कहानियों से भरे इस वेबसाइट में आपका स्वागत है। आज हम आपको Top 3 Best Short Stories For Kids In Hindi , Moral Stories for kids in hindi में बताएंगे। यह सभी Moral Stories शिक्षाप्रद है। इन Inspirational Moral Stories को पढ़कर आपको अवश्य आनंद तथा शिक्षा मिलेगी। आप इन कहानियो को पढ़कर दुसरो को भी शिक्षा प्रदान करे।
1. साधु और सांप
Short Stories For Kids In Hindi
एक पहाड़ पर साधुओं का एक आश्रम था। वही एक साधु रहते थे। आस-पास के गाँवों में उनके अनेक भक्त थे। साधु महाराज के आशीर्वाद से सभी सुखी थे।
रोज सुबह से शाम तक आश्रम में खूब भीड़ लगती थी, मानो एक मेला लगा हो। सैकड़ो भक्त और शिष्य साधु महाराज के दर्शन के लिए आते थे। आश्रम में हमेशा भजन कीर्तन, पूजा-पाठ होता रहता था।
एक दिन कही से एक जहरीला सांप आया। वह आश्रम के पास रुक गया। रास्ते के किनारे पर नीम का एक बड़ा पेड़ था। उसी में वह रहने लगा।
पूजा के समय उठने वाली महक, सुगन्धित धुआँ,भजन कीर्तन आदि का प्रभाव सांप पर पड़ा। उसका स्वाभाव धीरे-धीरे बदलने लगा। कुछ दिनों बाद सांप ने साधु का शिष्य बनने का निश्चय किया। किन्तु वह उनके पास नहीं जा सकता था। उसे मार डाले जाने का डर था, इसीलिए वह प्रायः उदास रहता था।
वर्षा का मौसम था। एक दिन सुबह से शाम तक भारी वर्षा हुई। साधु जी आश्रम को कोई आ-जा नहीं सका। चारों ओर पानी पानी था। सांप का बिल भी पानी से भर गया। सांप निकलकर देखा की रात हो गयी है। सन्नाटा है। केवल मेंढक और झींगुरो की आवाज सुनाई पड़ रही है। यही अपने लिए उत्तम समय है। यही सोचकर वह आदराम के भीतर आ गया।
साधु महाराज अपने कमरे में मौन बैठे थे। सांप जाकर उनके सामने लेट गया। उसने प्रार्थना की, ‘प्रभु, मैंने अपने जीवन में अनेक पाप किये है। आपकी महिमा से मैंने हिंसा त्याग दी है। मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ कृपया स्वीकार करें।’
साधु ने पूछा, ‘क्या सचमुच तुमने हिंसा त्याग दी है ? अब किसी को नहीं काटते ?’
‘नहीं, गुरूजी ! मैं अब किसी को नहीं काटता और न काटूँगा। आपसे प्रभावित होकर मैंने अपना स्वाभाव ही बदल डाला है।’
‘तो आज से तुम हमारे शिष्यों में से एक हो। ‘
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सांप उसी दिन से आश्रम में रहने लगा। उसके लिए एक मण्डप बना। पानी का कुण्ड भी रखा गया। वही वह पड़ा रहता था। कभी-कभी फैन उठाकर आने जाने वालों को चकित करता था। भक्त लोग साधु जी के दर्शन के बाद ‘सर्पराज ‘ के भी दर्शन करते थे। कोई दूध कटोरा समर्पित करता था तो कोई प्रणाम करके सुख की याचना करता था।
सांप सबका पूज्य हो गया।
एक साल उस पहाड़ी इलाके में खूब सर्दी पड़ी। पशु, पक्षी और सरीसृप सर्दी के मारे विकल हो उठे। कही से भटक कर रात के समय एक नागिन आश्रम में घुस गयी।
सर्पराज ने अपनी जाति की बू पाकर फन उठाया। नागिन समीप आ गयी।
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यह आश्रम है। यहाँ तुम कैसे घुस आयी ? भागो जल्दी। सर्पराज कड़क कर बोले।
नागिन बोली ,देखो ,बाहर कितनी ठण्डक पड़ रही है। मैं भी तो तुम्हारी जाति की हूँ। मेरे लिए थोड़ी जगह यहाँ बना दो।
सर्पराज नागिन के दुष्ट स्वभाव से परिचित थे। उसे मार -मार कर भगाने लगे।
सर्पराज से निराश होकर नागिन सीधे साधू जी के पास गई और आश्रम में रहने की प्रार्थना की।
साधू बड़े दयालु थे। उन्होंने उसे वहाँ रहने की अनुमति दे दी। उसके लिए भी उन्होंने एक अलग मण्ड़प बनवा दिया। वह दिन -रात मण्डप में रहती और सब कुछ चुपचाप देखती रहती।
हजारो भक्त रोज आया करते थे। साधू महराज के दर्शन करते थे। नागिन के पास वाले मण्डप पर साँप को फूल चढ़ाते थे। कोई चन्दन छिटकाता था तो कोई दूध पिलाता था। किन्तु नागिन की तरफ न कोई भूल से नजर डालता था और न कोई उसके पास जाता था।
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नागिन जलने लगी। उसने सोचा ,’मेरे पास क्यों कोई नहीं आता। नाग की पूजा सभी करते है। इसके पीछे जरूर कोई रहस्य है। शायद साधू ने मना किया है। क्या करूँ ?’
नागिन के मन में नागराज के प्रति ईर्ष्या और साधु जी के प्रति क्रोध दिन -व -दिन बढ़ने लगा। वह बदला लेने के लिए चंचल हो उठी।
पहले तो नागिन ने आश्रम से भाग जाने की सोची। परंतु वैसा करने पर वह बदला नहीं ले सकती थी। बाद में साँप को मार डालने की भी सोची। किन्तु मार डालना भी आसान न था।
साधू महराज को खत्म कर दिया जाये तो साँप पर लोग संदेह करेंगे और उसे जरूर मार डालेंगे। ‘न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी। ‘
एक दिन रात के अंतिम प्रहर में नागिन ने बदला लेने काम शुरू किया अँधेरा था। सभी आश्रमवासी सो रहे थे। चहल -पहले बिल्कुल न थी। नागिन धीरे -धीरे सरक कर साधू के कमरे में घुसी एवं साधू जी को डस लिया।
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नित्य की तरह साधू जी नियत समय पर उस दिन भी जगे। उन्होंने स्नान, पूजा-पाठ आदि निबटाए। उस दिन भी उनके चेहरे पर प्रसन्नता थी। जैसे सब दिन प्रसन्नता रहती थी। मानो उन्हें कुछ हुआ ही न हो। उनके शरीर पर सांप के जहर का कोई असर नहीं हुआ।
शिष्य लोग उनका दर्शन करने आये। लोगो ने रात की सारी घटना सुनी और साधु के मंत्र के बंधन में बंधी नागिन को मार डाला।
इस घटना के बाद लोगो की साधु और सर्पराज के प्रति भक्ति और बढ़ गयी।
कुछ वर्षो के बाद साधु एकाएक एक दिन आश्रम से अदृश्य हो गए। सर्पराज भी दिखाई नहीं पड़े।
किन्तु आज भी उस आश्रम में दोनों की प्रतिमा की पूजा होती है। रोज हजारो भक्त फूल, चन्दन, दिया, दूध लेकर आते है। रोज सुबह और शाम को दूर-दूर तक आश्रम की संध्या-आरती की घंटी सुनाई पड़ती है।
2. जादुई चुटकी
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एक अहीर था। उसका एक लड़का था। वह रोज गाएं लेकर जंगल में जाता था। एक दिन जब वह जंगल की तरफ जा रहा था, तो रास्ते में उसे एक ब्राम्हण मिला। ब्राह्मण चुटकी बजाता जाता था और “राधाकृष्ण ” , “राधाकृष्ण ” बोलता जाता था। चुटकी की आवाज सुनकर अहीर के लड़के को बड़ा अचम्भा-सा हुआ। लड़के ने पता ही नहीं था कभी ऐसा कुछ सुना नहीं था किसी से इस चुटकी को तो उसने महाराज से पूछा कि यह क्या है जो आप बजा रहे है ?
ब्राह्मण चालाक था। उसने तुरंत ताड़ लिया। बोला, “अरे भैया ! यह तो मेरी ‘फूलकी ‘ है। मैंने इसे पाला है। “
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लड़के ने कहा, “महाराज, आप अपनी यह ‘फूलकी’ मुझे दे देंगे, तो मैं अपनी यह ‘लीलकी’ गाय आपको दे दूंगा। ” ब्राह्मण को तो हाँ भर कहना था। उसने झटपट लड़के को चुटकी बजाना सीखा दिया और वह गाय लेकर चला गया।
घर के आँगन में खाट पर दादाजी बैठे थे । लड़का बहुत आनंद में था। घर पहुंचने पर लड़के ने दादाजी को देखकर मस्ती में ही चुटकी बजाते हुए दादाजी को बताया ! देखिये तो ! मैंने क्या लाया है मेरी लीलकी गाय के बदले में ! यह कितनी अच्छी बजती है।
दादाजी भी मजे में थे लड़के से ज्यादा समझदार थे वे बोले क्या बात है यह चुटकी तो काफी अच्छी है कितनी अच्छी बज रही है वाह तुमने तो कमाल कर दिया । ” लड़के की ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। जब ब्यालू का समय हुआ, तो लड़के ने पूछा, “मां, इस फूलकी को मैं कहा रख दूँ। ?”
मां बोली, “बेटे, इसे उस कुल्हड़ में रख दे। वह कुल्हड़ कुठले पर पड़ा है। जरा संभाल कर रखना। “
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वह लड़का बहुत ही ज्यादा खुश था इस चक्कर में उसने फूल पेट भर खाना खाया। जब वह फूलकी को लेने गया हाथ धोने के बाद तो उसमे से फूलकी गायब था। लड़का उदास हो गया । वह बोला, ” माँ माँ ! मेरी फूलकी गुम हो गयी। “
दादाजी ने कहा, “अभी-की-अभी कहाँ चली गयी ? मुझे लगता है कि उसने ही फूलकी को खा लिया है ! “
सब एक साथ बोले, “इस कुल्हड़ को तो तपाना ही होगा। इसे तपाने पर ही फूलकी वापस आएगी। “
आँगन में बड़ा-सा अलाव जलाया गया और उसमे कुल्हड़ डाल दिया गया। जब जोर की आग जली तो लड़के के हाथ सुख गए और चुटकी फिर बजने लगी।
लड़का बोला, “अरे वाह ये तो वापस आ गई मजा ही आ गया।
3.अनोखा पुरस्कार
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एक बार की बात है।
कौशल के राजा इंद्रजीत पर उसके पड़ोसी कई राज्यों ने हमला किया। आक्रमण इतना अचानक हुआ कि कौशलपति उसका सामना नहीं कर सका। शत्रु की सेना ने कौशल पर मनमाने अत्याचार किये। राजा स्वयं अपने परिवार सहित गुप्तमार्ग से भाग गया। शत्रुओ का कौशल पर अधिकार हो गया।
कौशल के वीर बांकुरों को इस [पराजय से बड़ा आघात लगा। वे सब मुंह छुपा कर चले गए।
उन सैनिकों में एक शूरवीर नाम का सैनिक था। वह सैनिक के साथ-साथ किसान भी था। युद्ध के दिनों के अलावा वह खेती किया करता था। इस पराजय के बाद वह बड़ा ही लज्जित हुआ और कौशल को छोड़कर चला गया।
वह उज्जैन पहुंचा। वहां उसने सेना में काम कर लिया। उज्जैन के राजा भोज की ओर से उसने एक युद्ध लड़ा। उस युद्ध में उसने इतनी वीरता दिखाई कि उज्जैन का सेनापति प्रसन्न हो गया। तीसरे दिन की लड़ाई में उसने राजा भोज के प्राण की रक्षा की। अब तो राजा भोज ने उसे अपना दायां हाथ बना लिया। दस दिनों तक युद्ध चलता रहा। अंत में उज्जैन का राजा भोज विजयी हुआ। उसने भरे दरबार में शूरवीर की प्रशंसा की।
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उससे कहा हम तुम्हारी वीरता से अत्यंत प्रसन्न हुए। हमारे सेनापति जी का भी कहना है कि यदि शूरवीर नहीं होता तो इस युद्ध में हमारी कभी जीत नहीं होती। ऐसी स्थिति में हम तुमसे प्रसन्न होकर मुहमांगा पुरस्कार देना चाहते है मांगो, वीर बिना किसी झिझक के मांगो। राजा भोज आज तुम्हे अपना मुकुट और सिंहासन भी दे सकता है।
शूरवीर का ह्रदय प्रसन्नता के मारे भर आया। उसकी आँखों से अश्रु टपकने लगे।
राजा भोज को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने पूछा; “वीर !इस खुशी के अवसर पर तुम्हारी आँखों में आंसू ?क्या बात है? साफ़-साफ़ कहो। “
शूरवीर ने सारी बात बताकर कहा, “महाराज मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। मेरा देश पराधीन हो गया है। यदि आप मुझे मुंह-मांगा इनाम है तो मुझे सेना, शस्त्र और ऐसी दूसरी सहायताएँ दीजिये जिससे मैं अपने देश को स्वाधीन करा सकू। ”
राजा भोज बोला, “वाह-वाह, क्या पुरस्कार मांगा है। जिस देश में ऐसे वीर और त्यागी सपूत है, वह देश कभी पराधीन नहीं रह सकता। “
कौशल शूरवीर के प्रयास से स्वाधीन हो गया ! उसने उज्जैन मदद से विजय पाई थी।
कौशलपति शूरवीर पर बड़ा ही गर्व कर रहा था उसने उसको अपने दरबार में बुलाया। स्वयं खड़े होकर उसकी अगवानी की। वह भी दरवाजे तक आकर। फिर कहा, “शूरवीर, मैं और यहां की जनता तुम्हारी कृतज्ञ है। तुम अपनी इच्छा के अनुसार पुरस्कार मांग सकते हो। धन, किला। जागीरदारी और हमारा यह राज्य। “
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शूरवीर चुपचाप खड़ा रहा। राजा ने फिर कहा, “हमारा यह मुकुट भी। “
शूरवीर ने एक बार राजा को देखा। उसके बाद दरबारियों को। फिर दृढ़ स्वर में कहा, “महाराज। मुझे सिर्फ एक बोरी अनाज पुरस्कार के रूप में चाहिए। “
राजा चौंक कर बोला, “सिर्फ एक बोरी अनाज ? मैं तुम्हे अनाज का भंडार दे सकता हूं। “
“जी नहीं महाराज मुझे कुछ नहीं चाहिए केवल एक बोरी अनाज के अलावा। मैं इतने अनाज में ही करूंगा। बहुत मेहनत करूँगा किसी भी तरह से अपने परिवार का पालन करूंगा। आप मुझे बस एक बोरी अनाज दे दीजिये।
मैंने देश को इसीलिए स्वाधीन नहीं कराया कि मुझे कोई पुरस्कार लेना है बल्कि मैंने इसलिए संघर्ष किया कि मैं किसी परतंत्र देश का नागरिक न कहलाऊ। अपने देश व स्वयं के गौरव की रक्षा का कोई पुरस्कार नहीं होता है। “
राजा ने उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की। शूरवीर अपना असली पुरस्कार लेकर खेत की ओर चला गया।
तो कैसी थी ये Short Stories For Kids In Hindiआशा करते है आप सभी तो Short Stories For Kids In Hindi जरूर पसंद आयी होंगी। आप सभी Short Stories For Kids In Hindi को Share करे और comment में ये कहानियां कैसी लगी जरूर बताए।
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