अबोध प्रार्थना | Hindi Kahani for Kids

दोस्तों आज हम आपको Best Hindi Kahani बताने जा रहे है। यह हिंदी कहानी जिसका शीर्षक अबोध प्रार्थना है। यह हिंदी कहानी पुराने समय के शिक्षा का वर्णन करती है। तो चलिए आप सभी इस हिंदी कहानी का आनंद लीजिए।

अबोध प्रार्थना

(Best Hindi Kahani for Kids )

बहुत समय पहले की बात है। उस गांव में तब शिक्षा की कोई हवा नहीं थी। एक ऐसे गरीब लड़के से पंडित जी ने स्कूल खोला जिसके हाथो और पांवो में छह-छह अंगुलियां थी। स्कूल के नाम से लोग भय खाते थे लेकिन पंडित जी ऐसे धुनी थे कि प्रतिदिन हर घर में जा-जाकर सम्पर्क करते और कहते–” छोरे को पढ़ाओ। यदि वह पढ़-लिख गया तो , घर को रोशन कर देगा और सारे खानदान का नाम चला देगा। ” खासकर विधवाओं के लड़को को पढ़ाने के लिए पंडित जी बहुत जोर देते और कई बार उनके घरों से बच्चो को दुलारते हुए ले जाते। वे घंटा दो घंटा उन्हें स्कूल में रखते और वापस छोड़ जाते।

ऐसी ही एक विधवा थी जिसने अपने बच्चे को कुछ नहीं होते हुए भी पढ़ने भेज दिया। स्थिति यह थी कि वर्ष में एक बार गुरु पूर्णिमा का एक नारियल भी वह नहीं जुटा पाती थी। उसके मन में यह बैठ गयी थी कि घर में लक्ष्मी नहीं है। लक्ष्मी के अवतार बच्चे होते है पर तब, जब वे सरस्वती पुत्र बने। उसने नोहरे में साधु जी से सुन रखा था कि सबसे श्रेष्ठ धन विद्या धन है। इसे कोई भी प्राप्त कर सकता है और चोरी-चपाती का भी इस धन के साथ कोई खतरा नहीं है।

उस बाई ने साधु महाराज की यह शिक्षा गांठ बांध ली और अपने बेटे नथमल को पढ़ाने में दिन-रात एक कर दिया। गांव वालो को ईर्ष्या हुई कि “बाप मरे देर नहीं हुई कि उसने बच्चे को घर से निकाल स्कूल भेज दिया। ऐसा कौनसा हाकम बन जायेगा। खुद को तो चार पैसे का हिसाब नहीं करने आता। धरती पर मक्की के दाने रखकर न जाने कौनसा हिसाब करती रहती है। ” माँ सब कुछ सुनती और अपने अनाथपन के आंसू बहाती रहती।

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नथमल दीपक की रौशनी में घुटनों के बल अकड़ू बन पोथी में अपनी आंख गढ़ाए रहता। कभी-कभी उसी मुद्रा में सो भी जाता। माँ अपने नथमल में दीपक के उस प्रकाश को झांकती हुई अपने जीवन के अँधेरे को काटती। पंडित जी आते और माँ को हिम्मत बंधाते। कहते कि यह छोरा इस घर की मोतियों की फसल है। एक दिन आएगा जब इसके नाम से पूरा गांव जाना जायेगा। जो लोग आज अपनी आँखे तिरछी कर रहे है वे ही कल इसके नाम से अपनी आँखे बड़ी करते हुए मिलेंगे।

कोई नहीं जनता था कि नथमल गुदड़ी में छिपा लाल है। माँ के लिए तो अपना बच्चा अच्छा होता ही है चाहे वह कोई सी माँ हो और बच्चा कोई सा भी हो। पंडित जी जरूर जानते थे कि इस बच्चे के नाम से मेरे स्कूल का भाग्योदय है।

नथमल अपनी पढ़ाई में सदा ही सबसे आगे रहा। केवल पढ़ाई में ही नहीं , स्कूल में साल भर में जितनी भी प्रतियोगिताएं होती – भाषण की, कविता की, अंताक्षरी की , निबंध की, खेलकूद की, सब में नथमल सबसे आगे रेल का इंजन बना हुआ लगता। एक बार शरद पूर्णिमा की रात्रि को गांव के बच्चे गाँधी चौक में इकट्ठे हुए।

वहां एक के पीछे एक, सौ लड़के जुड़ पर जब इंजन बनने की होड़ मची तब वहां उपस्थित सब लोगो ने कहा कि इस गांव का जो लड़का सबसे अव्वल पढ़ाई में हो उसको इंजन बनाया जाये तब नथमल को उसके घर से लाया गया और इंजन के रूप में सबसे आगे किया गया। नथमल उस बात को आज भी याद किये हुए है। वह जब भी अपने पोते-पोतियों के बीच होता है उन्हें यही खेल अधिक खिलाता है और जो बच्चा पढ़ाई में सबसे अव्वल होता है उसी को इंजन बनाया जाता है।

मिडिल बोर्ड की परीक्षा में नथमल ने छः में से पांच विषय में विशेष योग्यता के अंक प्राप्त किये। इससे पंडित जी का स्कूल बहु दूर-दूर तक नामी हो गया। सेठों और श्रीमतों ने जहाँ पंडित जी को आर्थिक लाभ दिया वहां बच्चो की संख्या में भी आशातीत वृद्धि हुई।

नथमल ने आगे की पढ़ाई के लिए अपना गांव छोड़ दिया। उसने ज्यों ही अपनी पढ़ाई पूरी की, कालेज में उसकी नौकरी लग गयी। घर जो भी पढ़ा लिखा आता वह सबसे पहले उसकी माँ से मिलता। माँ उसे पढ़ाई लिखाई के बारे में पूछती और निरंतर विद्या-अध्ययन की प्रेरणा देती। लोग समझते कि ऐसी विदुषी माँ के कारण ही नथमल ऐसा विद्वान बन पाया। नथमल का परिवार एक आदर्श परिवार रहा।

साधु संतो के सान्निध्य से उसमे महावीर की शिक्षाएं ऐसी रमी की गृहस्थ में रहते हुए भी वह एक सात्विक उत्तम पुरुष बना रहा। सोने के नाम पर उसने अपनी पढ़ाई से प्राप्त गोल्ड मैडल देखे और डिबिया में हल्दीघाटी की पिली माटी सहेज कर रखी। कलम और कागज के धन को सबसे बड़ा धन मानकर उसने विद्यार्थियों में अखंड विद्या दान किया। यही कारण रहा कि धनपतियों के घरो में जितनी लक्ष्मी नहीं होगी उससे अधिक किताबों के रूप में उसके घर का कोना-कोना सरस्वती की सौरभ देता दिखाई देता।

सरस्वती की शाला यहाँ हर समय खुली रहती। नथमल का ज्ञान-यज्ञ हर समय अपना पूर देता दिखाई देता है। यहाँ सभी सम्प्रदाय , जाति , धर्म, और वर्ग के लोग आते है और अपनी-अपनी जीवन धर्मिता का होम किये सुखानंद हुए लगते है। नथमल की तिजोरी उसका टेबुल यानि खाट है जहाँ बैठकर वह अपनी कलम का दीपक जलाकर ज्ञान की साधना करता है। उसकी ज्योति का प्रकाश घर के सभी प्राणी अपनी हथेलियों में लिए आचमन करते रहते है। इस घर में जो भी आया, हथेली में रुपया रचा कर नहीं, मेहँदी का झाड़ उगाकर आया है और जो भी बच्चा जाया है उसने अपनी जन्मघूंटी में अक्षर को पीकर पुस्तक की हवा हिण्डोली है।

नथमल अपने गांव को नहीं भूला है। जब भी उसे याद आती है वहां चला जाता है और सब घरों में रामासामी कर उनके सुख का भागी बनता है। लोग उसकी पीढ़ियों में उतर कर उसके गुणों की चर्चा करते है और उस माँ को धन्य करते है जिसने पुरे गांव के ताने सहकर भी अपने सपूतों को पढ़ाया। धन से संपन्न कई लोग होते हुए भी उनकी चर्चा नहीं होती मगर विद्या से सम्पन्न सरस्वती पुत्रो की सब ओर चर्चा होती है।

खाट पर पड़ी वृद्धा माँ उठ नहीं सकती मगर नथमल के भगवान की तरह उसकी सेवा चाकरी होती रहती है। सबसे अधिक ध्यान तो नथमल ही रखता है। नथमल की निगाह केवल किताबो तक सीमित नहीं है। वह रसोई से लेकर तुलसी क्यारे तक की सभी चीजों का प्रतिदिन अपनी नजर में निकालता है और सबके साथ जुड़ते हुए भी अपने को सबसे परे बनाये रखता है। उसका स्वाद अपने पिता और दादा की प्रकृति और परंपरा में बंधा हुआ है।

माँ को इस बात की प्रसन्नता है कि उसके घर में नब्बे पार की उम्र में भी उसकी चलती है। कोई जाता है आता है तो उसे अपने दस्तक देता है और हर बात में उसकी राय पूछता है। माँ कुछ नहीं जानती, समझती हुई भी हवा के अनुकूल अपनी स्वीकृति देकर मन ही मन अपने भाग्य को, पिछले जन्म को सराहती है।

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बहुएं सब पढ़ी-लिखी कालेज शिक्षिकायें है मगर सब माँ और नथमल की डोर में बंधी हुई है। दोनों समय प्रार्थनायें होती है। इनमे उस समय जो मिलने वाले आते है वे भी सम्मिलित हो जाते है। बहुत छोटे-छोटे बच्चे जो न भगवान को समझते है और न प्रार्थना को, वे भी छोटी-अंगुलियां लगाए बैठे रहते है और उस पुरे समूह में अपने नासमझ स्वर देते हुए पन्ने फाड़ते दिखाई देते है।

नथमल इन प्रार्थना पन्नो को भगवान का परचा समझता है और उन्ही बच्चो को महावीर स्वामी का प्रसाद, पूर्वजो का प्रसाद और नवकार मंत्र का प्रसाद कहकर बाँट देता है। बच्चे उसे सिर से लगाकर बड़े यत्नपूर्वक अपनी जेब में रख लेते है। एक दिन अचानक माँ बहुत बीमार हो गई। डॉक्टर पर डॉक्टर बुलाये गए और दवाई दी गयी मगर बीमारी बढ़ती ही गयी। सबने माँ के रहने की उम्मीद छोड़ दी। जो भी आता माँ को देख आंसू बहाता। प्रार्थना का समय हुआ।

प्रतिदिन की तरह नथमल ने घंटी बजायी और प्रार्थना के लिए सब इकट्ठे हुए। नथमल ने कहा — ” प्रार्थना की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति होती है। इसके पीछे भगवान को भी झुकना पड़ता है। सब मिलकर ऐसी प्रार्थना करो कि जिससे माँ ठीक हो जाये। ” यह सुन सब प्रार्थना में पूरी तरह खो गए। छोटे-छोटे बच्चे ऐसे लग रहे थे जैसे उनमे साक्षात् भगवान का वास हो आया है। कुछ देर बाद माँ ने आँखे खोली। सबको संतोष हुआ कि भगवान ने उनकी प्रार्थना सुन ली।

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कुछ दिनों बाद नथमल स्वयं बीमार हो गया। यह बीमारी डॉक्टरों की निगाह में असाध्य बीमारी कही गयी। बहुत इलाज करने पर भी कोई लाभ नहीं हुआ। इस उलझन में सब लोग प्रार्थना करना ही भूल बैठे। इतने में सबसे छोटे चुन्नू बाबूजी की दराज से घंटी उठा लाया और इशारे से सबको घंटी बजा-बजाकर बाबूजी के कमरे में इकट्ठा किया। उसने सबको बैठने के आसन लाकर दिए। प्रार्थना की छोटी-छोटी पुस्तिकायें भी वहां लाकर रख दी और शांत मुद्रा में बैठ कर प्रार्थना में खो गए।

प्रार्थना करते-करते सबको बाबू जी का वह कथन याद हो आया जब माँ की नाउम्मीद बीमारी पर प्रार्थना के वक्त कहा था — “प्रार्थना में सबसे बड़ी शक्ति होती है ” और सचमुच में प्रार्थना की शक्ति और भक्ति में माँ को नया जीवन मिला था। बाबू जी के लिए सब लोग प्रार्थना कर रहे है। वे लोग भी जो प्रार्थना को समझते है और वे बच्चे भी जो भगवान और प्रार्थना को तो नहीं समझते किन्तु बाबू जी को बीमार होते देख उन्हें ठीक होते देखना चाहते है।

असली माँ की पहचान

(Short Hindi kahani For Kids )

किसी जंगल में हरा भरा वट वृक्ष था। उसके नीचे बंजारों का डेरा पड़ा था। उस डेरे में सेठ के दो लड़के चुराए हुए बड़े हो रहे थे। कोई बारह बरस बाद उधर से निकलते हुए सेठ सेठानी की निगाह उन बच्चो पर पड़ी और वे वही ठहर गया। राजा को उन्होंने बंजारों से अपने पुत्र खोने की बात कही परन्तु बंजारों ने उनकी बात को अनसुनी कर दी।

सुबह होने पर उन्होंने अपने दोनों पुत्रो को प्राप्त करने की हठ की परंतु बंजारों ने उन्हें अपना ही पुत्र बताया। इस पर तय हुआ कि सूरज की साक्षी में बंजारिन और सेठानी दोनों खड़ी रहेंगी और उनकी असली माँ होने की परख देंगी। सेठ ने मन ही मन धर्मराज को याद किया। देखते-देखते सेठानी का स्तन से दूध की धार फूटी और उन लड़को के मुँह में जा लगी।

धर्मराज की कृपा से सेठ-सेठानी ने अपने खोये बच्चे प्राप्त किये।

धर्म की जड़ हरी होती है और वह सब लोको में फैली हुई होती है परन्तु जो धर्मात्मा होता है उसी के लिए वह हितकारी होती है। अधर्मी कुछ काल तक धर्मी होने का स्वांग रच सकते है परन्तु अंत में उनकी पोल खुलती हुई नजर आती है। जिस समाज में जितने अधिक धर्मी होंगे उस समाज में धर्मराज की सत्ता प्रबल होगी।

तो कैसी लगी यह Best Hindi Kahani For Kids आप सभी को। यह कहानी से हमे शिक्षा के महत्व का पता चलता है और इसके पश्चात् एक छोटी सी कहानी जो की माँ की पहचान के रूप में है इससे यह साबित हो जाता है कि माँ की ममता और असली माँ की जगह कोई नहीं ले सकता। तो उम्मीद है यह हिंदी कहानी आप सभी को जरूर पसंद आयी होंगी।

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