कौवों की चालाकी | Short Moral Story in Hindi

दोस्तों आज हम आप सभी को एक Short Moral Story in Hindi जो एक नई कहानी है। यह Short Moral Story in Hindi आप सभी के लिए आनंदमय तथा शिक्षाप्रद भी है। यह कहानी आपके बच्चो के लिए जरूर लाभदायक होगा। दोस्तों आप इस कहानी को पढ़िए और अपने दोस्तों , रिस्तेदारो को शेयर करिए।

कौवों की चालाकी

(Short Moral Story in hindi)

जाड़ों के दिन थे। हल्की सुहानी धूप फैली थी। साँझ होने वाली थी, अधिकांश जीव-जंतु अब तक घर वापस आ चुके थे। बरगद के उस घने पेड़ पर अनेक पक्षी बैठे हल्की धूप का आनंद ले रहे थे। तभी वहां शुभा गिलहरी ने प्रवेश किया। वह कहीं से छोटा-सा बेल ले आई थी।

बरगद के किसी कोटर में बैठकर वह उसे तोड़ने लगी। बेल कड़ा था, शुभा उसे सहज ही काट नहीं पा रही थी। खट-खट की आवाज सुनकर कोटर के ऊपर की शाखा पर बैठे दो कौवों ने नीचे झाँका। बेल देखकर उनके मुँह में पानी आ गया। दोनों ने आपस में कुछ सलाह की। एक कौवा उड़कर कोटर के पास वाली डाली पर जा बैठा और बड़ी मीठी वाणी में बोला — “दीदी ! यह क्या कर रही हो ?”

कौवे की आवाज सुनकर गिलहरी चौंक पड़ी। उसने बेल को कसकर पकड़ लिया।

सूखे स्वर में वह बोली — “देखते नहीं ! मैं इस बेल तो तोड़ रही हूँ।”

कल्लू कौवा समझ गया कि गिलहरी को मेरा आना अच्छा नहीं लगा है। वह मन में सोचने लगा कि इसे मीठी बातों में फँसाना होगा। कौवा थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा। वह दूसरी ओर देखता रहा जिससे उस पर कोई संदेह न हो।

कौवा तिरछी निगाहों से देख रहा था कि गिलहरी बेल को कोशिश करने के बाद भी तोड़ नहीं पा रही है। वह मधुरता से फिर बोला–“मेरी सहायता की आवश्यकता हो तो बताना। मैं इसे बड़ी आसानी से तोड़ दूंगा।”

गिलहरी के उत्तर देने से पहले ही दूसरा कौवा भी वहां फुदक कर आ गया। वह पहले कौवे से बोला — “यही चीज तो हमने उस दिन कलिया ताई की तोड़ी थी। कितनी आसानी से उसको हमने तोड़ दी थी।”

पहला कौवा बोला — “पता नहीं इन लोगों को इसमें क्या स्वाद लगता है जो आज शुभा दीदी भी यही बेल ले आई है। हम तो इसे चखते तक नहीं।”

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गिलहरी बड़ी देर तक बेल को तोड़-तोड़कर थक चुकी थी। वह सोचने लगी — “ये तो इसे खाते नहीं। फिर इसे तुड़वाने में क्या हानि है ?” गिलहरी पल भर के लिए चुपचाप बैठ गई।

तभी एक कौवा दूसरे कौवे से बोला — “चलो भाई चलें ! किसी अन्य की कुछ सहायता ही करें। हमारा यह समय तो वैसे ही कोई परोपकार करने का है।”

गिलहरी उनकी बातें सुनकर बड़ी प्रभावित हुई। “ओह ! मैंने इनके विषय में व्यर्थ ही ऐसा सोचा। सभी एक से नहीं होते।” उसने मन ही मन कहा।

अब गिलहरी ने उन कौवों को रुकने के लिए आवाज लगाई — वह बोली–“भाइयो ! यदि कष्ट न हो तो कृपया यह बेल तोड़ने में सहायता कीजिये।”

“अरे ! कष्ट कैसा ? हम किसी के काम आए, यह तो हमारा सौभाग्य होगा।” दोनों एक साथ बोले।

कौवों ने मिलकर अपने पंजो में बेल को पकड़ा और बरगद के पेड़ के नीचे उतरने लगे। पेड़ के पास ही एक बहुत बड़ी पत्थर की शिला पड़ी हुई थी। उन्होंने ऊपर से उस पर जोर से बेल को पटका, गिरते ही उसके दो टुकड़े हो गए। बीच का गुदा अलग निकल पड़ा। कल्लू कौवा और उसका साथी उस पर टूट पड़े। दोनों ने जल्दी-जल्दी बहुत-सा गुदा खा डाला। फिर दोनों ने रगड़कर चोंच पोंछ ली। इसके बाद थोड़ा-थोड़ा बेल के गुदा के टुकड़े अपनी-अपनी चोंच में दबाकर वे शुभा के पास उड़ चले।

“ओह दीदी ! यह लीजिए अपना बेल बहुत मेहनत लगी है इसे तोड़ने में।” कौवे बोले। शुभा उसे देखकर बोली–“पर इसमें गुदा तो है ही नहीं। “

“अरे दीदी ! यह ऐसा ही होता है। नाममात्र का गुदा होता है इसमें।” कल्लू बोला।

कल्लू की बात सुनकर पेड़ की ऊँची शिखा पर बैठे गिद्ध से न रहा गया। वह कौवों की सारी करतूतें देख रहा था। वह बोला — और नीचे जो गुदा खाया गया था वह……।”

यह सुनकर कल्लू आँख तिरेककर कर्कश स्वर में बोला — “वह तो हमारा पारिश्रमिक था।”

दूसरा कौवा चोंच फाड़कर क्रोध में भरकर चीखा — “दादा ! आपको हमारे बीच में बोलने का अधिकार ही क्या है ?”

“एक तो इतनी मेहनत की। दूसरे ऐसी बाते सुने।” कहकर दोनों कौवे शुभा के आगे बेल पटककर चलते बने।

तब गिद्ध ने आँखों देखी सारी बातें शुभा को बताई। सुनकर वह गुस्से में भड़क उठी — “ओह ! क्या मैं उनका झूठा खाऊँगी। “कहकर उसने पंजो की ठोकर से बेल के दोनों टुकड़े गिलहरी ने नीचे फेंक दिए।

बूढ़ा गिद्ध समझाने लगा — “बेटी ! गुस्सा न करो। यह तो धूर्तों का स्वभाव ही है। पहले वे अपनी मीठी-मीठी बातो से औरों को लुभा लेते है। फिर अपना स्वार्थ पूरा करते है, स्वार्थ पूरा होने पर उनका वास्तविक रूप सामने आता है। “

“और कितना घिनौना होता है वह। उससे उनके लिए घृणा ही उत्पन्न होती है। आखिर कब तक वे दूसरों को धोखे में रख सकते है।” गिलहरी गुस्से में भरकर जोर से बोली।

सुदूर आकाश में देखते हुए दार्शनिकों की भांति गिद्ध धीमे स्वर में बोला — “हां ! जीवन भी क्या , जो किसी का आदर और विश्वास न पा सके।”

तो दोस्तों कैसी लगी यह Short Moral Story in hindi कौवों की चालाकी। हमे उम्मीद है आप सभी को इस कहानी से जरूर सीख मिली होगी। दोस्तों ऐसे ही Short Moral Story in hindi जैसे और भी कहानी पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहिए और यह कहानी कैसी लगी Comment करिए।

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