सूझ-बुझ | Sujh-Bujh | Short Moral Story Hindi

दोस्तों आज हम आपको एक Best Short Moral Story Hindi जिसका शीर्षक “सूझ-बुझ” है। यह एक Short Moral Story है जिसे पढ़कर आप अपने जीवन में अवतरित कर सकते है। इस Short Moral Story Hindi में हमें मेंढक और सांप तथा नेवला का वर्णन मिलता है। तो दोस्तों आप सभी इस Best Short Moral Story Hindi को जरूर पढ़िए और अपने दोस्तों रिश्तेदारों को भी share करिए।

सूझ-बुझ

(Short Moral Story Hindi)

वृन्दावन के उस जंगल में कदम्ब के अनेक पेड़ थे। पेड़ो के पास ही एक बहुत बड़ा कुंड था, जिसका नाम था पोतरा कुंड। उसका पानी कम हो गया था, साथ ही गंदा भी हो चला था। इसलिए वहां पर मनुष्य स्नान करने नहीं आते थे। अब वहां पर मेंढकों का ही साम्राज्य हो गया था। असंख्य मेंढक अपने-अपने परिवारों के साथ वहां रहते। जगह की तो कोई कमी वहां थी नहीं। मेंढकों के बच्चे मजे में खाते, कूदते, खेलते, घूमते। खाने के लिए भी आस-पास खूब मिल ही जाता। किसी भी मेंढक को कोई किसी तरह की परेशानी न थी।

मेंढकों का मुखिया था दुल्लु। यों नाम तो उसका दुलारे था,पर बड़े सभी प्यार से “दुल्लु काका ” कहते थे। दुल्लु काका बड़े ही समझदार थे। वे उनमे से न थे जो दूसरों पर अपने पद का रौब जमाते है और उन्हें अनुचित रूप से तंग करते है। वे तो सच्चे जान-सेवक थे, वे हर किसी की सहायता के लिए तैयार रहते। यही कारण था कि सारे मेंढक उन्हें जी-जान से प्यार करते थे।

मेंढकों का वह विशाल समूह पोतराकुंड में बहुत आराम से रह रहा था, परन्तु कुछ वर्षों बाद एक दुर्घटना घटी। एक दिन बसु नाम का सर्प अपने परिवार के साथ घूमता हुआ आया। बसु को वह स्थान बहुत ही सुन्दर लगा। वह सपरिवार वहां बस गया। इतना ही नहीं उसने अपने मित्रों-सम्बन्धियों को भी वहां बसने के लिए निमंत्रण दे दिया।

बसु के वहां बसने पर मेंढकों की तो जान पर ही आ बनी। बसु और उसके कुटुम्बी आठ-दस मेंढकों का रोज सफाया कर डालते। मेंढकों के छोटे-छोटे बच्चे घूमने-फिरने बाहर निकलते , पर उनका पता ही न लगता। सारे मेंढक चिंता से भर उठे। वे दुल्लु के पास गए और बोले — “काका ! हम कैसी मुसीबत में फंस गए है। अब तो यह स्थान छोड़कर कही और जाने में ही भला है। अपने प्यारे बच्चो का विछोह हम कब तक सहते रहेंगे?”

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दुल्लु काका गंभीर होकर बोले — “मैं भी कई दिनों से इस बात पर विचार कर रहा था। यह जगह एकदम छोड़ते भी नहीं बनती। वर्षों मेहनत करके हमने इसे रहने लायक बनाया है। ऐसा करें, सापों से बातचीत करके देखें। यदि कोई समझौता हो जाए तो ठीक है। “

दूसरे ही दिन दुल्लु काका कुछ मेंढकों को लेकर बसु के पास पहुंचे। दुल्लु काका ने हाथ जोड़कर कहा — “बड़े भाई ! आप यहाँ आए है, आपका स्वागत है। यह जगह हमने वर्षों मेहनत करके रहने योग्य बनाई है। फिर भी हम आधी जगह आपको देने को तैयार है। आधी जगह आप हमारे लिए छोड़ दीजिए और आधे स्थान में आप रह लीजिए। “

यह सुनकर बसु फुँकारते हुए बोला — “तुम कौन होते हो हमे आधी और पूरी जगह देने वाले।तुम्हारी यह हिम्मत कि हमसे ऐसी बात कहो। अब यहाँ हम और हमारे रिश्तेदार रहेंगे। तुमने यदि जरा भी अधिक सिर उठाया तो सब के सब मौत के मुँह में जाओगे। “

मेंढक अपना-सा मुँह लेकर लौट आए। बसु के कटु व्यवहार से उन्हें बड़ा दुःख हुआ। वे सभी निराश होकर पोतरा कुंड छोड़ने की तयारी करने लगे। दुल्लु काका बोला–“भाइयो ! यदि बसु सज्जनता और शिष्टता से यही कहते तो हमे उतनी बुरी न लगती। यह ठीक है कि शरीरिक बल में वह हमसे अधिक है, पर बलशाली को भी ऐसा उद्दंडता भरा कटु व्यवहार शोभा नहीं देता। बसु को सबक मिलना ही चाहिए, जिससे वह दूसरों को तुच्छ-दुर्बल और असहाय समझकर न सताए। हम अपने बुद्धिबल से उसको परास्त करके ही रहेंगे।”

“कैसे ?” मेंढक एक साथ पूछने लगे। दुल्लु काका ने उन्हें अपनी योजना बताई — “दुल्लु काका का मित्र था अंशु नाम का एक नेवला। उन्होंने अंशु की आपत्ति में सहायता की थी, उन्हें विश्वास था कि अब मुसीबत के समय अंशु भी सच्चे मित्र के भांति उनकी सहायता करेगा। दुल्लु काका और दूसरे मेंढक दौड़े-दौड़े उसके पास गए और सारी कथा सुनाई।”

अंशु बात सुनते ही बोला — “आप चिंता न कीजिए। मैं जल्दी ही अपने साथियों सहित आ जाऊंगा। तब तक आप थोड़े दिन के लिए और कही रहने के लिए चले जाइए। कही ऐसा न हो कि बसु गुस्से में आप से बदला लेने लगे।”

“ठीक है , हम ऐसा ही करेंगे।” कहते हुए दुल्लु काका और दूसरे मेंढक वहां से लौट आए। दूसरे ही दिन सभी मेंढक अपना-अपना सारा ही सामान साथ लेकर एक झुण्ड बनाकर पोतरा कुंड छोड़कर चले गए।

जल्दी ही अंशु अपने मित्रों और संबंधियों के साथ वहां आ गया। उसने आते ही सारे इलाके में यह प्रचार करा दिया कि अब नेवलों का पूरा का पूरा राज्य वहां बसने वाला है। यद्यपि नेवले संख्या में थोड़े थे, पर वे हर समय यहाँ घूमते रहते थे। यह देखकर बसु डर उठा। उसने वह स्थान छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझी।

उसके मित्र उसे कोसने लगे — तुमने बिना सोचे-समझे हमे बुला लिया। कम से कम यह तो देख लेते कि स्थान सुरक्षित है भी या नहीं, तभी हमारा घर छुड़वाते। बसु क्या कहता ? उसने तो सबका भला सोचा था, पर हुआ बुरा। वह चुपचाप सिर झुकाकर रह गया। उसे डर था कि और बहुत से नेवले आ जाएंगे तो सापों के लिए खतरा हो जाएगा। अतएव बसु सारे सापों के साथ रातों-रात वहां से चला गया।

दुल्लु काका और दूसरे मेंढक आसपास ही छिपे हुए थे। बसु के दूर जाते ही वे गाते-बजाते फुदक-फुदक कर वहां आ गए। दुल्लु ने अंशु नेवले को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। उसकी सहायता के कारण वह अपने से अधिक शक्तिशाली शत्रु को हरा सके थे। आपत्ति के समय सहायता करके अंशु ने सच्ची मित्रता निभाई थी। दुल्लु और दूसरे मेंढकों ने ढेर सारे उपहार देकर अंशु को आदर सहित विदा किया।

सारे मेंढकों ने दुल्लु काका की सूझबूझ की बहुत प्रशंसा की। उन्ही के कारण वे अपने पुराने घरों में लौट सके थे। दुल्लु काका कहने लगे — “भाइयो ! हमे प्रत्येक से सज्जनता का व्यवहार करना चाहिए, परन्तु जब दुष्ट सज्जनता का मूल्य न समझे, दुष्टता करने पर उतारू रहे तो फिर उसके आगे दुर्बल बनना कायरता है। उसे सबक सिखाना चाहिए, जिससे वह अपनी दुष्टता से औरों को कष्ट न पहुंचा सके। अपने से अधिक शक्तिशाली पर भी हम सूझबूझ से ही विजय पा सकते है। कोई भी स्थिति ऐसी नहीं जिसे बुद्धिमानी से हल न किया जा सकता हो, पर उसके लिए आवश्यकता होती है धैर्य की, आत्म विश्वास की।”

“और तभी सफलता भी मिलती है। ” सारे मेंढक एक साथ एक स्वर में बोले।

फिर सभी एक साथ चल पड़े आज के दिन आयोजित विशाल प्रीतिभोज का आनंद लेने।

तो दोस्तों कैसी लगी यह Short Moral Story Hindi सूझ-बुझ। दोस्तों इससे हमे पता चलता है कि हमे अपने से कमजोर बलपूर्वक व्यवहार नहीं करना चाहिए। हमे दुसरो से प्रेम के साथ बात करना चाहिए साथ ही उनकी सहायता भी करना चाहिए। तो दोस्तों हमे उम्मीद है कि Short Moral Story Hindi को पढ़कर आप को आनंद तथा शिक्षा मिली होगी। ऐसे ही Short Moral Story Hindi पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहिए।

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