मित्र की पहिचान | Friendship Story Hindi

दोस्तों आज हम आप सभी के लिए Best Friendship Story Hindi जिसका शीर्षक “मित्र की पहिचान “लेकर आये है। यह कहानी एक चूहे की है। दोस्तों यह Friendship Story Hindi मजेदार कहानी है। आप सभी इस Best Friendship Story Hindi “मित्र की पहिचान ” को पढ़िए और दूसरों को भी share करिए।

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मित्र की पहिचान

(Friendship Story Hindi)

अमरकण्टक वन में एक पेड़ के नीचे रानी चींटी का घर था । एक बार अमरकण्टक वन में अकाल पड़ा । उसकी वजह से जीव-जन्तुओं को खाना मिलना भी मुश्किल हो गया । रानी की सारी सेना, सारे ही परिवार के सदस्य उस अकाल में मर गये । रह गयी अकेली रानी चींटी ।

पहले तो रानी बड़ी ही उदास उदास रहती थी । फिर एक दिन वह सोचने लगी कि जो मुसीबत आने वाली है, वह तो आयेगी ही । आपत्ति को यदि हँसते-हँसते सहा जाये तो कठिनाई कम होती है । मुसीबत में साहस खोने पर और अधिक पेरशानी ही बढ़ती है । फिर मैं अपना धैर्य क्यों खोऊँ ? जीना है तो हँसते-हँसते ही जीऊँ, बहादुरी से जीऊँ । जो होना था वह तो हो ही गया ।’

रानी ने यह भी सोचा था कि अब अमरकण्टक छोड़कर और कहीं चला जाये । यहाँ परिवार का कोई और सदस्य तो बचा नहीं है । उल्टे यहाँ रहने से मित्रों की याद और सताती रहती है ।

रानी चींटी अपना घर छोड़कर चल दी । चलते-चलते वह अमरकण्टक वन से बहुत दूर चली गयी । रास्ते में उसने अनेक नगरों को पार किया। शहर की हलचल में रानी का मन लगता न था । इसलिये उसने सतपुड़ा की पहाड़ियों पर निवास करना ही पसन्द किया ।

एक दिन सुबह-सुबह रानी सतपुड़ा के पहाड़ी प्रदेश पर पहुँची । रानी के प्रवेश करते ही एक चींटी मिली । वह कहने लगी- ‘तुम कहाँ से आ रही हो बहिन ? लगता है बड़ी थकी हुई हो, आओ मेरा आतिथ्य स्वीकार करो ।’

रानी बतलाने लगी- ‘मैं अमरकण्टक वन से आ रही हूँ । कई दिनों से लगातार यात्रा कर रही हूँ मेरे सभी सम्बन्धी मर चुके हैं। अब तो तुम मेरी सहेली ही बन जाओ जिससे मुझे भी कुछ राहत और खुशी होगी !’

दूसरी चींटी कहने लगी- ‘तुम्हें अपनी सहेली बनाकर मुझे भी खुशी होगी । मुझे संगीता कहते हैं चलो तुम मेरे घर चलो, वहीं पर रहना ।’

रानी ने आगे बढ़कर अपना मुँह संगीता के मुँह मिलाया और दोनों मित्र बन गयीं ।

घर पहुँचकर संगीता ने एक विशेष प्रकार की ध्वनि की । तब उसकी सारी सेना और परिवार के लोग इकट्ठे हो गये । संगीता ने उन सभी से अपनी नई सहेली का परिचय कराया । सभी रानी से मिलकर बड़े ही खुश हुए ।

अंब रानी और संगीता साथ-साथ रहने लगीं । वे साथ-साथ काम करती थीं और साथ-साथ ही घूमती थीं । रानी ने संगीता को नई-नई चीजें दिखायी थीं, जैसे कि नये तरीके से घर बनाना, बच्चों को अच्छी तरह पालना आदि । इन सभी के कारण संगीता और उसकी सेना की सारी चींटियाँ रानी को बड़े सम्मान के साथ देखती थीं। संगीता अपनी सेवक चींटियों से कहती थी- ‘जो जितना गुणवान होता है, उसका उतना ही आदर होता है । अगर तुम दूसरों से सम्मान चाहती हो तो गुणी बनो ।’ वह हमेशा उदाहरण के रूप में रानी का नाम लिया करती थी ।

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एक दिन की बात है कि संगीता और रानी अपनी कुछ सहेलियों के साथ घूमने निकलीं । रास्ते भर वे बड़ी प्रसन्नता से गीत गाती गर्यो । जगह-जगह ठहरकर तरह-तरह का नाश्ता भी करती गयीं । घूमते-घूमते सभी तालाब के किनारे पहुँची । वहाँ एक संजीव नाम का सारस रहा करता था।

वह संगीता का था, उसने संगीता को एक कमल का फूल उपहार में दिया । संगीता ने संजीव सारस को इसके लिये धन्यवाद दिया । संजीव वापस लौट गया । तब संगीता तालाब के किनारे अपनी सहेलियों के साथ बैठकर उस कमल के फूल का पराग खाने लगी । सबने खूब छककर उसकी दावत उड़ायी । इसके बाद वे सारी की सारी चींटियाँ पानी पीने तालाब के किनारे उतरीं ।

और तो सब पानी पीकर ठीक से आ गर्यो । परन्तु संगीता का पैर फिसल गया । वह पानी में गिर पड़ी संगीता चीखने लगी- ‘बचाओ-बचाओ ।”

संगीता की पुकार सुनकर सारी की सारी चींटियाँ तालाब के किनारे पर आ गर्यो । सभी खड़ी खड़ी यही सोचती रहीं कि क्या करें, कैसे इसको बचायें ? नींतू चींटी बोली- ‘चलो कहीं से बड़ा-सा तिनका लायें ।’ हंसू बोली- ‘कहीं से पत्ता खींच लायें ।’

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सभी चींटियाँ आपस में बात कर ही रही थीं कि रानी अपनी जान की परवाह किये बिना पानी में कूद पड़ी । वह एक पत्ते के टुकड़े पर कूदी थी। पूरी बहादुरी से उस पत्ते को धकेलती हुई रानी संगीता के पास ले गयी । फिर अपना हाथ बढ़ाकर तुरन्त उसने संगीता को पत्ते पर खींच लिया । फिर पत्ते को खींचती हुई रानी तालाब के किनारे आ गयी ।

तालाब के किनारे खड़ी सभी चींटियाँ रानी का साहस देखकर हैरान थीं वे अभी सोच ही रही थीं कि रानी अपनी जान की परवाह न करके संगीता को बचा लाई थी ।

सभी चीटियों ने मिलकर उस पत्ते को किनारे पर खींच लिया । जिस पर रानी और संगीता बैठी हुई थीं । थोड़ी देर बाद संगीता पूरी तरह ठीक हो गयी ।

रानी का उपकार देखकर संगीता की आँखों में पानी भर आया था । वह रानी के गले से लिपटते हुए बोली- ‘बहिन । आज तुमने स्वयं को खतरे में झोंककर भी मेरे प्राणों की रक्षा की है । यदि मुझे पानी में तनिक भी देरी हो जाती तो मेरा मरा हुआ शरीर ही शेष रहता ।’

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‘ऐसा न कहो संगीता बहिन ! बुरी बात मुँह से नहीं निकालते ।’ अपने एक हाथ को संगीता के मुँह पर रखकर रानी कह रही थी । ‘मित्र की सहायता करना मित्र का धर्म है । जो समय पड़ने पर मित्र की सहायता नहीं करता, वह सच्चा मित्र नहीं हुआ करता । वह तो मित्र होने का बहाना मात्र ही करता है । तुम्हारे लिये जो कुछ भी मैंने किया है, वह तो मेरा कर्तव्य था । वह सब तो मुझे करना ही चाहिये था ।’

अब संगीता की समझ में आ गया था कि वास्तव में उसकी सच्ची मित्र कौन है । सारी सहेलियों के रहते हुए भी संगीता के आज निश्चित ही प्राण चले जाते, यदि रानी न होती । उस दिन से उसके मन में रानी के प्रति आदर-सम्मान की भावना और अधिक बढ़ गयी है । अब संगीता की सहेलियों की समझ में भी यह बात आ गयी कि मित्र के मुसीबत में पड़ने पर अपने प्राणों की परवाह न करके उसकी रक्षा करनी चाहिये ।

दोस्तों कैसी लगी Friendship Story Hindi अर्थात मित्र की पहिचान कहानी आप सभी को। हमें उम्मीद है यह Friendship Story Hindi आप सभी को पसंद आयी होगी। दोस्तों ऐसे ही Hindi Kahani जैसी अनेकों कहानियां हमारे वेबसाइट पर उपलब्ध है उन्हें भी पढ़िए और यह कहानी कैसी लगी comment जरूर करें।

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