शेरनी और सुअरिया | Animal Story in Hindi

दोस्तों आज हम आपको बताएंगे एक New Animal Story in Hindi जो कि एक शेरनी और जंगली सुअरिया के बीच की कहानी है। यह Animal Story in Hindi मजेदार होने के साथ-साथ शिक्षाप्रद भी हैं। तो चलिए आप सभी इस Animal Story in Hindi का आनंद लीजिए और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को भी बताइये।

सुखी परिवार

(New Animal Story in Hindi)

नर्मदा नदी के किनारे घना जंगल था। वहां वीरा नाम की एक शेरनी एक माँद में रहती थी। एक बार किसी शिकारी ने उस पर तीर चलाया। वीरा के पंजे में जाकर लगा। वीरा के बार-बार कोशिश करने पर भी तीर निकल नहीं पा रहा था।

सावी नाम की एक जंगल सुअरिया झाड़ियों में छिपी हुई यह सब देख रही थी। उसके मन में आया कि जाकर वीरा का तीर निकाल दे। उसकी सहायता करे, पर उस डर से कि वीरा कही उस पर ही आक्रमण न कर दे। सावी चुपचाप बैठी रही।

वीरा डार्क से बहुत व्याकुल हो रही थी। वह कराहती हुई बोली, “अरे ! यहाँ कोई आस-पास हो तो मेरी सहायता करे। “

झाड़ी में से सावी बोली –“सहायता तो कर सकती हूँ, पर मुझे डर है कि कहीं तुम मुझे खा न जाओ। “

“मैं तुम्हे विश्वास दिलाती हूँ कि जीवनभर तुम्हारी मित्र बनी रहूंगी। ” वीरा ने कहा और दर्द से आँखें मूँद ली।

यह सुनकर सावी जल्दी से झाड़ी से निकली। उसने एक ही झटके में वीरा का तीर निकाल दिया। सावी ने उस जगह को कसकर दबाया। खून निकलना जल्दी ही बंद हो गया। तब नदी से पानी ला-लाकर सावी ने वीरा का घाव धोया। सावी की उपचार से जल्दी ही घाव भर गया।

जिसकी हम सेवा करते है, दुःख-मुसीबत में सहायता करते है, उसका मन जीत लेते है। सावी ने भी अपनी सेवा से वीरा के मन को जीत लिया। वे दोनों पक्की सहेलियां बन गई। योग्य और समर्थ से मित्रता सदैव हितकारी ही होती है। वीरा सभी का उपकार ही करती रहती। अपने शिकार में से वह सदैव सावी को भी हिस्सा देती। सबको पता था कि सावी वीरा सहेली है। अतएव किसी भी जानवर की हिम्मत न थी कि सावी को तंग कर सके।

संयोग की बात है कि कुछ समय बाद वीरा और सावी दोनों के एक साथ बच्चे पैदा हुए। वीरा के दो बच्चे पैदा हुए और सावी के आठ। सावी अपना बड़ा परिवार देखकर फूली न समाती थी। धीरे-धीरे सावी को अपने बड़े परिवार पर घमंड होने लगा। वह सोचने लगी कि मैं कितनी सौभाग्यशाली हूँ ? एक साथ आठ-आठ बच्चे मेरी सेवा करेंगे। सावी देखती कि वीरा बस, अपने दो बच्चो को लेकर बैठी है। उसे वीरा पर तरस आता। सावी सोचती, काश ! वीरा के भी खूब सारे बच्चे होते।

एक दिन वीरा का विचार इससे भिन्न था। वह बोली — “बच्चो की संख्या अधिक होने से क्या होता है ? बच्चे चाहे एक-दो ही हों, पर हो योग्य। अधिक बच्चे होने से तो माँ-बाप को कोई सुख नहीं मिल सकता और उलटे पालन-पोषण में कठिनाई ही होती है। “

सावी को वीरा की बात बहुत बुरी लगी। वह सोचने लगी कि वीरा उस पर ही व्यंग्य कर रही है। अतएव सावी क्रोध से बोली–“अरी ! तू मेरे बच्चो को देख-देखकर चिढ़ती है। खुद तो तू कुल दो बच्चो को ही जन्म दे पाई है , इसलिए मेरा भरा-पूरा परिवार देख नहीं सकती। “

सावी दांत निकाल-निकालकर चीख रही थी। उसे समझाते हुए वीरा बोली–“सावी बहन ! क्रोध न करो , कुछ समझदारी से बोलो। क्रोध समझदारी को घर से बाहर निकाल देता है। क्रोध करने से , योग्य से योग्य भी मुर्ख बन जाता है। “

वीरा की बात सुनकर सावी और भी भड़क उठी। वह जोरों से घुर्राने लगी। कहने लगी — “ओह ! तुम मुझे रोज मांस लाकर दे देती हो न , इसलिए मुझ पर एहसान झाड़ रही हो। ऐसा पता होता तो तुम्हारा दिया छूती तक नहीं। मैं अपने मरे बच्चों का मुँह देखूं, यदि अब मेरा कभी तुम्हारा दिया खाऊं तो। “

वीरा समझ गई कि इस समय सावी से कुछ भी कहना-सुनना बेकार है। गुस्सा करने वाले को यह ज्ञान नहीं होता कि क्या उचित है और क्या अनुचित ? अतएव वीरा अपने दोनों बच्चो को लेकर चुपचाप वहां से चली गई।

उसी रात को जब वीरा बच्चो को लेकर नदी पर पानी पीने जा रही थी, तो कुछ शिकारी उसके पीछे पड़ गए। वे उसका तथा उसके बच्चो का शिकार करना चाहते थे। वीरा उनकी निगाह से जैसे-तैसे बचती हुई पास के जंगल में पहुंची। वीरा ने निश्चय किया कि जब तक बच्चे बड़े न हो जाएंगे , वह इसी जंगल में ही रहेगी। पहले वाले जंगल में तो शिकारियों का लगातार सदैव डर ही बना रहता है।

कुछ समय में वीरा के बच्चे बड़े हो गए। वीरा ने उन्हें बहुत ही निपुण बना दिया था। वे इतने योग्य , विनयशील और अनुशासन में रहने वाले थे कि जो भी उनसे मिलता,, तो उसका मन प्रसन्न हो जाता था।

एक दिन वीरा मन में सोचने लगी– ” अब तो मुझे शिकारियों का डर नहीं रहा। अब मुझे पहले वाले जंगल में चलना चाहिए। मेरे सभी संगी-साथी वहीँ है। वे मेरी चिंता करते होंगे।” यह सोचकर वीरा अपने बच्चो को लेकर उस जंगल की ओर चल पड़ी। थोड़ी ही देर में वे वहां पहुँच गए। वीरा को बच्चो सहित राजी-खुशी आया देखकर सभी जानवर बड़े प्रसन्न हुए।

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वीरा जब अपनी मुरानी माँद के पास पहुंची तो चौंक पड़ी। वहां पर सावी लेटी हुई थी, वह इतनी दुर्बल हो गई थी कि पहचानी नहीं जाती थी। उसके आठों बच्चे भी सूख-सूखकर हड्डी का ढांचा हो रहे थे। वे सभी उसके थनो को पकड़-पकड़कर जोरों से चूस रहे थे। एक दूसरे को धक्का दे रहे थे। उनकी दूध पीने की आदत अभी तक छूटी न थी।

उन्हें देखकर वीरा एकदम ठिठक गई। सावी और उसके बच्चो की दुर्दशा देखकर उसका मन करुणा से भर गया था। उसके मुँह से बस, इतना ही निकला –“सावी बहन ! यह क्या हुआ तुम्हे ?”

वोरा को देखकर सावी की आँखों में आंसू भर आए। वह बोली– “वीरा बहन ! मुझे माफ़ कर दो। मैंने बिना बात के ही तुमसे भला-बुरा कहा था। मेरी बात तुम्हे इतनी बुरी लगी थी कि तुम मुझे छोड़कर ही चली गई। “

धत पगली ! ऐसा नहीं कहते। तेरी बात का भला क्यों बुरा मानने लगी? वीरा ने उसके आंसू पोंछते हुए कहा। फिर उसने बताया कि किस प्रकार उसे अचानक इस जंगल से जाना पड़ा था।

तब तक वीरा के बच्चे भी वहां आ गए थे। उन्होंने अपनी माँ के साथ बाते करते देखा, वे वहीँ आकर खड़े हो गए। “नमस्ते मौसी !” दोनों बच्चो ने हाथ जोड़कर-झुककर कहा।

सावी ने बहुत ही प्रसन्न होकर उन्हें बार-बार आशीर्वाद दिया और कहने लगी — “ओह ! तुम्हारे बच्चे कितने सुन्दर, सुशील और सभ्य है। “

“बताओ तो तुम्हारी यह स्थिति क्यों हुई ? तुम कब से बीमार हो ? ” वीरा बार-बार पूछने लगी।

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सावी ने बताया कि जब तक वीरा वहां रही, उन्हें खाने-पीने की तकलीफ नहीं रही। सावी और उसके बच्चो को बिना अधिक मेहनत किए ही खाना मिल जाता था। सावी ने कभी यह बात गंभीरता से सोची तक न थी। अतएव वीरा के चले जाने पर सावी को भोजन की तलाश में जाना पड़ा।

आठ बच्चो और अपने लिए वह खाना ढूंढते-ढूंढते थक जाती थी। उसका शिकार करने का अभ्यास भी छूट चूका था। एक दिन वह शिकारियों के चंगुल में फंस गई। उसके पेट में गोली लगी। जैसे-तैसे वह प्राण बचाकर भागी।उसी दिन से वह बीमार है। अब वह अपने और बच्चो के लिए खाना भी बड़ी कठिनाई से ही ला पाती है।

“पर सावी बहन ! तुम्हारे बच्चे तो अब बड़े हो गए है। इन्हे खाना खोजने क्यों नहीं भेजती ?” वीरा ने पूछा।

“क्या बताऊँ वीरा बहन ! ये बच्चे ही निकम्मे है। कुछ काम करना नहीं चाहते। लाकर यदि दे दूँ तो खा लेंगे, नहीं तो मेरा दूध ही चूसते रहेंगे। इतने बड़े हो गए, पर दूध पीने की इनकी आदत नहीं छूटी। मैंने क्यों नहीं बचपन से ही इनमे स्वावलंबन की आदत डाली। हाय ! मैं इन्हे कुछ नहीं सिखा पाई। “

“परेशान होने से क्या होगा बहन? इन्हे अभी भी सिखाने की कोशिश करो। ” वीरा कहने लगी।

सावी उदास सी होकर कहने लगी — “बहन ! तुम्हारी बात में ही सच्चाई थी। वह परिवार सुखी नहीं होता, जिसमे बहुत सारे सदस्य हो। वही परिवार सुखी होता है, जहाँ प्यार हो, शांति हो। अधिक बच्चो को जन्म देना माता-पिता का गौरव नहीं है। बच्चे चाहे कम हो, पर वे सुयोग्य हो, उसी में माता-पिता का गौरव है। “

“निराश न हो सावी ! प्रयास करो , ईश्वर करे तुम्हारे बच्चे जल्दी ही योग्य बने। ” ऐसा कहकर वीरा ने सावी की पीठ थपथपाई और अपने बच्चो के साथ माँद में घुस गई। उसे अपने बच्चो पर गर्व हो रहा था। अंदर जाकर वीरा ने उन्हें गले से लगा लिया।

तो दोस्तों कैसी लगी यह New Animal Story in Hindi आप सभी को। इस कहानी से आपको पता ही चल गया होगा कि क्रोध अर्थात गुस्सा हमारे लिए बहुत विनाशकारी होता है। इस कहानी सुखी परिवार (Animal Story in Hindi) के माध्यम से हम आपको यही बताना चाह रहे है कि क्रोध से हमारा नुकसान ही होना है इसलिए हमेशा सोच-समझ कर काम करना चाहिए।

गायत्री परिवार के द्वारा बाल निर्माण की कहानियां को हमारी तरफ से बहुत बहुत आभार।

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