दोस्तों आज हम आप सभी के लिए Ek Chuhe ki Kahani जिसका शीर्षक “नन्दू को दण्ड “लेकर आये है। यह कहानी एक चूहे की है। दोस्तों यह Chuhe ki Kahani मजेदार कहानी है। आप सभी इस Chuhe ki Kahani New Story Hindi “नन्दू को दण्ड ” को पढ़िए और दूसरों को भी share करिए।
नन्दू को दण्ड
(Chuhe ki Kahani New Story Hindi)
नन्दू चूहे में एक बुरी आदत थी, वह थी बहुत बोलने की । हर समय वह कुछ न कुछ बोलता ही रहता था । उसकी माँ उसे समझाया करती थी कि बेटा ! बहुत बोलने की आदत ठीक नहीं है व्यर्थ बोलने में बहुत-सी शक्ति खर्च होती है । काम की बात ही बोलो, पर नन्दू था कि मानता ही न था ।
धीरे-धीरे नन्दू में चुगलखोरी की आदत भी आ गयी वह इधर की उधर लगाने लगा, झूठ भी बोलने लगा । वह झूठ बोलकर, चुगलखोरी करके दूसरों में लड़ाई भी कराने लगा । ऐसा करने में उसे मजा आने लगा ।
नन्दू रोज ही कुछ न कुछ शरारत करने लगा । दिन उसने देखा कि मीतू बतख अपनी चोंच में खाना दबाये चली आ रही है । मीतू यह खाना अपने बच्चों के लिये ले जा रही थी । खाना देखकर नन्दू को भी भूख लगने लगी । वह सोचने लगा कि वैसे तो मीतू कुछ देगी नहीं । इसलिये उसके पास पहुँच गया और बोला- “नमस्ते मीतू मौसी !”
‘नमस्ते बेटा ! खुश रहो ।’ मीतू कहने लगी ।
नन्दू बोला- ‘मौसी ! सारस मामा कह रहे थे कि तुम कुछ भी काम नहीं करती हो । तुम्हारा खाना भी वे ही खोजते हैं ।’
यह सुनकर मीतू एकदम भड़क उठी और बोली- ‘हाँ-हाँ! मैं तो निकम्मी हूँ, मैं क्यों ढूँढगी अपना खाना ?’ फिर वह अपने मुँह से जोर-जोर से बक-बक की आवाज निकालते हुए आँखें नचाते हुए बोली- ‘यह सोना सारस भी न जाने अपने आप को क्या समझता है । एक दिन खाना खिला दिया तो रोज-रोज गाता फिरता है । अभी देखती हूँ उसे जाकर ।’ और वह पैर पटकती, अपना खाना छोड़कर तुरन्त चल दी ।
नन्दू चूहे ने बड़ी खुशी से वह खाना खाया | फिर संतोष से अपनी मूछों पर हाथ फिराया । इसके बाद वह मीतू बतख और सोना सारस की लड़ाई देखने चल दिया ।
सोना सारस को तो कुछ भी पता न था । मीतू बतख से लड़ती ही जा रही थी । नन्दू चूहे को उनकी इस लड़ाई में खूब मजा आया ।
ऐसी अनेक तरह की लड़ाइयाँ कराना नन्दू चूहे के लिये बड़ी मामूली सी बात थी ।
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उसकी माँ उसे हमेशा समझाती थी- ‘नन्दू तुम जैसा काम करोगे वैसा ही तुम्हें फल मिलेगा बुरे काम करने वालों को सदैव बुरा फल मिलता है ।’
पर नन्दू को अभी तक कोई बुरा फल मिला न था । | इसलिये वह बुरे काम छोड़ नहीं पाता था ।
एक दिन नन्दू घूमते-घूमते महाराज सिंह की गुफा तक जा पहुँचा । महाराज बैठे आराम कर रहे थे । नन्दू को यहाँ भी सूझी उसकी झूठ बोलने की आदत यहाँ भी न छूटी । उसने हाथ जोड़कर महाराज के आगे झुककर नमस्कार किया और बोला- ‘राजन् ! आप जैसे प्रतापी राजा कभी-कभी ही भाग्य से मिलते हैं ।’
सिंह ने अपने नथुनों को जोर से हिलाया और मूछों को गर्व से फड़फड़ाया ।
नन्दू आगे कहने लगा- ‘महाराज ! कोई आपकी बुराई करे तो मुझसे सहन नहीं होता ।”
‘किसमें है इतना साहस ?’ शेर दहाड़ा |
नन्दू ने दोनों हाथ जोड़ते हुए झुककर कहा – ‘महाराज ! आपका मंत्री भोलू भालू यह कह रहा था कि आप तो सारे ही दिन पड़े-पड़े आराम फरमाते रहते हैं । सुख-दुःख से आपको कोई मतलब नहीं है ।’ जनता के
“अच्छा! कहकर सिंह गरजा । उसने नन्दू को वहीं रुकने का आदेश दिया और एक सैनिक को हुक्म देकर भेजा | भोलू भालू को बुलाने के लिये ।
नन्दू मन में सोचने लगा कि आज मैं अच्छा फँसा । उसने तो सोचा था कि सिंह को भड़का कर वह तो चला जायेगा, पीछे सिंह और भालू दोनों आपस में लड़ते रहेंगे । पर सिंह ने तो उसे यहीं पर बैठने का आदेश दे दिया था। अब तो वहाँ से बाहर निकलना भी संभव न था ।
तभी नन्दु के दुर्भाग्य से मीतू बतख और सोना सारस भी वहीं आ पहुँचे । अब उन दोनों सुलह हो गयी थी । नन्दू की वह चालाकी उन्हें पता लग गयी थी । वे उसकी चुगल खोरी की महाराज से शिकायत करने आये थे
मीतू बतख ने विस्तार से सारी घटना बतायी उसे सुनकर सिंह को नन्दू चूहे पर बड़ा गुस्सा आया ।
तभी दरबार में लोमड़ी, हाथी, ऊँट, भालू आदि और जानवर भी आ गये । भी कभी न कभी नन्दू की शरारतों को भुगत चुके थे । सभी ने नन्दू की बुराई की ।
भोलू भालू कह रहा था – ‘महाराज ! मैंने तो कभी किसी से आपकी बुराई नहीं की । यह नन्दू ही सभी की बुराई करता फिरता है ।’
ऊँट, हाथी, लोमड़ी आदि सभी ने अपनी-अपनी गर्दन हिलाकर इस बात का समर्थन किया । अब सिंह को बड़ी जोर का गुस्सा आ गया । उसने नन्द्र को दण्ड सुनाया- ‘नन्द्र ! तुम्हारी इस आदत से सभी में झगड़ा होता है दूसरों में लड़ाई कराकर तुम तमाशा देखते हो । मुझे तुम पर गुस्सा तो इतना आ रहा है कि तुम्हें फाँसी पर चढ़ा दूँ, पर अभी ऐसा नहीं होगा । एक बार तुम्हें सँभलने का मौका दिया जायेगा । मैं अपने सैनिकों को आज्ञा देता हूँ कि तुम्हारी पूँछ और मूँछ काट लें ।’
सिंह के सैनिकों ने तुरन्त आगे बढ़कर ऐसा ही कर दिया । मीतू बतख बोली- ‘कितना ही समझाया था इस नन्दू को, पर यह अपनी चुगलखोरी और झूठ बोलने की आदत छोड़ता ही न था । आखिर में इसे इसका दण्ड तो मिल गया । अब यह अपनी सब गलत आदतें छोड़ देगा ।’
सोना सारस कर रहा था- ‘बुरे काम का फल निश्चित ही मिलता है । आज नहीं तो कल वह भुगतना पड़ता है ।’ ‘न तो कोई प्राणी किसी का बुरा सोचें और न किसी का बुरा करें हमेशा सबका भला सोचें और भला करें । इसी में बुद्धिमानी है ।’ भोलू भालू ने कहा ।
नन्दू चूहे का सिर शर्म से झुक गया था । कटी पूँछ और कटी मूछों को लेकर माँ के सामने वह घाड़ मारकर रो पड़ा । माँ सिर पर हाथ फिराती हुई बोलीं- ‘बेटा ! जो हुआ है उसे भूल जाओ मूँछ और पूँछ तो दुबारा आ जायेंगी । अब तुम अच्छा बनने की कोशिश करो ।’
‘हाँ माँ ।’ ऐसा कहकर नन्दू अपनी माँ से चिपटकर बिलख पड़ा ।
दोस्तों कैसी लगी Chuhe ki Kahani New Story Hindi अर्थात नंदू को दंड कहानी आप सभी को। हमें उम्मीद है यह Chuhe ki Kahani आप सभी को पसंद आयी होगी। दोस्तों ऐसे ही Hindi Kahani जैसी अनेकों कहानियां हमारे वेबसाइट पर उपलब्ध है उन्हें भी पढ़िए और यह कहानी कैसी लगी comment जरूर करें।
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