भोला पंडित | Bhola Pandit ki Kahani

आज हम आपको एक भोला Pandit ki Kahani बताएंगे। ये Hindi story एक पंडित के बारे में है जो कि एकदम सीधे है। तो आप सभी इस Hindi kahaniyan को पढ़कर इसका आनंद लीजिए।

मन चंगा तो कठौती में गंगा

(Hindi story for kids)

भोला Pandit ki Kahani :- पुराने जमाने की बात है। उस समय सभी जगह हाथी,घोड़ा, ऊँट आदि पर आना जाना होता था। रथ, बहली और बैलगाड़ियों की भरमार थी। बारातों में उनकी धूम थी। उन दिनों पंडितों की भारी पूछ थी। जजमान उनकी बड़ी खातिर करते थे। पूरे मन से दान-दक्षिणा देते थे। इस तरह पंडितो का गुजारा अच्छा खासा चलता। हल्दी लगती न फिटकरी, पर रंग चोखा आता।

उन दिनों पंडिताई का काम करने वाले एक पंडित थे। नाम था भोला। बड़े सीधे-सादे, भोले-भाले, संत जैसे ब्राह्मण थे। सरस्वती तो उनके पास थी, पर लक्ष्मी पास भी नहीं भटकती थी। जैसे-तैसे घर का खर्च चलता। उनकी पत्नी अनारो उन्हें उकसाती रहती, तब कहीं जाकर वह जजमान के पास जाते।

Pandit ki Kahani

pandit ki kahani
bhola pandit

एक बार उनके घर में भारी तंगी आ गई। रोटी के लाले पड़ गए। अनारो ने अपने हथियार चलाए। वह भोला पंडित के पीछे पड़ गई। उसने उनकी ताकत की याद दिलाई। उस नगर में बसंती डंगिया नाम का नामी जजमान रहता था। उसकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। अनारो ने अपने पति से कहा, “बसंती डंगिया को गंगास्नान करा लाओ। अच्छी-खासी दान-दक्षिणा मिल जाएगी। घर का खर्चा चल जायेगा। ” भोला पंडित ने बहुत बार मन किया। उसे समझाया कि दूर के ढोल सुहावने दिखाई देते है। वह पैसे वाला तो है, पर है बड़ा कंजूस। मैं डाल-डाल, तो वह पात-पात। पर उसकी हठ के सामने पंडित को घुटने टेकने पड़े।

आखिर झक मारकर भोला पंडित बसंती डंगिया के यहाँ पहुंचे। सेठ जी ने उन्हें लम्बी डंडोत दी। पंडित जी ने संस्कृत के मंत्र खूब पढ़े। ढेर सारा आशीर्वाद दिया। अब पंडितजी ने अपना हाथ फेरना शुरू किया। खूब खुशामदी बातें की। लल्लो-चप्पो की। सेठजी ने कहा, “पंडितजी अब असली मुद्दे की बात करो। आपने घर आने का कष्ट कैसे उठाया ?”

Pandit ki Kahani

पंडित की कहानी
pandit ki kahani

पंडितजी बोले, “सेठ साहब, परसों सोमोतीमावस है। गंगास्नान का पर्व है। चाहो गंगास्नान कर आये। ” सेठजी बात सुनते ही प्रसन्न हो गए। बोले, “पंडितजी, आपने बड़ी कृपा की। खूब याद दिलाई। गंगास्नान का फल तो जरूर लेना चाहिए। फिर सोमोतीमावस का पर्व, एक पंथ दो काज हो जायेंगे। पर्व का पर्व और सैर की सैर।

पर पंडित जी, यह बताओ कि कौन से वाहन से चलोगे। ” पंडितजी तो थे भोले-भाले और हां में हां मिलाने वाले। बोले, “जिसमे आप राजी, उसमें हम राजी। ” यह सुनकर सेठ जी बोले, “हाथी पर चलना ठीक रहेगा। ” पंडित जी उछल पड़े। हां में हां मिलते हुए बोले, “आपने सही कहा हाथी एकदम ठीक रहेगा। सवारी की सवारी और दर्शन के दर्शन।

भोला Pandit ki Kahani

पंडित की कहानी
भोला पंडित

पीठ खूब लम्बी चौड़ी। चाहो तो पलंग बिछा लो। सोते चले जाओ। इससे अच्छी और कौन सी सवारी होगी !” तभी सेठजी ने फरमाया, “पंडितजी हाथी की सवारी ठीक है। पर एक खराबी है। हाथी बिगड़ जाये तो सवार को सूंड़ से पकड़कर नीचे फेंक डाले। पांव से कुचल दे। ” पंडित जी ने फिर हां में हां मिलाई। बोले, “अजी मारो गोली। ऐसी सवारी का क्या काम ! काला-कलूटा बिलाव जैसा ! उसे खिलाने के लिए मन भर खाना कहा से लायेंगे !”

सेठजी बोले, “ऊंट ठीक रहेगा। ” पंडित जी ने फिर हां में हां मिलाई। तारीफ के पुल बाँध दिए, “वाह सेठजी ! आपने तो मेरे मन की बात कह दी ! ऊंट ही है ! रेगिस्तान का जहाज ! ऊपर बैठो तो चारों तरफ के नज़ारे देखते चलो। खर्चा कुछ भी नहीं। ऊंट तो कंटीली झाड़िया खाकर भी सब्र कर लेता है। ” सेठजी ने लम्बी साँस छोड़ी। ” बोले, “पंडितजी, जब यह पागल हो जाए, तो मारे बिना नहीं छोड़ता। ” पंडित जी ने पैंतरा बदला बोले, “आपने सच कहा ऊंट भी कोई सवारी है ! लम्बा डीलडौल ! कब्बदार पीठ ! बैठना ही दूभर है ! छोड़ो ऊंट को !”

Pandit ki Kahani

पंडित की कहानी
भोला पंडित की कहानी

सेठजी बोले, “रथ ले चलें। ” पंडित जी ने कहा, “वाह सेठजी, यह आपने अच्छी बात सोची। रथ तो विष्णु भगवान की सवारी है। धीरे-धीरे सैर करता हुआ ले जायेगा। पेट का पानी भी नहीं हिलेगा। ” यहीं पर सेठ जी ने रास्ता निकाल लिया। बोले, “कहीं टूट गया, तो सब गुड़गोबर हो जायेगा। यात्रा अधूरी रह जाएगी। ” पंडित जी ने नहले पर दहला लगाया। ज्ञान की पूरी पिटारी खोल डाली, “कहाँ बैलो को बांधेंगे ? कहाँ दाने-पानी का इंतजाम करेंगे। “

इस तरह सेठ जी सवारियों के बारे में सुझाते रहे। पंडित जी हां में हां मिलाते रहे। बात बनती और बिगड़ती रही। आखिर में सेठ जी पदयात्रा पर आ गए। इसके लिए पंडित जी का रोम-रोम राजी हो गया। पंडित जी ने पदयात्रा का महत्व सबसे अधिक बताया। पाँव चलने से तन भी ठीक रहता है और मन भी स्वस्थ रहेगा। धर्म का धर्म और कर्म का कर्म हो जायेगा। गंगास्नान का पूरा लाभ मिलेगा।

यह सुनकर सेठजी ठन्डे पड़ गए। बोले, “पंडित जी, “पैदल चलेंगे, तो थक जायेंगे। पूरा बदन टूट जायेगा। शरीर को ऐसा दंड देने से क्या फायदा ! हमारी समय में तो एक ही बात आती है। घर में स्नान कर लिया जाए, तो अच्छा रहेगा। आप ही टो कहते हो, मन चंगा तो कठौती में गंगा। ” यह सुनकर पंडित जी सन्न रह गए। वे फिर कुछ नहीं बोलेऔर वहां से घर की ओर हो लिए।

भोला Pandit ki Kahani Best hindi kahaniya – ठन ठन गोपाल

4 Comments on “भोला पंडित | Bhola Pandit ki Kahani”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *