दोस्तों आज हम आप सभी को एक तितली, मधुमक्खी और तोते की कहानी बताएंगे। यह Tote Ki Kahani में तोते के द्वारा लिया गया निर्णय उसकी सोचने की क्षमता को दर्शाता है। तो इस Tote Ki Kahani को आप सभी पढ़िए और इसका आनंद लीजिए तथा अपने दोस्तों को भी शेयर करिए।
तोते का निर्णय
(Tote Ki Kahani)
एक तोता एक दिन पेड़ की ऊँची डाल पर बैठा था। वह अभी-अभी एक कच्चा अनार तोड़कर लाया था। बड़ा स्वाद लेकर वह उसे खा रहा था। तभी उसने देखा कि सामने वाले गुलाब के एक फूल पर एक तितली और एक मधुमक्खी आ बैठीं, दोनों साथ-साथ आई थीं। दोनों ही उसका रस पीना चाहती थी। वे आपस में झगड़ने लगीं। तितली बोली — “अरी ! पहले मैं आई हूँ, इस फूल पर मेरा अधिकार है। तू और कही चली जा। “
मधुमक्खी कहने लगी — “हटो भी ! तुमसे पहले मैं आई हूं। चलो तुम्हीं भागो यहाँ से। “
दोनों काफी देर तक आपस में इसी प्रकार तू-तू , मैं-मैं करती रही। अँधेरा घिरने लगा था। उन्हें घर भी जल्दी लौटना था। दोनों में से कोई भी न तो उस फूल का रस पी पा रही थी, न उसे छोड़ पा रही थी। सहसा उनकी निगाह डाल पर बैठे तोते पर पड़ी। उन्होंने तोते को पुकारा — “तोता भाई , तोता भाई ! कृपया इधर आइए। आप हमारे झगड़े का फैसला कर दीजिए। हम आपके बड़े आभारी रहेंगे। “
तोता अब उनके पास आ गया। ” कहिए ! आपका क्या भला कर सकता हूँ ?” वह पूछने लगा।
दोनों ने अपनी समस्या उसके सामने रखी। तोता कहने लगा– “मैंने आप दोनों को ही आते देखा था। दोनों ही साथ-साथ आई थी। ऐसा करो कि आप दोनों ही आधे-आधे गुलाब का रस पी लीजिए। “
“ओह ! यह तो सम्भव नहीं है। यह भला कौन सा न्याय हुआ ? तोता भाई ! तुम निस्संकोच दोनों में से किसी एक के पक्ष में अपना निर्णय सुना तो। हम बिना झगड़ा किए उसे मान लेंगे। ” अपनी लम्बी सूंड़ घुमाते हुए तितली बोली।
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तोता कहने लगा — “बहनो ! मिल-जुलकर रहो। साथ-साथ खाओ, साथ-साथ प्रेम से बोलो , साथ-साथ रहो। एक-दूसरे को सहयोग करो। किसी के साथ मिलकर न रहने वाले, अलग-अलग चलने वाले क्या भला अच्छे कहे जा सकते है ? क्या वे कभी दुसरो का सम्मान पा सकते है ?”
अब तोते ने दो पल सोचा। फिर कहने लगा — “सुनो ! सुनाता” हूँ तुम्हे अपना निर्णय। बुरा न मानना , ध्यान से सुनना। “
मधुमक्खी और तितली तोते के पास खिसक आई। बड़े ध्यान से वे उसकी बातें सुनने लगी।
“इस फूल पर मधुमक्खी का अधिकार है। ” तोता कहने लगा।
ऐसा सुनकर मधुमक्खी को बहुत अच्छा लगा, लेकिन तितली के मन में उदासी छा गई और उदासी भरी नजरों के साथ तोते से कहा — ऐसा क्यों बोल रहे हो तोते भाई ? मैंने आखिर क्या अपराध किया है ?”
तोता दो पल रुका फिर अपने पंजे में पंजा उलझाते हुए स्थिर स्वर में बोला — “देखो ! जो औरों को देता है, वही पाने का सच्चा अधिकारी है। तुम दोनों ही फूलों का रस पीती हो। तुम उसे केवल अपने काम में ले लेती हो , पर मधुमक्खी उसे शहद के रूप में बदलकर दूसरों को दे देती है।
फूलों के रस को और भी उपयोगी और गुणकारी बना देती है। वह स्वयं मारी जाती है, पर फिर भी शहद बनाना नहीं छोड़ती। परोपकार में लगे हुए महान व्यक्ति , स्वयं कष्ट पाकर भी कल्याण करते है। ऐसे व्यक्ति स्वयं भी दुखी नहीं रहते। अनायास ही वे बहुत सी सुविधा सम्पत्ति पा लेते है…..। ”
तोता की बात सुनकर तितली का मुँह लटक गया। वह बिना एक शब्द भी बोले चुपचाप वहां से उड़ गई।
“धन्यवाद तोता भाई। ” मधुमक्खी ने हँसते हुए कहा और फूल पर बैठकर आराम से रस पीने लगी। वह मन ही मन सोचती जा रही थी — “उस जीवन से क्या लाभ क्या जो दूसरों का उपकार न कर सके, उनके कुछ काम न आ सके। “
तो दोस्तों कैसी लगी यह Tote Ki Kahani जैसी short story जो कि शिक्षाप्रद के साथ-साथ बुद्धि के सही प्रयोग का एक उदाहरण है। हमें उम्मीद है कि आप सभी को यह Tote Ki Kahani बहुत पसंद आयी होगी। ऐसे ही Hindi Kahaniyan पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट पर आते रहिए।
गायत्री परिवार के द्वारा बाल निर्माण की कहानियां को हमारी तरफ से बहुत बहुत आभार।
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