निडर बकरी और अहिंसक शेर | Sher aur Bakri ki Kahani

आज हम आपको एक प्राचीन कहानी Sher aur Bakri ki Kahani बताएंगे। यह कहानी एक निडर Bakri और अहिंसक Sher की है। इस कहानी में यह दोनों sher aur bakri अपने आप में ही बुद्धि के प्रयोग करने में सक्षम है। तो आप इस bakri aur sher ki kahani को पढ़िए और इसका आनंद लीजिए।

निडर बकरी और अहिंसक शेर

(Sher aur Bakri ki Kahani)

प्राचीनकाल में पुरन्दरपुर नाम का एक नगर था। उस नगर में देवशर्मा नाम के ब्राह्मण रहते थे। वे विद्वान और आचरणवान थे। वे मेहमानों का सत्कार करते और निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करते थे। फिर भी उनका मन बेचैन रहता, वे स्वयं नहीं समझ पाते थे कि आखिर यह बेचैनी क्यों और किसलिए है ? एक दिन सौभाग्य से उनके यहाँ एक महात्मा पधारे। देवशर्मा ने उनसे अपनी बेचैनी बतलायी। महात्मा जी ने बतलाया कि सौपुर ग्राम में मित्रवान नामक एक चरवाहा रहता है, वह बकरियां चराता है, उसमे अद्भुत शांति है, वह आपको उपदेश दे सकता है। देवशर्मा ने महात्मा जी को आदरपूर्वक विदा किया और सौपुर ग्राम की ओर रवाना हो गए।

सौपुर ग्राम के निकट एक विशाल वन था , उस वन में एक नदी थी। उस नदी के मैदान में बकरियां चर रही थी और एक चट्टान पर चरवाहा मित्रवान बांसुरी बजाता हुआ बैठा था। उसके चेहरे पर आनंद और शांति विराज रहे थे। मित्रवान ने खड़े होकर देवशर्मा का सत्कार किया। देवशर्मा ने मित्रवान से अपने आगमन का प्रयोजन बतलाया। देवशर्मा की बता सुनकर मित्रवान ने कहा।

Sher aur Bakri ki Kahani

विद्वान ! एक समय की बात है, मैं सघन वन में बकरियों की रक्षा करता हुआ उन्हें चरा रहा था। इतने में एक भयंकर शेर पर मेरी दृष्टि पड़ी। लगता था जैसे वह सारी बकरियों और मुझे एक ही निवाले में ग्रस लेना चाहता था। मुझे मृत्यु से डर लगता था। इसलिए मैं खड़ा-ही-खड़ा पीला पड़ गया और पड़कर पतझर के पत्ते की तरह कांपने लगा। शेर को आता देखकर मैंने बकरियों के झुण्ड को आगे किया और भागने की सोचने लगा।

इतने में एक बकरी निडर होकर एकदम एकदम बेरोक-टोक शेर के पास जा पहुंची और बोली, “वनराज, तुम्हारा मनचाहा स्वादिष्ट भोजन तुम्हारे सामने स्वयं उपस्थित है , मेरे शरीर में पर्याप्त मांस है, तुम खड़े-खड़े क्या देख रहे हो, क्यों नहीं भोजन करते ?” शेर बोला, “बकरी, इस स्थान पर आते ही मेरे मन से वैर-भाव निकल गया है। भूख-प्यास भी नहीं रही। इसलिए तुम्हे सामने पाकर भी मैं तुम्हारा भोजन नहीं कर रहा हूँ। “

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बकरी ने कहा, “पता नहीं क्यों मैं तो एकदम ताकतवर महसूस कर रही हूँ ? इसमें क्या कारण हो सकता है , वनराज यदि आप जानते हो तो कृपया बतलाएं। ” यह तो मैं भी नहीं जानता, चलो तुम लोगो के झुण्ड के पीछे खड़े उस व्यक्ति से पूछा जाए। ” इतना कहकर वे दोनों मुझ तक चले आये, मैं भी उनके स्वभाव में अद्भुत परिवर्तन देखकर आश्चर्यचकित था। मित्रवान ने कहा।

उनके पूछने पर मित्रवान ने कहा , “यह तो मुझे भी नहीं मालूम , सामने वृक्ष की शाखा पर जो वानरराज बैठा है, उससे पूछा जाए। ” इसके बाद मित्रवान बकरी और शेर वानरराज के पास पहुंचे अपना प्रयोजन बतलाया। उनकी बाते सुनकर वह वानर बोला, “आप लोगो को मैं प्राचीन काल का एक वृत्तांत सुनाता हूँ। ”

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इस सामने वाले सघन वन में एक विशाल शिव मंदिर है। यह मंदिर ब्रह्माजी द्वारा स्थापित है। इस मंदिर में सुकर्मा नामक एक भलेमानस ब्राह्मण रहते थे। वे शंकरजी की आराधना किया करते थे, एक दिन उनके सौभाग्य से वहां एक महात्मन पधारे।सुकर्मा ने उनसे उपदेश देने का आग्रह किया। उन्होंने कृपापूर्वक एक शिलाखंड पर गीता का दूसरा अध्याय लिख दिया और प्रतिदिन उसके पाठ का आदेश दिया। उसी के फल स्वरुप सुकर्मा , वानरराज को निर्भयता और शांति मिली, और वह यहाँ के वातावरण में इस कदर रम गयी कि बकरी को निर्भयता , सिंह को अहिंसा और इस मित्रवान को असीम शांति मिली।

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