दोस्तों आज हम आपको एक नई Story For Kids In Hindi जिसका शीर्षक ‘षड्यंत्र’ है। यह कहानी शिक्षाप्रद है साथ ही हमें कुछ महत्वपूर्ण बातें भी बताती है। तो आप सभी इस षड्यंत्र नामक Story For Kids In Hindi को पढ़िए और अपने दोस्तों को भी share करें।
षड्यंत्र
(Story For Kids In Hindi)
शांता नाम की एक बकरी थी। उसका घर घने जंगल में था। वहां और भी अनेक जीव-जंतु रहते थे। सभी शांता को प्यार करते थे, वह थी भी बड़ी भली। सदैव पड़ोसियों की सहायता के लिए तैयार रहती, सबसे अच्छा व्यवहार करती थी।
एक बार की बात है। जंगल में जोरों का तूफान आया। सभी अपने-अपने घरों में छिपे बैठे थे। तभी शांता के दरवाजे पर दस्तक हुई शांता ने पहले तो सोचा कि तूफान से खट-खट हो रही होगी। पर देर तक खट-खट होती रही तो वह उठी और दरवाजा खोलने पर उसने पाया कि एक भेड़ भीगी हुई परेशान-सी बाहर खड़ी है। वह कह रही थी–‘बहिन ! मैं दूसरे जंगल से आई हूँ , रास्ता भटक गई हूँ। इस तूफान में तुम मुझे शरण दो।’
तभी जोर से बिजली कड़की। एक बार तो दोनों सहम गई। शांता ने भेड़ का हाथ पकड़कर तेजी से अंदर ले जाते हुआ कहा — ‘बहिन ! इसे अपना ही घर समझो और निस्संकोच यहाँ रहो।’
घर के अंदर आकर भेड़ का मन बड़ा प्रसन्न हुआ। शांता का घर गुफा के अंदर था, वह खूब बड़ा और साफ सुथरा था। पर्याप्त हवा और रोशनी भी अंदर आ रही थी। दरारों से बाहर का दृश्य दिखलाई दे रहा था। यहाँ तूफान से कोई असुरक्षा न थी। शांता ने भेड़ का बहुत स्वागत-सत्कार किया। जल्दी ही दोनों एक-दूसरे से घुल-मिल गई।
वर्षा लगातार तीन दिन तक चलती रही। शांता ने भेड़ को घर पर न जाने दिया। तीन दिन में भेड़ ने मीठी-मीठी बातें बनाकर शांता का मन जीत लिया। शांता तो भोली थी, छल-कपट जानती न थी। दीना नाम की भेड़ जो की कह देती थी, उस पर वह विश्वास कर लेती थी।
एक दिन बातों ही बातों में दीना कहने लगी — ‘बहिन ! घर तो तुम्हारा खूब बड़ा है। तुम यहाँ पर अकेली ही रहती हो। किसी को अपने साथ रख लो न। तुम्हारा मन भी लग जाएगा और दुःख-मुसीबत के लिए साथी भी मिल जाएगा।’
‘सो तो है ही’ कुछ सोचते हुए शांता बोली। फिर वह हँसते हुए कहने लगी — ‘तुमसे अच्छा साथी मैं कहाँ ढूंढूगी ? तुम ही रह जाओ मेरे साथ।’
‘ओह ! तुम रखोगी तो जरूर रहूंगी।’ दीना बोली। वह तो शांता से कहलवाना भी यही चाहती थी, इसलिए मन ही मन बड़ी खुश हो रही थी।
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हंसी-हंसी में कही गई बात आई-गई हो गई। दीना वही रहने लगी। एकाध बार उसने जाने की कोशिश भी की तो शांता ने कहा — ‘बस ! ऊब गया मन। तुम तो यहीं पर रहने की बात कहती थी।’
‘फिर तुम कभी मुझे निकालोगी तो नहीं ?’ दीना ने हंसकर भोलेपन से पूछा।
‘जब ऐसा करूं तो तब कहना।’ शांता बोली।
और फिर दीना भेड़ शांता के पास ही रहने लगी। शांता और दीना दोनों साथ-साथ खाना ढूंढ़ने जंगल जाती और साथ-साथ घूमती। शांता को दीना के आने से बहुत अच्छा लगने लगा भी था। सारा समय मिल-जुलकर काम करने एवं हंसी-खुशी से बीत जाता था। घर का सारा काम तो दीना ने ही संभाल लिया था।
वह तो शांता को काम को हाथ भी न लगाने देती। दीना ने उसे पूरी तरह से अपने पर आश्रित बना लिया था। उसकी मीठी बोली से, अच्छे व्यवहार से शांता मुग्ध हो गई थी। दीना के अतिरिक्त मानो अब उसे किसी की जरुरत ही न रह गई थी। जब भी वह रहती दीना के साथ, जहाँ भी जाती तो दीना के साथ। दूसरों से बातें करने की अब उसे फुरसत भी कम मिलती थी।
शांता के पड़ोसियों को यह अच्छा न लगा। एक दिन अवसर देखकर एक अनुभवी वृद्ध भैंसा बोला — ‘शांता बिटिया ! यह दीना क्या तुम्हारी कोई रिश्तेदार है ?’
‘नहीं दादा जी ! यह तो भगवान ने मेरे लिए अच्छी सहेली भेज दी है।’ शांता बोली। फिर उसने तूफान से परेशान होकर दीना के आने की सारी घटना भैसा को बताई। यह सुनकर वह वृद्ध भैंसा कुछ गंभीर हो गया और बोला — ‘शांता ! विपत्ति में हम दूसरों के काम आएं, उनकी सहायता करें यह तो समझ में आती है, पर किसी से भी घनिष्ठता बनाने से पहले अच्छी तरह से सोच-विचार लेना चाहिए। जाँच-पड़ताल कर लेनी चाहिए कि वह उसके योग्य है भी या नहीं।
कहीं हमारी सज्जनता किसी दुष्टता को तो बढ़ावा नहीं दे रही है। केवल व्यवहार के आधार पर प्रारम्भ में ही किसी अपरिचित को सज्जन या दुर्जन कह पाना बड़ा कठिन है, क्योंकि दोनों का व्यवहार एक-सा होता है। यही नहीं, दुर्जन भी सज्जनों से अधिक विनम्र और भी अच्छा व्यवहार करते है। वे दिखाते है कि मानो वही एकमात्र और सच्चे हितैषी है। जब वे देखते है कि उनका विश्वास पूरी तरह जम गया है तो अपने वास्तविक रूप में आते है और धोखा देते है। इसलिए प्रायः कहा भी जाता है कि किसी भी अपरिचित को बिना परखे उस पर अत्यधिक विश्वास न करो।’
‘नहीं-नहीं दादा जी ! दीना बहन ऐसी नहीं है।’ शांता तुरंत ही बोली।
‘पर किसी को बिना जाने-बुझे यों घर में रख लेना अच्छा नहीं।’ वृद्ध भैंसे ने चलते-चलते कहा।
उसके जाने के बाद शांता बुदबुदाई — ‘ओह ! बूढ़े बड़े ही शंकालु होते है।’
शांता के दूसरे पड़ोसियों ने भी घुमा-फिरकर उससे यह बात कही कि वह दीना को अपने घर में न रखे, पर शांता तो दीना के व्यवहार से ऐसी बंध चुकी थी कि उसे दीना के अतिरिक्त कुछ भी सूझता ही न था।
कुछ दिन ऐसे ही बीत चले। भोली-भाली शांता दीना के बाहरी आडंबर भरे व्यवहार को सच मान बैठी। उसके मन की बातों को न समझ सकी। सज्जन व्यक्ति दूसरों की बातों पर सहज ही तुरंत विश्वास कर लेते है। वे अन्यों को भी अपने जैसा सज्जन ही समझते है।
दीना मन ही मन सोचा करती थी — ‘जल्दी ही मैं विवाह करुँगी। मेरे बच्चे होंगे। रहने के लिए बड़े से घर की जरूरत होगी, पर इतना अच्छा घर मुख्य कहाँ मिलेगा ?’
फिर दीना सोचने लगी — ‘शांता को इस घर से निकाला जाए। तभी मैं चैन से रह सकती हूँ।’
उसने मन ही मन निर्णय लिया कि इसे मैं अपने रास्ते से दूर करके ही रहूंगी। दीना कई दिन तक यह सोचती रही कि शांता को घर से किस प्रकार निकाला जाए ? शांता आसानी से निकलने के लिए तैयार न होगी। फिर झगड़ा होने पर पड़ोसी भी शांता का ही पक्ष लेंगे। इसलिए दीना ने सोचा — ‘सीधे-सीधे इससे कुछ भी कहना बेकार है। मुझे छल से काम लेना होगा और उसने मन ही मन एक षड्यंत्र रचा।’
उस दिन मौसम सुहावना था। ठंडी-ठंडी हवा बह रही थी। दीना शांता से कहने लगी — ‘चलो दीदी ! आज तो जंगल के पार नदी किनारे घूमने चलें।’
शांता तो कभी दीना की किसी बात के लिए मना करती ही न थी। वह उसके साथ चल दी। रास्ते भर दीना उससे चापलूसी भरी मीठी-मीठी बातें करती रही। घूमते-घूमते वे एक ऊँचे टीले पर चढ़ गई। नीचे कल-कल करती नदी बह रही थी। ‘ओह ! देखो तो दीदी नीचे का दृश्य कैसा मनोहर है ?’ दीना बोली।
शांता जैसे ही नीचे झुकी तो दीना ने उसे जोर से धक्का दे दिया। शांता कुछ समझ पाती, सँभल पाती इससे पहले ही वह टीले से लुढ़कती , बल खाती नीचे नदी की धार में बीचों बीच आ गिरी। दीना बड़े ध्यान से देख रही थी। शांता को पानी में डुबकी लगते देख वह फुसफुसाई — ‘बस ! अब तेरा काम तमाम हो गया।’ वह खुशी-खुशी घर की ओर चल पड़ी।
घर के पास आने पर दीना ने जोर-जोर से रोना-कलपना प्रारंभ कर दिया। घर आकर तो वह पछाड़ खाकर गिर पड़ी। उसकी आवाज सुनकर सारे पड़ोसी दौड़े चले आए। दीना उन्हें बिलख-बिलख कर बता रही थी कि जंगल में एक भेड़िया आकर शांता को उठा ले गया। यह सुनकर सारे पड़ोसी धक से रह गए। अब किया भी क्या जा सकता था ? वे दीना को तरह-तरह से धैर्य बंधा रहे थे। दीना बार-बार कह रही थी — ‘हाय रे ! भेड़िया मुझे ही क्यों न उठा ले गया। शांता के बिना मेरा जीना बेकार है। मैं भी मर जाउंगी।’
पड़ोसी उसे तरह-तरह से धैर्य बंधाते रहे। वे उसे समझा-बुझा कर अपने घर वापिस लौट गए।
उधर जब शांता नदी की धारा में डुबकी लगा रही थी तो बूढ़े भैंसा ने जो दूसरे किनारे पर कीचड़ में बैठा था, उसे देखा। वह तुरंत तेजी से तैरता हुआ आया। नदी की बीच धारा में गहरा पानी था। वहां बस बुलबुले उठते दिखाई दे रहे थे और कुछ भी न था। ‘आज पता नहीं कौन नदी में डूबा है ?’ भैंसा मन ही मन कहने लगा। सहसा उसे तभी किसी जानवर की पूंछ पानी में तैरती हुई दिखलाई दी। उसने जल्दी से उसे खींच लिया। पूंछ खींचे जाने पर पानी में डूबी हुई शांता ऊपर आ गई। ‘ओह ! शांता तुम।’ भैंसा उसे देखकर आश्चर्य से बोला।
वह जल्दी से बेहोश-सी शांता को किनारे पर लाया। उसके नाक, गले, फेफड़ो में पानी भर चूका था। भैंसे ने उसे उल्टा लिटाया और फेफड़े दबाकर पानी निकाला। घंटो उपचार करने के बाद कहीं जाकर शांता ने आँखें खोली। अपनी मेहनत सफल होते देख भैंसा प्रसन्नता से झूम उठा। वह शांता के सिर पर अपना हाथ फिराते हुए बोला — ‘शांता बिटिया ! चिंता न करो, अब तुम बिलकुल ठीक हो।’
‘ओह ! मैं यहाँ कैसे आ गई ?’ शांता आँखे फाड़कर चारों ओर देखकर उठते हुए बोली।
‘बेटी ! तुम नदी में डूब गई थी। मैं तुम्हे निकालकर लाया हूँ।’ भैंसा बोला।
यह सुनते ही शांता की आँखों के आगे कुछ समय पहले की घटना घूम गई। वह फूट-फूटकर रो उठी।
‘अरे ! तुम रोती क्यों हो ? तुम नदी में कैसे गिर पड़ी ? क्या तुम आत्महत्या करने जा रही थी ?’ भैंसे ने एक साँस में ही अनेक प्रश्न पूछ डाले।
तब शांता ने भैंसे को सारी बातें बता दी कि किस प्रकार दीना ने उसे धक्का दिया था। शांता बहुत ही दुखी होकर कह रही थी — ‘दादा जी ! मुझे चोट खाने और डूब जाने का उतना दुःख नहीं है जितना कि दीना से विश्वासघात पाने का है। जिसे हम सदा हृदय से चाहते है, उसका इतना बड़ा विश्वासघात हमे बहुत गहरी पीड़ा देता हैं।’
साँझ होने वाली थी। भैंसा बोला — ‘चलो अब घर चलें।’
उसने शांता को अपनी पीठ पर बैठाया और दोनों घर की ओर लौट चले। रास्ते में भैंसे ने मन ही मन सारी स्थिति पर कुछ विचार किया। उसने शांता को अपने घर उतारा और बोला — ‘तुम्हारी तबियत ठीक नहीं। तुम अभी यहीं आराम करो।’
फिर वह सही स्थिति जानने के लिए पड़ोसियों के पास गया। उनसे सारी बात सुनकर भैंसे की आँखे लाल हो उठी। भैंसे ने जब उन्हें सही बात बताई तो सारे जानवर गुस्से से भड़क उठे। वे गुस्से में भरकर चिल्लाए — ‘इस दुष्ट को आज सबक सिखाकर ही रहेंगे।’
सब तेजी से दीना के घर की ओर दौड़ चले। दीना को इस सबकी अपने में भी उम्मीद न थी। वह तो बैठी दावत उड़ा रही थी। सहसा ही जानवरों ने दरवाजा तोड़ डाला और घर में घुस आए। दीना कुछ समझ पाए इससे पहले ही उसे दबोच लिया। वह हक्की-बक्की रह गई। तभी भैंसे ने कसकर उसके गाल पर तमाचे लगाए और सींगो से, जोर से झकझोर कर पूछा — ‘बोल पापिनी ! तुझे क्या दंड दिया जाए ?’
‘क्यों मारते हो मुझे ? मैंने ऐसा क्या किया है ?’ दीना रिरियाती हुई बोली।
विश्वासघातिनि-दुष्टनी ! तुझे मारेंगे नहीं तो क्या तेरी पूजा करेंगे। कहते हुए एक सूअर ने उसकी सारी ऊन नोंच डाली। दूसरे जानवर भी गुस्से में भरकर खड़े थे। सभी दीना पर टूट पड़े। किसी ने उसकी पूंछ उखाड़ी, किसी ने सींग तोड़े तो किसी ने दाँत हिला डाले। उन सारे ही जानवरों ने मार-मारकर दीना को अधमरा-सा बना दिया था।
तभी वहां सहसा शांता ने प्रवेश किया। शोर सुनकर उससे रहा न गया था और दौड़ी चली आई थी। वह बीच-बचाव करते हुए बोली — ‘अब बहुत हो चुका। अब इसे छोड़ दो। भगवान् ही इसे दंड देंगे। बुरे काम करने वाला सोचता है कि इसे कोई देखता नहीं, पर इस दिखाई न देने वाले संसार से भी परे कोई अदृश्य सत्ता भी है जो समस्त संसार का नियंत्रण करती है। वही अच्छे या बुरे कर्मो का फल देता है। बुरा करने का फल कभी न कभी तो मिलता ही है।’
शांता ने बहुत कहा-सुना तब कहीं जाकर जानवर दीना को मारने से रुके। भालू गुर्राया — ‘चलो ! शांता बहिन के कहने से तुम्हे छोड़ दिया, पर अब तुम भागो इस जंगल से। अपना काला मुँह अब कभी हमें न दिखाना।’
दीना चुपचाप सिर झुकाकर एक ओर चल दी। उस दिन के बाद से फिर उसे किसी जानवर ने नहीं देखा।
तो दोस्तों कैसी लगी Story For Kids In Hindi आप सभी को। हमे उम्मीद है यह Story For Kids In Hindi आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। ऐसे ही hindi kahaniya पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट पर आते रहिए और यह Story For Kids In Hindi व षड्यंत्र नामक कहानी कैसी लगी हमे comment जरूर करें।
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