चौधरी की मूर्खता | Moral Story in Hindi For Kids

आज हम आपको एक New Moral Story in Hindi बताने जा रहे है जिसे पढ़कर आपको बहुत मजा आने वाला है यह एक मुर्ख चौधरी की कहानी है। इस Moral Story in Hindi को पढ़िए और दुसरो को भी बताइये। यह Moral Story Hindi आप सभी के बच्चो के लिए काफी मजेदार है। तो आप सब यह hindi kahani पढ़े और इसका आनंद ले।

चौधरी की मूर्खता

(New Moral Story in Hindi)

एक गांव में एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसकी गरीब हालत देखकर गांव के लोगों ने सोचा कि थोड़ा चंदा इकट्ठा करके क्यों न इसे कुछ काम करा दिया जाये। गांव के चौधरी की देख रेख में चंदा इकट्ठा किया गया तथा उससे ब्राह्मण को एक घोड़ा-तांगा दिलवा दिया गया। ब्राह्मण उससे सवारी ढ़ोता और इस प्रकार अपना गुजारा चलाने लगा। एक दिन सुबह जब ब्राह्मण शहर से गांव की तरफ लौट रहा था तो उसे दो सवारियां मिलीं , उनमे से एक सरकारी विभाग में अमीन व दूसरा उसका चपरासी था।

उन्होंने ब्राह्मण से पूछा क्या तुम्हारा तांगा खाली है, अगर खाली है तो गांव में जाना है वहां का क्या लोगे ? ब्राह्मण ने कहा कि खाली है और अमीन साहब से वहां के पांच रूपये लूंगा और चपरासी से दो रूपये। अमीन ने कहा कि ऐसा क्यों ? इस पर ब्राह्मण ने कहा कि चपरासी की आय कम है और आपकी ज्यादा इसलिए उससे किराया कम लूंगा और आपसे ज्यादा। सौदा तय हो गया। सफर करीब 10 किलोमीटर का था। दोनों तांगे में बैठ गए और चल दिए।

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चपरासी काफी बुजुर्ग था। ब्राह्मण ने चपरासी से कहा कि चपरासी साहब आप काफी बुजुर्ग है, कृपया अपने अनुभव के आधार पर कोई ऐसा किस्सा सुनाएं जो जीवन में काम आये। चपरासी ने कहा कि एक अनुभव का एक रुपया लूंगा। ब्राह्मण ने कहा कि ठीक है सुनाओ। उसने सोचा कि सफर कटेगा और एक रुपया कम मिलेगा तो कोई बात नहीं तीन रूपये तो अमीन साहब से फालतू लेने ही है।

चपरासी ने कहा कि सुनो अपने मन की या ऐसी कोई बात जिसे आप छिपाकर रखना चाहते है उसे कभी भी अपनी पत्नी को मत बताना। ब्राह्मण ने कहा आगे ? चपरासी ने कहा, बात खत्म हो गयी और सुननी है तो उसका एक रुपया और लगेगा।

ब्राह्मण ने सोचा अभी तो अमीन के दो रूपये और बचे है क्यों न एक बात और सुन ली जाये। उसने कहा, ठीक है सुनाओ। चपरासी ने कहा कि जिस बात को चार आदमी कहे उसे मान लेना चाहिए। ब्राह्मण ने पूछा आगे? चपरासी ने कहा कि बात खत्म हो गयी। अगली बात के लिए अगर एक रूपये और देने के लिए सहमत हो तो सुनाऊँ ? ब्राह्मण ने कहा ठीक है सुनाओ।

चपरासी ने कहा कि मुर्दे को कन्धा देना चाहिए व कुछ दूर उसके साथ-साथ चलना चाहिए। ब्राह्मण समझ गया कि चपरासी साहब की बात खत्म हो गयी है और अब अगली बात सुनी तो उसका एक रुपया और लगेगा जो मूल किराये में से जायेगा। इसके बाद ब्राह्मण ने और कोई बात सुनने को नहीं कहा। उन दोनों सवारियों को उतारकर ब्राह्मण अपने घर पहुंचा।

अगले दिन ब्राह्मण सुबह तांगा लेकर शहर पहुंचा। रास्ते में उसने देखा कि भीड़ लगी हुई है, थोड़ा आगे चलकर देखा वहां पुलिस वाले भी खड़े थे। उसने तुरंत तांगा वापस मोड़ा क्योंकि वह जानता था कि पुलिस वाले कुछ-न-कुछ काम बता देंगे और पैसा देंगे पैसा नहीं। तभी एक पुलिस वाले की नजर उस पर पड़ी और उसने कहा कि अरे तांगेवाले इधर सुन कहाँ जा रहा है ? ब्राह्मण रुक गया और समझ गया कि अब तू फंस गया है, शाम तक आज कुछ नहीं कमा पायेगा। पुलिस वाले ने कहा कि इस आदमी का एक्सीडेंट हो गया था , यह मर गया है। इसे पोस्टमार्टम के लिए ले जाना है।

इसे उठाकर तांगे में दाल और मोरचरी में ले जा। ब्राह्मण ने कई बहाने बनाये कहा कि उसे काम से जाना है लेकिन पुलिस वाले ने उसे डांट दिया कि पहले इसे वहां पहुंचा। वहां पर खड़ी भीड़ में से भी कुछ लोग ब्राह्मण से कहने लगे कि ले जाओ कुछ नहीं होगा। ब्राह्मण को डर था कि पुलिस का मामला हैं, कही उल्टा उसे ही न फंसा दे। फिर ब्राह्मण को चपरासी की बात याद आयी कि जब चार लोग कहे तो बात मान लेनी चाहिए। उसने सोचा कि आज फंस तो गए ही है. क्यों न चपरासी की बाते आजमा ली जाएं।

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ब्राह्मण ने मन को समझाया और मृतक को उठाकर तांगे में डाला और चल दिया। अस्पताल पहुंचकर जब ब्राह्मण ने उसे नीचे उतारने के लिए उसे उठाया तो मृतक के शरीर से उसके शरीर में कुछ चुभा। ब्राह्मण ने टटोलकर देखा तो मृतक की अंटी में एक थैली थी , जिसमे सोने के सिक्के तथा मोहरे थीं। ब्राह्मण ने उन्हें निकाल लिया व अपने घर आ गया।

कुछ दिन तक ब्राह्मण चुपचाप अपना तांगा चलाता रहा व गुजारा करता रहा क्योंकि वह जानता था अगर तूने इस धन का इस्तेमाल किया तो लोग उससे चिढ़ने लगेंगे और पीछे पड़ जायेंगे कि उसके पास इतना धन कहाँ से आया, कहाँ तो वह भूखा मरता था।उसने यह बात अपनी पत्नी को भी नहीं बतायी क्योंकि चपरासी की बात उसे याद थी।

कुछ दिन बाद ब्राह्मण ने अपनी झोपड़ी की जगह एक पक्का मकान बनाया और आराम से रहने लगा। उसके पड़ोस में रह रहे चौधरी को उससे जलन होने लगी कि इसका घर मेरे घर से अच्छा बन गया है। वह भी इतनी जल्दी , इतनी प्रगति। उसने सोचा कि ये ब्राह्मण करता क्या है , जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है। उसने सोचा कि पहले पता लगा लेना चाहिए कि मामला क्या है ?

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वह कई दिन तक ब्राह्मण के पीछे छिप-छिप कर जाता रहा व पता करने की कोशिश करता रहा लेकिन पता नहीं चला स्का। थक-हारकर जब दिन शाम को वह घर लौटा तो सोचने लगा कि कैसे पता चले? तभी चौधरी की पत्नी अपने मायके से आयी। उसने देखा कि उसके पड़ोस में इतना अच्छा मकान बन गया है। जब उसे पता चला कि यह ब्राह्मण का मकान है तो उसे भी जलन हुई। वह आकर चौधरी पर लाल-पीली हुई कि सुबह से शाम तक दो किलो तम्बाकू हुक्के में भरकर लोगों को पिलाते हो, कुछ करते न धरते हो।

देखो ब्राह्मण ने कितनी जल्दी इतनी तरक्की की है क्यों न तुम भी शहर जाकर कोई काम करो। चौधरी ने अपनी पत्नी से कहा कि वह खुद परेशान है। कई दिन कोशिश की लेकिन पता नहीं चला कि ब्राह्मण आखिर करता क्या है ? उसकी पत्नी ने कहा ठीक है यह मैं पता करके बताउंगी।

अगले दिन ज्यों ही ब्राह्मण तांगा लेकर घर से निकला चौधरी की पत्नी तुरंत ब्राह्मण के घर पहुँच गई और ब्राह्मण की पत्नी की झूठी तारीफ कर उसे रिझाने लगी कि बहन तुम्हारे कुण्डल बहुत अच्छे है , तुम्हारे गले में यह हार बहुत सुन्दर लग रहा है, तुम्हारी साड़ी बहुत अच्छी है।

इतनी तारीफ सुनकर ब्राह्मण की पत्नी फूली नहीं समा रही थी। बस फिर क्या था उसने चौधरी की पत्नी को बिठाया और कहा बैठो बहन तुम तो दिखाई ही नहीं देती हो , यह तो तुम्हारा ही घर है , आती रहा करो, अच्छा बताओ क्या खाओगी। फिर ब्राह्मण की पत्नी दूध ले आयी और दोनों दूध पीते-पीते बातें करने लगीं।

तब चौधरी की पत्नी ने धीरे से कहा अगर तुम बुरा न मानो तो बहन एक बात कहूं ? ब्राह्मण की पत्नी ने कहा कही अपनों का भी कोई बुरा मानता है ? बस फिर क्या था चौधरी की पत्नी ने शुरू कर दिया खेल। उसने कहा देखो तुम्हारे पास सारे सुख है सिर्फ एक चीज छोड़कर।

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उसने पूछा क्या? चौधरी की पत्नी ने कहा कि तुम्हारे पति तुम्हे अपनी बाते नहीं बताते की वो क्या करते हैं कैसे पैसा कमाते है और हमारे चौधरी मुझसे पूछे बगैर कोई काम नहीं करते और शाम को आते ही एक-एक मिनट का हिसाब देते है। ब्राह्मण की पत्नी ने कहा चिंता न करो बहन आज से मेरे पति भी एक-एक मिनट का हिसाब देंगे।

शाम को ब्राह्मण जब घर लौटा तो उसकी पत्नी ने खाना नहीं बनाया था और तैयार बैठी थी। उसका चेहरा देख कर ब्राह्मण भी समझ गया कि आज कोई बात जरूर है। ब्राह्मण ने पूछा क्या बात , तबियत तो ठीक है ? ब्राह्मणी ने कहा तुम्हारी बला से तुम्हे क्या, तुम मेरी परवाह करते ही कहा हो ? ब्राह्मण को शक हो गया कि कोई चक्कर जरूर है। उसने कहा बताओ तुम्हारी परवाह कैसे नहीं करता।

पत्नी ने कहा कि तुमने मुझे आज तक नहीं बताया कि इतना पैसा कैसे और कहाँ से आया जिससे यह मकान बनवाया और तुम तांगा चलाने के अलावा और क्या करते हो ? अब ब्राह्मण का शक यकीन में बदल गया कि जरूर कोई मेरी असलियत मेरी पत्नी के जरिये जानना चाहता है। लेकिन उसे चपरासी की बात याद थी उसने कहा पूछो क्या पूछना चाहती हो?

उसकी पत्नी ने कहा कि पहले तो यह बताओ कि तुमने इतना धन कहाँ पा लिया जिससे यह घर बना। ब्राह्मण समझ गया कि हो न हो यह उसके पड़ोसी चौधरी की चाल है। ब्राह्मण जनता था कि वह मुर्ख अपनी पत्नी के कहने पर चलता है। उसने सोचा और अपनी पत्नी से कहा कि देखो मैं तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करता हूँ और मैं तुम्हे दुखी देखना नहीं चाहता इसलिए मैंने तुमको अपने बारे में कुछ नहीं बताया। तुम मेरे कष्टों के बारे में सुनकर दुखी हो जाओगी परन्तु जब तुमने जिद कर ली है तो मैं आज तुम्हे सब कुछ बता दूंगा।

ब्राह्मण ने कहा–देखो किसी को बताना नहीं मैं सुबह तांगा लेकर शहर में जाता हूँ। वहां पर थाने के सामने एक आदमी है वह पांच रूपये देकर एक जूता मारता है। मैंरोजाना वहां जाता हूँ , शहर के बड़े-बड़े धनवान लोग भी वहां आते है, बहुतलम्बी लाइन लगी रही है। मैं भी उस लाइन में लग जाता हूँ और पचास जुते लगवाता हूँ तथा थोड़ी देर सुस्ताने के बाद फिर लाइन में लग जाता हूँ। फिर पचास जुते लगवाता हूँ।

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इस तरह से 500 रु. प्रतिदिन कमाकर इकट्ठा किया है यह सब धन। पत्नी ने सोचा कि मैं भी कितनी मुर्ख हूँ कि मेरा पति कितना परिश्रम करके आया और मैंने उसके लिए खाना भी नहीं बनाया। ब्राह्मण मन-ही-मन खुश था कि चौधरी को अब जरूर सबक मिलेगा। ब्राह्मण जल्दी से खाना खाकर सोने का बहाना कर लेट गया। उसकी पत्नी तुरंत चौधरी के घर पहुंची और सारी बात बताकर कहने लगी मेरे पति मुझसे कोई बात नहीं छिपाते। चौधरी की पत्नी ने कहा सच कहती हो बहन तुम बड़े नसीब वाली हो।

शाम को चौधरी घर आया उसकी पत्नी ने आते ही सारी बात बताई और कहा कि तुम तो शरीर में भी ब्राह्मण से ठीक हो वह एक बार में पचास जूते लगवाता है। तुम तो सौ लगवा सकते हो अब तो हम भी जल्दी ही पैसे वाले बन जायेंगे। दोनों इसी तरह की बाते करते-करते सो गए।

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सुबह उठकर चौधरी की पत्नी ने खाना बनाया और कपड़े में लपेट कर चौधरी के हाथ में दे दिया और कहा कि जाओ तुम भी देख के आओ। चौधरी बाजार खुलने के समय से पहले ही शहर पहुँच गया और थाने के सामने पहुंचकर उस आदमी को तलाशने लगा। चौधरी को यह डर था कि लाइन ज्यादा लम्बी न लग जाये, इसलिए वह इधर-उधर देख रहा था। उसने थाने की दीवार के ऊपर से थाने के अंदर झांककर देखा।

दो-तीन बार ऐसा करने पर थाने में खड़े सन्तरी को उस पर शक हुआ और उसे बुलाकर उससे पूछा क्या बात है तथा उसकी तलाशी ली। चौधरी ने बताया कि मैं उस गांव का चौधरी हूँ और यहाँ कोई आदमी पांच रुपए देकर जूता मारता है, मैं भी उसके पास जूते लगवाने आया हूँ। सिपाही ने सोचा कि कोई पागल है, ऐसे जाने वाला नहीं है। उसने कहा कि मारता तो यही सामने था पर आज उसने रेट कम कर दिए है इसलिए ग्राहक वापस चले गए है।

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चौधरी ने पूछा कितने कम हो गए है आज रेट ? सिपाही ने कहा कि आज वह एक रुपया देकर पांच जूते मारने का रेट दे रहा है। ग्राहक कुछ कम थे इसलिए मुझे कह गया है। चौधरी ने सोचा गांव से आने में दो रूपये तो किराए में लगे है कम-से-कम इतने जूते तो लगवा लूँ कि किराया वसूल हो जाए।

चौधरी ने कहा कि ठीक है तो आप दो रूपये के जूते मार दो। सिपाही ने अपना बड़ा-सा बूट निकालकर चौधरी के सिर में मारा। चौधरी को चक्कर आ गया लेकिन उसे किराया पूरा करना था सो उसने कहा जल्दी-जल्दी मार दो। सिपाही ने एक के बाद एक दस जूते मारे। चौधरी बेहोश होकर गिर गया। सिपाही ने पानी डाला तो वह होश में आया और बोला अब पैसे तो दे दो।

सिपाही ने कहा कि वह आदमी कह गया था कि पैसे कल आकर ले जाना। चौधरी गिरता-पड़ता अपने घर पहुंचा और अपनी पत्नी को सारी बात बताई। उसकी पत्नी को अक्ल आयी उसने कहा कि चौधरी हम तो अपने घर पर ऐसे ही ठीक है। हमे धनवान नहीं बनना फिर वह ब्राह्मण के घर कभी नहीं गयी।

तो कैसी लगी यह moral story for kids in hindi आप सभी को। हमें उम्मीद है कि यह moral story in hindi आप सभी को जरूर पसंद आयी होंगी। ऐसे ही new moral story in hindi पढ़ने के लिए हमारे website पर आते रहे।

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