सबको राम राम | Sabko Ram Ram | Majedar Story

आज हम आप लोगो लिए एक बहुत अच्छी Majedar Story लेकर आये है जिसमे दो मुर्ख भाइयो की कहानी है।

सबको राम राम

(Majedar Story Hindi)

एक गाँव में टिंकू-रिंकू रहते थे। दोनों सगे भाई थे। पर दोनों थे निरे मुर्ख। एक दिन की बात है। दोनों भाई घर के बाहर चबूतरे पर बैठे थे। एक रस्सी बांट रहा था। दूसरा नाश्ता कर रहा था।

उसी समय भिक्की भैंस वाला गली में दिखा। वह अपनी भैसों को पानी पिलाने के लिए ले जा रहा था। उसने टिंकू-रिंकू को राम राम की। उन दोनों ने राम राम का जवाब दिया। भिक्की भैंस वाला आगे चल दिया। पर टिंकू-रिंकु आपस में लड़ने लगे। टिंकू बोला, “तूने राम राम क्यों कही। “

एक ने कहा, “उसने मुझे बोला है। तुझे कोई क्यों बोलेगा।

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“वाह भई वाह, पगड़ी आई मेरे रख ली अपने सिर पर”,टिंकू ने कहा।

दोनों में तू-तू, मैं-मैं ज्यादा बढ़ गयी। तभी उनकी पड़ोसन कर्पूरी भाभी आई और बोली, “देवताओ क्यों लड़ रहे हो ? फटे बांस की तरह अपने गले क्यों फाड़ रहे हो ?”

टिंकू ने बोला, “भिक्की भैंस वाला मुझे बोल के गया है।अब ये जिद कर रहा है कि वह मेरे को बोल के गया है। “

रिंकू बोला, “भाभी सच बात यह है कि वह मुझसे राम राम करके गया है और यह अपने लिए बता रहा है। ” कर्पूरी ने कहा, तो तुम किस लिए लड़ रहे हो ? भिक्की से ही क्यों नहीं पूछ लेते की उसने किसको राम राम की है। जाओ भिक्की को बुला कर लाओ .”

टिंकू भागता हुआ भिक्की को बुलाने पहुंचा। भिक्की से कहा, “जरा भाई, घर तक चलो। हमारी भाभी बुला रही है। “

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भिक्की कर्पूरी भाभी का नाम सुनते ही बोला, “क्या जमनापार वाली बुला रही है ? जरूर चलूँगा। देवघट पर वह आंखो काजल डालकर जब जिमाती है तो देखते ही बनता है फूली पूरी, खीर साथ में, ऊपर से बुरा डालती है, तो खाने में आनंद आ जाता है। “

टिंकू ने बोला, ” अरे भाई साहब हमारी भाभी जैसी है अच्छी है। उसके बारे में कुछ मत बोलो।

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भिक्की ने कहा, “अरे लाला, ऐसा डर है तो उसे ताले में बंद करके रखो। “

इस तरह बात करते-करते दोनों घर तक आ गए। कर्पूरी ने पूछा, “अजी, तुम ऐसा क्या बीज बो गए कि दोनों जने आपस में लड़ रहे है ?”

भिक्की बोला, “क्यों क्या हो गया ? मैंने तो कुछ भी नहीं कहा। “

कर्पूरी बोली, “अजी, तुम राम राम करके गए थे। अब दोनों जने आपस में लड़ रहे है। एक कह रहा है — मुझे राम राम कहकर गया है। दूसरा कह रहा है –मुझे राम राम कहकर गया है। अब तुम ही बताओ कि किसे राम राम कहकर गए थे ?

भिक्की बड़े चक्कर में आ गया। किसके लिए कहता ! किसको नाराज करता ! उसने गेंद उनके ही पाले में डाल दी। बोला, “मैं तो मूर्ख को राम राम करके गया था। “

यह बात सुनकर दोनों तुरंत बोल पड़े — मैं मूर्ख हूं। मैं मूर्ख हूं।

कर्पूरी बोली, “अब इसका निर्णय कैसे हो ?” भिक्की बोला, “ये खुद तय करे कि बड़ा मूर्ख कौन है ?”

टिंकू ने अपनी मूर्खता का किस्सा सुनाना शुरू किया–

मैं जब ससुराल जाता, तभी सास मेरे से लड़ती। मुझसे कहती सज-संवरकर दिन में आया करो, जिससे मालूम पड़े कि किसी के यहाँ मेहमान आया है। यह बात मुझे चुभ गई। एक दिन मैं साले के लड़के के नामकरण समारोह में ससुराल गया। गोपी सरपंच का घोड़ा ले गया। किसी सामान उधार ले गया।

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सज-संवरकर ससुराल तक पहुंच गया, पर रात हो गई। तभी मुझे सास की बात याद आ गई कि सज-संवरकर दिन में आया करो। मैंने सोचा, क्या किया जाय। मैं गाँव के बहार बालाजी में ठहर गया। बाबाजी से जान-पहचान थी। अब मुझे लगी भूख ! उधर ससुराल में बाजे बज रहे थे, इधर मेरे पेट में चूहे कूद रहे थे। मैंने अपना सामान बाबाजी के पास रखा और भेष बदल कर जा पहुंचा ससुराल के दरवाजे पर।

वहां जीमने वालों की पंगत में जाकर बैठ गया। पत्तलो पर चावल-बुरा आ गया। एक आदमी लालटेन लेकर यह देख रहा था कि किसके पास क्या-क्या सामान आ गया है ? मैं रोशनी से बचना चाह रहा था। पीछे की तरफ खिसकने लगा।जब लालटेन वाला और पास आया तो मैं और पीछे खिसका। पीछे एक गड्ढा था। मैं उसमे गिर गया। गड्ढे में चावल का मांड भरा हुआ था। लोगबाग हल्ला मचाने लगे। अरे भाई, आदमी गिर गया। उन्होंने मुझे गड्ढे से बाहर निकाला।

मेरे चेहरे की ओर देखकर बोले कि यह तो हमारे मेहमान है। मुझे वह उल्टा-सीधा कहने लगे। मैंने कहा, ज्यादा ची-चपड़ मत करो। मेरी गलती नहीं है सासजी ने कहा था कि जब भी आओ दिन में सज-संवरकर आया करो। मई आया तो सज-संवरकरही, पर हो गई रात। इसी वजह से बगीची पर उतर गया। सारे सामान को उतार कर बाबाजी के पास रख आया। मुझे भूख लगी तो भेष बदलकर आया। सबेरे आता, तो सज-संवरकर आता। मेरी इसमें क्या गलती है ?

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तो ससुराल वाले बोले, “अरे मेहमान तू तो बड़ा मुर्ख है। तूने यह क्या किया ?”

इस तरह मैंने ससुराल से मूर्खता का पट्टा प्राप्त किया है। इसलिए यह राम राम मुझे ही की गई !

रिंकू बोला — अब मेरी रामकहानी सुन लो। मेरी बहू को बच्चा होने वाला था। वह पीहर मिलने गई। वही उसका लड़का हो गया। अब मैंने सोचा — लड़का यहाँ होता तो ससुराल वाले छूछक लेकर आते। पर लड़का वहां हुआ तो अब मुझे छूछक लेकर जाना चाहिए।

मैंने छूछक की तैयारी की। ससुर पगड़ी और धोती। सास लहंगा-ओढ़नी। सालों के लिए कुर्ता-धोती। अपने लड़के के लिए कुर्ता-टोपी। हाथ के लिए कड़ा। गले में जंजीर। सारा सामान इकट्ठा कर मैं छूछक लेकर चला। अपने संगी-साथियो से भी चलने को कहा किन्तु कोई साथ नही चला।

मैंने पोटली अपनी सिर पर रखी और चल दिया ससुराल को ओर। वहां पहुंचा तो ससुराल वालों ने पूछा, “मेहमान, पोटली में क्या लाये हो ?” मैंने कहा, “छूछक। ” यह बात सुनकर सब हसने लगे। मैंने पोटली खोलकर दिखाई। ब्योरेवार सबको समझाया। सब हसते रहे। आखिर में सब बोले, “मेहमान, तू तो बड़ा मुर्ख है। अरे लड़का-लड़की कही भी पैदा हो, छूछक तो लड़की के पीहर वालो का होता है। ” अब बताओ, मैं हूं न, बड़ा मुर्ख। राम राम भिक्की ने मुझे की।

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कर्पूरी ने दोनों की कथा सुनी। बोली, “बताओ देवरजी, किसे राम राम की है ?”

भिक्की बोला, “मैंने दोनों को राम राम किया। ये दोनों मुर्ख है। इन्हे इतना भी नहीं पता कि जहां चार-पांच आदमी बैठे होते है, वहां राम राम सभी को की जाती है ”

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