दोस्तों आज हम आपके लिए एक Short Friendship Moral Story Hindi जो कि दो दोस्तों की कहानी है जो एक बहादुर अथवा निडर थे। दोस्तों यह कहानी का शीर्षक “समाज का गौरव ” है। तो दोस्तों आप सभी इस Short Moral Story Hindi जो मित्रता की कहानी है इसे पढ़िए और अपने दोस्तों को भी शेयर करिए।
समाज का गौरव
(Short Friendship Moral Story Hindi)
ज्ञानचंद और गुरदीप दोनों मित्र थे, वे अम्बाला में रहते थे। दोनों सातवीं कक्षा के छात्र थे। वे पढ़ने में तो होशियार थे, साथ ही साथ अच्छे स्काउट भी थे। दोनों ही अपने दल के नायक थे। उनके स्काउट-मास्टर बड़े योग्य और साहसी व्यक्ति थे। वे बच्चो को खेल-खेल में ही बहुत-सी बातें सिखा देते। उन्होंने स्काउटों में सेवा, परोपकार और साहस की भावनाएं कूट-कूटकर भर दी थी, बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते है। अपने शिक्षक से सुयोग शिक्षक उन्हें ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ उनके चरित्र का निर्माण करता है, उन्हें सद्गुणी बनता है।
एक दिन ज्ञान और गुरदीप स्कूल से लौट रहे थे , उनका घर भी बस्ती से बाहर बनी नई कालोनी में था। वहां चहल-पहल वैसे भी कम रहती थी। उस दिन लू भी चल रही थी। सड़क प्रायः सुनसान -सी थी। ज्ञानचंद और गुरदीप दोनों बातें करते हुए जा रहे थे। एक दिन बाद ही उनका स्काउटिंग का कैम्प लगने वाला था। वे उसी के लगने की बातें कर रहे थे।
बच्चो की आदत होती है कि सड़क पर बात करते हुए चलते है तो बातों में डूबकर सब कुछ ही भूल जाते है। अधिकांश दुर्घटनाएं इसी प्रकार होती है। कोई स्कूटर की चपेट में आ जाता है तो कोई ट्रक की। कोई किसी से टकरा जाता है तो कोई ठोकर खाकर गिर जाता है , परन्तु ज्ञान और गुरदीप की ऐसी आदत न थी। वे तो स्काउट थे, हर समय सावधान रहने वाले।
ज्ञानचंद को थोड़ी देर से लग रहा था कि कोई उनका पीछा कर रहा है। अतएव बातें करते हुए भी वह चौकन्नी निगाह रख रहा था। उसकी आशंका गलत न निकली। सहसा ही एक व्यक्ति ने पास आकर पीछे से गुरदीप के मुँह पर कपड़ा डाला और उसे घसीटकर ले जाना चाहा। ज्ञानचंद सहसा पीछे मुड़ा। वैसी भयंकर स्थिति देखकर वह तनिक भी नहीं घबराया। उसने सूझबूझ से काम लिया , उस व्यक्ति को धक्का देकर वह भागता ही चला गया। वह पूरी शक्ति से चिल्लाता जा रहा था — “बचाओ बचाओ। “
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भागते हुए भी ज्ञान की निगाह उस व्यक्ति पर थी। उसने देखा कि उस आदमी ने अब गुरदीप के चेहरे पर डाला हुआ कपड़ा कस लिया है। उसे बोरे में डालकर , पीठ पर लादकर वह दूसरी दिशा में भागने लगा। यह देखकर ज्ञान ने भी अपनी दिशा बदल दी। अब वह लुटेरे के पीछे चिल्लाता हुआ भागा।
ज्ञान की चीख आसपास के घरों में बैठे व्यक्तियों ने सुनी। वे अपने घरों से बाहर निकल आए। दूर सड़क पर एक-दो राहगीर जा रहे थे वे भी ठिठक कर खड़े हो गए। ज्ञान ऊँगली से इशारा करते हुए लगातार भाग रहा था, चीख रहा था — “लुटेरा-बचाओ। ” दूसरे व्यक्ति भी ज्ञान के पीछे-पीछे भागे। ज्ञान ने तेजी से जाकर उस व्यक्ति की कमीज पीछे से पकड़ ली , तब तक अन्य व्यक्ति भी वहां पहुँच चुके थे। सभी ने उसे घेर लिया।
गुरदीप ने लुटेरे की पकड़ से छूटने के लिए बहुत प्रयास किया, पर उस लम्बे-चौड़े आदमी ने उसे दबोच लिया था। चेहरे पर मोटा कपडा पड़ा होने के कारण गुरदीप को सामने का कुछ दिखलाई न दे रहा था। दुष्ट व्यक्ति ने इसका लाभ उठाकर गुरदीप की गर्दन में फंदा कसकर उसे बोरे में डाल दिया था। फंदा कस जाने के कारण वह बेहोश हो गया था।
ज्ञान जल्दी से बोरे की ओर बढ़ा और उसका मुँह खोला। उसने कुछ व्यक्तियों की सहायता लेकर बेहोश गुरदीप को बोरे से बाहर निकाला।
“मेरा घर पास ही है, चलो वहां ले चलें। ” कहकर एक व्यक्ति ने गुरदीप को अपने कंधे पर लटकाया और चल पड़ा। अब ज्ञानचंद भी उसके पीछे-पीछे चलने लगा। साथी को छुड़ाने और लुटेरे को पकड़वाने का काम पूरा हो चूका था। जिन व्यक्तियों ने उस बच्चों को चुराने वाले चोर को पकड़ा था वे अब उसकी अच्छी तरह धुनाई कर रहे थे।
ज्ञान और उस व्यक्ति ने घर आकर गुरदीप को लिटा दिया। उसके मुँह पर पानी डाला और उसे बनावटी सांस दी। जल्दी ही उसे होश आ गया। “कहाँ हूँ मैं ? क्या हुआ मुझे ? कहाँ गया आदमी ?” कहते हुए आँखे मलकर गुरदीप उठ बैठा।
“घबराओ नहीं, तुम बिलकुल सुरक्षित हो बेटे। ” गृहस्वामी ने गुरदीप के सर पर हाथ फिराते हुए कहा। ज्ञानचंद ने उस लुटेरे के पकड़े जाने की वह पूरी घटना बताई। “ओह ” ! तो आज तुमने साहसपूर्वक स्वयं को खतरे में डालकर मेरी रक्षा की है। गुरदीप कहने लगा।
“वह तो मेरा कर्तव्य था, मुझे करना ही चाहिए था। भगवान मेरी यह भावना और शक्ति बनाए रखें। ” ज्ञान बोला।
गृहस्वामी उन दोनों बच्चों की बातचीत से मन ही मन बड़े प्रसन्न हो रहे थे। उन्होंने नास्ता-पानी कराया और उनके घर छोड़ आए।
उधर उस लुटेरे को पकड़कर व्यक्ति थाने ले गए। थानेदार ने बताया कि यह एक कुख्यात अपराधी है। बच्चों को चुराना और बेचना ही प्रायः उसका काम है। पुलिस को भी उसकी काफी तलाश थी। सिपाहियों ने उसकी बहुत पिटाई की और धक्का देकर कोठरी में बंद कर दिया।
आपने कहाँ से पकड़ा इसे ? थानेदार ने साथ आए व्यक्तियों से पूछा और सारी बात जाननी चाही। जब उन्हें पता लगा कि एक छोटे बच्चे की बहादुरी से वह अपराधी पकड़ा गया हैं, तो वे बहुत ही प्रसन्न हुए। उस बच्चे से मिलने वे उसके घर पहुंचे। उन्होंने ज्ञानचंद की पीठ थपथपाई, उसे बहुत शाबासी दी और कहा– “बेटे ! तुम्हारे जैसे साहसी बालक ही समाज का गौरव है। सदा ऐसे ही बहादुरी के काम करो। “
कुछ दिनों बाद एक सार्वजनिक समारोह में नगर के मुख्य पुलिस अधीक्षक ने ज्ञानचंद को वीरता पुरस्कार दिया और उसका अभिनन्दन किया। यही नहीं, वीरता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले बच्चों के नामों के लिए ज्ञानचंद का नाम प्रस्तावित किया गया। प्रधानमंत्री द्वारा ज्ञानचंद को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। वह मन ही मन संकल्प कर रहा था — “मैं सदैव बुराई अनीति और अत्याचार से संघर्ष करूंगा। समाज और राष्ट्र के निर्माण के लिए मेरा जीवन समर्पित है। “
तो दोस्तों कैसी लगी आप सभी को यह Short Friendship Moral Story Hindi : समाज का गौरव। हमे उम्मीद है कि यह moral story hindi आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। दोस्तों और ऐसे ही Short Friendship Moral Story Hindi जैसी कहानियां पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहे और यह कहानी कैसी लगी comment करके हमे motivate करे।
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