आज हम आपके लिए कुछ मजेदार Best Baccho ki kahani hindi लेकर आये है जो बहुत ही ज्यादा rochak kahani है।
Best Baccho ki kahani Hindi
1 एक से बढ़ कर एक
( Baccho ki kahani Hindi)
एक चोर था। वह जिस किसी को लूटना चाहता था, लूट लेता था। उसके नाम से अच्छे-अच्छे लोग डरते थे।
एक बार वह एक सेठ की हवेली में घुसा। वहां से वह मूल्यवान हीरे चुरा लाया।
सदा की तरह वह एक दुकानदार के यहाँ पहुंचा। यह दुकानदार सदा उससे चोरी का माल बहुत ही सस्ते दामों में लेता था। आज भी उसने उन हीरों का मूल्य बहुत कम कहा। चोर इस पर राजी नहीं हुआ। वह घर आ गया। रात के समय हीरों की पेटी को सिर के नीचे रखकर सो गया।
उसी शहर में एक नया डाकू आया हुआ था। चोरी डाका डालने में बहुत कुशल था। उसे किसी तरह पता चल गया कि फलां चोर के पास अमूल्य हीरे हैं। उसने रात को उन हीरों को चुराने की ठानी।
वह दिन में ही चोर का मकान देख आया। वह जिस मकान में रहता था वह किसी ठाकुर का डेरा था। पत्थर का बना हुआ था। उसमे घुसना सहज नहीं था।
(Baccho ki kahani Hindi)
आने वाला डाकू ठीक बारह बजे उस डेरे के आगे पहुंचा। उसके हाथ में हथौड़ा और बड़ी कीलें थीं। कीलें इतनी तेज और मजबूत थी कि पत्थर में गड़ जाती थीं।
डाकू ने बन्दीगृह के घंटे की टंकार के साथ कीलें गाड़ना शुरू किया। एक टंकार की आवाज के साथ धम से एक कील गड़ जाती थी इस तरह कीले गाड़ कर डेरे में घुस गया।
अब डाकू चन्द्रमा चढ़ने की प्रतीक्षा करने लगा। चाँद की रौशनी खिड़की में आयी डाकू ने हीरों की पेटी देख ली। पेटी चोर की गर्दन के नीचे थी। उसने तुरंत अपनी जेब में से तम्बाकू की डिब्बी निकाली और चुटकी भरकर चोर को सुंघाई। उसे जोर से छींक आई। छींक के साथ जैसे ही उसकी गर्दन उठी वैसे ही डाकू ने पेटी निकाली और उसकी जगह ईंट रख दी। खूंटी पर चोर का मोतियों का हार टंग रहा था। एक बार डाकू की इच्छा हुई कि वह हार भी ले ले पर नहीं लिया और चला आया।
सुबह सेठ ने सोचा कि हीरे बड़े कीमती है उन्हें खरीद ही लेना चाहिए। इधर चोर हीरों के लिए व्याकुल था। सेठ ने पूछा, “वह हीरों की पेई कहां है। “
चोर ने अपनी बीती बात मिटने के लिए तुरंत कहा, “सेठ जी उन हीरों को मैंने बेच दिया है। “
“क्या भाव? “
“जिस भाव लाया था, उसी भाव। न फायदा न नुकसान। ” सेठ अपना-सा मुँह लेकर चला गया और इधर चोर परेशान और डाकू सभी का बाप बन गया।
2 जीवनदायी कविता
(Baccho ki kahani Hindi)
एक राजा था। राजा बड़ा ही भावुक था। उसे कविता से अत्यंत प्रेम था। उसके पास जो भी कोई कविता लिखकर लाता वह उसे कुछ न कुछ पुरस्कार अवश्य देता था।
उस राजा के नगर के पास एक गाँव था। उस गाँव में एक दरिद्र ब्राह्मण रहता था।
एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने अपने पति से कहा, “आप भी कुछ तुकबंदी करके राजा के पास जाइये और कुछ धन लाइए ताकि दाल-रोटी का प्रबंध हो। ” ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को समझाया कि उसे कुछ भी नहीं आता। कविता करना सरल काम नहीं है किन्तु उसकी पत्नी नहीं मानी। वह हठ करने लगी। लाचार होकर ब्राह्मण अपने घर से निकल पड़ा।
रस्ते में एक तालाब पड़ता था। वह उसके किनारे बैठ गया। अपने कंधे पर लटकी गठरी में से उसने बाजरे की रोटी निकाली और उसे पानी में भिगोकर खाने लगा। खाते-खाते उसने एक कौवे को देखा जो बार-बार पानी में अपनी चोंच भिगोकर पत्थर पर रगड़ रहा था। बस तुकबंदी का मसाला मिल गया। ब्राह्मण ने तुकबंदी की :
“घिसता है, फिर घिसता है, रुक-रुक गिराता पानी,
तेरे मन की बात कालिया, सारी मैंने जानी। “
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यह तुकबंदी करके ब्राह्मण राजा के पास पहुंचा। राजा ने जैसे ही सुचना पाई, वैसे ही ब्राह्मण को बुलाया। पंक्तिया सुनी। सुनकर उसे कोई आनंद नहीं आया पर उसने ब्राह्मण को थोड़ा-सा पुरस्कार देकर विदा किया। ब्राह्मण ने राजा को आशीर्वाद दिया।
राजा का मंत्री कपटी था। वह राजा को मारकर खुद राजा बनना चाहता था। राजा को मारने की उसने एक युक्ति सोची। उसने राजा के नाई को लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। उसने नाई से कहा, “जब तू राजा की दाढ़ी बनाये तब उस्तरे से राजा का गला काट देना। ” इस काम के लिए मंत्री ने नाई को बहुत सारा धन देने का वादा किया। नाई भी लालच में यह नीच काम करने को तैयार हो गया।
(Rochak kahani)
नाई राजमहल में राजा की दाढ़ी बनाने रोज आता था।
उस दिन भी वह दाढ़ी बनाने आया पर राजा के गर्दन पर उस्तरा चलने का उसे साहस नहीं हो रहा था। इसलिए वह समय बिताने के लिए सिल्ल पर उस्तरे को व्यर्थ ही रगड़ने लगा। राजा ने उसे ऐसा करते देखा तो उसे ब्राह्मण की कहीं पंक्तिया याद आ गई। वह उन पंक्तियों को गुनगुनाने लगा। घिसता है, फिर घिसता है, रुक-रुक गिराता पानी। तेरे मन की बात कालिया सारी मैंने जानी।
संयोग से नाई का रंग भी काला था। उसे कालिया ही कहते थे। इन पंक्तियों को सुनते ही नाई तो सूखे पत्ते की तरह कांपने लगा। उसने समझ लिया कि राजा ने भेद जान लिया है। बस वह राजा के पाँव पड़ गया। उसने राजा को सारी बाते बतला दीं। नाई को छोड़ दिया और मंत्री को सूली पर चढ़वा दिया।
उसी दिन राजा ने पालकी भेजकर उस ब्राह्मण को बुलवाया और बहुत सारा धन देकर विदा कर दिया।
ब्राह्मण सुख से अपने दिन व्यतीत करने लगा।
3 राजू और लंगूर
(Best Baccho ki kahani Hindi)
एक नगर था। उसमे एक गरीब बस्ती था। उन गरीब बस्ती में राजू नाम का एक अत्यंत ही गरीब लड़का रहता था। उसके माँ-बाप बूढ़े थे और अब वे राजू के ही सहारे थे। इसलिए बेचारे राजू को पढ़ना-लिखना बंद करके कमाना पड़ रहा था।
राजू सुबह सुबह ही फलो या सब्जी की टोकरी लेकर निकल पड़ता था और शाम को वापस आता था रात को वह पढता था आसपास के लोगो की सेवा करता था सारी बस्ती के लोग उससे प्रसन्न थे उसकी चेष्टा रहती थी की कोई भी उससे अप्रसन्न न रहे
एक दिन की बात है राजू आम की कैरियां लेकर निकला। उसकी बस्ती से शहर काफी दूर पड़ता था। रास्ते में बगीचा था। गर्मी की मौसम में राजू वहां सुस्ताता था। घने पेड़ो की छाया उसे काफी सुहाती थी। उन पेड़ो पर लंगूर रहते थे।
(Best Baccho ki kahani Hindi)
आज जैसे ही राजू ने अपनी टोकरी रखी कि लंगूरो को क्या सूझी कि वे कैरियों पर झपट पड़े और देखते-देखते कैरिया लेकर पेड़ो पर चढ़ गए। इसके पहले ऐसा लंगूरो ने नहीं किया था ऐसा कोई भी हरकत नहीं की थी। राजू को बड़ा अचरज हुआ कि करे तो क्या करे ? लंगूर अब राजू को कैरिया दिखाकर चिढ़ाने लगे। उसका मुँह उतर गया।
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राजू उन्हें आँखे दिखाता तो लंगूर भी उसे आँखे दिखा देते थे। राजू को विश्वास हो गया कि यदि उसने तुरंत कोई उपाय नहीं किया तो ये लंगूर उसकी कैरियों को तोड़ डालेंगे। उसे सहसा याद आया कि मनुष्य को आपत्ति में धैर्य और ज्ञान नहीं छोड़ना चाहिए। धीरे-धीरे उसे मालूम हुआ कि लंगूरो में नकल करने की बुरी आदत है।
सो उसने टोकरी में बची कैरिया उठाई और उन्हें लंगूरो पर फेकने लगा। अभी दो ही पल बीते थे कि लंगूरो ने गुस्से में वापिस कैरिया फेकने शुरू कर दी। राजू भागकर पेड़ की ओट में हो गया। देखते-देखते सारी कैरिया जमीन गयी। राजू ने तुरंत अपनी टोकरी कैरया डाली और लंगूर कोई हरकत करे, इसके पहले ही वह नौ दो ग्यारह हो गया।
अपनी बुद्धि से उसने अपनी होती हुई हानि को बचा लिया।
Best Baccho ki kahani hindi – उल्लू, कौआ और कोयल
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