अपना और पराया | Apna Paraya | Baccho Ki Kahani

आज हम आप सभी को Best Baccho Ki Kahani बताने जा रहे है। यह कहानी बाल निर्माण की कहानियां में से एक है। इस Baccho Ki Kahani के माध्यम से आप सभी अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा दे सकते है। आप सभी इस Baccho Ki Kahani को पढ़िए और दुसरो को शेयर भी करिए।

अपना और पराया

Best Hindi Baccho Ki Kahani

मनोहर वन में एक बार बहुत जोरों का तूफ़ान आया। वैसा पहले न किसी ने देखा था और न सुना था। मूसलाधार पानी बरस रहा था, रह-रहकर बिजली कड़क रही थी। हवा इतनी तेज थी कि सभी को उदा ले जा रही थी। वृक्षों के कोटरों में रहने वाले नन्हे पक्षियों के दिल काँप उठे। उस भयंकर तूफान में वृक्ष भी न खड़े रह पाए और एक-एक करके वे गिरने लगे।

जैसे -जैसे तूफान खत्म हुआ। पक्षी डरते-डरते अपने-अपने घोंसलों से निकले। पुरे वन में दस पक्षी ही जीवित थे। शेष सभी उस तूफान की भेंट चढ़ चुके थे। अपने-अपने सम्बन्धियों के दुःख में वे सभी के आँखों में आंसू आ जाते। उन्होंने दो दिनों तक भूख प्यास सभी चीजों का त्याग कर दिये थे।

पुरे के पुरे वन में बीएस एक बरगद दादा ही बचे थे। और सारे वृक्ष तूफान में गिर चुके थे। बरगद दादा से पक्षियों का दुःख देखा न गया। उन्होंने प्यार से सभी को अपने पास इकट्ठा किया और बोले– “बच्चो ! अभी जिस प्रकार की स्थिति है उसका निडर होकर सामना करो। सोचो ! ऊपर वाले के लिखा हुआ को कौन टाल सकता है ? सुख और दुःख यह तो जीवन में निश्चित रूप से आते ही है। उठो ! साहस से स्थिति का सामना करो। दुःख को भी भगवान के प्रसाद के रूप में ले लो और नए सिरे से निर्माण में जुट जाओ। तुम्हारा जीवन अद्भुत रूप से जगमगा उठेगा। ”

रजत कबूतर को वट दादा की ये बातें तनिक भी अच्छी न लगी। वह बोला– “दादा जी ! मेरे बहु-बच्चे सभी तो तूफान में मर गए। अब आप ही बताए मैं भला जीऊं तो किसके लिए ? मैं तो आपकी डाली में ही फांसी लगाकर मर जाऊंगा। ” यह कहकर वह सचमुच बरगद के पेड़ की डाल पर लटकने लगा।

वट दादा का तो दिल ही कांप गया। उसे अपनी गोद में छिपाते हुए बोले– ” न बेटा न ! ऐसा बुरा काम न करो। “

फिर और पक्षियों को समझाते हुए बोले–“देखो ! संसार में न कोई अपना है और न पराया। जिसे हम अपना मानकर चलते है, जिसके साथ अच्छा व्यवहार करते है, वही अपना बन जाता है। जिसके साथ हम बुरा व्यवहार करते है, वही पराया बन जाता है। हमारा परिवार ही हमारा घर नहीं है , पूरा संसार हमारा घर है। तुम सभी आपस में मिल-जुलकर परिवार भांति रहो। तुम सभी के अकेलेपन का, संबंधियों के मरने का दुःख धीरे-धीरे दूर हो जायेगा। “

सभी पक्षियों को वट दादा की यह बात अच्छी लग रही थी। आखिर कोई भी तो ऐसा नहीं था , जिसके घर में कोई मरा न हो। अतएव सभी पक्षी उसी दिन से मिल-जुलकर काम करते थे।

कल्लू कौवा जहाँ खाने-पीने की कोई चीज देखता तो काँव-काँव करके सभी को जूटा लेता। श्यामा कोयल सभी के लिए मीठे-मीठे आम तोड़ लाती। हरियल तोता दूर-दूर जाकर अनार और अमरुद ले आता। रजत कबूतर अनाज के दाने इकट्ठा करके ला देता। बस, एक श्वेताभ सारस ही ऐसा था , जो कुछ भी काम न कर पाता। वह वास्तव में बहुत बूढ़ा था।

Best Baccho Ki Kahani Hindi – मुर्ख भी विद्वान बन सकता है

उसे काम दीखता था और काम करने में उसकी गर्दन काँपती थी। शुरू-शुरू की बात है, वह और पक्षियों से कुछ भी न लेता था। कहता था कि औरों पर भार नहीं बनेगा। जो कुछ जैसे भी जुटा पाता था खा लेता था, पर एक दिन रजत कबूतर से यह देखा न गया। वह बोला– ” दादा जी ! क्या बच्चों का यह फर्ज नहीं कि वे बूढ़े माँ-बाप की सेवा करें ? क्या आपके बच्चे होते , तो आप इस प्रकार कष्ट पाते ?”

उसकी बात बीच में ही काटकर श्वेताभ बोला– ” आखिर जरूरी तो नहीं कि वे मेरी सेवा करते ही रहते। “

तैश में भरकर रजत कहने लगा — “ओह ! धिक्कार है उन नालायक बच्चो को, जिनके लिए माता-पिता जीवन भर त्याग करते है और बड़े होने पर जो उनकी परवाह तक नहीं करते। ऐसे बच्चो से तो बच्चो का न होना ही अधिक अच्छा। “

दो पल रूककर रजत फिर कहने लगा — “पर दादा जी ! हम आपके नालायक बच्चे नहीं है। यदि आप हमे पराया नहीं समझते, आप हमे जरा भी स्नेह करते है , तो आपको हमारी सेवाएं लेनी ही पड़ेगी। “

श्वेताभ की आँखों में ख़ुशी के आंसू भर आए। वह सोचने लगा कि मेरे अपने भी बच्चे होते तो क्या वे भी इतना ध्यान रख पाते ?

तभी वहां फुदककर श्यामा कोयल, चतुरी मैना, कल्लू कौवा, महादेव नीलकंठ आदि सभी पक्षी आ गए। महादेव कहने लगा — “दादा जी ! अब आपको खाना खोजने के लिए कही भी जाने की जरुरत नहीं। यह सभी आपको थोड़ा-थोड़ा खाना लाकर देंगे बस, आपका पेट भर जाएगा। ” खुशी से श्वेताभ का कंठ गदगद हो गया , वह एक भी शब्द भी उन सबके आगे बोल न पाया।

एक दिन जब सभी साथ-साथ खाना खा रहे थे, तो श्यामा कोयल बोली –“हमे ऐसा लगता है कि आजकल वट दादा बड़े ही उदास से रहते है। “

सभी पक्षी एक साथ बोले कि हम सभी को लगता है कि वे हमसे कुछ दुःख छुपाए हुए है।

“चलो ! चलकर उन्ही से पूछते है। ” हरियल तोता बोला।

खाना खाने के बाद सभी वट दादा को घेरकर बैठ गए और उनकी उदासी का कारण पूछने लगे। बड़ी देर तक वे न-न करते रहे। बहुत आग्रह करने पर बोले –“बच्चो ! मैं कभी-कभी यह सोच जाता हूँ कि एक दिन यह जगह कैसी चहल-पहल से भरी हुई थी ? अब तो यहाँ पर चारों ओर धूल ही धूल उड़ती दिखाई देती है। “

और दादा जी हम सब तो सुबह ही काम पर निकल जाते है। साँय-साँय करती सुनी दोपहर में आपको बहुत ही अकेलापन लगता होगा न ? श्यामा कोयल बड़े भोलेपन से अपनी आँखे वट दादा पर टीकाकार बोली।

Baccho Ki Kahani Hindi – एक से बढ़ कर एक

“सो तो होगा ही। ” सभी पक्षी एक साथ बोले।

श्वेताभ सारस कहने लगा — “दादा जी ! आप हमारे प्राणरक्षक हैं , जीवनदाता है। यदि हम आपका दुःख दूर न कर पाए तो धिक्कार है हमे। हम जल्दी ही आपके चारों ओर एक नै बस्ती बसा देंगे। आशीर्वाद दीजिए इस प्रयास में सफल हो। “

इसके बाद श्वेताभ ने सभी पक्षियों को कुछ समझाया। बस, फिर क्या था, दूसरे दिन से अभियान शुरू हो गया। रजत कबूतर , कल्लू कौवा, श्यामा कोयल , हरियल तोता आदि जो भी वापस लौटता उसकी चोंच में जरूर कुछ न कुछ विशेष चीज लगी होती। कभी वे कोई पका हुआ बेर ले आते, तो कभी आम, कभी अनार ले आते तो कभी उनकी चोंच में पीपल की कोई टहनी ही लगी होती।

वट दादा के आस-पास की जमीन को पंजो से वे थोड़ा खोदते, फिर कभी उसमे बीज डाल देते , तो कभी कोई टहनी ही गाड़ देते। पंद्रह-बीस दिन बाद वर्षाऋतु भी आ गई और कुछ ही दिनों में बरगद के चारों ओर हरियाली उग आई। नन्ही-नन्ही दुब घास का गलीचा बिछ गया। कहीं नीम , कहीं पीपल , कहीं बेरिया, कहीं जामुन तो कही अनार के पौधे उग आए। तरह-तरह के फूलों के पौधे भी उगने लगे। कुछ ही वर्षों में वे सभी खूब बड़े-बड़े हो गए। अब तो वहां दूसरे पक्षी भी आकर बसने लगे। कुछ ही समय में पेड़ो पर पक्षियों की अच्छी-खासी बस्ती ही बस गई।

श्वेताभ सारस और वट दादा ने रजत कबूतर , श्यामा कोयल, महादेव नीलकंठ , हरियल तोता, कल्लू कौवा आदि सभी का विवाह भी करा दिया। उनके नन्हे-नन्हे बच्चे अब वट दादा के साथ रहते थे। सारस दादा बैठे-बैठे सभी की रखवाली करते थे।

एक दिन रजत कबूतर हंसकर वट दादा से बोला– “क्यों दादा जी ! अब तो दोपहर में आपको सूनापन नहीं लगता होगा न। बतियाने को अब तो आपके चारोँ ओर ढेर सारे पेड़-पौधे हैं। “

वट दादा भी मुस्कुराकर बोले — “और भाई तुम्हारा भी खूब मन लग गया है न ! अब तो मेरी डाल में गर्दन फँसाने की कोशिश नहीं करोगे न। “

दादा और रजत की चुहल बाजी से सभी पक्षी मुस्कुरा उठे। उन्हें सहसा ही तूफान वाला दिन याद आ गया। वे मन ही मन सोच रहे थे — “जब हम एक दूसरे को पराया समझ लेते है, तो दुःख ही दुःख पाते है। सबको अपना आत्मीय बनाकर चलने में ही जीवन का सच्चा सुख है। धैर्य और विवेक से मिल-जुलकर काम करने से बुरी से बुरी स्थिति भी जल्दी ही दूर हो जाती है। “

तो दोस्तों कैसी लगी यह अपना और पराया Baccho Ki Kahani हिंदी में। हमे उम्मीद है कि आप सभी को यह Baccho Ki Kahani जरूर पसंद आयी होगी। ऐसे ही अच्छी और शिक्षाप्रद कहानिया पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहे।

गायत्री परिवार के द्वारा बाल निर्माण की कहानियां को हमारी तरफ से बहुत बहुत आभार।

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