दालुदास के हाथ क्यों कटे | Short Motivational Story in Hindi

आज हम आप सभी को short motivational story in hindi जो एक सच्ची घटना पर आधारित है जिसका नायक दालुदास नाम के व्यक्ति है। यह घटना भारत के बिहार राज्य से संबंधित है। तो चलिए आप सभी इस short story in hindi of Daludas को पढ़िए और इसके द्वारा मिली शिक्षा को अपने जीवन में अवतरित करिए। इस short motivational story in hindi को आप अपने दोस्तों को भी share करें।

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दालुदास के हाथ क्यों कटे ?

Short Motivational Story in Hindi

एक नदी के किनारे एक गांव है। उस गांव का नाम मुरादपुर है। यह इलाका उत्तर बिहार में पड़ता है। इस जगह की एक बहुत ही मशहूर घटना है जो कि एक कहानी के रूप में परिवर्तन हो गया है। इस कहानी का मुख्य हीरो दालुदास नाम के व्यक्ति है। दालुदास के पास खेती के लिए जमीन नहीं है। वह भूमिहीन है। सभी लोग उसे बहुत शरीफ और अच्छा व्यक्ति मानते थे। वह कभी किसी का बुरा नहीं चाहा और न ही किसी का बुरा किया है। वह अनपढ़ जरूर था लेकिन सही और गलत का फर्क समझता है।

लक्ष्मीपुर टोला के लोग दालुदास को दलु काका कहकर पुकारते है। लेकिन वाले लोग उसे दलुआ कहते है। दालुदास साठ साल का है। उसके सफ़ेद बाल है हुए सफ़ेद दाढ़ी है। घुटने तक की उसकी धोती फटी हुई है। कंधे पर मैला-कुचैला पुराना अंगोछा है। धोती में खैनी का डिब्बा वह हर वक्त लपेटकर रखता है। काले चेहरे पर सफ़ेद दाढ़ी बहुत खिलती है।

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कहानी के नायक दालुदास का चित्रण करने से अब घटना को समझने में आसानी होगी। गांव के जमींदार गरीबो को बूढ़ो, औरतों और बच्चों पर भी जुल्म ढाते है। दालुदास की पत्नी का नाम रमरतिया है। फुलिया दालुदास की एकलौती बेटी। उसकी शादी बगल के गांव तेलहर में काफी पहले हुई थी। फुलिया के ससुर सहरसा कचहरी में चपरासी के पद पर है। दालुदास और उसकी पत्नी दोनों अपने काम से ही मतलब रखते थे। उन्हें राजनीति में कोई भी रूचि नहीं थी।

मुरादपुर गांव के सबसे बड़े जमींदार का घर हवेली के नाम से मशहूर है। दालुदास उस हवेली में बचपन से ही काम करता था। एक तरह से दालुदास बंधुआ मजदुर था। जमींदार के खलिहान की देखभाल और मवेशी चराने का काम दालुदास का था। रमरतिया हवेली में चौका-बर्तन से लेकर कूटान-पिसान करती थी।

टोला में ज्यादातर घर गरीबों के थे वे सब संत कबीर के भक्त थे। दालुदास भी जब कभी झोपडी में अकेला रहता तो भजन करने में लग जाता। वह गुनगुनाता रहता था क्योकि वह गाने में बहुत अच्छा था।

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मुरादपुर गांव में एक बार खूब बाढ़ आयी। सब कुछ डूब गया। लक्ष्मीपुर टोला का तो नामोनिशान मिट गया। दो महीने तक सब रिंग बांध पर खुले आसमान के नीचे थे। सभी का फसल बर्बाद हो गया। लोग खाने-पीने के लिए तरश रहे थे। लोगो पर कर्ज बढ़ता गया क्योंकि ऐसी स्तिथि में वे कर्ज लेकर ही गुजारा कर रहे थे ।

जब बाढ़ का पानी खत्म हुआ तब सभी लोगो ने अपनी अपनी झोपडी बनाई। दालुदास ने कर्ज लेकर अपनी झोपडी बनाई। इस तबाही के बाद सभी तरफ भुखमरी की हालत थी। तभी विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई। राजनीतिक दलों के उम्मीदवार प्रचार करने लगे। मुरादपुर गांव में चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई। नेताओ का आना-जाना शुरू हो गया।

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धूल उड़ाती जीप के पीछे गांव के बच्चो का झुण्ड नंग-धड़ंग दौड़ता था। दालुदास भी तेज कदमो से जीप के पीछे-पीछे जाता था। जहाँ जीप रूकती, वहां भाषण होता। एक दिन में पांच-सात जीप आती थी। सरे नेता भाषण देते। आश्वासन देते। वे कहते थे कि बाढ़ अब कभी गांव ने नहीं आएगी। गरीबों को रोजगार दिलाया जाएगा। घर बनाने के लिए सरकार से कर्ज मिलेगा।

पहली पार्टी का निशान था गुलाब का फूल। दूसरी पार्टी का निशान था मोटरगाड़ी। तीसरी पार्टी का साइकिल का चक्का। चौथी पार्टी का निशान था मोर। कहने का मतलब तरह-तरह की पार्टियां थी। गुलाब वाली पार्टी के नेता का नाम श्यामकुमार महासेठ था। मोटरगाड़ी छाप वाले पार्टी का उम्मीदवार का नाम रामसकारत था। मुरादपुर गांव में जो जिस जाति के उम्मीदवार थे वे उसी जाति के जमींदार के दरवाजे पर आते थे। उससे कहते थे हमे बोट दिलाओ।

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एक दिन मोर वाली पार्टी के उम्मीदवार का भाषण हुआ। दालुदास भाषण सुनने आया। उस दिन बहुत भीड़ थी। मोर वाला उम्मीदवार मनोरंजन पासवान बोल रहा था, “जात-पात से देश और समाज नहीं चलता है। धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले देश तोड़ना चाहते है। हिंसा फैलाना चाहते है। इनके खिलाफ खड़ा होना होगा। इसलिए एक-एक वोट का महत्व है।

बूथ लूटने वाले जनता के दुश्मन है। अपराधी को वोट मत दीजिए। उसे बूथ लूटने मत दीजिए। वोट डालना आपका मौलिक अधिकार है। संविधान ने यह अधिकार देश के हर नागरिक को दिया है। इसे कोई किसी से छीन नहीं सकता। किसी के कहने में न आएं।वोट सोच-समझकर दें। भाषण खत्म होते ही दालुदास जोर-जोर से ताली बजाने लगा। दालुदास को इस नेता का भाषण सभी नेताओं से बहुत अच्छा लगा ।

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मुरादपुर गांव में साईकिल छाप का उम्मीदवार रामसकारत जमींदार के दरवाजे पर आया करता था। लक्ष्मीपुर टोला के वोट का इंतजाम रामसकारत के लिए जमींदार करता था। चुनाव के दिन सुबह-सुबह जमींदार का बेटा शिशिर और पन्ना लक्ष्मीपुर टोला आए। सभी को बुलाकर आदेश दिया कि साईकिल छाप को वोट देना है। एक भी वोट इधर से उधर नहीं होना चाहिए। दालुदास को भी यह आदेश था।

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दालुदास सोच रहा था कि मैंने अपने मन से कभी वोट नहीं दिया हमेशा मालिक के कहने पर ही वोट डाला है और फिर भी जो नेता बने उनके द्वारा कुछ नहीं हुआ हालत वैसी ही रही। ये सोचते-सोचते वह बूथ पहुंचा। लाइन में लगा। उसे मतपत्र दिया गया। अंगुली में स्याही लगाई गई। मतपत्र में उसने खोजकर मोर छाप पर वोट दिया। मतपेटी में उसने मोड़कर अपना मतपत्र डाला। दलुदास आज मन ही मन खुश था। पहली बार उसने अपने मन से वोट दिया था। उसे मन ही मन गुदगुदी हो रही थी।

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चुनाव परिणाम घोषित हुआ। साईकिल चक्का छाप चुनाव हार गए। गांव में सन्नाटा फ़ैल गया। मोर छाप के उम्मीदवार मनोरंजन पासवान जीत गए। उनकी जीत के कारण मुरादपुर गांव में झगड़ा-झंझट शुरू हो गया। लक्ष्मीपुर टोला के लोग डरे हुए थे। जमींदार अपने बेटे शिशिर और पन्ना के साथ कुछ लठैत लेकर टोले पर पहुंचा। शाम के समय टोले के लोगों को बुलवाया गया। जमींदार ने सभी को पूछा कि वोट किसको दिया ? सभी ने कहा कि साईकिल चक्का छाप को वोट दिया। लेकिन दालुदास ने सच बात कह दी। उसने साफ कहा कि मोर छाप वाली पार्टी का उम्मीदवार बढ़िया लगा था। उसी को वोट दिया।

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इतना ही सुना था कि जमींदार भड़क उठा। दलुदास को गन्दी-गन्दी गलियां देने लगा। शिशिर और पन्ना यह कहते हुए दालुदास पर टूट पड़े कि नया-नया नेता बना है। घंटे भर तक दालुदास की पिटाई होती रही। उसकी झोपड़ी में आग लगा दी गई। रमरतिया की भी पिटाई हुई। जमींदार दालुदास से अपना कर्ज मांगने लगा। रह-रहकर उसकी पिटाई भी होती रही। जमींदार का तमतमाया चेहरा अचानक चीख उठा , “साले का हाथ काट लो। ” थोड़ी ही देर बाद फरसे से दालुदास के दोनों हाथ काट लिए गए। शोर मच गया। भगदड़ मच गई। सबके सब भाग खड़े हुए।

दालुदास को सुबह रमरतिया और दो तीन लोग छुपकर सहरसा अस्पताल लाए। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की। यह खबर अखबार में छपी। शीर्षक था “सामंतो का मार , दलुआ बेचारा ” लेकिन कुछ नहीं हुआ। उलटे जमींदार ने दालुदास पर डकैती का मुकदमा कर दिया। इधर वह अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहा था। दालुदास के दामाद विश्वनाथ दास ने अपने ससुर की जमानत ली। अपनी बेटी के पास दालुदास तथा उसकी पत्नी रहने लगे।

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अचानक एक दिन घर छोड़कर दालुदास निकल गया। दालुदास गांव-गांव घूमकर कबीर के निर्गुण भजन गाता है। हाथ कट जाने की घटना के बाद से दालुदास निडर होकर गांव-गांव घूमता है और निर्गुण भजन की तर्ज पर गा-गाकर वोट के महत्व को बतलाता है। इस तरह निर्गुणिया दालुदास मस्ती से अपनी गुजर-बसर कर रहा है।

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तो कैसी लगी यह Short Motivational Story in Hindi जिसका शीर्षक है दालुदास के हाथ क्यों कटे ? यह कहानी हमे शिक्षा देती है कि हम अपने अधिकार से अपने पसंदीदा उम्मीद्वार को वोट दे सकते है। इसके लिए आपको कोई नहीं रोक सकता। लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं हो रहा। आज के समय में वोट पाने के लिए रुपयों , शराब और अनेक चीजों की सहायता से वोट मांगे जा रहे है। दोस्तों हमे उम्मीद है यह कहानी आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। ऐसे ही Short Motivational Story in Hindi के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहे।

3 Comments on “दालुदास के हाथ क्यों कटे | Short Motivational Story in Hindi”

  1. Nice Post
    Miranda House University of Delhi – मिरण्डा हाउस एक गर्ल्स कॉलेज है ये दिल्ली यूनिवर्सिटी के लोथ कैम्पस मे स्थित है मिरण्डा हाउस की स्थापना सन् 1948 मे की गई थी। मिरण्डा हाउस को एन एस के द्वारा A+ ग्रेड दिया गया है। दिल्ली का मिरांडा हाउस Miranda House University of Delhi

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