धरम माँ | Short Story on Mother In Hindi

दोस्तों आज हम आपको Short Story on Mother In Hindi जो कि एक ऐसी माँ की कहानी है जो अपने बच्चो के लिए सब कुछ त्याग करने में भी संकोच नहीं करती है। दुनिया में सभी को पता है कि माँ की ममता क्या होती है। ऐसे में हमे भी अपने माँ का अच्छी तरह ध्यान रखना चाहिए। तो चलिए यह Short Story on Mother In Hindi आप सभी के लिए। इसे पढ़िए और दुसरो को भी share जरूर करें।

धरम माँ

(Short Story on Mother In Hindi)

दुनिया चाहे कितनी बड़ी हो मगर उसकी दुनिया तो धरम-करम है। सुहाग की उमर तो उसने दस साल ही देखी। बाकी साठ साल तो उसने अपनी अमर हरि भजन, देव दर्शन और जीव जन्तुओ के संग ही बिताई है। जीवन में उसे कोई निराशा नहीं है तो किसी से कोई आशा-दिलासा भी नहीं है। उसने किसी स्कूल का मुँह नहीं देखा परन्तु अपने एकलौते लड़के को अच्छे से अच्छे और ऊँचे से ऊँचे शिक्षाघर भेजकर प्रोफेसर बना दिया। बहू भी पूरी पढ़ी-लिखी और उसके बच्चे भी आधी हिंदी और आधी अंग्रेजी में हमतम करने वाले।

प्रो. राधाकिशन कृषि कॉलेज के प्रिंसिपल है मगर उनके अधिकांश पल अपने घर की राधा के साथ ही रहते है उन्हें रह-रहकर घर की रसोई ही अधिक दिखाई देती है। वे घर का कोई काम छोड़ना नहीं चाहते। उनकी जबान पर कई स्वाद चढ़े रहते है। कई तरह की खट्टी-मीठी गोलियां , अमचूर, अचार उनके वहां हर समय तैयार मिलते है। इन्हे वे तो खाते ही है मगर हर आने वाले को खिलाने में भी वे बड़े चटखारे लेते है और सामने वाला प्रशंसा करे, न करे उसके पहले ही वे स्वयं उनकी अच्छाई के पुल बांधना शुरू कर देंगे और अंत में कहेंगे कि ये सब मैंने ही घर पर बनाये है।

प्रो. राधाकिशन की माँ अपनी पूरी बस्ती में “धरम माँ ” के नाम से जानी जाती है। अपने पूरे भरे-पूरे घर में भी वह अकेली है। घरवाले सभी उसकी धार्मिक वृत्तियों से नाखुश है और वह है कि जो अपने हाल में मगनमस्त है। कभी कोई उससे मिलने आ जाता है तो वह उसका हाथ पकड़ कर घर के बाहर ले जाकर एकांत में घंटो बातचीत में खो जाती है।

घरवाले उसके स्वभाव से परिचित है। वे उसकी ओर कोई ज्यादा ध्यान नहीं देते। बच्चो को भी अपनी दादी से कोई खास लगाव नहीं है। दादी से यदाकदा वे कोई बात छेड़ देते है तो वे मनोरंजित ही अधिक होते है।

उनके साथ उनके माँ-बाप भी बच्चो जैसे मुस्कुराते रहते है। दादी मन मसोस कर चुप बैठी रहती है। कभी-कभी वह बड़बड़ा उठती है — “अपनी उमर के मैंने बीस कम सौ पाने पकाये है। सब समझती हूँ। बेटे को पढ़ाना था सो पढ़ा लिया। अच्छी नौकरी और तनखा भी हो गई मगर दिन भर यदि वह घर में ही ताश के पत्ते की तरह डुलता रहे तो या तो जोरू का गुलाम बनेगा या फिर जोकर बना फिरेगा। “

बच्चे दादी की ऐसी बात सुन खिलखिला पड़ते और मम्मी को जाकर कहते। मम्मी कभी चुपचाप आकर वह सारा बात सुनती और बच्चो के साथ खिलखिला पड़ती। इस बीच कभी वह इशारे से पापा को बुलाती तब बिल्ली की तरह पापा भी अपनी माँ का बात सुन खिलखिलाते हुए नाच पड़ते।

ऐसी बात नहीं थी कि दादी माँ को इस सारी गुसपुस का पता न हो। तब वह और अधिक जोर से रेंग पड़ती — ” जब बाप भी रांडगट्टा हो जाय तो बिचारे बच्चे क्या करेंगे। संस्कार तो किसी पराये घर से लेने से रहे। इस घर में न कोई काण रहा न कोई कायदा। न कोई धरम न कोई करम। न किसी सभा का न किसी सोसायटी का। बस फगद नाम लंफूदाराई रही जो करते फिरो रात दिन।

मैं अकेली हूँ मगर किसी के हारे , सहारे नहीं हूँ। एक हेला मारुं तो पचास डील खड़े कर दूँ। मेरी पुन्याई मेरे साथ है। जो जैसा करे वे वैसा भरे। आप तो बिगड़े सो बिगड़े मगर इन बालक्यों की जिनगानी तो सुधरे। ”

Short Story on Mother In Hindi

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राधाकिशन यह सुन रसोड़े की ओर लपक पड़ा और सब्जी छोंकने लग गया। ऐसे काम वह प्रतिदिन ही करता है। सब्जी का वगार ऐसा दिया कि सब जोर-जोर से खांसने लग गए। दादी माँ समझ गई कि अब इन निखट्टुओं के यहाँ रहने की बजाए थोड़ा बाहर हो आना ठीक रहेगा। यह सोच वह वो उठी और बाहर की ओर चल दी। बाहर बड़ा टेम्पो खड़ा था।

टेम्पो वाले ने आवाज दी — “धरम माँ आओ बैठो। किधर जाना है। चाहो तो जगदीश जी के दर्शन करा दूँ। ” धरम माँ ने सोचा , कई महीनो से इतनी दूर निकलना ही नहीं हुआ। आज चलो जगदीश के हो आऊं।

वह टेम्पो में बैठ गई और जगदीश के वहां उतर का साड़ी के पल्लू से बंधे पैसे निकालने लगी कि टेम्पो वाले ने साफ इंकार कर दिया कि मैं कोई किराया नहीं लूंगा। आपके बैठने से मेरे शकुन अच्छे हुए है। आज मेरे चांदी ही चांदी है। धरम माँ अपने पांवो पर हाथ टिकाती हुई जगदीश की सीढ़िया चढ़ी और देवता के सामने अपना माथा रगड़ने लग गयी। पास ही वहां कुछ महिलायें हरजस गा रही थी सो वह भी उनके साथ गाने लग गयी। कुछ ही समय बाद आरती होनी थी। धरम माँ ने पास में खेल रहे बच्चो से प्रसाद और फूल मालायें मंगाई और जगदीश की आरती का सुख लिया।

इधर राधाकिशन ने देखा कि चार घंटे से माँ नहीं है और कह कर भी नहीं गयी है तो उसकी खोज खबर तो ली जाय। उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह पास – पड़ोस में जहाँ-जहाँ उसकी बैठक है वहां-वहां उसे देख आये। पत्नी बोली — “माँ को लेकर कोई पड़ोस वाला अपने पक्ष में नहीं है। प्रतिदिन सुबह शाम कुत्तो को रोटी देना, गाय को रोटी खिलाना, कबूतर को मक्की डालना और चिड़ियों को चुग्गा देने की सामर्थ्य इस घर की नहीं है।

ऐसा करते-करते तो समुद्र का भी तल निकल आता है। ” राधाकिशन बोला — ” माँ जो कुछ कर रही है पानी अंटी से कर रही है। तुम्हारे से, मेरे से आज तक उसने एक फूटी कौड़ी तक नही ली। रही बात गाय, कुत्तो को रोटी खिलाने की सो ये काम भी वह अपना पेट काटकर करती है। “

राधाकिशन मुँह लटकाय स्कूटर लेकर निकल पड़ा। वह जहाँ-जहाँ भी गया, उसकी माँ तो नहीं मिली मगर उसे सैकड़ो बाते ऐसी सुनने को मिली जो उसके लिए ठीक नहीं थी। किसी ने कहा कि ” एक विधवा माँ को तुम ठीक से नहीं रख सकते तो कालेज में छोरों को क्या खाक शिक्षा देते हो। ” किसी ने कहा “जिन मुसीबतो में माँ ने तुमको पाला पोसा , बड़ा किया और पढ़ाया-लिखाया , आदमी बनाया, तुमने उस सब पर पानी फेर दिया। “

Short Story on Mother In Hindi

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किसी ने कहा ” डोकरी तुम्हारे कारण अनमनी हो कुछ कर बैठी तो पाप जो चढ़ेगा वो सात जनम तक नहीं उतरेगा। ” कुछ लोगों ने तो ऐसी धुतकारें दी कि राधाकिशन को उनकी फाटक के बाहर से ही निराश लौटना पड़ा।

राधाकिशन घुन का पक्का था। एक-एक कर उसने सारे मंदिर और देवस्थान छान मारे। एक जगदीश जी बाकी रह गए। वह बुरी तरह तक चूका था। हांफता-कांपता स्कूटर नीचे रख वह जगदीश की ऊँची सीढ़िया चढ़ा और चारों ओर परिक्रमा लगाई मगर माँ कही नहीं मिली। जब वह नीचे उतरने को था कि दरवाजे के पीछे उसे एक गठरी सी दिखी। उसने उसे छुआ तो बुढ़िया हिली और राधाकिशन को देख उठ बैठी। राधाकिशन उसके पास बैठ रोने लगा।

माँ ने उसे अपनी गोदी में लिया और चूमते हुए बोली– ” रोता क्यों है ? मैं कोई मर थोड़ी ही गई। जगदीश की शरण में पड़ी हूँ। जब चाहेगा तब उठा लेगा। अपने-अपने जैसे करम है वैसे भुगतने ही पड़ेंगे। ” राधाकिशन बोला — ” माँ मुझे माफ़ करो और घर चलो। सब लोग बेसब्री से तुम्हारी इंतजार कर रहे है। ” यह सुनते ही माँ उठी और राधे के कंधे पर हाथ रखकर सीढ़िया उतरने लगी।

Short Story on Mother In Hindi

Short Story on Mother In Hindi

सीढ़िया उतरते राधाकिशन सोचने लगा कि मेरी माँ कितनी भोली और सरल चित्त वाली है। इसकी जगह कोई दूसरी माँ होती तो अर्द्ध रात्रि में भी सारा शहर इकट्ठा कर लेती और मेरी प्रोफेसरी को निचोड़ कर रख देती मगर सब कुछ भूलकर कितनी निश्छल बनी हुई है। ऐसी माँ पाकर कौन धन्य नहीं होगा।

स्कूटर स्टार्ट कर उसने सहमे-सहमे माँ को पीछे बिठाया और घर ले गया। बुढ़िया ने किसी को कुछ नहीं कहा। कहा तो यही कहा कि मैं बिना कहे यहाँ से जगदीश दर्शन को चली गई। इससे तुम लोगो को जो परेशानी हुई उसके लिए मैं तुम सबसे क्षमा चाहती हूँ।

यह कह उसने माला हाथ में ली और आंखे बंद कर उसे फेरने लग गयी। राधाकिशन अपने शेष परिवार के साथ दूसरे कमरे में चला गया। क्योंकि वो जनता था कि बाई की कोई भी माला एक घंटे से कम की नहीं होती और कभी-कभी तो जब धुन चढ़ जाती है तो तीन-तीन, चार-चार माला एक साथ चलती रहती है।

सब लोग सो गए। इसके बाद बुढ़िया ने कभी भी किसी पर आक्रोश नहीं किया।महीने भर बाद वह जैन साध्वीजी के दर्शनार्थ जा रहे संग के साथ चल पड़ी और फिर कभी नहीं लौटी। राधाकिशन को खबर मिली तो यह कि उसकी माँ दीक्षा धारण कर जैन साध्वी बन गयी।

तो कैसे लगी यह mother story in hindi आप सभी को। इस कहानी से हमे अपने माँ के प्रति उनके देख-रेख व उनके वृद्धावस्था में उनका पूरी तरह से देखभाल करना चाहिए। तो उम्मीद करते है ये Short Story on Mother In Hindi आप सभी को जरूर पसंद आयी होगी। ऐसे ही kahani पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट में आते रहे।

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