Top 5 Best Hindi Stories for Kids with Moral

आज हम आप सभी को 5 Hindi Stories for Kids with Moral बताने जा रहे है ये Hindi Stories for Kids जो कि आप सभी के लिए नयी hindi kahaniyan पढ़ने के लिए तथा यह आपके बच्चो के लिए भी काफी मजेदार व शिक्षाप्रद है। तो चलिए यह hindi stories with moral को आप सभी पढ़े और इसका आनंद ले।

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1. वफादार बनो , बहादुर बनो

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बड़े गांव में एक विधवा औरत रहती थी। उसका एक बेटा था, जो शिक्षा प्राप्त करके अभी-अभी घर वापिस आया था। उसकी शादी बचपन में ही, पास ही के गांव में हो गयी थी। माँ ने अपने बेटे से कहा कि बेटा अब मैं बूढ़ी हो गयी हूँ। अब तुम अपनी पत्नी का गौना कराके ले आओ। माँ के बार-बार कहने पर लड़का एक दिन अपनी पत्नी को लेने के लिए चला गया। उस समय बड़े गांव व ससुराल के बीच बैलगाड़ी से ही आना-जाना होता था।

ससुराल वालों ने एक-दो दिन मेहमान की खूब खातिरदारी की। लड़के ने जब कहा कि अब कई दिन हो गए है, माँ राह देखती होगी, अब चलने की तैयारी करो तो ससुराल वालों ने मेहमान के साथ अपनी बेटी को विदा कर दिया। रास्ता जंगल से होकर गुजरता था।

दोनों पति-पत्नी जंगल से बैलगाड़ी में बैठे गुजर रहते थे। आस-पास झाड़ व बड़े-बड़े पेड़ खड़े थे। तभी अचानक रास्ते में एक आदमी आया, जो साधू की वेशभूषा में था।

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साधू ने कहा कि मैं कई दिनों से भूखा हूँ, जंगलो में भटक रहा हूँ, खाने को कुछ नहीं मिला। अगर कुछ खाने को हो तो कृपया करके मुझे दे दो। भूख के मारे मेरा दम निकला जा रहा है। लड़का बड़ा दयावान था। उसे साधू पर दया आयी, उसने अपनी पत्नी से कहा कि साधू को टोकरी से निकाल कर खाना दे दो। बैलगाड़ी चल रही थी।

उसकी पत्नी ने कहा कि ये खाना तो मेरी माँ ने बड़े प्यार से हमारे लिए बनाया है और अगर हम इस खाने को इसे दे देंगे तो गांव में जाकर सब कहेंगे कि बहू खाने के लिए कुछ नहीं लायी। लड़के ने कहा इतना सारा सामान खाने का है , इसमें से एक आदमी का खाना निकलने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बेचारा साधू कई दिनों से भूखा है। लड़के ने अपनी पत्नी से सख्ती से कहा तो उसने टोकरी में से चार पूड़ी व सब्जी निकाल कर साधू को दे दी।

लड़का अपनी पत्नी को पहली बार घर ले जा रहा था। उसकी पत्नी आभूषणों से लदी हुई थी। साधू ने देखा कि अब उसने पूड़ी व सब्जी देने के लिए हाथ बढ़ाया है तो साधू ने उसका हाथ पकड़कर खिंचा और उसे अपने कंधे पर रखकर भाग लिया। लड़का भी उसके पीछे दौड़ा। साधू शरीर में काफी स्वस्थ था। काफी झाड़ियां आदि होने की वजह से साधू कही छिप गया।

लड़के ने काफी तलाश किया पर साधू व उसकी पत्नी का कोई पता नहीं चला। फिर लड़के ने सोचा कि पत्नी और उसका जेवर तो हाथ से गए ही अगर मैं इधर-उधर इन्हे ढूंढ़ता रहा और कोई साधू आकर बैलगाड़ी व अन्य सामान को लेकर न चलता बने। वह बैलगाड़ी के पास आया और उसे लेकर अपने घर आ गया।

उसकी माँ ने पूछा बेटा बहू कहा है? तो उसने कहा कि माँ सब कुछ तैयार था ,बहू भी बैलगाड़ी में बैठ गयी थी जैसे ही हम चले, उसके पिताजी की अचानक तबियत खराब हो गयी तो मैं उसे वही छोड़ आया। आठ दिन बाद जाकर ले आऊंगा। उसकी माँ ने कहा कि ठीक किया बेटा। जब इतने दिन से बहू नहीं थी तो आठ दिन और सही।

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आठ दिन बाद उसने अपनी माँ से अच्छा-अच्छा खाना बनवाया और खूब खाया। मन-ही-मन सोच रहा कि हो सकता है अब वापिस न आया जाये। फिर वह तलवार लेकर चल दिया। कुछ दूर ही चला था कि पीछे मुड़कर देखा कि उसका पालतू कुत्ता उसके पीछे-पीछे आ रहा है।

उसने कंकड़ उठाकर उसे भगाया कहा कि मैं तो मरने जा ही रहा हूँ , तू क्यों मेरे पीछे आ रहा है ? उसका कुत्ता वापस हो गया। थोड़ी देर बाद उसने पीछे देखा तो उसका कुत्ता पीछे-पीछे आ रहा था। उसने फिर भगाया। कई बार भगाने के बाद भी वह नहीं माना तो उसने कहा नहीं मानता तो तू भी मर, आ जा मेरे साथ चल।

थोड़ी देर में वह उसी जंगल में पहुँच गया जहाँ पिछली बार उसे साधू मिला था। उसने साधू व अपनी पत्नी को ढूंढ़ना शुरू किया। ढूंढ़ते-ढूंढ़ते उसे शाम हो गयी। अचानक उसे एक गुफा दिखाई पड़ी। उसने उसमे झांक कर देखा तो साधू सोया हुआ था और उसको पत्नी उसका सिर दबा रही ही। उसने अपनी पत्नी को इशारा किया कि चुपचाप बाहर आ जाओ, चुपचाप दोनों भाग चलते है। लेकिन उसकी पत्नी ने उसका कहना नहीं माना और साधू को जगा दिया।

साधू हट्टा-कट्टा आदमी था। वह लाठी लेकर बाहर आया और उसने पूरे जोर से लाठी लड़के के सिर पर मारी। लड़का लाठी लगते ही गिर गया। वह देख तो सकता था पर खड़ा नहीं हो पा रहा था। तभी कुत्ते ने लपक कर साधू की गर्दन अपने जबड़े में जकड़ ली , साधू जमीन पर गिर गया तो उसकी पत्नी , कुत्ते से साधू को छुड़ाने लगी। और अपने पति को उठाया भी नहीं। तभी उस लड़के को होश आया और वह उठा और उसने तलवार से साधू की गर्दन अलग कर दी।

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फिर उसने अपनी पत्नी से बड़े प्यार से कहा कि साधू ने तुम्हे अपनी लूटी हुई दौलत के बारे में सब बता दिया होगा, जाओ निकाल लाओ फिर घर चलते है। उसकी पत्नी सारा माल निकाल कर ले आयी। फिर लड़के ने कहा कि अब मैं तुम्हे भी मरूंगा क्योंकि तुम अपना विश्वास खो चुकी हो।

तुम फिर किसी मोड़ पर साथ छोड़ दोगी, तुमसे अच्छा तो मेरा कुत्ता है जिसने मेरी जान बचायी और फिर उसने अपनी पत्नी की भी गर्दन काट दी और घर आकर गांववालों को सारा मामला बताया। पहले उसकी बात का किसी ने विश्वास नहीं किया। जब उसने कहा कि वहां जाकर देखो, गांव के सभी लोग वहां गए और देखा कि बात बिलकुल सच थी।

कुछ समय बाद वहां पुलिस भी पहुंच गयी। पुलिस ने देखा कि मारा गया साधू और कोई नहीं बल्कि एक भयानक डाकू कड़ग सिंह था जिस पर पचास हजार रूपये का इनाम भी था। पुलिस ने इनाम के पचास हजार रूपये लड़के को दे दिए और गांववालों ने उसकी बहादुरी की खूब प्रशंसा की।

2. निर्धन ब्राह्मण की बुद्धिमत्ता

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एक अत्यंत धनवान ब्राह्मण था। उसकी एक पुत्री थी जिसे वह बहुत प्यार करता था। ब्राह्मण की पत्नी बहुत झगड़ालू थी। वह सुबह होते ही घर से बाहर निकल जाती और शाम तक पूरे मोहल्ले व गांव में झगड़ा करती हुयी घूमती। जब उसकी लड़की थोड़ी बड़ी हुई, वह भी अपनी माँ के साथ बाहर जाने लगी। माँ की संगत ने उसको भी झगड़ालू बना दिया। अब दोनों सुबह से शाम तक बिना मतलब झगड़ा करती घूमने लगीं। लोग ब्राह्मण की इज्जत करते थे इसलिए उन्हें कोई कुछ नहीं कहता था। वास्तव में ब्राह्मण बहुत नेक इंसान था।

जब लड़की विवाह योग्य हो गयी तो ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण से कहा कि जाओ और इसके लिए वर की तलाश करो। ब्राह्मण अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था परन्तु उसकी और उसकी माँ की आदत से बहुत परेशान भी था। ब्राह्मण की पत्नी रोजाना ब्राह्मण से झगड़ने लगी। ब्राह्मण ने भी सोचा कि अब उसकी लड़की, अपनी माँ से भी आगे निकल गयी है। अब इसका विवाह कर देना ही उचित है, शायद विवाह के बाद इसका व्यवहार बदल जाये।

ब्राह्मण अपनी पुत्री के लिए वर की तलाश करने प्रतिदिन बाहर जाने लगा। जहाँ भी वर देखने जाता वहां उससे पहले ही उसकी पत्नी व पुत्री के बारे में सारी खबरे पहुँच जाती थी। हर आदमी उससे विवाह करने के लिए मना कर देता। ब्राह्मण बहुत परेशान रहने लगा। पूरी जाति में, उसकी पत्नी और लड़की के झगड़ालू होने की खबर गर्म थी।

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ब्राह्मण घर आता तो उसकी पत्नी उससे झगड़ा करती थी कि जवान लड़की घर में बैठी है, तुम्हे नींद कैसे आ जाती है ? ब्राह्मण ने उसे बताया कि तुम्हारी और तुम्हारी बेटी को सारी ब्राह्मण बिरादरी जानती है और इतनी गुणवान बहू किसी को नहीं चाहिए। किन्तु उसकी पत्नी और ज्यादा आग-बबूला हो जाती तो ब्राह्मण शांत होकर बैठ जाता था।

ब्राह्मण ने कोई गांव, शहर नहीं छोड़ा और जहाँ जाता वही कहता कि दहेज़ में चाहे जो ले लो पर मेरी बेटी से विवाह कर लो। ब्राह्मण की लड़की में एक ही अवगुण था, वह झगड़ालू थी। ब्राह्मण अब लड़के वालों से खुशामद करने लगा, उनके सामने गिड़गिड़ाने लगा था। उसे यह उम्मीद थी कि वह ज्यादा-से-ज्यादा दहेज देगा तो कोई भी अच्छा लड़का शादी के लिए तैयार हो जायेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

एक दिन ब्राह्मण एक गांव में पहुंचा वहां उसने एक गरीब ब्राह्मण के लड़के से विवाह के लिए बात चलायी। ब्राह्मण ने साफ-साफ अपनी लड़की के अवगुणों के बारे में बताया और कहा कि दहेज में तुम जो मांगोगे वही दे दूंगा। लड़के ने कुछ देर सोचा और शादी के लिए तैयार हो गया। उसने कहा कि विवाह में वही सामान देना होगा जो मैं कहूंगा। इस पर ब्राह्मण खुशी-खुशी तैयार हो गया।

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लड़के ने कहा मुझे दहेज में एक बैलगाड़ी, एक बकरा, एक मुर्गी, एक छाज और एक ढोलक चाहिए। ब्राह्मण ने सोचा लड़के की बुद्धिमानी के बारे में बहुत सुना था लेकिन यह उतना बुद्धिमान नहीं है क्योंकि ब्राह्मण तो दहेज में बहुत कुछ देने वाला था और उसने कुछ भी नहीं माँगा। लड़के ने कहा कि विवाह में मैं अकेला ही आऊंगा। ब्राह्मण ने कहा ठीक है, मुझे तुम्हारी सभी शर्ते मंजूर है।

लड़का विवाह के लिए ब्राह्मण के घर निश्चित दिन पहुंचा गया। ब्राह्मण ने उसकी बहुत आवभगत की। अगले दिन ब्राह्मण दहेज के सामान के साथ लड़की को विदा कर दिया।

लड़के ने बैलगाड़ी में अपनी पत्नी को बिठाया व पीछे एक कोने में छाज बाँध दिया व दूसरे किनारे पर ढोलक बाँध दी और मुर्गे व बकरे को गाड़ी में बिठा लिया और चल दिया। चलते-चलते रास्ते में उसे एक हरड़ का खेत दिखाई दिया, उसने बैलगाड़ी सीधी खेत में घुसा दी। खेत में हरड़ की लड़की छाज में लगी , फिर ढोलक में लगी तो खरर-खरर की आवाज होने लगी।

लड़के ने कहा-यह कौन बोला और उसने अपनी तलवार के एक वार में ही छाज व ढोलक दोनों को काट दिया और बोला कि मेरी इजाजत के बिना कैसे बोले। फिर उसने बैलगाड़ी खेत के अंदर दौड़ा दी। हरड़ की हरी-हरी पत्तियां देखकर बकरे ने अपना मुँह चलाना शुरू कर दिया। लड़के ने देखा कि बकरा पत्ते खा रहा है तो उसने तुरंत गाड़ी रोकी और तलवार उठाकर बकरे की गर्दन काट दी और कहा कि मेरी इजाजत के बगैर मुँह चलाता है।

फिर लड़के ने लड़की और मुर्गे की ओर देखकर कहा कि अब इस गाड़ी में तुम दो प्राणी हो, अगर किसी ने भी मेरी इजाजत के बिना मुँह खोला तो उसका भी यही हाल होगा। ब्राह्मण की लड़की चुपचाप बैठी सोच रही थी कि यह कैसा आदमी है जो बात-बात पर तलवार चलाने लगता है। चलते-चलते दिन के बाद रात भी बीत जाती है।

सुबह के चार बजते है तो मुर्गा बांग देने लगता है। लड़का गाड़ी रोककर तलवार निकालता है और मुर्गे की गर्दन काट देता है और फिर कहता है कि मना किया था कि मेरी इजाजत के बगैर नहीं बोलना है लेकिन तू फिर भी बोला।

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लड़के ने कहा कि अब इस गाड़ी में एक प्राणी बचा है अगर वह भी मेरी इजाजत के बगैर बोला तो उसका भी यही हाल होगा। अब ब्राह्मण की लड़की बुरी तरह घबरा गई। उसके दिलो-दिमाग पर अब दहशत सवार हो गयी थी। उसने सोचा कि अगर तू इसकी इजाजत के बगैर बोली तो यह तुझे भी मार देगा।

लड़का अपने गांव पहुँच कर शान्ति के साथ अपनी पत्नी के साथ रहने लगा। कुछ दिन तक अपने गांव में रहने के बाद लड़का देखता है कि अब वह अपनी योजना में सफल हो गया है। एक दिन वह अपनी पत्नी को लेकर अपनी ससुराल पहुँच जाता है।

वहां दिन निकलते ही उसकी माँ रोजाना की तरह गांववालों से लड़ने चलती है और अपनी बेटी से भी कहती है कि तू भी चल। लेकिन उसकी बेटी कहती है कि माँ तू धीरे-धीरे बोल, उन्होंने सुन लिया तो वो दोनों को मार देंगे। उसकी माँ कहती है कि तू इतनी डरपोक कैसे हो गई है ? वह अपनी माँ से कहती है कि वो घर में भी आवाज सुनेंगे तो जान से मार देंगे, तुम चुप रहो।

ब्राह्मण देखता है कि अब उसकी लड़की चुपचाप रहती है, न किसी से लड़ती है और न ही लड़ाई में अपनी माँ का साथ देती है। यह देखकर ब्राह्मण बहुत खुश हुआ और अपने दामाद से बोला कि तुमने इसे तो सुधार दिया अब इसकी माँ को और सुधार दो।

लड़के ने कहा कि ठीक है, जाओ पहले दो लकड़ी लेकर आओ, एक सुखी व एक ताज़ी और हरी। ब्राह्मण गया और दो लकड़ी ले आया। लड़के ने पहले हरी लकड़ी ली और उसे मोड़ा तो वह मुड़ गयी। फिर उसने सुखी लकड़ी ली और जैसे ही उसने उसे मोड़ना शुरू किया तो वह टूट गयी।

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लड़के ने ब्राह्मण से कहा कि हरी लकड़ी की तरह आपकी लड़की अभी हरी थी। इसलिए उसको मोड़ा तो वह मुड़ गयी। जबकि उसकी माँ पक चुकी है और अगर उसे मोड़ने की कोशिश करोगे तो वह टूट जाएगी। यह तो तुम्हे उस समय कोशिश करनी चाहिए थी जब वह हरी थी। ब्राह्मण समझ गया कि लड़का वास्तव ने विद्वान है।

ब्राह्मण ने पूछा बेटा तुमने दहेज में इतना उल्टा-पुल्टा सामान क्यों माँगा, तुमने कुछ धन-दौलत क्यों नहीं मांगी। लड़के ने कहा कि वह सामान आपकी लड़की को सुधारने में सहायक था और कोई धन-दौलत उसे नहीं सुधार सकती थी। फिर उसने कहा कि आपके पास जो कुछ भी है वह आपके बाद हमे ही तो मिल जायेगा क्योंकि तुम्हारी एक ही बेटी है, तो फिर मैं उसे मांग कर अपने आपको मांगने वालो में क्यों ले आता ?

ब्राह्मण बड़ा प्रसन्न हुआ। उसे ख़ुशी थी कि उसकी बेटी इसके साथ खुश व ठीक प्रकार से रहेगी और उसका दामाद वास्तव में बेहद विद्वान और बुद्धिमान है।

3. पांच-सात का अंतर

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एक गांव में एक सेठ रहता था। जो दिन-रात झूठ बोलकर, बेईमानी करके, धन इकट्ठा करने में लगा रहता था। उसी गांव में एक किसान था, जो बहुत गरीब परन्तु ईमानदार था। किसान मेहनत-मजदूरी करके दो वक्त की रोजी-रोटी का इंतजाम करता था। दोनों के दो-दो बच्चे थे। किसान अपने बच्चे को मेहनत मजदूरी करके ईमानदारी से पेट भरना सिखाता था। दूसरी तरफ सेठ अपने बच्चो को व्यापार के दाव-पेंच सिखाता था और बताता था कि कैसे बेईमानी की जाती है तथा व्यापार में किसी को मत छोड़ो और न ही किसी की मज़बूरी को समझो। किसी मज़बूरी में किसी से भी दोगुनी कीमत वसूली जा सकती है।

सेठ व किसान के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते थे। किसान अपने बच्चो को अच्छी तरह पढ़ाता था इसलिए उसके बच्चे कक्षा में श्रेष्ठ चुने जाते थे। सेठ का ध्यान हमेशा अपने व्यापार में रहता था। वह समझता था कि बच्चो को धन की कमी न रहे। सेठ के बच्चे स्कूल में अच्छा खाना लेकर जाते थे और किसान के बच्चे रुखा-सूखा खाकर मस्त रहते थे।

एक बार अचानक भयंकर सूखा पड़ा। किसान आदि सूख गयी व बच्चो की पढ़ाई के लिए पैसा भी नहीं बचा। उधर उसकी पत्नी बीमार पड़ गयी। किसान का उसूल था कि वह सबसे पहले चिकित्सा , खान-पान, फिर शिक्षा और उसके बाद अन्य आवश्यकताओं पर खर्च करता था।

पैसे के अभाव के कारण किसान काम की तलाश में दूसरे गांव ने भी गया परन्तु काम नहीं मिला। उसकी पत्नी के पास कुछ जेवर थे उसने सोचा इन्हे सेठ के पास गिरवी रख देते है। सदा दिन एक जैसे नहीं होते, काम मिल जायेगा तो कमाकर जेवर को छुड़ा लेंगे। कम-से-कम इलाज और पढ़ाई का कार्य तो चल जायेगा।

किसान जेवर लेकर सेठ के पास गया। उसने सेठ को अपनी मज़बूरी बताई। लेकिन सेठ तो मजबूरियों की खोज में रहता था , उसने अपनी मीठी-मीठी बाते शुरू की और कहा कि कोई बात नहीं हम किसलिए बैठे है , लाओ तुम्हारी परेशानी अभी हल किये देते है। उसने किसान से जेवर लेकर कहा कि इसके पांचवे हिस्से के बराबर कीमत में गिरवी रख सकता हूँ कहो तो पैसे दूँ ? किसान ने कहा सेठ जी ये तो बहुत कम दे रहे हो आप, मुझे तो ज्यादा पैसो की जरूरत है।

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सेठ ने कहा कि ये लो अपना जेवर और जो ज्यादा पैसे दे उससे ले लो। गांव में सेठजी के अलावा और कोई साहूकार नहीं था इसलिए किसान को मजबूरन पांचवे हिस्से में ही जेवर गिरवी रखना पड़ा। सेठ ने कहा कि जेवर को छुड़ाने का समय निश्चित कर लो। किसान ने कहा सेठजी एक साल के अंदर मैं आपका पैसा लौटा दूंगा मय ब्याज के। अगर लौटा न सका तो जेवर तुम्हारा।

सेठजी बोले ठीक है तुम कागज पर दस्तखत कर दो , मैं फुरसत में बैठकर इस पर सभी शर्तें लिख दूंगा। किसान ईमानदार आदमी था उसने दस्तखत कर दिए और जाकर अपनी पत्नी का इलाज कराया व अपने बच्चो को खिलाया-पिलाया और उनकी स्कूल की फीस भर दी।

अगले छमाही में किसान की फसल लग गयी। भगवान ने साथ दिया, समय पर वर्षा हुई। किसान फसल उठाकर और उसे बेचकर छह माह बाद ही सेठ जी के पास पहुँच गया। उसने सेठ से कहा कि सेठ जी अपना पैसा ले लो और मेरा जेवर लौटा दो। सेठ ने एक साल के समय की जगह, एक माह लिखकर किसान के दस्तखत में कागज तैयार कर लिए थे और किसान को कागज दिखाकर जेवर देने से मना कर दिया।

किसान ने पंचायत के लोगो का भी सेठ जी से काम पड़ता था। पंचायत ने भी सेठ जी के दबाव में किसान के विरुद्ध फैसला किया। परन्तु किसान ने हिम्मत नहीं हारी और उसने पंचायत के सामने कहा कि सेठ जी तुम्हे एक दिन बदलना पड़ेगा। मैं तुम्हे बदलकर दिखाऊंगा तब तुम औरों का तो दूर अपना धन भी दूसरों पर खर्च करोगे।

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किसान मेहनत से अपने बच्चो का पालन-पोषण करता रहा। किसान के बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पर लग गए। अब किसान को कोई चिंता नहीं थी। सेठजी के बच्चे सेठ के ही काम में हाथ बटांने लगे।

सेठ जी अब जब भी किसान के आगे निकलते तो किसान कहता कि कितनी भी लूट-खसोट कर ले, तेरे-मेरे बीच में पांच-सात का अंतर है। सेठ इस बात को सुनकर बड़ा परेशान होता, सोचता कि मैंने जिंदगी भर इधर-उधर से कमाया और यह भूखा मरता था और अब यह कहता है कि पांच-सात का अन्तर है, आखिर यह बात क्या है ?

सेठ जी सोचा कि औरत औरत की जल्दी बता देती है इसलिए उसने अपनी पत्नी को सारी बात बताकर किसान की पत्नी के पास भेजा और कहा कि ये पांच-सात का अंतर क्या है ? सेठ की पत्नी दो-चार दिन किसान की पत्नी के पास बैठी, मीठी-मीठी बाते की और एक दिन उसने पूछा कि तेरे पति मेरे पति से ऐसा-ऐसा कहते है। आखिर ये अंतर क्या है ? किसान की पत्नी ने कहा कि ये तो मुझे भी नहीं पता शाम को पूछकर बताउंगी।

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किसान की पत्नी ने उससे ये पूछा कि तुम सेठ जी को देखकर ऐसे कहते हो आखिर ये पांच-सात का अंतर क्या है ? किसान को इन सब बातो का पूर्वानुमान था। उसने अपनी पत्नी को बताया कि जब मैं मरूंगा तो मेरे ऊपर पांच-सात रूपये सस्ता कफ़न पड़ जायेगा और सेठ जी जो दिन-रात लूट-खसोट करता फिरता है उसके ीपर पांच-सात रूपये महंगा कफ़न पड़ जायेगा। यही पांच-सात रूपये का अंतर है।

किसान की पत्नी ने सारी बात सेठ जी की पत्नी को बताई। सेठ जी की पत्नी ने सारी बात सेठ जी को बताई और कहा कि किसान ठीक कहता है। दुनिया भर की दौलत लूट-खसोट करते हो , यह क्या तुम्हारे साथ जाएगी , साथ तो आदमी की अच्छाई-बुराई जाती है। सेठ जी ने सोचा किसान ठीक कहता है। उसने खुद पंचायत बुलाई और किसान के पैर पकड़कर अपनी गलती की माफी मांगी और कहा कि मैं जीवन-भर किसान के दिखाए रास्ते पर चलूँगा। इसने मेरी आँखों के आगे से पर्दा हटा दिया है। किसान ने कहा पैसे की चमक से जो बच जाता है वह ही पांच-सात के अन्तर को समझता है।

4. बुरा मत करो , नेक बनो

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एक बार एक सैनिक अपनी छुट्टी बिताने अपने गांव में आया। गांव में आने के बाद जंग शुरू हो गई। सैनिक ने तुरंत वापिस जाने की तैयारी शुरू कर दी। उसके पास लगभग ढाई हजार रूपये थे। उसने उन रुपयों को गांव के एक सेठ को दे दिया और कहा कि इन्हे वह जंग से वापस आकर ले लेगा और अगर वह नहीं लौट पाया तो इन रुपयों को उसके परिवारवालों को दे देना।

फौजी सिपाही वापस अपनी ड्यूटी पर पहुँच जाता है और अपनी घोड़ी लेकर अगले दिन युद्ध क्षेत्र में पहुँच जाता है। दोनों तरफ की सेनाओं में घमासान लड़ाई हो रही थी अचानक उस फौजी की घोड़ी उसे धोखा दे देती है और उसे लेकर दुश्मन की सेना के बीचो बीच ले जाती है जिससे वह फौजी दुश्मन की सेना के हाथो शहीद हो जाता है। इस लड़ाई में उसकी घोड़ी भी मर जाती है।

कुछ समय बाद सैनिक के घरवाले पैसे के लिए सेठ के पास पहुंचते है और सिपाही द्वारा दिए गए पैसे वापस मांगते है। जिस पर सेठ पैसे देने से मुकर जाता है और कह देता है कि उसे कोई पैसे नहीं दिए गए है जिन्हे वह लौटाए। फौजी के घरवाले दुखी होकर वापस लौट आते है।

अगले जन्म में सिपाही सेठ के घर उसके पुत्र के रूप में जन्म लेता है। सेठ के घर खुशिया मनाई जाती है। धीरे-धीरे लड़का बड़ा होने लगता है।

एक दूसरे सेठ के यहाँ फौजी सिपाही की घोड़ी लड़की के रूप में जन्म लेती है। वह भी धीरे-धीरे बड़ी होने लगती है। कुछ समय बाद सेठ का लड़का बीमार हो जाता है। काफी इलाज चलने के बाद वह कुछ ठीक होता है। सेठ लड़के के स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित रहने लगता है। बहुत पैसा खर्च करने के बाद भी वह लड़का पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हो पाता। सेठ अपने इकलौते लड़के की बीमारी को लेकर बहुत परेशान रहने लगता है। सेठ ने उसके स्वस्थ होने के लिए एक ब्राह्मण को दावत खिलाई व पूजा-पाठ कराया। ब्राह्मण ने सेठ को सलाह दी कि वह लड़के का विवाह कर दे इससे शायद वह ठीक हो जाए।

सेठ के घर पर उसके लड़के के रिश्ते को लेकर एक से एक घनवान आने लगे। लेकिन सब उसकी बीमारी के कारण लौट जाते। एक दिन वह सेठ भी लड़के को देखने आया जिसके घर उस फौजी की घोड़ी ने जन्म लिया था। उस दिन सेठ का लड़का पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया तथा उसके चेहरे पर चमक जाग गई। वह अनोखा रूप देखकर उस सेठ ने रिश्ता पक्का कर दिया। कुछ समय बाद दोनों का विवाह संपन्न करा दिया गया।

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लड़का फिर बीमार रहने लगा। एक दिन उसकी तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गयी। उसने सेठ को बुलाया और कहा कि पिता जी अब मैं बचने वाला नही हूँ। सेठ ने कहा नहीं बेटा तू ठीक हो जायेगा मैं तेरा अच्छे से अच्छा इलाज कराऊंगा। इस बात को सुनकर लड़का हंसने लगा और बोला–सुनो ! सेठ जी मेरा तुम्हारे ऊपर 2500 रूपये कर्ज था जिसे मैं ब्याज लगाकर ले चूका हूँ। सेठ कहने लगा तू क्या कह रहा है बेटा।

लड़के ने कहा कि पिछले जन्म में मैं सिपाही था , मैंने 2500 रूपये की धरोहर तुम्हारे पास रखी थी जिसको मेरे मरने के बाद तुमने लौटाने से मना कर दिया था। उसी कर्ज को लेने के लिए मेरा जन्म तुम्हारे यहाँ हुआ है जिसे मैंने बीमारी के द्वारा वापस ले लिया और सुनो ये जो मेरी घरवाली है यह पिछले जन्म में मेरी घोड़ी थी। मैं इसे खूब अच्छा खिलाता था और इसका खूब ख्याल रखता था लेकिन इसने एक दिन मुझे युद्ध क्षेत्र में धोखा दिया। जिससे मेरी जान चली गयी।

अब मेरी घरवाली बनी और जब मैं चला जाऊंगा तो मेरे बाद यह विधवा हो जाएगी। जो मेरा बचा-खुचा हिसाब सारी उम्र विधवा के रूप में तेरी छाती पर मूंग दलेगी और हिसाब पूरा करेगी। इस प्रकार इसको धोखा देने का फल भी मिल जायेगा।

यह कहते-कहते लड़का अपने प्राण त्याग देता है। सेठ दुखी होता है और अपनी सारी धन-संपत्ति को गरीबों में बांटने लगता है तथा अपने आपको भगवान की भक्ति में लगा देता है। इस प्रकार सत्य है कि कभी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए क्योंकि हर चीज का हिसाब-किताब यहीं, इसी जन्म में चुकाना पड़ता है।

5. कर्तव्य का कर्ज

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एक गांव में एक अत्यंत योग्य व विद्वान ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण को ज्योतिष का बहुत अच्छा ज्ञान था। लोग दूर-दूर से आकर अपने भविष्य की जानकारी लेते थे। ब्राह्मण जो भी भविष्यवाणी करता, वह सच होती थी। आस-पास के गांव के लोग भी उसका बहुत सम्मान करते थे। ब्राह्मण के ज्योतिष ज्ञान के चर्चे, आस-पास के सभी गावों में थे।

ब्राह्मण के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। पुत्र धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। ब्राह्मण ने उसे भी ज्योतिष का ज्ञान देना प्रारम्भ कर दिया। लड़का जैसे-जैसे बड़ा होने लगा उसका ज्ञान भी बढ़ने लगा। धीरे-धीरे उसका भी नाम अपने पिता के समान चारों ओर चमकने लगा। वह ज्ञान में अपने पिता से भी आगे निकल गया। कुछ समय बाद उसकी उम्र शादी योग्य हो गयी तो उसके रिश्ते के लिए लोग आने लगे। परन्तु वह लड़का सभी को मना कर देता। अंत में उसके पिता ने कहा कि बेटा क्या बात है तुम शादी क्यों नहीं करते ?

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माता-पिता के दबाव देने पर लड़के ने कहा कि ठीक है अगर मेरी शादी करना ही चाहते हो तो ठीक है लेकिन मेरी एक शर्त है। पिता ने पूछा क्या ? उसने कहा कि मैं अपनी पत्नी से बोलूंगा नहीं। माता-पिता ने सोचा कि ठीक है शादी के कुछ दिन बाद बोलने लगेगा। उन्होंने उसकी शर्त मान लो और उसकी शादी कर दी। उसकी शादी को कई साल बीत गए लेकिन वह अपनी पत्नी से नहीं बोला।

एक दिन उसकी पत्नी ने उससे कहा कि तुम मुझसे बोलते क्यों नहीं हो? उसने लिखकर अपनी पत्नी से कहा कि ठीक है मैं तुमसे बोलने लगूंगा लेकिन मेरी एक शर्त है कि तुम्हारा जो बच्चा होगा उसे तुम मेरे हवाले कर दोगी। पत्नी ने इसकी शर्त मान ली और कहा कि ठीक है। कुछ समय बाद उनके यहाँ एक पुत्र हुआ तो उसकी पत्नी ने उसे अपने पति के हवाले कर दिया। उसके पति ने उसे खेत के एक कोने में ले जाकर गाड़ दिया।

उसकी पत्नी दुखी हुई लेकिन करती क्या ? इसी तरह उसके एक के बाद एक तीन पुत्र हुए और वह अपने पति को दे देती और वह उन्हें खेत में एक-एक कोने में गाड़ता गया। अंत में उसके चौथा लड़का पैदा हुआ, पत्नी ने इसे भी अपने पति को दे दिया। उसके पति ने उसे भी ले जाकर खेत के चौथे कोने में गड्ढा खोदकर रख दिया। इस पर पहला लड़का बोला कि मेरा इस पर बहुत कर्ज था , मैं तो इससे सब वसूल करता पर क्या करूं ? दूसरा बोला मैं तो इसे बहुत तंग करता इसका जन्म दुखी कर देता।

तीसरे ने कहा कि मैं तो यार ऐसे ही आया था ऐसे ही जाना था। चौथे ने कहा कि मेरे ऊपर तो यार इसका एक लाख रूपये कर्ज है मैं तो इसे कमा कर उसे देने आया था। यह सुनकर वह चौथे पुत्र को वापिस ले आया और पत्नी को दे दिया। और कहा कि इसका ठीक से लालन-पालन करो और इससे कभी कोई व्यापार करने के लिए दबाव मत देना और न ही इसको कमाने देना और न इसकी कमाई का कोई पैसा लेना। लड़का धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। वह भी अपने पुश्तैनी कार्य में लग गया और अपने बाप-दादा की तरह प्रसिद्धि पाने लगा।

एक दिन एक महिला उसके घर आयी और उसने कहा कि उसके पति व्यापार के लिए बाहर गए थे। जिनका आने का समय आठ दिन पहले का तय था लेकिन वह अभी तक नहीं आये। पंडित जी कृपया कर बताएं कि वह कब आएंगे? लड़के ने कहा कि तुम्हारे पति आज आ जायेंगे और वह तुम्हारे लिए एक लाख का हार लेकर आएंगे। यह सुनकर महिला वापस अपने घर चली गयी और अपने पति का इंजतार करने लगी। शाम को उसके पति घर लौट आये।

वह उसके लिए एक लाख रूपये का हार लेकर आये थे। महिला बहुत खुश हुई उसने सोचा कि पंडित जी को कुछ उपहार देना चाहिए लेकिन फिर सोचा कि पंडित जी तो कुछ लेते ही नहीं। फिर उसने सोचा कि कुछ न कुछ तो किसी तरह पहुँचाना ही चाहिए। उसने एक तरबूज लिया और उसमे टॉकी लगायी और वह हार तरबूज के अंदर रख दिया और चुपचाप पंडित के घर गयी। पंडित का लड़का सोया हुआ था। वह महिला चुपके से लड़के एक सिर के पास रखकर आ गयी।

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लड़का मर गया। उसकी माँ ने देखा और रोने लगी। उसका पिता भी आ गया उसने अपनी पत्नी से पूछा कि तुमने इसकी कमाई का कुछ लिया क्या ? उसकी पत्नी ने मना कर दिया। पंडित ने इधर-उधर देखा उसे वहां तरबूज रखा दिखाई दिया पंडित ने उसे फोड़कर देखा तो उसमें एक लाख का हार रखा था। पंडित की पत्नी ने पूछा यह क्या है ? उसने बताया कि वह हमे एक लाख रूपये देने आया था।

इसीलिए मैंने तुमसे कहा था कि इसका कमाया हुआ कुछ भी मत लेना इसे तभी तक हमारे साथ रहना था जब तक वह हमे एक लाख रूपये नहीं दे देता। आज इसने एक लाख का हार देकर अपना कर्ज उतार दिया और वह हमे छोड़ गया। जो आता है वह अपना कर्ज लेने व देने आता है। इसलिए हमे सदैव ईमानदारी से अपने कार्य में लगे रहना चाहिए।

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