-ही-मन सोचा ‘लगता है, मुझसे कोई बड़ा जानवर इस गुफा में आकर बैठ गया है। इसके बच्चे मेरे कलेजे के लिए रो रहे है। पता नहीं, वह कितना बड़ा होगा ?’
शेर वहा से भाग गया। रास्ते में उसे एक बन्दर मिला। पूछा, “शेर भैया, इतना तेज कहाँ भागे जा रहे हो ?”
शेर बोला, ” क्या कहूं ! मेरी गुफा में कोई आ घुसा है और उसके बच्चे मेरे कलेजे के लिए रो रहे है। कोई जबरदस्त जानवर मालूम होता है। मैं तो अपनी जान लेकर भाग आया हूँ। “
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बन्दर ने कहा, “तुम यह क्या कह रहे हो ? भला शेर से बड़ा और कौन हो सकता है ? आओ, हम पता लगावें। “
शेर ने बन्दर से कहा, “नहीं भाई नहीं मुझे नहीं पता करना कुछ मुझे अपनी जान प्यारी है। “
बन्दर ने कहा, “जरा मेरे साथ चलो। तुम्हारी गुफा में तो सियारिन ने अपने बच्चे दिए है। मुझे पता है। “
शेर बोला, “नहीं, नहीं ! मैं तो नहीं चलूँगा। “
बन्दर ने शेर से बोला, “शेर भैया डरते क्यों हो आप तो राजा हो जंगल के चलो आओ हम एक दूसरे के पूँछ बाँध ले फिर चलते है । “
siyar ki kahani
शेर और बन्दर ने अपनी-अपनी पूँछ आपस में बाँध ली और दोनों गुफा की तरफ चले। दूर से शेर और बन्दर को आते देखकर सियार ने फिर कहा, ”
सुनते हो, दल भंजन जी ?
अंदर से जवाब आया,
” क्या कहते हो , आगबैताल जी ?”
सियार ने कहा, “बच्चे क्यों रो रहे है ?”
गुफा में बैठी सियारिन बोली, “शेर के कलेजे के लिए। “
सियार ने ऊँची आवाज में कहना शुरू किया :
हमारा दोस्त बन्दर आ रहा है।
वह शेर का कलेजा ला रहा है।
शेर बोला, “हाय राम ! मैं तो बे-मौत मरा ! लगता है कि यह बन्दर इनका दोस्त है और मुझे ललचा-फुसलाकर मौत के घाट उतारना चाहता है !”
यह सोचकर शेर ने जो जान लेकर भागा। बन्दर उसके पीछे-पीछे घिसटता चला। बन्दर बेचारा क्या करता ! उसने शेर की पूँछ के साथ अपनी पूँछ बाँध राखी थी, इसीलिए वह और जाता कहाँ ? आगे-आगे शेर और पीछे-पीछे बन्दर। दोनों दूर, बहुत दूर चले गए।
फिर तो सियार और सियारिन उस गुफा में आराम से रहने लगे।
तो दोस्तों कैसी लगी यह छोटी सी कहानी(Siyar ki kahani) उम्मीद करते है कि सभी को यह पसंद आयी होगी ऐसे ही कहानी के लिए एक छोटा सा comment कर हमारा उत्साह बढ़ाये।
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